स्पांडिलाइटिस क्या हैं स्पांडिलाइटिस के कितने प्रकार होतें हैं स्पांडिलाइटिस के लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार
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स्पाँन्डिलाइटिस क्या हैं::-
स्पाँडिलाइटिस रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित बीमारीं हैं,जिसमें vertebrae column के जोड़ में सूजन, तनाव, दर्द, होता हैं. कई केसो में एक से अधिक vertebrae सम्मिलित होते हैं.
प्रकार::-
१.potts disease SPONDYLITIS ::- यह एक tuberculosis हैं.
2.Ankylosing SPONDYLITIS::-यह auto immune SPONDYLITIS हैं, जो रीढ़ की हड्डी और socroiliac जोंड़ों के बीच होता हैं.
इसे
spondylarthritis भी कहतें हैं. एक सँयुक्त प्रकार का भी SPONDYLITIS होता हैं जो जिसमें intervertebra disc के बीच में सूजन आ जाता है.
इसे
spondylarthritis भी कहतें हैं. एक सँयुक्त प्रकार का भी SPONDYLITIS होता हैं जो जिसमें intervertebra disc के बीच में सूजन आ जाता है.
Symptoms::-
१.गर्दन के आस पास तेज असहनीय दर्द जो लगातार बढ़ता रहता हैं.
२.चक्कर ,आँखों के आगे अँधेरा छाना.
३.उल्टी होना.
४.सूजन का लगातार गर्दन,पीठ,lumber के आसपास बने रहना.
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उपचार::-
आयुर्वैद चिकित्सा पद्धति में इस बीमारीं का वर्णन मुख्यत: वात रोगों के अन्तर्गत आता हैं.और वात व्याधि का पूर्णत:उन्मूलन भी आयुर्वैद चिकित्सा की विशेषता हैं.आईयें जानें उपचार
१.सर्वप्रथम पंचकर्म से शुरूआत करतें हैं ,इसके अन्तर्गत वमन,विरेचन,स्नेहन,स्वेदन और बस्ति के द्वारा शरीर को डीटाँक्सीफाई किया जाता हैं.
२.महावात विध्वसंन रस,वगजाकुंश रस,व्रहतवात चिन्तामणि रस को विशेष अनुपात में मिलाकर रोगी को देते है.
२.महारास्नासप्तक क्वाथ को रोग की तीव्रतानुसार सेवन करवाते हैं.
३.महायोगराज गुग्गल, एकांगवीर रस एँव लाछादि गुग्गल को विशेष अनुपात में सेवन करवातें हैं.
४.स्वर्ण भस्म, लोह भस्म, मुक्ता पिष्टी,को विशेष अनुपात में मिलाकर सेवन करवातें हैं.
५.महानारायण तेल का सेवन करवाते हैं.
योगिक क्रियाएँ इस रोग के लिये वरदान सिद्ध हुई है इस बात की पुष्टि आधुनिक शोधों से हो चुकी हैं, विशेष रूप से कमरबंधासन, सूर्यनमस्कार,अनुलोम-विलोम करते रहनें से रोगी शीघ्र स्वस्थ होता हैं.
६.तेरना इस रोग का एक अन्य महत्वपूर्ण व्यायाम हैं, जिससे रोगी के शरीर का सम्पूर्ण तंत्रिका तंत्र लचीला हो जाता हैं,और रक्त का प्रवाह रोगग्रस्त अंगों तक सामान्य बना रहता हैं.
SPONDYLITIS के लिये ट्रेक्सन[Traction] पद्धति ::
स्पांडिलाइटिस के उपचार में ट्रेक्सन पद्धति काफी उपयोगी साबित होती हैं, जिसके अन्तगर्त प्रभावित हिस्सों पर दबाव डालकर उपचार किया जाता हैं,यह ट्रेक्सन दो प्रकार का होता हैं.
१.सर्वाइकल ट्रेक्सन इस पद्धति में रोगी की गर्दन पर उपकरण की सहायता से दबाव डालकर ऊँगलियों की सहायता से मसाज की जाती हैं.
२.लम्बर ट्रेक्सन इस प्रणाली में कूल्हे के ऊपरी हिस्सों में दबाव डालकर स्पाइनल को एक सीध में लानें का प्रयास किया जाता हैं.
० पंचकर्म क्या हैं
नोट- वैघकीय परामर्श आवश्यक
Svyas845@gmail.com
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