अर्जुनारिष्ट़::-
मासमात्रं स्थितो भाण्डे भवेत्पार्थाघरिष्टक:ह्रत्फुफ्फसगदान् सर्वान् ह्नत्ययं बलवीर्यक्रत
घटक का नाम
अर्जुन छाल, मुनुक्का,महुए के फूल,गुड़ एँव धायफूल
ह
उपयोग
यह अरिष्ट उत्तम ह्रदय रोग नाशक हैं.पित्तप्रधान ह्रदय रोग और फेफड़ों की सूजन से फूली हुई शिथिल नाड़ियों को संतुलित और द्रढ बनाकर निर्बलता को दूर करता है तथा शरीर में बल लाता हैं.ह्रदय- शूल,ह्रदय शैथिल्य ,शरीर में पसीना अधिक आना,मुँह सूखना,नींद कम आना,शरीर में रक्त संचार ठीक नहीं होना आदि विविध रोगों में उत्तम लाभकारी औषधि हैं.
मात्रा
वैघकीय सलाह से
Svyas845@gmail.com
अभयारिष्ट::- ़
अस्याभ्यासादरिष्टस्य नस्यन्ति गुदजा द्रुतम ग्रहणीपाणडुहद्रोगप्लीहगुल्मोदरापह:कुष्ठशोफारूचिहरो बलवर्णाग्निवर्धन
भैषज्य रत्नावली के अनुसार रोग और रोगी का बल,अग्नि और कोष्ठ का विचार करके यदि उचित मात्रा में इसका सेवन किया जावें तो सब प्रकार के उदर रोग नष्ट होतें है.यह मल मूत्र की रूकावट को दूर कर अग्नि को बढाता हैं.
एक अन्य आयुर्वेद ग्रंथ के अनुसार
अर्शासिनाशयेच्छीघ्रंतथावष्टावुदराणिच।वर्चोमूत्रविबंधघ्नोवहिसंदीपयेत्परम ।।
अर्थात अभयारिष्ट अर्श एँव उदर की मंदाग्नि का नाश कर मूत्र और मल की रूकावट दूर करने वाला बहुत ही उत्तम योग हैं ।
घट़क द्रव्य::
हरड़,मुनुक्का,वायविड़ंग,महुवे के फूल,गुड़,गोखरू, निसोंठ, धनिया, धायफूल,इन्द्रायणा जड़,चव्य, सौंफ, दन्तीमूल,मोचरस.
उपयोग::-
१.इसका विशेष उपयोग अर्श रोग (piles)में हैं.अर्श के दर्द को शान्त करनें के लियें अर्शकुठार, बोलबद्ध रस,कामदूधा रस,सूरण वट़क आदि के सेवन से किसी एक दवा का सेवन करनें के उपरान्त जब दर्द का जोर कम हो,तब अभयारिष्ट के सेवन से बहुत फायदा होता हैं.
२.अभयारिष्ट के सेवन पश्चात जो दस्त होतें हैं उससे आँतें कमज़ोर न होकर सबल बनी रहती हैं,जिससे दूषित मल आँतों में संचित नहीं होता.
३.अभयारिष्ट के सेवन से heart problem नहीं होती हैं.
४.अभयारिष्ट में बराबर मात्रा में कुमार्यासव मिलाकर लेनें से अतिशीघ्र लाभ मिलता हैं.
५.यह उदर में पाचक रस बनानें में मदद करता हैं.
मात्रा::-
वैघकीय परामर्श से.
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