आईवीएफ [In-vitro fertilization] चिकित्सा विज्ञान की एक तकनीक हैं, IVF के माध्यम से निसंतान दंपतियों को संतान सुख उपलब्ध कराया जाता हैं।
आईवीएफ पद्धति का जन्म इंग्लैंड में सन् 1978 में हुआ था।
जिस महिला का फेलोपियन ट्यूब ब्लाक हो जाता हैं वे जब पति के साथ सहवास करती हैं तो फेलोपियन ट्यूब ब्लाक होने की वजह से पुरुष के शुक्राणु महिला के अंडाणु तक नहीं पहुंच पाते हैं फलस्वरूप निषेचन fertilization की प्रक्रिया पूरी नहीं होती हैं।
ऐसी परिस्थिति में Ivf center में महिला के ताज़े अंडाणु एकत्र कर पुरुष शुक्राणु से Test tube में निषेचन fertilization करवाया जाता हैं।
यदि यह निषेचन सफल होकर कुछ सप्ताह में भ्रूण बनने लगता हैं तो इस भ्रूण को बच्चें के पैदा होने तक माता के गर्भ में प्रतिस्थापित कर दिया जाता हैं। इस विधि को आईवीएफ या In-vitro fertilization कहतें हैं।
IVF आईवीएफ कब करवाना चाहिए
चिकित्सकों के अनुसार यदि महिला और पुरुष एक साल से बिना किसी गर्भनिरोधक तरीके के सहवास कर रहें हों और उसके बाद भी महिला को गर्भधारण नहीं हो रहा हैं तो उन्हें "Ivf center near me" सर्च कर वहां मौजूद गायनेकोलॉजिस्ट से प्रथम परामर्श अवश्य प्राप्त करना चाहिए।
आईवीएफ अपनाने के अन्य निम्नलिखित कारण होते हैं
1.Endometriosis एंडोमेट्रियोसिस
जब गर्भाशय की अन्दरुनी दीवार के ऊतक की वृद्धि गर्भाशय के बाहर होने लगती हैं तो गर्भाशय, फेलोपियन ट्यूब के सामान्य कार्य प्रभावित होते हैं फलस्वरूप अंडे शुक्राणु से निषेचित नहीं हो पाते इस स्थिति को Endometriosis एंडोमेट्रियोसिस कहते हैं।
2.फेलोपियन ट्यूब बंद होना
यदि महिला का फेलोपियन ट्यूब किसी कारण से बंद हो जाता हैं या दुर्घटना की वजह से फेलोपियन ट्यूब क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तो अंडे निषेचित नहीं हो पाते और गर्भाशय से बाहर नहीं निकल पाते हैं।
3.अंडे से संबंधित विकार
अंडे की गुणवत्ता ठीक नहीं होने पर या बहुत कम उत्पादन होने पर भी महिला गर्भवती नहीं हो पाती हैं।
फाइब्राइड महिलाओं के गर्भाशय की आंतरिक दीवारों पर बनने वाली अंगूर जैसी गांठें होती हैं जिनकी वजह से महिला के अंडे पुरुष के शुक्राणु से नहीं मिल पाते और महिला गर्भ धारण नहीं कर पातीं ।
यूटेराइन फाइब्राइड उन महिलाओं में बहुत आम समस्या हैं जिनकी उम्र 30 वर्ष से अधिक होती हैं और जो जिनकी शादी देर से होती हैं।
5.Sperm या शुक्राणु से संबंधित समस्या
ऐसे पुरुष जिनके शुक्राणु बहुत निम्न गुणवत्ता के होते हैं,या जिनका आकार अनियमित होता हैं वे महिला के अंडे से निषेचन नहीं कर पाते हैं। यदि समस्या उपचार के बाद भी ठीक नहीं हो पा रही है तो फिर बच्चा पैदा करने के लिए आईवीएफ तकनीक का इस्तेमाल किया जाता हैं।
6.आनुवांशिक कारण
कई महिलाओं और पुरुषों में बच्चा नहीं होने का कारण आनुवंशिक होता हैं ऐसे पुरुष और महिलाएं जिनको infertility का वास्तविक कारण अज्ञात होता और विशेषज्ञों के मुताबिक यह आनुवांशिक कारणों से हो सकता हैं।
7.रेडिएशन थेरेपी
जिन महिलाओं और पुरुषों को कैंसर के उपचार के लिए रेडिएशन चल रहा है उनमें अंडे और शुक्राणु का नहीं होता हैं या शुक्राणु और अंडे की क्वालिटी निम्न होती हैं। ऐसी परिस्थिति में रेडिएशन से पहले अंडे और शुक्राणु को भविष्य में आईवीएफ के लिए फ्रीज कर लिया जाता हैं।
रिसर्च के अनुसार प्रत्येक 5 में से एक महिला 1 महिला में गर्भधारण नहीं करनें की वजह टीबी होती हैं। क्योंकि इसकी वजह से फेलोपियन ट्यूब में खराबी आ जाती हैं। फलस्वरूप कुछ समय बाद दंपति आईवीएफ की तरफ चले जाते हैं।
9.खराब जीवनशैली
महिलाओं और पुरुषों में अत्यधिक तनाव, मोटापा, शराब, जंकफूड, आरामदायक जीवनशैली, मधुमेह, धूम्रपान, तम्बाकू का सेवन करने से हार्मोन असंतुलित हो जाता हैं फलस्वरूप गर्भधारण नहीं हो पाता है।
आईवीएफ की पूरी प्रक्रिया कैसे होती हैं
ऐसे महिला पुरुष जो सामान्य प्रक्रिया द्वारा लम्बे समय से बच्चा पैदा नहीं कर पा रहे हो Ivf center की मदद से In vitro fertilization की प्रक्रिया पूरी कर सकतें हैं।
1.सबसे पहले महिला को हार्मोनल इंजेक्शन दिया जाता हैं ताकि महिला में अधिक संख्या में अंडे बन सकें।
2.जब महिला को अंडे निकलना शुरू होते हैं तो इन अंडों को Embryologist द्वारा अल्ट्रासाउंड विधि से महिला के शरीर से बाहर निकाल लिया जाता हैं।
3.बाहर निकलें अंडों में से Embryologist स्वस्थ्य अंडों का चुनाव कर उन्हें Ivf center lab में पुरुष के शुक्राणु से निषेचित करवाया जाता हैं।
4.जब भ्रूण निषेचित हो जाता हैं तो उसे भ्रूण को 2 से 5 दिनों तक Test tube में विकसित किया जाता हैं।
5.विकसित भ्रूण को केथेटर के माध्यम से महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता हैं।
6.इसके पश्चात जरुरी जांच और मनोवैज्ञानिक सलाह के साथ महिला का समय समय पर फालो अप ट्रीटमेंट शुरू किया जाता हैं जो बच्चें के जन्म तक चलता है।
भारत में आईवीएफ से बच्चा पैदा करने में कितना खर्चा आता हैं। Ivf cost in india
आजकल टेक्नोलॉजी के लगातार उन्नत होने और देश में Ivf center छोटे-छोटे शहरों में खुलने से पूर्व की अपेक्षा Ivf करवाने की लागत बहुत कम हो गई हैं।
देश के बड़े आईवीएफ सेंटर पैकेज के साथ Ivf कर रहें जिसकी लागत 2 से 3 लाख पड़ती हैं। उदाहरण के लिए दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, कोलकाता, पुणे, बेंगलुरु आदि शहरों में Ivf cost 3 लाख तक जा सकती हैं।
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वहीं इन्दौर, उदयपुर, नागपुर, जयपुर, भोपाल, जबलपुर और ग्वालियर जैसे शहरों में Ivf cost 2 लाख तक आती हैं।
हमें अभी बच्चा नहीं चाहिए क्या मैं अपने अंडे को फ्रीज करवाकर बाद में आईवीएफ करवा सकती हैं?
जी बिल्कुल, ऐसे दंपति जो अपने केरियर के शीर्ष पर हैं और अभी बच्चा नहीं चाहते लेकिन उनमें ड़र भी है कि उम्र निकलने के बाद उनके ओवा और स्पर्म की क्वालिटी खत्म नहीं हो जाए, यदि वे चाहते हैं तो अपना स्पर्म और ओवा फ्रीज करवाए सकतें हैं।
इस तकनीक को Gamit Cryo preservation या Gamit Banking कहतें हैं।
Gamit Banking द्वारा फ्रीज करवाए गए ओवा और स्पर्म से 10 वर्षों तक स्वस्थ्य संतान का जन्म हो सकता है।
ICSI इन्ट्रा सायटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन क्या होता हैं ?
आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान पुरुष का शुक्राणु लेकर उसे इंजेक्शन के माध्यम से स्त्री के अंडाणु में प्रवेश कराया जाता हैं। और इस तरह भ्रूण का निर्माण होता हैं।
इसी प्रक्रिया को ICSI या इन्ट्रा सायटोप्लाज्मिक स्पर्म इंजेक्शन कहते हैं।
क्या Ivf technique में महिला या पुरुष अंडे और शुक्राणु दान ले सकते हैं?
जी हां,जिन पुरुषों और महिलाओं में स्वस्थ्य शुक्राणु और अंडे संभव नहीं होते हैं वे Ivf center में मौजूद कांउसलर से सलाह कर कानूनी प्रक्रिया को समक्ष कर दूसरे पुरुष या स्त्री से शुक्राणु और अंडे दान ले सकते हैं।
क्या Ivf technique से एक बार संतान के बाद दूसरी संतान का जन्म हो सकता हैं?
जी बिल्कुल, पूरी दुनिया में पहली बार Ivf का लाभ उठा चुके लगभग 17 प्रतिशत मामलों में दूसरी बार Ivf से गर्भधारण की क्षमता मौजूद रहती हैं।
आपको एक बार Ivf से बच्चा होने के बाद दूसरी बार Ivf से बच्चा होगा या नहीं यह जानकारी Ivf center में जरुरी टेस्ट व विशेषज्ञों की जांच के बाद ही मिलेगी।
आईवीएफ में सफलता दर कितनी हैं?
आजकल उन्नत टेक्नोलॉजी और नित नई खोजों ने Ivf को सुरक्षित बना दिया हैं । विभिन्न Ivf center के अनुसार 70 से 80 प्रतिशत केसों में Ivf technique सफल रहती हैं।
क्या आईवीएफ करवाने वाली महिला को पूरे नौ महीने आराम करना पड़ता हैं?
जी नहीं, आईवीएफ करवाने वाली महिला भी सामान्य रूप से गर्भधारण करवाने वाली महिला की तरह अपने दैनिक कामकाज कल सकती हैं।
हां कुछ विशेष मामलों में जहां Ivf के द्वारा गर्भधारण जटिल होता हैं उन मामलों में विशेषज्ञ पूर्ण रूप से आराम की सलाह देते हैं।
क्या IVF के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चें सामान्य बच्चों की तरह होते हैं?
जी बिल्कुल, IVF treatment के माध्यम से पैदा होने वाले बच्चें सामान्य प्रसव से पैदा होने वाले बच्चों की तरह ही होते हैं। बल्कि अनेक विशेषज्ञों की मानें तो IVF बच्चा सामान्य रूप से पैदा होने वाले बच्चें की तुलना में अधिक बीमारी से मुक्त होता हैं।
ऐसा इसलिए क्योंकि IVF treatment के दौरान मां और बच्चें की सघन देखभाल स्पेशलिस्ट की टीम द्वारा की जाती हैं।
आईवीएफ के साइड-इफेक्ट क्या होतें हैं?
वैसे तो लगातार उन्नत टेक्नोलॉजी ने आईवीएफ ट्रीटमेंट को बहुत आसान और साइड-इफेक्ट रहित बना दिया हैं लेकिन कुछ मामलों में साइड-इफेक्ट आ सकतें हैं। जैसे
1.एक्टोपिक गर्भवती होना
पूरी दुनिया में 2 से 5 प्रतिशत Ivf treatment करतें समय जब भ्रूण को महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता हैं तो वह महिला के गर्भाशय से नहीं जुड़ पाया हैं ऐसी अवस्था को एक्टोपिक प्रेग्नेंसी के नाम से जाना जाता हैं।
एक्टोपिक प्रेग्नेंसी होने पर महिला को पेट में दर्द, उल्टी होना, चक्कर आना, बेहोश होना जैसी समस्या हो सकती हैं।
2.मानसिक तनाव होना
पूरी दुनिया के Ivf treatment center में आनें वाली हर 10 में से 9 महिलाएं Ivf treatment के दौरान treatment process को लेकर पहले से ही बहुत भयभीत और तनाव में रहती हैं।
IVF treatment शुरू होने के बाद भी इलाज के दौरान दिए जानें वाले हार्मोनल इंजेक्शन से मानसिक तनाव हो सकता हैं।
3.समय पूर्व प्रसव या Premature Delivery
Ivf के माध्यम से गर्भधारण करने वाली महिलाओं को कभी कभी समय पूर्व प्रसव की संभावना होती हैं,ऐसा उन महिलाओं में ज्यादा देखा जाता हैं जो Ivf treatment को third trimester में स्पोर्ट नहीं करती हैं और अत्यधिक मानसिक तनाव लेती हैं।
4.शुरुआती समय की परेशानी
जब भ्रूण टेस्ट ट्यूब से महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता हैं तो शुरुआती समय में महिला को योनि से रक्तस्राव, पेट दर्द,कमर दर्द जैसी सामान्य समस्याएं आती हैं।
4.जीवनशैली से संबंधित बीमारी
भारत में आईवीएफ ट्रीटमेंट लेने वाली ज्यादातर महिलाएं Ivf center में 30 की उम्र के बाद ही पंहुचती हैं। Embryologist की मानें तो इसमें से ज्यादातर महिलाएं बच्चें पैदा करने के लिए दवाई गोली का सहारा ले चुकी होती हैं।
इस उम्र तक आते-आते कई महिलाएं उच्च रक्तचाप, मोटापा, हार्मोन असंतुलन, मधुमेह, थाइराइड जैसी बीमारियों से ग्रसित हो जाती हैं।
ऐसी महिलाओं को आईवीएफ ट्रीटमेंट देने के दौरान विशेष सावधानी बरतनी पड़ती हैं क्योंकि दवाईयां लेने के बाद भी बीच बीच में इनकी पुरानी बीमारियों बढ़ती है।
आईवीएफ ट्रीटमेंट के फायदे
भारत में स्त्री यदि शादी के साल भर बाद गर्भ धारण नहीं करती तो उसके बारें में समाज में तरह-तरह तरह की धारणा बननी शुरू हो जाती हैं। चाहे कमी पुरुष में ही क्यों न हो बातें स्त्री के बारें में ही होती हैं।
यदि स्त्री 35 साल की हो जाए और संतान सुख प्राप्त न हो तो उस पर बांझ स्त्री का ठप्पा लग जाता हैं।
आईवीएफ ट्रीटमेंट स्त्री पर से बांझ का ठप्पा हटाकर उसे संतान सुख उपलब्ध करानें वाली वैज्ञानिक तकनीक हैं। जो मानव समाज के लिए वरदान से कम नहीं हैं।
विशेषज्ञों के मुताबिक आज का आईवीएफ ट्रीटमेंट पूर्व के आईवीएफ ट्रीटमेंट से पूरी तरह बदल चुका हैं । आज का आईवीएफ ट्रीटमेंट महिलाओं के लिए पूरी तरह सुरक्षित और विश्वसनीय हैं।
आज का आईवीएफ ट्रीटमेंट पूर्व की अपेक्षा सस्ता और मध्यम वर्ग की पंहुच में हैं।
PRP या प्लेटलेट रिच प्लाज्मा इंजेक्शन आईवीएफ ट्रीटमेंट में क्यों लगाया जाता हैं
जिन महिलाओं की गर्भाशय की मोटाई 7 मिली मीटर से कम होती हैं वह महिलाएं आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान गर्भधारण नहीं कर सकती हैं। ऐसे में प्लेटलेट रिच प्लाज्मा इंजेक्शन का इस्तेमाल गर्भाशय की मोटाई बढ़ाने में सहायक होता हैं।
प्लेटलेट रिच प्लाज्मा इंजेक्शन में मरीज के शरीर से ही 20 से 30 मिली लीटर खून निकालकर उनमें से प्लेटलेट रिच पदार्थ अलग कर लिए जाते हैं और इन प्लेटलेट रिच पदार्थ को गर्भाशय में इंजेक्शन के माध्यम से प्रवेश करा दिया जाता हैं।
रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार प्लेटलेट रिच प्लाज्मा में वृद्धि हार्मोन पर्याप्त मात्रा में मौजूद होते हैं जो गर्भाशय को मजबूत और शक्तिशाली बनाते हैं।
आईवीएफ में ब्लास्टोसिस्ट कल्चर क्या हैं
जब महिला के अंडे और पुरुष के शुक्राणु को प्रयोगशाला में निषेचित करवाकर पांचवें दिन जब भ्रूण के गर्भाशय से चिपकने की क्षमता सर्वश्रेष्ठ होती हैं तब गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता हैं तो इसे ब्लास्टोसिस्ट कल्चर कहा जाता हैं।
जो भ्रूण ब्लास्टोसिस्ट चरण में पहुंचता है वह सर्वश्रेष्ठ भ्रूण माना जाता हैं क्योंकि इसमें पांच सो कोशिकाएं होती हैं और यह विकसित होकर बच्चा बनने की क्षमता रखता हैं।
Blaastosist ke kya labh hai
• एक साथ दो या दो से अधिक गर्भधारण ब्लास्टोसिस्ट कल्चर से रुक जाते हैं.
• प्रसूति में आने वाली जटिलता को ब्लास्टोसिस्ट कल्चर से कम किया जा सकता हैं.
• टेस्ट ट्यूब बेबी में असफल दंपति और जिन महिलाओं में बच्चेदानी की स्थिति गर्भधारण लायक नहीं होती हैं उनमें ब्लास्टोसिस्ट से आशाजनक परिणाम प्राप्त हुए हैं.
Embryo vitrification kya hai
Embryo vitrification भ्रूण को ठंडा करने की सबसे आधुनिक तकनीक है जिसमें सामान्य तकनीक के मुकाबले भ्रूण को 600 गुना अधिक तीव्र गति से ठंडा किया जाता है . Embryo vitrification में भ्रूण को liquid nitrogen में संग्रहित किया जाता हैं.
Author- healthylifestyehome
Reviewed by
Dr.n.k.nagar
MBBS,MD
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