सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

अनूसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989( Anusuchit jati AUR Anusuchit Janjati (Atyachar nivaran) Adhiniam - 1989)

अनूसूचित जाति जनजाति अधिनियम
 sc st act
•  भारतीय समाज में सदियों से पिछड़े और उपेक्षित वर्ग को समाज की मुख्य धारा में लानें तथा उन्हें शोषण से बचानें के लिये भारतीय संविधान में विशेष प्रावधान किये गये हैं.

इन्ही मे से एक प्रावधान अनुच्छेद 17 में किया गया हैं,जिसके द्धारा अस्पृश्यता का अन्त किया गया हैं.

• संवैधानिक उपबंधो के बावजूद अनूसूचित जाति एंव अनूसूचित जनजातियों के विरूद्ध होनें वाले अपराधों व उनके शोषण में उल्लेखनीय सुधार नही हो पाया.

भारतीय संविधान के बारें में जानिये

तत्पश्चात संसद द्धारा अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम पारित किया गया, जिसे संशोधित कर सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम - 1955 नाम दिया गया.

लेकिन यह भी नाकाफी सिद्ध हुआ ,और सन् 1989 में संसद द्धारा अनूसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम पारित किया गया.

• अनूसूचित जातियों और अनूसूचित जनजातियों के सदस्यों पर अत्याचार का अपराध करने के निवारण करने के लिये ऐसे अपराधों के विचारण के लिये विशेष न्यायालय का तथा ऐसे अपराध से पीड़ित व्यक्तियों को राहत देने का और उनके पुनर्वास का तथा उससे संबधित या उनके आनुषांशिक विषय का उपबंध करने के लिये अधिनियम.

• भारतीय संसद द्धारा अनूसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम 1989 को 11 सितम्बर ,1989 को पारित किया गया.

• अनूसूचित जाति तथा अनूसूचित जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 का अधिनियम संख्याक 33 हैं.

• अ.जा.तथा अ.ज.जा.अधिनियम को राष्ट्रपति की अनुमति 11 सितम्बर 1989 को प्राप्त हुई.
• इस अधिनियम को भारतीय गणराज्य के 40 वें वर्ष में संसद द्धारा अधिनियमित किया गया.

• अनूसूचित जाति तथा अनूसूचित जनजाति एक्ट में कुल 23 धाराएँ हैं.

• इस एक्ट में कुल 5 अध्याय हैं.
• धारा 1 के अनुसार, जम्मू कश्मीर को छोड़कर यह अधिनियम सम्पूर्ण भारत में दिनांक 30 जनवरी ,1990 से लागू हुआ.

• धारा 3 के तहत दण्ड़नीय अपराध अत्याचार की परिभाषा में आता हैं.

• धारा 14 में विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट कोई सेशन न्यायालय अभिप्रेत हैं.

• अनूसूचित जाति तथा अनूसूचित जनजातियों से वही तात्पर्य हैं, जो कि संविधान के अनुच्छेद 366 के खण्ड़ 24 या खण्ड़ 25 में हैं.

• इस अधिनियम में यदि कोई शब्द परिभाषित नहीं हैं,तो उसका अर्थ भारतीय दण्ड़ सहिंता से लिया जावेगा.

• अनूसूचित जाति एँव अनूसूचित जनजाति अत्याचार निवारण नियम ,1995 केन्द्र सरकार द्धारा बनायें गये हैं.

• केन्द्रीय सरकार द्धारा उक्त नियम अनूसूचित जाति तथा अनूसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 की धारा 23 में दी गई शक्ति के तहत बनायें गये हैं.

• इस अधिनियम में कुल 18 नियम हैं.

• अनूसूचित जाति अनूसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम का मुख्य उद्देश्य इस विशेष वर्ग को अत्याचार से मुक्ति दिलाकर अत्याचार के शिकार हुये इस वर्ग के लोगों का पुनरूद्धार करना हैं.

• संहिता से दंड़ प्रक्रिया संहिता अभिप्रेत हैं.

• यह अधिनियम दांड़िक प्रकृति का हैं.तथा धारा 41 भारतीय दंड़ संहिता, 1860 के अनुसार विशेष विधि की परिधि में आता हैं.

 • इस एक्ट़ के प्रावधान ऐसी दशा में लागू होंगें,जब परिवादी अनूसूचित जाति अनूसूचित जनजाति का सदस्य हो तथा अपराधी गैर अ.जा.अजजा का सदस्य हो.

#अध्याय - १ प्रारम्भिक ( Preliminary)

• अधिनियम की धारा 1 (1) के अनुसार इस अधिनियम का संक्षिप्त नाम अनूसूचित जाति अनूसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 ,हैं.

• इस अधिनियम का विस्तार जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत पर हैं.

• इस अधिनियम के लागू होनें की तिथि को केन्द्र सरकार द्धारा राजपत्र में प्रकाशित किया जायेगा अर्थात इस एक्ट़ के प्रवृत्त होनें का विनिश्चय केन्द्र सरकार द्धारा किया गया.

• अधिनियम की धारा - 2 में कुछ शब्दों को परिभाषित किया गया हैं,जो इस प्रकार हैं ---

• अत्याचार ( Atrocity) से धारा - 3 के अधीन दंड़नीय अपराघ अभिप्रेत हैं.(धारा - 2 (1) (क).

• सहिंता से (Code) से दंड़ प्रक्रिया संहिता, 1973 (1974 का 2) अभिप्रेत हैं.

• अनूसूचित जाति और अनूसूचित जनजातियों के वही अर्थ हैं,जो संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड़ (24) और खंड़ (25) में हैं.

• विशेष न्यायालय से धारा - 14 में विनिर्दिष्ट़ कोई  सेशन न्यायालय अभिप्रेत हैं.

• विशेष लोक अभियोंजक (Special public prosecutor) से विशेष लोक अभियोजक के रूप में या धारा - 15 में निर्दिष्ट़ अधिवक्ता अभिप्रेत हैं.

• अनूसूचित जाति तथा जनजाति से वही तात्पर्य हैं जो कि संविधान के अनुच्छेद 366 के खंड़ 24 या खंड़ 25 में हैं.

• इस अधिनियम में कोई शब्द परिभाषित नहीं हैं,तो इसका अर्थ भारतीय दंड़ संहिता से लिया जायेगा.

# अध्याय - 2 

# अत्याचार के अपराध ( offences of Atrocity)

• धारा - 3 के अनुसार यदि कोई भी अनूसूचित जाति और जनजाति से भिन्न जाति का सदस्य अनूसूचित जाति या जनजाति के सदस्य को 

१.अखाद्य या घृणात्मक पदार्थ खानें या पीनें के लिये मज़बूर करता हैं.
२.उसके परिसर या पड़ोस में धृणात्मक पदार्थ एकत्रित करके अपमानित करता हैं.
३.नंगा करके या चेहरे को पोत कर घुमायेगा या अमानवीय कार्य करेगा.
४.आंवट़ित भूमि को सदोष अधिभोग में लेगा,
५.उसके अधिकारों से वंचित करेगा या उपयोग करनें से रोकेगा.
६.बेगार या बंधुआ मजदूरी के लिये विवश करेगा या फुसलायेगा.
७.मतदान करने से रोकेगा या जबर्दस्ती करायेगा.
८.दांड़िक या  मिथ्या विधिक कार्यवाही में फसायेगा.
९.क्षति पहुँचानें के उद्देश्य से लोक सेवक को मिथ्या जानकारी देगा.
१०.अपमानित या अभित्रस्त करेगा.
११.महिला सदस्य का अनादर या लज्जा भंग करनें के आशय से हमला करेगा.
१२.महिला का लैंगिक शोषण करेगा.
१३.जल स्त्रोंत को दूषित करेगा.
१४.किसी स्थान के या मार्ग के अन्य रूढ़िजन्य अधिकार को प्रयोग में लानें से वंचित करेगा.
१५.निवास स्थान या निवास भवन छोड़नें को मज़बूर करेगा,तो वह कम से कम 6 मा से लेकर 5 वर्ष तक के कारावास तथा जुर्मानें से दंड़ित होगा.


• यदि कोई व्यक्ति अनूसूचित जाति और अनूसूचित जनजाति के सदस्य के विरूद्ध साशय झूठी गवाही देता हैं,जिससे उस सदस्य को मृत्युदंड़ की सजा हो सकती हैं,तो वह व्यक्ति आजीवन कारावास से दंड़ित होगा.

• यदि कोई सवर्ण वर्ग या पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति, अजा या अजजा के किसी व्यक्ति के विरूद्ध मिथ्या साक्ष्य देता या गढ़ता हैं.जिसके प्रति फलस्वरूप उसे मृत्युदंड़ दिया जाता हैं तो वह व्यक्ति जो मिथ्या साक्ष्य देता हैं या गढ़ता है,मृत्युदंड़ से दंड़नीय होगा.

• यदि कोई लोक सेवक जो कि अजा या अजजा का सदस्य नही हैं इस अधिनियम के अधीन उसके द्धारा पालन किये  जानें के लिये अपेक्षित कर्तव्यों का उल्लंघन या उपेक्षा करता हैं,तो कम से कम 6 माह के कारावास, जो कि एक वर्ष तक का हो सकेगा,से दंड़ित किया जायेगा.( धारा - 4)

• यदि कोई व्यक्ति इस अधिनियम के तहत दोबारा दोषसिद्ध होता हैं तो वह कम से कम एक वर्ष के कारावास जो कि अपराध के लिये उपबंधित दंड़ तक हो सकेगा,से दंड़ित किया जाएगा.(धारा - 5)

इस अधिनियम के अन्य उपबंधों के अधीन रहते हुये भारतीय दंड़ संहिता (1860 का 45) की धारा 34,अध्याय 3,अध्याय 4,अध्याय 5,अध्याय 5(क) धारा 149 और अध्याय 23 के उपबंध जहाँ तक हो सके,इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये उसी प्रकार लागू होंगें जिस प्रकार वे भारतीय दंड़ संहिता के प्रयोजनों के लिये लागू होतें हैं .(धारा - 6)

• जहाँ कोई व्यक्ति इस अधिनियम के अधीन दोषसिद्ध किया हैं,वहाँ विशेष न्यायालय कोई दंड़ देनें के अतिरिक्त लिखित रूप से यह आदेश घोषित कर सकेगा कि उस व्यक्ति की संपत्ति स्थावर या जिसका उस अपराध करनें में प्रयोग किया गया हैं,सरकार को समपद्धत हो जायेगी. ( धारी - 7)

• अधिनियम की धारा - 8 के अपराध हेतू अभियोजन में तत्प्रतिकूल साबित न करने पर दुष्प्रेरण,सामान्य आशय एँव सामान्य उद्देश्य को अग्रसर करनें की उपधारणा करनें का प्रावधान करती हैं.

• राज्य सरकार इस अधिनियम के अधीन किसी अपराध का निवारण करनें के लिये और उससे निपट़नें के लिये पुलिस अधिकारी द्धारा प्रयोग की जा रही शक्तियों को अपनें किसी अधिकारी को आवश्यक या समीचीन समझनें पर प्रदान कर सकती हैं.

#अध्याय 3

निष्कासन (Externment) :::

• जहाँ न्यायालय को यह समाधान हो जाये कि कोई व्यक्ति अनूसूचित क्षेत्र में इस अधिनियम के तहत अपराध करनें वाला हैं या करेगा तो लिखित आदेश द्धारा उस व्यक्ति को उचित समय के लियें वहाँ से हट़ाया जा सकता हैं.(धारा - 10)

• यदि वह हट़ता नहीं या निर्धारित समय से पहले लोट़ आता हैं तो पुलिस अभिरक्षा द्धारा हटाया जायेगा न्यायालय अपना निर्णय कभी भी प्रतिसंहृत कर सकता हैं.(धारा-11)

• पुलिस ऐसे व्यक्ति की फोट़ो लेगी तथा बाद में यदि न्यायालय अपना आदेश प्रतिसंहृत करता है तो फोट़ो के निगेट़िव को उस व्यक्ति को लौट़ा देगा या नष्ट कर दी जायेगी. (धारा-12)

• वह व्यक्ति जो धारा 10 के अधीन किये गये विशेष न्यायालय के आदेश का उल्लघंन करेगा, कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक हो सकेगी और जुर्मानें से दंड़नीय होगा. (धारा - 13)


# अध्याय - 4 :::

विशेष न्यायालय ( Special court)


• राज्य सरकार शीघ्र विचारण का उपबंध करनें के प्रयोजन के लिये उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायामूर्ति की सहमति से राजपत्र में अधिसूचना द्धारा इस अधिनियम के अधीन अपराधों का विचारण करनें के लिये प्रत्येक जिले के लिये एक सेशन न्यायालय को विशेष न्यायालय के रूप में विनिर्दिष्ट़ करेगी.(धारा - 14)

• राज्य सरकार प्रत्येक विशेष न्यायालय के लिये राजपत्र में अधिसूचना द्धारा एक लोक अभियोजक विनिर्दिष्ट़ करेगी या किसी ऐसे अधिवक्ता को जिसनें कम से कम 7 वर्ष तक अधिवक्ता के रूप में विधि व्यवसाय किया हो,उस न्यायालय में मामलों के संचालन के लिए विशेष लोक अभियोजक के रूप में नियुक्त करेगी.(धारा - 15)


#अध्याय 5 :::

प्रकीर्ण (MISCELLANEOUS)


• सिविल अधिकार संरक्षण अधिनियम 1955 (1955 का 23)की धारा 10 क के उपबंध जहाँ तक हो सके ,इस अधिनियम के अधीन सामूहिक जुर्माना अधिरोपित करनें और वसूल करनें के प्रयोजनों के लिए और उससे संबद्ध सभी अन्य विषयों के लिये लागू होंगें ( धारा 16)

• जिला मजिस्ट्रेट़ या उपखंड़ मजिस्ट्रेट़ या अन्य कार्यपालक मजिस्ट्रेट़ जो कि पुलिस उप अधीक्षक की रेंक से निचें की रेंक का ना हो किसी क्षेत्र को अत्याचार क्षेत्र घोषित कर सकता हैं तथा शांति बनाये रखनें के लिये उचित कार्यवाही कर सकता हैं ( धारा - 17)

• दंड़ प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 438 के तहत अग्रिम जमानत के प्रावधान इस अधिनियम पर लागू नहीं होंगें ( धारा 18)

• इस अधिनियम के अधीन अपराध करनें के लिये दोषी पाये गये 18 वर्ष से अधिक आयु के व्यक्ति को संहिता की धारा 360 ( दंड़ प्रक्रिया संहिता) के प्रावधान और अपराधी परिवीक्षा अधिनियम 1958 के प्रावधान लागू नहीं होंगें.(धारा - 19)

• इस अधिनियम के प्रावधान प्रव्रत्त किसी अन्य विधि या किसी प्रथा या रूढ़ि या किसी ऐसे कानून के आधार पर प्रभाव रखनें वाली लिखित में किसी असंगत बात के होते हुये भी प्रभावशाली होंगें. (धारा - 20)

• राज्य सरकार ऐसे नियमों के अधीन रहतें हुये जो केन्द्रीय सरकार इस निमित्त बनाये,इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिये ऐसे उपाय करेगी जो आवश्यक हो.(धारा - 21(1))

• इन उपायों को धारा 21(2) में बताया गया हैं यथा -

१.अत्याचार से पीड़ित व्यक्ति को न्याय प्राप्त करनें हेतू विधिक सहायता देना.

२.उनके आर्थिक और सामाजिक पुनर्वास के लिये प्रावधान करना.

३.विवेचना एंव विचारण के दोरान साक्षियों एँव अत्याचार से पीड़ित व्यक्तियों के यात्रा तथा भरण पोषण व्यय की व्यवस्था करना.

४.प्रावधानों के उल्लघंन के लिये अभियोजन प्रारंभ करनें के लिये या अभियोजना का पर्यवेक्षण करनें के लिये अधिकारियों की नियुक्ति करना.

५. उपायों के निश्चय तथा उनके क्रियान्वयन में सहायता देनें के लिये ऐसे समुचित स्तरों पर समितियों की स्थापना एँव प्रावधानों की कार्यशीलता का नियतकालीन सर्वेक्षण करनें हेतू प्रावधान करना.

६.ऐसे क्षेत्रों की पहचान जहाँ अनूसूचित जाति एँव जनजाति के सदस्यों पर अत्याचार होना संभावित हो तथा ऐसे उपायों का कार्यान्वयन ताकि ऐसे सदस्यों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकें.

• राज्य सरकार द्धारा किये गये उपायों से तालमेल बैठानें हेतू केन्द्रीय सरकार भी कदम उठायेगी.(21)(3)

• केन्द्रीय सरकार प्रतिवर्ष संसद के दोंनों पट़ल पर स्वंय के द्धारा किये गये उपायों की रिपोर्ट़ रखेगी.(21)(4)

• इस अधिनियम के अधीन सद्भावनापूर्वक किये गये या किये जानें हेतू आशयित किसी कार्य के लिये केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकार या किसी अधिकारी या प्राधिकारी या किसी व्यक्ति के विरूद्ध कोई वाद अभियोजन अन्य विधिक कार्यवाही नही होगी .(धारा - 22)

केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्धारा इस अधिनियम के प्रयोजनों को कार्यान्वित करनें के लिये नियम बना सकेगी.(23) (१)

• इस अधिनियम के तहत बनाया गया प्रत्येक नियम बनाये जानें के पश्चात संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष कुल 30 दिन की अवधि के लिये रखा जायेगा. (धारा (२).


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x

जीवनसाथी के साथ नंगा सोना चाहिए या नही।Nange sone ke fayde

  जीवनसाथी के साथ नंगा सोना चाहिए या नही nange sone ke fayde इंटरनेट पर जानी मानी विदेशी health website जीवन-साथी के साथ नंगा सोने के फायदे बता रही है लेकिन क्या भारतीय मौसम और आयुर्वेद मतानुसार मनुष्य की प्रकृति के हिसाब से जीवनसाथी के साथ नंगा सोना फायदा पहुंचाता है आइए जानें विस्तार से 1.सेक्स करने के बाद नंगा सोने से नींद अच्छी आती हैं यह बात सही है कि सेक्सुअल इंटरकोर्स के बाद जब हम पार्टनर के साथ नंगा सोते हैं तो हमारा रक्तचाप कम हो जाता हैं,ह्रदय की धड़कन थोड़ी सी थीमी हो जाती हैं और शरीर का तापमान कम हो जाता है जिससे बहुत जल्दी नींद आ जाती है।  भारतीय मौसम और व्यक्ति की प्रकृति के दृष्टिकोण से देखें तो ठंड और बसंत में यदि कफ प्रकृति का व्यक्ति अपने पार्टनर के साथ नंगा होकर सोएगा तो उसे सोने के दो तीन घंटे बाद ठंड लग सकती हैं ।  शरीर का तापमान कम होने से हाथ पांव में दर्द और सर्दी खांसी और बुखार आ सकता हैं । अतः कफ प्रकृति के व्यक्ति को सेक्सुअल इंटरकोर्स के एक से दो घंटे बाद तक ही नंगा सोना चाहिए। वात प्रकृति के व्यक्ति को गर्मी और बसंत में पार्टनर के साथ नंगा होकर सोने में कोई