ट्यूबरकुलोसिस क्या हैं
Tuberculosis या क्षय रोग एक संक्रामक बीमारी हैं.जो एक व्यक्ति से दूसरें व्यक्ति तक सम्पर्क के माध्यम से प्रसारित होती हैं.
यह एक जीवाणु (Bacteria) से होनें वाला रोग हैं,इस जीवाणु का नाम Microbacterium Tuberculosis हैं.
# टी.बी.का इतिहास ::
टी.बी.दुनिया की सबसे प्राचीन बीमारियों में से एक मानी गई हैं,जिसका वर्णन ॠग्वेद,अथर्ववेद ,चरक संहिता सुश्रुत संहिता आदि ग्रंथों में बड़ें विस्तारपूर्वक अलग-अलग नामों से मिलता हैं.
किसी ग्रंथ में इसे राजयोग,किसी में यक्ष्मा तो किसी में बालसा,क्षय तपेदिक आदि नामों से संबोंधित किया गया हैं.
शिव पुराण में वर्णन हैं,कि दक्ष प्रजापति ने अपने जमाई को क्रोध में आकर क्षय रोग से पीड़ित होनें का श्राप दिया था.
मनुष्यों में ट्यूबरकुलोसिस के साक्ष्य इजिप्ट की ममीज् में मिलें हैं,इन ममीज् का काल 2400 से 3000 ईसा पूर्व का माना जाता हैं.
इसके पूर्व यह बीमारी जँगली भैंसों में पाई जाती थी,ऐसा माना जाता हैं,कि जंगली भैंसों से ही टीबी की बीमारी मनुष्यों में फैली थी.
इसका आधुनिक नाम ट्यूबरकुलोसिस (Tuberculosis) सन् 1839 में जे.एल.स्कारलीन द्धारा दिया गया हैं.जबकि टीबी के बेक्टेरिया को जर्मनी के डाक्टर राबर्ट कोच ने 24 मार्च 1882 को खोजा था । टीबी से बचाव, इससे संबंधित जनजागरुकता फैलाने,और डाक्टर राबर्ट कोच के प्रयासों को सम्मानित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष 24 मार्च को "विश्व क्षय दिवस"या world Tuberculosis Day के रूप में मनाया जाता हैं।
# टीबी से प्रभावित अंग ::
टी.बी.को फेफडों से संबधित बीमारी माना जाता हैं,किंतु वास्तविकता यह हैं कि ट्यूबरकुलोसिस बाल और नाखून को छोड़कर शरीर के प्रत्येक अँग को प्रभावित कर सकती हैं.जैसें हड्डीयों की टीबी,गर्भाशय की टीबी, दाँतों की टीबी,आँतों की टीबी,पेट की टीबी आदि .
किंतु लगभग 85% मामलें फेफडों की टी.बी.के ही पाये जातें हैं.जबकि 15% अन्य अंगों की टीबी के पाये जातें हैं.
विशेषज्ञों की मानें तो टीबी के जीवाणु प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मौंजूद रहतें हैं.लेकिन टीबी से प्रभावित वही व्यक्ति होता हैं,जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती हैं.ऐसे में टीबी के जीवाणु शरीर पर आक्रमण कर देतें हैं.
विशेषज्ञों की मानें तो टीबी के जीवाणु प्रत्येक मनुष्य के शरीर में मौंजूद रहतें हैं.लेकिन टीबी से प्रभावित वही व्यक्ति होता हैं,जिसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम होती हैं.ऐसे में टीबी के जीवाणु शरीर पर आक्रमण कर देतें हैं.
# टी.बी.के लक्षण :::
#१.दो सप्ताह से लगातार खाँसी
#२.खाँसी के साथ लगातार बुखार
#३.वजन का लगातार घटना
#४.भूख नहीं लगना
#५.रात में पसीना आना.
#६.थोड़ा सा काम करनें पर थकावट होना
#७.सर्दी जुकाम के साथ ठंड़ लगना
८.खाँसनें पर बलगम के साथ खून आना.
#९.फेफडों के दोनों भागों में दर्द
#१०. स्वरयंत्रशोध ( Laryngitis)
#११.सांस फूलना.
#१२.अन्य अंगों में टीबी होनें पर उस अंग से संबधित समस्या होती हैं,जैसें रीढ़ की हड्डी की टीबी होनें पर पैर और पीठ में दर्द होना.
#१२.अन्य अंगों में टीबी होनें पर उस अंग से संबधित समस्या होती हैं,जैसें रीढ़ की हड्डी की टीबी होनें पर पैर और पीठ में दर्द होना.
# संक्रमण :::
ट्यूबरकुलोसिस का जीवाणु खाँसते या छींकतें समय रोगी व्यक्ति से स्वस्थ व्यक्ति में पहुँचता हैं.
यह जीवाणु खाँसनें या छींकनें पर मुहँ या नाक से निकलनें वाली Droplets Nuclei में रहता हैं तथा कई घंटो तक जीवित रह सकता हैं,यह Droplets Nuclei जब हवा में तेरते हुये किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करता हैं,तो वह व्यक्ति टी.बी.से संक्रमित हो जाता हैं.
टी.बी. का बेक्टेरिया T.B.ka bacteria फेफड़ों से होता हुआ खून के माध्यम से शरीर के अन्य भागों मस्तिष्क, गला,हड्डी,रीढ़ की हड्डी,गुर्दे आदि भागों तक फैल जाता हैं । जिससे इन भागों में भी टी.बी.हो जाती हैं ।
टी.बी. का बेक्टेरिया T.B.ka bacteria फेफड़ों से होता हुआ खून के माध्यम से शरीर के अन्य भागों मस्तिष्क, गला,हड्डी,रीढ़ की हड्डी,गुर्दे आदि भागों तक फैल जाता हैं । जिससे इन भागों में भी टी.बी.हो जाती हैं ।
# ट्यूबरकुलोसिस का कारण:::
ट्यूबरकुलोसिस एक जीवाणुजनित रोग हैं,जो Microbacterium Tuberculosis नामक जीवाणु के संक्रमण से होता हैं.
टीबी का वास्तविक कारण नहीं मालूम होने से पूर्व विश्व भर में टी.बी.के संदर्भ में अनेक भ्रांतियाँ प्रचलित थी जैसें भारत में टी.बी.के होनें का कारण किसी देवी देवता के क्रोधित होनें से लगाया जाता था.
#ट्यूबरकूलोसिस (TB) की जाँच विधि::
TB के लिये की जानें वाली जाँच
#१.Sputum परीक्षण.
#२.छाती के एक्स रे द्धारा.
#३.कल्चर विधि द्धारा Bacteria प्रथक्करण.
#४.Plural fluid examination method
# TB का सबसे तेज उपचार क्या हैं
भारत समेत सम्पूर्ण विश्व में आज टी.बी.का सबसे तेज, सर्वमान्य और प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं,जिसमें इँजेक्सन,गोलियाँ और वेक्सीन सम्मिलित हैं.
भारत में DOT (Direct observation treatment) उपचार पद्धति बहुत अच्छा परिणाम दे रही हैं और इन्ही के बदोलत हम बहुत जल्द टीबी मुक्त भारत का सपना हकीकत में बदलते देखेंगे
यदि मरीज निर्धारित समयावधि तक चिकित्सकों और पेरामेड़िकल स्टाफ की देखरेख में दवाईयों का डोज लेता रहें तो ट्यूबरकुलोसिस से पूर्णत: निजात पाना बहुत आसान हैं.
# टी.बी.का टीका
टी.बी.से बचाव के लियें सन् 1906 में B.C.G.(Bacillus Calmette Guerin) टीके को खोजा गया था.जो सम्पूर्ण विश्व में ट्यूबरकुलोसिस से बचाव हेतू बच्चों को लगाया जाता हैं.
टीबी की गोली
टीबी के उपचार और एमडीआर टीबी की रोकथाम के लिए बेडाकुइलीन नामक दवा का प्रयोग होता हैं।
# ट्यूबरकुलोसिस और विश्व ::
विश्व में लगभग 1 करोड़ लोग टी.बी.से ग्रसित हैं.इन 1 करोड़ लोगों में से लगभग 90% मरीज विश्व के विकासशील और अविकसित राष्ट्रों में पायें जातें हैं.
विश्व भर में लगभग 18 लाख लोग प्रतिवर्ष मौंत के मुँह में समा जातें हैं.
/////////////////////////////////////////////////////////////////////////
० मधुमक्खी पालन एक लाभदायक व्यवसाय
/////////////////////////////////////////////////////////////////////////
# भारत और ट्यूबरकुलोसिस
भारत ने ट्यूबरक्लोसिस से निपटने के प्रयास के क्रम में सन् 1962 में राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम की शुरुआत की थी, लेकिन यह राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम पूरी तरह सफल नहीं हो सका। फलस्वरूप सन् 1993 में पुनरीक्षित राष्ट्रीय क्षय नियंत्रण कार्यक्रम शुरू किया गया जिसमें आधुनिक डाट्स प्रणाली द्वारा टीबी का उपचार किया जाता हैं।
भारत विश्व के उन चुनिंदा राष्ट्रों में से हैं,जहाँ टी.बी.अत्यधिक घातक रूप में विधमान हैं, भारत में हर तीन मिनट में टीबी से दो लोग मौत के मुंह में चले जाते हैं।
इसका प्रमुख कारण टी.बी.के मरीज द्धारा बीच में उपचार छोड़ देना हैं.एक अनुमान के अनुसार लगभग 8% मरीज टीबी उपचार को बीच में ही छोड देतें हैं.
बीच में उपचार छोड़ देनें से यह बीमारी दूसरी बार में बहुत अधिक जटिल रूप में मरीज को प्रभावित करती हैं,जिसे MDR (Multi Drug resistance) और XDR (extreme Drug resistance) के नाम से जाना जाता हैं, इसका उपचार भी अधिक लम्बा और जोखिमपूर्ण होता हैं.क्योंकि मरीज पर दवाईयों का असर बहुत कम होता हैं.
विश्व भर में टी.बी.के 1 करोड़ मरीज पायें जातें हैं,जिसमें से लगभग 28 लाख मरीज भारत में हैं,
भारत में 80 प्रतिशत लोगों में फेफड़ों की टीबी या पल्मोनरी टीबी जबकि 20 प्रतिशत लोगों में एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी यानि शरीर के दूसरे अंगों में टीबी पाई जाती हैं।
भारत में विश्व के कुल मरीजों का 25% टीबी ग्रस्त लोग हैं और यह स्थिति हमारें लिये बहुत अधिक चिंताजनक हैं,क्योंकि टी.बी.ग्रस्त इन 25% लोगों में 70% लोग कामकाजी उम्र से संबध रखतें हैं.
कामकाजी उम्र में टी.बी.होनें का सीधा मतलब हैं,देश की अर्थव्यवस्था इन लोगों की अनुत्पादकता की वज़ह से पिछड़ी हुई होगी.
जबकि हमारें पास टी.बी.का प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं,और थोड़े से प्रयास से हम इस वर्ग पुन: कामकाजी वर्ग में सम्मिलित कर सकतें हैं.
टी.बी.का जोखिम किन लोगों मे अधिक होता हैं
१.कोयला खदानों,स्लेट उघोगों,पत्थर खदानों,क्रेशर मशीनों आदि में काम करनें वालें मज़दूर ।
२.धूम्रपान करनें वालें व्यक्ति , भारत में होने वाले टीबी रोग में लगभग 8 प्रतिशत टीबी का कारण तम्बाकू सेवन हैं ।
३.कुपोषित व्यक्ति या कुपोषित बच्चें
४.गंभीर बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति
५.अस्थमा,copd आदि से जूझ रहे व्यक्ति
# भारत में टी.बी.से मौतें ::
टी.बी.भारत की 5 प्रमुख जानलेवा बीमारीयों में से एक हैं,जिससे प्रतिवर्ष 4.5 लाख लोग काल के गाल में समा जातें हैं.इस बीमारी से मृत्यु के मामलें में भारत शीर्ष राष्ट्रों में सम्मिलित हैं.
भारत में टीबी चिकित्सकीय व्याधि से बढ़कर सामाजिक व्याधि हैं. सामाजिक बहिष्कार के ड़र से परिवार टीबी को गोपनीय रखतें हैं और निजी चिकित्सको के पास इलाज करवाते रहतें हैं,जबकि टीबी की विश्वस्तरीय और WHO के मानदंडों पर खरी दवाईयाँ सरकारी अस्पतालों में आसानी से उपलब्ध हैं.
भारत में टीबी चिकित्सकीय व्याधि से बढ़कर सामाजिक व्याधि हैं. सामाजिक बहिष्कार के ड़र से परिवार टीबी को गोपनीय रखतें हैं और निजी चिकित्सको के पास इलाज करवाते रहतें हैं,जबकि टीबी की विश्वस्तरीय और WHO के मानदंडों पर खरी दवाईयाँ सरकारी अस्पतालों में आसानी से उपलब्ध हैं.
यही कारण है कि भारत में टीबी उन्मूलन में बहुत अधिक समय लग रहा है।
# टी.बी.से निपटनें की कार्ययोजना ::
विश्व स्वास्थ संगठन (W.H.O.)ने टी.बी.मुक्त विश्व के लिये सन् 2030 तक की समयसीमा तय की हैं,इसी सन्दर्भ में भारत ने एक कदम आगे बढ़तें हुये इस लक्ष्य को सन् 2025 तक प्राप्त करनें का संकल्प लिया हैं.
ट्यूबरकुलोसिस को समाप्त करनें हेतू भारत ने " टी.बी.मुक्त भारत" अभियान की शुरूआत की हैं,जिसका नारा हैं " टी.बी.हारेगा,देश जितेगा"
इस लक्ष्य को प्राप्त करनें के लियें यूनिवर्सल D.S.T.प्रणाली की शुरूआत की गई हैं,जिसके माध्यम से टी.बी.मरीजों का प्रभावी उपचार किया जा रहा हैं.
इसके अलावा सन् 2012 में इस बीमारी को अधिसूचित बीमारी माना गया हैं,जिसका इलाज किसी प्राइवेट अस्पताल में नहीं हो सकता ,यदि प्राइवेट अस्पताल में कोई टी.बी.का मरीज पँहुचता हैं,तो इसकी जानकारी नज़दीकी सरकारी अस्पताल या जिला क्षय अधिकारी को देना अनिवार्य कर दिया गया हैं.
सरकारी अस्पताल के कर्मीयों के लिये भी टी.बी.मरीज की जानकारी छुपाना अपराध घोषित कर दिया गया हैं.
टी.बी.के इलाज के लिये Joint T.B.Monitoring Mission बनाया गया हैं,जिसमें राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को सम्मिलित कर निगरानी का प्रभावी और निष्पक्ष माँड़ल तय किया गया हैं.
W.H.O.भी टी.बी.उन्मूलन के लिये भारत को तकनीक और दिशा निर्देश प्रदान कर रहा हैं,जिससे यह बीमारी जल्द से जल्द समाप्त हो.
टीबी मरीज को क्या सावधानी रखना चाहिए
#१.टी.बी.का इलाज करवातें समय बीच में इलाज नही छोड़ना चाहियें.
#२.खाँसते छींकतें या किसी से बात करतें वक्त मुहँ को रूमाल या कपड़े से ढँककर रखे.और मास्क अनिवार्य रूप से पहने
#३.मरीज समुचित भोजन और पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का अवश्य सेवन करें.
#४.नियमित योग,कसरत आदि करना चाहियें.
#५.खाँसते वक्त निकलें बलगम को किसी विसंक्रमित बर्तन में ही थूँके और बाद में इसका निस्तारण भी विसंक्रमित करके ही करें.
#६.टी.बी.दवाईंयों के सेवन से कई बार मरीजों को चक्कर आना,भूख न लगना,उल्टी होना,बुखार,चिढचिढापन,खुजली आदि जैसी समस्याएँ हो जाती हैं । किन्तु इस प्रकार की समस्याओं से घबराकर दवाई बंद नही करना चाहियें बल्कि चिकित्सकीय सलाह का पालन कर दवाई निरंतर रखना चाहियें ।
# ७.टीबी मरीज शराब तम्बाकू धूम्रपान आदि से दूर रहें।
#८.टीबी मरीज खुले हवादार कमरे में ही रहें ।
#९.टीबी का देसी इलाज करवा रहें हों तो भी साथ साथ विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रमाणित इलाज जरुर करवाना चाहिए।
० सिंघाड़े के फायदे
• तम्बाकू से होने वाले नुकसान का स्वास्थगत विश्लेषण
आंतों की टीबी क्या होती हैं
आंतों की टीबी भी फेफड़ों की टीबी की तरह की टीबी का एक प्रकार हैं जो माइक्रोबैक्टैरियम ट्यूबरकलोसिस के साथ साथ माइक्रोबेक्टेरियम बोविस नामक बेक्टेरिया से भी होती हैं।
आंतों की टीबी अधिकांशतः छोटी आंत के अंतिम भाग और सीएम में होती हैं।
आंतों की टीबी के लक्षण
✓ खून युक्त दस्त
✓ बुखार आना
✓ लगातार वजन कम होना
✓ भूख समाप्त हो जाना
✓ लगातार पेटदर्द जो साधारण दवाईयों से ठीक नहीं हो रहा हो
✓ पेट में गांठ बनना
✓ बहुत अधिक कमजोरी आना
✓ आंतों में दर्द
✓ कुपोषण
आंतों की टीबी कितने प्रकार की होती हैं
आंतों की टीबी तीन प्रकार की होती है
1.हाइपरट्राफिक टीबी
इस तरह की टीबी में आंतों की बाहरी दीवार बेक्टेरिया के संक्रमण के कारण मोटी और सख्त होकर मल निकलने में रुकावट पैदा करती हैं। यह टीबी 100 में से 10 लोगों में पाई जाती हैं।
2.अल्सरेटिव टीबी
इस प्रकार की टीबी के सर्वाधिक मामले प्रकाश में आते हैं, प्रत्येक 100 लोगों में से 65 लोग इसी प्रकार की टीबी से पीड़ित होते हैं । इस प्रकार की टीबी में आंतों में बेक्टेरिया के संक्रमण के कारण छाले हो जाते हैं।
3.अल्सरोहाइपरट्राफिक टीबी
अल्सरोहाइपरट्राफिक टीबी अल्सरेटिव टीबी और हाइपरट्राफिक टीबी का संयुक्त प्रकार है जिसमें आंतों में रुकावट के साथ छालों की समस्या भी होती हैं। यह टीबी 100 में से 25 लोगों में पाई जाती है।
आंतों की टीबी का इलाज
आंतों की टीबी के 80 प्रतिशत मरीज यदि समय पर इलाज शुरू कर दें तो दवाईयों से ठीक हो जाते हैं किन्तु कुछ जटिलताओं के कारण लगभग 20 प्रतिशत मरीजों को सर्जरी की आवश्यकता पड़ती हैं, आजकल उपलब्ध सर्जरी की आधुनिकतम तकनीक के कारण मरीज बहुत जल्दी स्वस्थ होकर सामान्य जीवन जी सकता हैं।
यदि आंतों की टीबी का इलाज समय पर शुरू नहीं हो पाता है तो लोग की गंभीरता बढ़ जाती है तब टीबी अन्य अंगों तक फैल सकती हैं, आंतों से बहुत अधिक खून निकलने लगा सकता है, तथा आंतों में छेद हो सकता है।
आंतों की टीबी के मरीज का आहार
✓ संतुलित और प्रोटीन युक्त आहार अधिक लें
✓ केला,आलू,चावल,दाल,सोया उत्पाद फलों का रस अधिक लें
• इम्यूनैथेरेपी
• रीढ़ की हड्डी में दर्द समाप्त कैसे हो
वायु प्रदूषण और टीबी
भारत में वायु प्रदूषण टीबी के बढ़ते मामलों का एक बड़ा कारण वायु प्रदूषण होता जा रहा है। शिकागो विश्वविद्यालय के एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स के अनुसार भारत विश्व का पांचवां सबसे प्रदूषित देश हैं। जहां के एक भी शहर का पीएम 2.5 स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर से कम नहीं हैं।
ऐसी अवस्था में फेफड़ों और श्वसन तंत्र की बीमारी जैसे ट्यूबरक्लोसिस व्यक्ति को अधिक तेजी से अपनी चपेट में लेती हैं।
क्या टीबी का बेक्टेरिया हमारे शरीर में ही रहता है
चिकित्सकों के अनुसार टीबी का जीवाणु वर्षों तक हमारे शरीर में निष्क्रिय अवस्था में पड़ा रहता है और व्यक्ति का प्रतिरोधक तंत्र कमजोर होने पर सक्रिय होकर व्यक्ति को टीबी ग्रस्त कर देता हैं। उदाहरण के लिए कुछ बीमारियां हैं जो टीबी जीवाणु के शरीर में सक्रिय होने लिए अनूकूल होती हैं।
• एचआईवी
• कुपोषण
• डायबिटीज़
• धूम्रपान
• सफाई की कमी
प्रश्न - क्या हाई प्रोटीन डाइट से टीबी तेजी से ठीक हो सकती हैं ?
उत्तर- जी हां, यदि आप टीबी के उपचार के साथ हाई प्रोटीन डाइट जैसे सोयाबीन, अंकुरित अनाज, अंकुरित दालें और प्रोटीन सप्लीमेंट लेते हैं तो टीबी की बीमारी से तेज़ी के साथ ठीक हो सकतें हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार हाई प्रोटीन डाइट मनुष्य की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर टीबी की दवाइयों का काम आसान कर देती हैं।
टिप्पणियाँ