१.संजीवनी वटी::-
संजीवनी वटी का वर्णन रामायण में भी मिलता हैं. जब मेघनाथ के साथ युद्ध में लक्ष्मण मूर्छित हुए तो संजीवनी बूटी ने लक्ष्मण को पुन: जीवन दिया था शांग्रधर संहिता में वर्णन हैं कि "वटी संजीवनी नाम्ना संजीवयति मानवम" अर्थात संजीवनी वटी नाना प्रकार के रोगों में मनुष्य का संजीवन करती हैं.आधुनिक शब्दों में यह वटी हमारें बिगड़े मेट़ाबालिज्म को सुदृढ़ करती हैं.तथा रोग प्रतिरोधक क्षमता (immunity) बढ़ाती हैं.
घटक द्रव्य::
उपयोग::-
सन्निपातज ज्वर,सर्पदंश,गठिया,श्वास, कास,उच्च कोलेस्ट्रोल, अर्श,मूर्छा,पीलिया,मधुमेह,स्त्री रोग ,भोजन में अरूचि.
मात्रा::-
वैघकीय परामर्श से
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२.चन्द्रप्रभा वटी::-
चन्द्रप्रभेति विख्याता सर्वरोगप्रणाशिनीउपरोक्त श्लोक से स्पष्ट हैं,कि चन्द्रप्रभा वटी समस्त रोगों का शमन करती हैं.
घट़क द्रव्य::-
कपूर,वच,भू-निम्बू, गिलोय,देवदारू,हल्दी,अतिविष,दारूहल्दी,पीप्पली,चितृक, धनिया,हरड़,बहेड़ा, आंवला, चव्य,बायबिडंग, गजपीपली,सौंठ, कालीमिर्च,स्वर्ण माछिक भस्म, यवछार,सज्जीखार,काला नमक,सेंधा नमक,विड़ नमक,निसोंठ,दन्तीमूल,तेज़पत्र,दालचीनी,छोट़ी ईलायची,वंसलोचन,लोह भस्म, मिस्री,शिलाजित और शुद्ध गुग्गुल.
रोगों में उपयोग विधि::-
२.मधुमेह::-नीम पत्तियाँ, बेल पत्तियाँ, और जामुन पत्तियों के रस के साथ या गुड़मार पत्तियों के रस के साथ.
५.शुक्राणु दोष होनें पर वंग भस्म के साथ.
६. प्रोस्टेट संबधित समस्यओं में गोछरादि गुग्गल के साथ.
८.गर्भाशय संम्बधी अन्य विकारों में बोल पर्पट़ी के या शतावरी चूर्ण के साथ.
९.अल्पमूत्रता में पनविरलादि भस्म के साथ.
१०.रक्त प्रदर में बोल पर्पटी और अशोक घ्रत के साथ.
११.बांझपन में पलाशपुष्पासव के साथ.
मात्रा::-वैघकीय परामर्श से.
३.शंखवटी::-
भैषज्य रत्नावली के अनुसार यह शंख शीतल होनें से अग्निमान्घादिचिकित्सा में इसका विशेष महत्व हैं.यह औषधि पित्त सम्बंधित रोगों के लियें उत्तम औषधि हैं.
घट़क द्रव्य::-
शुद्ध शंख,भूनी हींग,सोंठ,काली मिर्च,पीपल,सैन्धा नमक,समुद्र नमक,विड़ नमक,सोंचल नमक,खनिज नमक,शुद्ध पारा,शुद्ध गंधक,शुद्ध वत्सनाभ,इमली रस व निम्बू स्वरस
उपयोग::-
१.यह वटी अजीर्ण,ग्रहणी, और पेटदर्द को दूर करती हैं.
२.कण्ठ दाह,खट्टी डकार,पेट में जलन भोजन के बाद अन्न का नहीं पचना में इसका उपयोग अत्यन्त लाभकारी हैं.
३.इस औषधि के उपयोग से आँत की क्रियाँ बढ़ जाती हैं,फलस्वरूप कब्ज नहीं होता और अन्न पचानें की ताकत बढ़ती हैं.
विशेष उपयोग::-
१.ग्रहणी में छाछ के साथ सेवन करनें से शीघृ लाभ देती हैं.
२.अम्लपित्त में अनार रस या मावे से बनी मिठाई के साथ.
३.अजीर्ण में अदरक रस या लहसुन पेस्ट के साथ.
४.पेटदर्द में अजवाइन रस के साथ.
५.कुष्ठ में मंजिष्ठादि कसाय के साथ.
६.अर्श में चितृक मूल के साथ.
सावधानी::-
इस औषधि का प्रयोग मुखपाक( mouth ulcers)तथा दाँतों के दर्द में नहीं करें.
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