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POWER OF VITAMIN E ,

VITAMIN   E over the years, there has been a growing realization that harmful effects can result from free radical processes ocuring in biological system. With this realization and with a better understanding of the function of vitamin e.there has been a renewed interest in a- tocopherol,the most potent biological and antioxidant form of the vitamin. Vitamin E is a term that encompasses a group of potent,lipid-soluble,chain-breaking antioxidants.Structural analysis have revealed that molecules having vitamin E antioxidant activity include four tocopherols and four tocotrienols tocopherol is the predominant form of vitamin E in blood, no matter what the composition of the diet,because of the preferential uptake of vitamin E transport proteins a- tocopherol is the most common fat soluble vitamin in  human blood,with concentration ranging from 15 to 40 mg/l DISCOVERY OF VITAMIN E It is an essential nutrient for humans and most animal species, especially early in life, vitamin E d

MUSCLE BUILDING

#1.शरीर सोष्ठव::- आज के युवा वर्ग का सपना अच्छे केरियर के अलावा स्वस्थ और मज़बूत तन भी बनता जा रहा हैं.और इस प्रवृत्ति को बढ़ानें में अभिनेता अभिनेत्रियों ने विशेष योगदान दिया हैं.हर युवा व्यायाम को छोड़ इन्हीं अभिनेताओं द्वारा प्रचारित महँगें -महँगें फूड़ सप्लीमेंट़ का उपयोग कर मज़बूत तन प्राप्त करना चाहता हैं. फूड़ सप्लीमेंट़ का उपयोग लम्बें समय तक करतें रहनें से कभी कभी शरीर कई दूसरी समस्या की गिरफ़्त में आ जाता हैं,अधिकाँशत: यह भी देखनें में आता हैं,कि फूड़ सप्लीमेंट़ बंद कर देने पर शरीर पहलें वाली स्थिति से भी कमजोर हो जाता हैं. #2 आयुर्वैद और योग की भूमिका::- प्राचीन काल से ही योग और आयुर्वैद ने मनुष्य के शरीर को  मज़बूत बनाने के लिये विशेष कार्य किया  हैं,और आज भी इस भूमिका का बखूबी निर्वहन कर रहा किन्तु कुछ लोगों  ने आयुर्वैद के नाम पर स्टेराइड़ को बेचकर लोगों को भ्रमित किया हैं. आईयें जानतें है स्वस्थ शरीर के निर्माण में योग और आयुर्वैद की भूमिका #१.अश्वगंधा चूर्ण को गोघ्रत में मिलाकर इससे सम्पूर्ण शरीर पर मालिश करें और दस मिनिट तक धूप में बेठें तत्पश्चात स्ना

ह्रदयाघात [ HEART ATTACK] पूर्व संकेत और प्राथमिक उपचार

ह्रदयाघात [ HEART ATTACK] पूर्व संकेत और प्राथमिक उपचार #.सामान्य परिचय::- सम्पूर्ण विश्व में तेजी से बदलतें सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी (Technological) परिदृश्य ने ह्रदय रोगों को मनुष्य के शरीर में ह्रदय रोगों को मनुष्य शरीर में स्थाई निवास करनें का भरपूर अवसर प्रदान किया हैं.जिस प्रकार आज का मनुष्य सोशल मिड़िया के सामनें बेठकर २४ घंटों में से १५ से १६ घंटें बीता रहा हैं,उससे W.H.O. का यह दावा सही साबित हो सकता हैं,कि 2022 तक मरनें वाले लोगों में हर तीसरा व्यक्ति ह्रदय से संबधित रोगों वाला होगा. ह्रदय मनुष्य शरीर का महत्वपूर्ण अंग हैं जो मनुष्य के जन्म से ही लगातार काम करता रहता हैं,और इसकी एक एक धड़कन मनुष्य के जीवित रहनें का प्रमाण हैं,ऐसे में यदि दिल बीमार हो जाता हैं तो मनुष्य का कर्तव्य बन जाता हैं,कि वह उसकी बीमारी को नज़रंदाज न करें.  Heart                         #.ह्रदय से सम्बंधित बीमारीयाँ::- १.उच्च रक्तचाप और निम्न रक्तचाप. २.ह्रदय शूल (angina pectoris). ३.ह्रदय दोर्बल्य. ४.congestive heart fellure. ४.ह्रदय गति असामान्य रूप से बढ़ना. ५.शिराओं

गर्भ संस्कार ,pregnancy Care

आयुर्वैद चिकित्सा पद्धति यदि आज तक अपना अस्तित्व बनायें हुयें तो इसका सम्पूर्ण स्रेय आयुर्वैद के उन  महान आचार्यों  को जाता हैं, जिन्होनें बीमारीं को मात्र बीमारीं के रूप में न देखकर इसके सामाजिक, आर्थिक,मनोंवेञानिक,पर्यावरणीय कारको तक की चर्चा अपनें ग्रन्थों में की.एेसा ही एक महत्वपूर्ण मसला बच्चों की परवरिश को लेकर हैं. गर्भ संस्कार भी आयुर्वैद की इसी महान परंपरा का प्रतिनिधित्व करता हैं जिसकी चर्चा आधुनिकतम विञान भी करता हैं कि बच्चों की परवरिश बच्चें के दुनिया में आनें की बाद की प्रक्रिया नहीं है,बल्कि यह तो बच्चें के गर्भ में आनें के बाद ही शुरू हो जाती हैं. महाभारत में अभिमन्यु ने चक्रव्यू भेदनें का राज़ अपनी माँ के गर्भ में ही जान लिया था.आज के लोग पूछतें हैं,क्या यह संभव था ? और आज क्या यह संभव हैं ?इस सवाल का जवाब यही हैं कि यदि आपनें प्राचीन भारतीय आयुर्वैद ग्रन्थों और अन्य परंपरागत शास्त्रों का अध्ययन किया होता तो इस सवाल को पूछनें की ज़रूरत ही नहीं पड़ती फिर भी बताना चाहूँगा कि गर्भ संस्कार वही विधि हैं जिसके माध्यम मनचाहे व्यक्तित्व को ढाला (program)  जा सकता हैं.

ALLERGIES TREATMENT

क्या हैं एलर्जी::- एलर्जी एक प्रकार की शारिरीक और मानसिक प्रतिक्रिया हैं,जो शरीर के सम्पर्क में आनें वालें पदार्थों के प्रति शरीर पैदा करता हैं. वास्तव में एलर्जी हमारें शरीर के बिगड़ी हुई रोग प्रतिरोधकता   ( immune system)  को रेखांकित करती हैं.जिसमें हमारा शरीर हानिकारक पदार्थों के साथ मित्र पदार्थों के प्रति भी अत्यधिक संवेदनशीलता  प्रदर्शित करता हैं. कारण::- १.खाद्य पदार्थों के कारण. २.परफ्यूम,रंग,ड़ाई के इस्तेमाल से. ३.कीड़ों,मच्छर के काट़नें से. ४.पराग कणों,धुल,धुँए से. ५.आनुवांशिकता जन्य. ६.दवाईयों ,एन्टीबायोटिक के कारण. ७.मौसम में परिवर्तन की वज़ह से. लछण::- १.आँखों से पानी निकलना,खुजली, लाल होना,सुजन होना. २.त्वचा में चकते निकलना, खुजली. ३.नाक में खुजली, पानी निकलना, लगातार छींकें आना. ४.अस्थमा, फेफडों में खीँचाव,गलें में खरास. ५.पेटदर्द ,डायरिया,पेट़ फूलना. ६.कानों में दर्द खुजली, सुनाई कम देना. उपचार::- आयुर्वैद चिकित्सा  में हमारें बिगड़े हुए इम्यून सिस्टम को प्रभावी बनानें की अद्भूत चिकित्सा हैं

URINARY TRACT INFECTION CAUSE SYMPTOM

परिचय::- सम्पूर्ण विश्व में मूत्र सम्बधी बीमारीयों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है,इन बीमारीयों में एक महत्वपूर्ण बीमारीं है मूत्र मार्ग का संक्रमण (urinary tract infection) .इस संक्रमण का प्रभाव पुरूषों की अपेक्षा  महिलाओं  में अधिक देखा गया हैं.यह जीवाणुजनित(Bacteria) से उत्पन्न होनें वाला रोग है जो ई.कोलाई(E.coli) नामक बैक्टरिया से फैलता है.यदि संक्रमण मूत्र मार्ग से होते हुये गुर्दे तक फैल जाता है,तो इसे पाइलोनेफ्राइटिस कहा जाता हैं.  कारण::- १.माहवारी के समय योनि की उचित देखभाल का अभाव २.असुरक्षित योन संसर्ग. ३.कैथैटर के कारण. ४.पथरी # kidney stone के कारण. ५.पानी कम पीनें के कारण. लक्षण::- १.मूत्र करते समय पस का आना. २.मूत्र करते समय खून का आना. ३.मूत्र के समय दर्द तथा जलन. ४.बुखार के साथ पीठ,पेडू व पेट के निचें तीव्र दर्द. ५.बार-बार मूत्र त्यागनें की इच्छा के साथ बूँद-बूँद मूत्र आना. ६.अजीब सी शारिरीक सुस्ती और चेहरा कांतिहीन होना. उपचार::- १.चन्द्रप्रभा वटी, त्रिभुवनकिर्ती रस , हल्दी को समान भाग में मिलाकर गोलीयाँ बना ले

paralysis treatment। लकवा उपचार

लकवा क्या हैं lakva kya hai ::- यदि मस्तिष्क की रक्तवाहिनीयों में रक्त का थक्का जम जाता है या मस्तिष्क की रक्तवाहिनीयाँ फट़ जाती हैं या मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम हो जाता हैं फलस्वरूप मस्तिष्क का नियत्रंण अंगों पर नहीं रहता और अंग काम करना बंद कर देतें हैं यही अवस्था लकवे के नाम से जानी जाती हैं. यदि मस्तिष्क का बाँया भाग प्रभावित होता है तो दाँया भाग और दाँया भाग प्रभावित होता हैं तो बाँया भाग लकवाग्रस्त हो जाता हैं. आयुर्वैदानुसार जब वायु कुपित होकर दाँए या बाँए भाग पर आघात कर शारिरीक इच्छाओं का नाश कर अनूभूति को समाप्त कर देती हैं यही अवस्था लकवा के नाम से जानी जाती हैं. लकवा कितने प्रकार का होता है  १.मोनोप्लेजिया या एकांगघात -- इसमें एक हाथ या एक पैर कड़क हो जाता हैं. २.ड़ायप्लेजिया --सम्पूर्ण शरीर में लकवाग्रस्त हो जाता हैं. ३.फेशियल पेरालिसीस या चेहरे का लकवा--इसमें चेहरा,नाक ,होंठ गाल पर नियत्रंण नहीं रहता हैं. ४.जीभ का लकवा ● पेट के छाले क्यों होते हैं यहाँ जाने लकवा होने के कारण::- १.उच्च रक्तचाप लगातार २०० से अधिक रहना. २.मस्तिष्क में गंभीर

HOW TO BOOST IMMUNITY POWER WITH AYURVEDA

इम्यूनिटी::- हमारें शरीर में रोगों से लड़नें की प्राक्रतिक प्रतिरोधकता विधमान रहती है,यदि शरीर बीमार पड़ता हैं,तो यह प्रतिरोधकता हमारें शरीर की बीमारीयों से लड़ने में मदद करती हैं.किंतु पिछलें दशकों में हमारी जीवनशैली ( lifestyle ) में आये बदलाव ने हमारी प्रतिरोधकता को बुरी तरह से प्रभावित किया हैं. इसे इस प्रकार समझा जा सकता हैं कि शरीर बाहरी बीमारीयों से लड़नें के बजाय अपनें खुद के शरीर से लड़नें लगा हैं, यही कारण हैं कि आज हर दस व्यक्तियों में से चार व्यक्ति ऑटो इम्यून ड़िसीज़ जैसे एलर्जी, Rumetoid arthritis , asthma बार बार बीमार होना   और अन्य इस तरह की बीमारीयों से जकड़ा हुआ हैं कि उसका डाँक्टर और केमिस्ट से मिलना रोज़ की बात हो गई हैं.किन्तु वास्तविकत में यदि हम आयुर्वैद और योग की सहायता से जीवन का प्रबंधन करें तो काफी खुशहाल और रोगमुक्त जीवन जी सकतें हैं.आईयें जानतें है,इम्यूनिटी बढ़ानें वाले उपाय योग::- १.सुबह उठते ही नित्यकर्मों से निवृत्त होकर योगिक क्रियाएँ  अवश्य करें योग क्रियाओं में सबसे महत्वपूर्ण आसन सूर्य नमस्कार है जो इम्यून सिस्टम को मज़बूत बनाता ह

CANCER AND AYURVEDA

कैंसर विश्व की सबसे प्रचलित और भयावह बीमारींयों में से एक हैं. आज यह बीमारीं महामारी के रूप में फैल रही है,अभी भी यह बीमारीं चिकित्सा शास्त्रीयों के लिये असाध्य बनीं हुई है.यदि आरम्भिक अवस्था में इसबीमारीं का पता लग जावें तब ही इसकी प्रभावीरोकथाम संभव है,अन्यथा यह बीमारीं मोत तक पीछा नहीं छोड़ती है.आज सौ से अधिक प्रकार का कैंसर चिकित्सा शास्त्रीयों ने खोज लिया है,कैंसर वास्तव में शरीर की कोशिकाओं का असामान्य रूप से बढ़ना हैं. कारण::- कैंसर के जितनें भी कारण है उनमें अधिकांशत: मानवजनित या जीवनशैली से  संबधित है जैसे १. तम्बाकू --यह विश्व में कैंसर का सर्वप्रमुख कारक है,लगभग ३५ % कैंसर तम्बाकू के प्रयोग से ही होते है. २.मोटापा, मोबाइल रेड़िएशन,खाद्य पदार्थों में प्रयुक्त कृत्रिम रंग. ३.आनुवांशिक कारणों से, प्रदूृषण,शारीरिक अक्रियाशीलता. ४.सूर्य से निकलनें वाली अल्ट्रावायलेट किरणों से. लक्षण ::- १.शरीर के किसी भी भाग में गांठ का होना जो लम्बें समय से ठीक नहीं हो रही हो. २.रक्त कैंसर की दशा में खून न बनना,चक्कर, उल्टी होना. ३.त्वचा कैंसर में त्वचा निकलना, फट़ना,खुजल

MALARIA - लक्षण, कारण और उपचार

मलेरिया परिचय::- मलेरिया [MALARIA] दो इटालियन शब्द "माल" और "अरिया" से मिलकर बना हैं जिसका शाब्दिक अर्थ हैं "खराब वायु" 18 वीं शताब्दी में जब मलेरिया होने के वास्तविक कारणों का पता नहीं था तब लोगों का मत था कि मलेरिया होने का कारण दलदली भूमि के आसपास की हवा खराब होती हैं इस कारण मलेरिया होता हैं। मलेरिया के मच्छरों का सर्वाधिक प्रसार भूमध्यसागरीय क्षेत्रों की उष्णकटिबंधीय और उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में होता हैं। इस हिसाब से देखा जाए तो मलेरिया अफ्रीका और दक्षिण पूर्व एशिया में मलेरिया के मामले अधिक पाए जाते हैं। मलेरिया विश्व की दस सबसे प्रचलित बीमारियों मे से एक है, जो प्रतिवर्ष विश्व के साठ करोड़ लोगों को अपनी चपेट में लेता है.यह रोग मादा एनाफिलीज मच्छर के काटने से फैलता है, मलेरिया[MALARIA] कैसे फैलता है  मलेरिया परजीवी के जीवन चक्र का कुछ भाग मनुष्य के रक्त में तथा शेष भाग मच्छर के शरीर में गुजरता है ।जब मादा एनाफिलीज मच्छर मलेरिया संक्रमित व्यक्ति का रक्त चूसती हैं, तो रक्त के साथ मलेरिया परजीवी भी उसके अमाशय में पंहुचा जातें हैं। 10 से 14 दिन ब

हाइपोथाइराडिज्म क्या है इसके कारण लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार की जानकारी

 हाइपोथाइराँड़िज्म क्या है  हमारें गले में स्वर यंत्र के ठीक निचें व साँस नली के दोनों तरफ तितली के समान संरचना होती हैं यही संरचना थायराँइड़ के नाम से पहचानी जाती है.इससे निकलनें वालें हार्मोंन रक्त में मिलकर शरीर की गतिविधियों को नियत्रिंत करते है.इस ग्रंथि को मस्तिष्क में मोजूद पिट्यूटरी ग्रंथि नियत्रिंत करती है,जब इस ग्रंथि से निकलने वाले हार्मोंन जैसें टी - 3  यानि ट्रायोडोथायरोनीन और टी -4 या थायराँक्सीन  कम मात्रा मे निकलते है तो शरीर मे कई तरह की समस्या उत्पन्न हो जाती हैं इस अवस्था को हायपोथाइराँइडिज्म कहते है. हाइपोथायरायडिज्म के  कारण १. कम मात्रा में आयोड़िन का सेवन. २.दवाओं का व सर्जरी का दुष्प्रभाव. ३.आँटो इम्युन डिसआर्डर (इसमें शरीर का रोग प्रतिरोधी तंत्र थायराँइड ग्रंथि पर आक्रमण कर देता है,के कारण . ४.अन्य हार्मोंनों का असन्तुलन. ५.पारिवारिक इतिहास होने पर हाइपोथायराँडिज्म की समस्या हो जाती है. हाइपोथायरायडिज्म के लक्षण  १.वज़न बढ़ना २.थकान व कमज़ोरी ३. उदासी ,माँसपेशियों मे खिचाँव, पैरों मे सूजन ४.याददाश्त में कमी,आँखों

MALNUTRITION AND AYURVEDA बाल कुपोषण और आयुर्वेद

#कुपोषण malnutrition::-  कुपोषित बच्चा विश्व के विकासशील देशो में कुपोषण एक गंभीर समस्या के रूप में विधमान हैं,जो बच्चों के जीवनीय क्षमता और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव ड़ालता हैं. सरल भाषा में बाल कुपोषण बच्चों में उस विकार का नाम हैं जिसमें या तो शरीर के पोषण,विकास एँव स्वास्थ संरक्षण के लिये आवश्यक पर्याप्त संतुलित आहार बच्चें को प्राप्त नहीं होता या बच्चें का शरीर लिये गये आहार का सम्यक् उपयोग करनें में सक्षम नहीं होता हैं. कुपोषण के कारण बच्चों मे कृशता,दुर्बलता व अन्य अनेक लक्षण उतपन्न हो जाते हैं. संतुलित आहार के बारें में रोचक जानकारी #कुपोषण का आयुर्वैदिक उपचार::- १.शतावरी चूर्ण ५ ग्राम, अश्वगंधा चूर्ण ५ ग्राम को रात को ५० मि.ली.पानी में गला दे सुबह इसे छलनी लगाकर अच्छे से दबाकर छान लें इस पानी में १०० मि.ली.दूध मिलाकर १० मिनिट़ तक उबालें तत्पश्चात ठंडा कर बच्चों को पिलायें.यह औषधि सन्धि,शिरा,स्नायुओं को मज़बूत कर शरीर में दृढ़ता,बल और रोग प्रतिरोधकता को बढ़ाता हैं. २.गोघ्रत को १० ग्राम अश्वगंधा चूर्ण के साथ मिलाकर रोटी के साथ बालक को खिलायें .

ASHOKARISTH,DASMULARISTH,KHADIRARISTH

परिचय::- अशोकारिष्ट़::- भैषज्यरत्नावली में इस औषधि का परिचय देते हुये लिखा हैं मासादूध्वेच्च पीत्वैनमसृग्दररूजां जयते ज्वरच्च रक्तापित्तार्शोमन्दाग्नित्वमरोचकम् मेहशोथदिकहरस्त्वशोकारिष्ट संञित:  अर्थात यह अशोकारिष्ट रक्त प्रदर, रक्त पित्त, ज्वर,रक्तातिसार(खूनी बवासीर) मन्दाग्नि,प्रमेह, अरूचि, शोथ को नष्ट़ करने वाला उत्तम अरिष्ट हैं. यह अरिष्ट रसायन और उत्तेजक हैं. घट़क द्रव्य:: अशोक छाल, को पानी मिलाकर तब तक उबाला जाता हैं जब तक एक चोथाई पानी शेष नहीं रह जाता तत्पश्चात गुड़ मिलाकर सेवन योग्य बनाया जाता है. स्वाद:: तिक्त ,कसेला सेवन वैघकीय परामर्श से svyas845@gmail.com दशमूलारिष्ट::- भैषज्य रत्नावली के अनुसार वातव्याधिं छयं छर्दि पाण्डुरोगच्च कामलाम् शर्करामश्मरीं मूत्रकृच्छं धातुछयंजयेत्छं कृशानां पुष्टिजननो बन्ध्यानां पुत्रद: पर:अरिष्टो दशमूलाख्यस्तेज: शुक्रबलप्रद: अर्थात इस आरिष्ट के सेवन करनें से वातव्याधि,  वमम,कामला,मूत्र में शर्करा,मूत्र में धातु जाना,महिलाओं का बन्ध्यापन जैसी बीमारीं शीघृ नष्ट हो जाती है