यूटेराइन फाइब्राइड़ क्या होता हैं
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Uterine fibroid |
यूटेराइन फाइब्राइड (uterine fibroid) महिलाओं में गर्भाशय की आंतरिक दीवारों पर बननें वाली नरम माँसपेशियों की गांठे हैं,जिनका आकार अंगूर की तरह होता हैं.इन गांठों की वज़ह से महिलाओं में तीव्र रक्तस्त्राव और पेडू में बहुत तेज दर्द की समस्या सामनें आती हैं.
3 में सें हर दो महिला अपनें जीवनकाल में इस समस्या से जूझती हैं.
यूटेराइन फाइब्राइड के लक्षण ::
• माहवारी के समय अत्यधिक रक्तस्त्राव जो आठ से दस दिन या इससे भी अधिक समय तक चलता हैं।
• कमर और पेडू में तीव्र दर्द
• पेट के निचलें भाग में भारीपन महसूस होना साथ ही उभार निकलना
• बार - बार पैशाब जानें की इच्छा होना तथा पैशाब करते समय दर्द होना
• शरीर में अकडन होना
• कब्ज होना
• गर्भधारण में समस्या
• अधिक रक्तस्त्राव से शरीर में खून की कमी
• गर्भधारण में समस्या
• अधिक रक्तस्त्राव से शरीर में खून की कमी
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• 9 नेचुरल सुपरफूड फार हेल्दी वेजाइना
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यूटेराइन फाइब्राइड के कारण :::
• अधिक उम्र की अविवाहित महिलाओं में फाइब्राइड बननें का जोखिम उन महिलाओं से दोगुना होता हैं,जो विवाहित होती हैं,क्योंकि जब शरीर बच्चें के जन्म के लिये तैयार होता हैं,उस दौरान बच्चें का जन्म नही हो पाता तो गर्भाशय की एक विशेष जरूरत पनपती हैं
इस ज़रूरत के अनुसार हार्मोंनल परिवर्तन होता हैं,यह हार्मोनल परिवर्तन गर्भाशय में गांठे बनानें के लियें उत्तरदायी होता हैं.
इस ज़रूरत के अनुसार हार्मोंनल परिवर्तन होता हैं,यह हार्मोनल परिवर्तन गर्भाशय में गांठे बनानें के लियें उत्तरदायी होता हैं.
• फाइब्राइड उन महिलाओं में होनें का खतरा अधिक होता हैं,जिनका पारिवारिक इतिहास इस बीमारी का रहा हैं.
• अत्यधिक वज़न वाली महिला में यह बीमारी अधिक देखी जाती हैं.
जानियें polycystic ovarian syndrome के बारें में
• शराब और धूम्रपान करनें वाली महिलाओं में भी इसका जोखिम अधिक होता हैं.
• तनाव रहने पर यह बीमारी बहुत तेजी से विकसित होती हैं.
• शारीरिक रूप से असक्रिय होनें पर यह बीमारी अधिक होती हैं.
उपचार ::
इस बीमारी के उपचार में अब तक सर्जरी बहुत प्रभावी सिद्ध हुई हैं.जिनमें शामिल हैं,लेजर से फाइब्राइड हटाना
(मयोलाएसिस), लेप्रोस्कोपिक मयोमेक्त्तमी तकनीक द्वारा ऑपरेशन ,इंजेक्सन द्धारा गांठों की खून सप्लाई को रोकना जिससे कि फाइब्राइड सूख जातें हैं.इसके अतिरिक्त कुछ खान पान के तरीको द्धारा फाइब्राइड को शुरूआती अवस्था में नियत्रिंत किया जा सकता हैं.जैसे
(मयोलाएसिस), लेप्रोस्कोपिक मयोमेक्त्तमी तकनीक द्वारा ऑपरेशन ,इंजेक्सन द्धारा गांठों की खून सप्लाई को रोकना जिससे कि फाइब्राइड सूख जातें हैं.इसके अतिरिक्त कुछ खान पान के तरीको द्धारा फाइब्राइड को शुरूआती अवस्था में नियत्रिंत किया जा सकता हैं.जैसे
सूखे मेवे ::
सूखे मेवों जैसें बादाम,अखरोट,पिस्ता आदि सेवन करते रहनें से फाइब्राइड होनें की संभावना को कम किया जा सकता हैं.
क्योंकि इनमें ओमेगा 3 फेटीएसिड़ पर्याप्त मात्रा में पायें जातें हैं,जो गर्भाशय को मज़बूत करतें हैं.
क्योंकि इनमें ओमेगा 3 फेटीएसिड़ पर्याप्त मात्रा में पायें जातें हैं,जो गर्भाशय को मज़बूत करतें हैं.
भारतीय मसाले :::
भारतीय मसालें जैसे हल्दी, अदरक,काली मिर्च आदि में लीवर की सफाई करनें वाले तत्व प्रचुरता में पाये जातें हैं.
जो लीवर की सफाई कर एस्ट्रोजन हार्मोंन निकालनें में मदद करते हैं.जिससे हार्मोंन असंतुलित नही होता और फाइब्राइड बनने की संभावना समाप्त हो जाती हैं.
जो लीवर की सफाई कर एस्ट्रोजन हार्मोंन निकालनें में मदद करते हैं.जिससे हार्मोंन असंतुलित नही होता और फाइब्राइड बनने की संभावना समाप्त हो जाती हैं.
अंकुरित अनाज और सब्जियाँ :::
अंकुरित अनाज विटामिन E और फायबर का बहुत अच्छा स्रोंत होता हैं,जो शरीर में बनने वाली किसी भी प्रकार की गांठों को रोकता हैं.
इसी प्रकार लहसुन की कच्ची कलियों का सेवन करनें से गांठे नही बनती हैं.
निम्बू का रस शहद के साथ मिलाकर पीनें से शरीर से अशुद्धी बाहर निकलकर हार्मोंन स्तर सही बना रहता हैं.
योगिक क्रियाएँ जैसें कपालभाँति, मत्स्याआसन,करनें से गर्भाशय की दीवार मज़बूत बनती हैं.
यदि बचपन से ही महिलाओं में शारीरिक कार्यों,व्यायाम की आदत डाली जावें तो बीमारी की संभावना को नगण्य किया जा सकता हैं.
लेप्रोस्कोपिक मयोमेक्टमी
लेप्रोस्कोपिक मायमेक्टमी तकनीक द्वारा गर्भाशय की गांठें या फाइब्राइड निकालना आज कल बहुत लोकप्रिय होता जा रहा हैं इसके कई फायदे हैं जैसे
1 . शरीर पर मात्र 2 से 3 मिलीमीटर का चीरा लगाया जाता हैं, जिससे दर्द और रक्तस्राव बहुत कम होता हैं।
2.कम चीरा लगने से मरीज को अस्पताल में बहुत कम भर्ती रहना पड़ता हैं,और मरीज़ मात्र 24 घन्टे में घर चला जाता हैं
3. सबसे बड़ा फायदा महिलाओं को मातृत्व सुख का हैं क्योंकि इस तकनीक द्वारा गर्भाशय सुरक्षित रहता हैं जबकि परम्परागत चीरे लगाने वाली तकनीक से ऑपरेशन करवाने के बाद रजोनिवृति के लक्षण प्रकट हो जाते हैं।
4. फाइब्राइड या गाँठो का आकार 20 सेंटीमीटर तक होंने पर भी यह तकनीक कारगर हैं।
# polycystic ovarian syndrome ::
PCOS का परिचय :::
pcos या polycystic ovarian syndrome महिलाओं से संबधित समस्या हैं,जिसमें हार्मोंन असंतुलन की वज़ह से pco में एक परिपक्व फॉलिकल बननें के स्थान पर बहुत से अपरिपक्व फॉलिकल्स बन जातें हैं.
सम्पूर्ण विश्व में इस बीमारी का ग्राफ तेज़ी से बड़ रहा हैं,विश्व स्वास्थ संगठन (W.H.O) के अनुसार 13 से 25 उम्र की हर 10 में से 2 स्त्रीयाँ pcos से पीड़ित होती हैं.
सम्पूर्ण विश्व में इस बीमारी का ग्राफ तेज़ी से बड़ रहा हैं,विश्व स्वास्थ संगठन (W.H.O) के अनुसार 13 से 25 उम्र की हर 10 में से 2 स्त्रीयाँ pcos से पीड़ित होती हैं.
PCOS के लक्षण :::
० अण्ड़ेदानी में कई गांठे बनना.
० बार - बार गर्भपात .
० बालों का झड़ना,बाल पतले होना.
० चेहरें पर पुरूषों के समान दाड़ी मुंछ आना.
० चेहरें पर मुहाँसे, तैलीय त्वचा
० आवाज का भारी होना.
० स्तनों [Breast]का आकार घट़ना.
० पेट के आसपास चर्बी का बढ़ना.
० माहवारी के समय कमर ,पेडू में तीव्र दर्द,मासिक चक्र का एक या दो दिन ही रहना.
०मधुमेह, उच्च रक्तचाप होना,ह्रदय रोग और तनाव होना.
० चेहरें पर पुरूषों के समान दाड़ी मुंछ आना.
० चेहरें पर मुहाँसे, तैलीय त्वचा
० आवाज का भारी होना.
० स्तनों [Breast]का आकार घट़ना.
० पेट के आसपास चर्बी का बढ़ना.
० माहवारी के समय कमर ,पेडू में तीव्र दर्द,मासिक चक्र का एक या दो दिन ही रहना.
०मधुमेह, उच्च रक्तचाप होना,ह्रदय रोग और तनाव होना.
urinary tract infection के बारे में जानियें
PCOS ka karan
० आनुवांशिक रूप से स्थानांतरित होता हैं.
० अनियमित जीवनशैली जैसें कम शारीरिक श्रम,देर रात तक सोना सुबह देर तक उठना,फास्ट फूड़ ,जंक फूड़ का अत्यधिक प्रयोग.
० लेपटाप ,मोबाइल का अत्यधिक प्रयोग.
० मधुमेह का पारिवारिक इतिहास होना.
० मधुमेह का पारिवारिक इतिहास होना.
प्रबंधन :::
० खानें पीनें में अत्यन्त सावधानियाँ आवश्यक हैं,एेसा भोजन ले जिसमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, ओमेगा 3 फेटीएसिड़, विटामिन ओर मिनरल भरपूर हो जैसें काजू,बादाम,अखरोट़,सोयाबीन उत्पाद,हरी सब्जियाँ ,दूध ,फल ,अंड़े आदि.
० डाँक्टर ऐसी दवाईयाँ देतें हैं,जो हार्मोंन संतुलित रखें,कोलेस्ट्रॉल कम करें,मासिक चक्र नियमित रखे,किन्तु यह दवाईयॉ लम्बें समय तक लेना पड़ सकती हैं,अत : आयुर्वैदिक दवाईयों का सेवन करें ये दवाईयाँ शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं छोड़ती हैं.
० व्यायाम और योग उतना ही ज़रूरी हैं,जितना दवाईयाँ अत : नियमित रूप से तेरना,दोड़ना,नृत्य करना आदि करतें रहें.
० कपालभाँति, भस्त्रिका, सूर्यासन,मत्स्यासन करतें रहें.
० जवारें का जूस लेना चाहियें.
० पानी का पर्याप्त सेवन करनें से हार्मोंन लेवल संतुलित रहता हैं.
० अपनें स्वभाव को सकारात्मक चिंतन से सरोबार रखें .
० शांत, प्रशन्नचित्त और हँसमुख बनें ,प्रतिदिन ध्यान को अपनें जीवन का अंग बना लें.
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