#1.भील जनजाति ::::
भील जनजाति भारत की आदिम जनजाति हैं.भील शब्द द्रविड़ शब्द बिल्ल का रूपातंरण हैं,जिसका अर्थ हैं धनुष चूंकि यह जाति धनुष विधा में निपुण होती हैं,अत : इसी से इसका नाम भील पड़ा.
भीलों का उल्लेख रामायण, महाभारत और पुराणों में भी मिलता हैं. वैदिक काल की अनार्य जातियों में शामिल निषाद में एक जाति भील भी थी.
#2.भील जनजाति का भौगोलिक वितरण ::::
यह जनजाति मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश में पाई जाती हैं.
मध्यप्रदेश के पश्चिमी जिलों झाबुआ, अलीराजपुर, धार,बड़वानी आदि जिलें इस जनजाति की बाहुल्यता वालें हैं.
भील भारत की 3 री बड़ी जनजाति हैं.मध्यप्रदेश की यह सबसे बड़ी जनजाति हैं,जिसका कुल जनजाति जनसँख्या में 37.7% योगदान हैं.(जनगणना 2011)
# 3.भील जनजाति की शारीरिक विशेषता ::::
भील ठिगनें,बाल घुंघरालें,नाक चोड़ी और त्वचा का रंग ताम्बिया जैसी शारीरिक विशेषताओं से युक्त होतें हैं.
अन्य जनजातियों की तुलना में भील सुंदर होतें हैं.
यह जनजाति प्रोट़ो आस्ट्रेलाइड़ परिवार का प्रतिनिधित्व करती हैं.
#4.भीलों का निवास :::
भील पहाड़ी पर बाँस,खपरेल और लकड़ी से बनें मकानों में निवास करतें हैं.दो मकानों के बीच दूरी काफी अधिक होती हैं.
फाल्या |
इनके निवास को फाल्या कहा जाता हैं.
भीलों के घर काफी बड़ें और चोड़ें होतें है.
#5.भील जनजाति की सामाजिक व्यवस्था :::
भीलों में 5 उपजातियाँ बनी हुई हैं.जिनमें शामिल हैं ,भील,भिलाला,पटालिया,रथियास और बैगास.
व्यावसायिक आधार पर भी अनेक उपजातियाँ बनी हुई हैं जैसें -- भगत,पुंजारों,कोट़वार.
आर्थिक आधार पर भी भीलों में संस्तरण मैले भील और उजले भील के रूप में हैं.
जिन भीलों ने मुस्लिम धर्म अपना लिया हैं उनको तड़वी भील कहा जाता हैं.
#6.रहन - सहन और वेषभूषा :::
भील अत्यंत रंग प्रिय जनजाति हैं.इनकी स्त्रीयों को सजना सवंरना,गुदाना,और रंगबिरंगें कपड़े पहनना बहुत भाता हैं.
भील जनजाति की महिलायें |
आभूषणों में चाँदी या गिल्ट़ के आभूषण पहनना पसंद करतें हैं.
स्त्री कमर में,कान,हाथ नाक और गलें में आभूषण पहनतें हैं वहीं पुरूष कान,हाथ और पाँव में आभूषण पहनतें हैं.
स्त्रीयाँ घाघरा चोली पहनती हैं,और उस पर अंगरखा डालकर रखती हैं,जबकि पुरूष धोती,कम़ीज और सिर पर पगड़ी धारण करतें हैं.
#7.भील जनजाति में विवाह :::
भील जनजाति पितृ सत्तात्मक हैं,जहाँ स्तरी शादी के बाद पति के घर आकर निवास करती हैं.
भीलों में हरण विवाह,गंधर्व विवाह, क्रय विवाह और सेवा विवाह प्रचलित हैं.ये सामान्यत: एकल विवाही होतें हैं परंतु कही - कही बहुविवाह भी देखनें को मिलता हैं,जो संपन्न भीलों में देखा जाता हैं.
भीलों का प्रणय पर्व भगोरिया और गोल गधेड़ों बहुत लोकप्रिय उत्सव हैं.गोल गधेड़ों गुजरात की भील जनजातियों में तथा भगोरिया पश्चिमी म.प्र.की जनजातियों में मनाया जाता हैं.
भगोरिया फाल्गुन मास में मनाया जाता हैं होली के पहलें आनें वालें साप्ताहिक बाजारों में भीली नवयुवक युवतियाँ एकत्रित होतें हैं.और एक दूसरें को पसंद आनें पर भागकर शादी कर लेतें हैं.
भीलों में वधू मूल्य प्रथा के प्रचलन के कारण यदि युवक लड़की के माता पिता को वधू मूल्य नहीं दे पाता हैं,तो लड़की के पिता के यहाँ वधूमूल्य पूरा होनें तक सेवा करता हैं,वधू मूल्य पूरा होंनें पर दोंनों को स्वतंत्र रूप से रहनें हेतू छोड़ दिया जाता हैं.
#8.भील जनजाति का सांस्कृतिक जीवन ::::
यह जनजाति इनके सांस्कृतिक उत्सवों को बड़े चाव और धूमधाम से मनाती हैं.
इसके प्रमुख नृत्य भगोरिया, ड़ोहा,बड़वा,घूमर और गोरी हैं.
# 9.भील जनजाति का धार्मिक जीवन ::::
भील आत्मा,भूत - प्रेत और पुनर्जन्म पर विश्वास करनें वाली जनजाति हैं.
यह दीवाली,दशहरा ,होली आदि पर्व धूमधाम से मनातें हैं.
आधुनिक जीवनशैली और ईसाई धर्म का इस जनजाति पर गहरा प्रभाव परीलक्षित हुआ हैं,फलस्वरूप अनेक भीलों ने अपना धर्म बदला हैं और ईसाई धर्म ग्रहण किया हैं.
वर्तमान समय में इस जनजाति में अनेक सामाजिक संस्थाओं ने सांस्कृतिक चेतना का प्रसार किया हैं,फलस्वरूप इनकी प्राचीन गौरवशाली परंपरा को पुर्नस्थापित हुई हैं.
परंतु फिर भी इनकी संस्कृति,लोक कला और परंपरा को अक्षुण्य बनायें रखनें हेतू गंभीर प्रयास की अभी भी आवश्यकता हैं.
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