सिंहस्थ उज्जैन |
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सिंहस्थ पर्व
सिंहस्थ करोड़ों हिन्दू धर्मावलम्बीयों, विदेशियों और भिन्न -भिन्न मत वाले दार्शनिकों,संतो के बीच आस्था आध्यात्म और परंपरा का केन्द्र बिन्दु रहा हैं.
हिन्दू मान्यता के अनुसार सागर मंथन मे जो अम्रत कलश निकला था उसको लेकर देवता और दानवों मे युद्ध हुआ था फलस्वरूप अम्रत की बूँदें नासिक,हरिद्वार, प्रयाग और उज्जैन में गिर गई थी,जिन स्थानों में अम्रत गिरा वहीं पर प्रत्येक बारह वर्षों में सिंहस्थ या कुम्भ का आयोजन होता हैं. शास्त्रों में लिखा गया हैं कि देवगुरू जब मेष,सिंह, वृश्चिक व कुम्भ राशि में आते हैं तो कुम्भ का आयोजन होता हैं.
हिन्दू मान्यता के अनुसार सागर मंथन मे जो अम्रत कलश निकला था उसको लेकर देवता और दानवों मे युद्ध हुआ था फलस्वरूप अम्रत की बूँदें नासिक,हरिद्वार, प्रयाग और उज्जैन में गिर गई थी,जिन स्थानों में अम्रत गिरा वहीं पर प्रत्येक बारह वर्षों में सिंहस्थ या कुम्भ का आयोजन होता हैं. शास्त्रों में लिखा गया हैं कि देवगुरू जब मेष,सिंह, वृश्चिक व कुम्भ राशि में आते हैं तो कुम्भ का आयोजन होता हैं.
योग और आयुर्वैद के साथ सम्बंध करता है ::-
अब सवाल यह बनता हैं कि योग और आयुर्वैद का सिंहस्थ जैसे धार्मिक आयोजन के साथ क्या सम्बंध हैं.वास्तव में यदि सिंहस्थ की विषय में हमे थोड़ी भी जानकारी हो तो हमे यह सवाल पूछनें की ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी परन्तु हमनें कुछ धार्मिक मान्यताओं से अलग हट़कर सोचनें का प्रयास ही नहीं किया,जबकि सिहंस्थ के पिछे की scientific approach मानव मात्र के कल्याण के लिये हैं.
उदाहरण के लिये उज्जैन में सिंहस्थ तब होता है जब बैशाख मास हो,शुक्ल पछ हो,ब्रहस्पति सिंह राशि मे हो,चंद्रमा तुला राशि में हो,स्वाति नछत्र हो,व्यतिपात योग हो scientific द्रष्टिकोण से यह स्थति प्रथ्वी की सबसे विशिष्ट स्थति होती हैं, जिसमें मनुष्य अपनें कल्याण के लिये भारत वर्ष के कुछ विशिष्ट स्थानों पर रहकर अपनें शरीर आत्मा के लिये जो यत्न करता हैं उसका प्रभाव मनुष्य के शरीर आत्मा पर सामान्य दिनों की तुलना में लाख गुना अधिक होता हैं.
यही कारण है,कि योगी,मुनि,दार्शनिक और सामान्य जन योग मुद्रा को करते हुये सिंहस्थ में मिल जातें हैं. साथ ही विभिन्न जड़ी-बूटीयों की प्रभावशीलता भी सिंहस्थ के दोरान अपनें चरमोत्कर्ष पर रहती हैं. यही कारण है कि सिंहस्थ जैसे आयोजन का इंतजार गुणी जन बारह वर्षों तक करतें हैं.
उदाहरण के लिये उज्जैन में सिंहस्थ तब होता है जब बैशाख मास हो,शुक्ल पछ हो,ब्रहस्पति सिंह राशि मे हो,चंद्रमा तुला राशि में हो,स्वाति नछत्र हो,व्यतिपात योग हो scientific द्रष्टिकोण से यह स्थति प्रथ्वी की सबसे विशिष्ट स्थति होती हैं, जिसमें मनुष्य अपनें कल्याण के लिये भारत वर्ष के कुछ विशिष्ट स्थानों पर रहकर अपनें शरीर आत्मा के लिये जो यत्न करता हैं उसका प्रभाव मनुष्य के शरीर आत्मा पर सामान्य दिनों की तुलना में लाख गुना अधिक होता हैं.
यही कारण है,कि योगी,मुनि,दार्शनिक और सामान्य जन योग मुद्रा को करते हुये सिंहस्थ में मिल जातें हैं. साथ ही विभिन्न जड़ी-बूटीयों की प्रभावशीलता भी सिंहस्थ के दोरान अपनें चरमोत्कर्ष पर रहती हैं. यही कारण है कि सिंहस्थ जैसे आयोजन का इंतजार गुणी जन बारह वर्षों तक करतें हैं.
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