सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

सतत विकास की अवधारणा और भारतीय दृष्टिकोण [concept of sustainable development and Indian perspective]

 सतत विकास की अवधारणा और भारतीय दृष्टिकोण [concept of sustainable development and Indian perspective]


दुनिया की विकसित अर्थव्यवस्थाओं ने विकास का पैमाना जब से भोतिक विकास को माना है तभी से पर्यावरण🌳 हाशिए पर जाना शुरू हो गया और हाशिए पर जातें पर्यावरण ने अपनी उथल-पुथल से दुनिया के लोगों को सतत विकास की ओर ध्यान देने को मजबूर कर दिया । तो आईए विस्तार से प्रकाश डालते हैं सतत विकास की अवधारणा पर

सतत विकास की अवधारणा और भारतीय दृष्टिकोण
सतत विकास


//////// सतत विकास क्या है [what is sustainable development]\\\\\\\\

सतत विकास से तात्पर्य उस विकास से हैं जिसमें पर्यावरणीय नुकसान हुए बिना वर्तमान पीढ़ी के साथ भविष्य की पीढ़ियों की जरूरतों की पूर्ति भी होती रहें । अर्थात उपलब्ध संसाधनों का इस प्रकार उपयोग हो जो वर्तमान के साथ भावी पीढ़ी को भी काम आये ।

सतत विकास शब्द का प्रथम प्रयोग ''International Union for Conservation Strategy"ने अपनी रिपोर्ट 'विश्व संरक्षण रणनीति'में किया था ।

सन् 1987 में विकास और पर्यावरण संबंधित अंर्तराष्ट्रीय आयोग ने "हमारा साझा भविष्य"नामक रिपोर्ट में बताया कि आर्थिक विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा के बीच अनिवार्य संतुलन बनाना ही सतत विकास हैं। और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के दौरान भावी पीढ़ियों की जरूरतों में कोई कटौती भी नहीं होना चाहिए । यह लक्ष्य प्राप्त भी तभी होंगे जब हम पैसा ,प्रोधोगिकी,और बुनियादी ढांचे में बदलाव लायेंगे।

विकास को सतत चलने वाली प्रक्रिया बनाने के लिए प्रकृति और मानव जाति के बीच परस्पर सह-अस्तित्व वाला संबंध और अर्थव्यवस्था में सामाजिक न्याय,समानता और आर्थिक कार्यकुशलता लाना अनिवार्य है ।


/////// सतत विकास के प्रमुख उद्देश्य \\\\\\\


ब्रटलेंड आयोग के अनुसार सतत विकास के तीन प्रमुख उद्देश्य है

1.आर्थिक कार्यकुशलता

2.सामाजिक स्वीकार्यता

3.पारस्थितीकीय टिकाऊपन

सतत विकास के इन उद्देश्यों को पर्याप्त करने के लिए विश्व के विकसित देश अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए उन उपायों को बढ़ावा दें जिससे गरीबी कम हो, पर्यावरण संतुलित हो। इस सन्दर्भ में कुछ महत्वपूर्ण पैमाना भी तय किये गये हैं जैसे

1.प्राकृतिक संसाधनों का अनूकूल प्रयोग हो

2.प्रदूषण नियंत्रण और अपशिष्ट प्रबंधन

3.नवीन प्रौद्योगिकी तथा टेक्नालाजी का आपस में स्थानांतरण

4.पर्यावरण प्रबंधन

5.आम लोगों की रुचि में परिवर्तन

6.सामाजिक परिवर्तन

7.सांस्कृतिक परिवर्तन

8.जनसंख्या नियंत्रण

9.बाजार अर्थव्यवस्था का शुद्धिकरण

/// सतत विकास का भारतीय दृष्टिकोण \\\


भारत प्राचीन काल से सतत विकास के प्रति हमेशा ईमानदारी के साथ खड़ा रहा हैं। यह वही देश है जिसने ऋग्वैदकालीन  समय से ही पर्यावरण को लेकर अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन किया हैं। 'वनस्पतय:शांति,प्रथ्वीयो शांति, अन्तरिक्ष शांति ' का उद्घोष और कार्यरुप में परिणित भारत ने उस समय किया था जब आज के विकसित देश के लोग जंगल में कंदमूल खा रहे थें ।

सतत विकास की अवधारणा भारतीय समाज और संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है यहां शादी के समय उपयोग होने वाली मिट्टी को भी घर की महिलाएं हाथ जोड़कर और आह्वान करके घर लाती हैं । इसी परंपरा को हमारे देश का महान लोगों ने स्वतंत्रता प्राप्ति के समय भी जीवित रखा ।

सतत विकास के सबसे बड़े पैरोकारों में महात्मा गांधी का नाम सबसे ऊपर है , महात्मा गांधी ने सबसे पहले कहा कि

 "प्रथ्वी मनुष्य की समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकती हैं किन्तु लालच एक आदमी का भी पूरा नहीं कर सकती हैं"

अपने कार्य आचरण के द्वारा भी महात्मा गांधी ने प्रकृति से जितना लिया उससे कहीं अधिक देने का प्रयास किया ,उनका मानना था कि भारतीय संस्कृति प्रकृति के साथ सामंजस्य और उसका पोषण करना सिखाती हैं जबकि पश्चिमी देशों की संस्कृति उपभोग को बढ़ावा देकर प्रथ्वी के संसाधनों का अधिकतम दोहन कर रही है ।

महात्मा गांधी गांधी आजीवन शाकाहारी बने रहे यहां तक की उन्होंने गाय भैंस के दूध को यह कहते हुए त्याग दिया कि गाय भैंस के दूध पर पहला अधिकार गाय भैंस के बच्चों का हैं । 
 

सतत विकास पर रियो डी जेनेरियो सम्मेलन

सन् 1992 में ब्राजील के रियो डी जेनेरियो शहर में संयुक्त राष्ट्र का पर्यावरण पर एक बहुत बड़ा सम्मेलन आयोजित किया गया जिसमें भारत समेत दुनिया के 178 देशों ने भाग लेकर सामाजिक विकास, आर्थिक विकास और पर्यावरण संरक्षण से संबंधित मुद्दों पर गहन विचार किया । 'प्रथ्वी सम्मेलन' के नाम से जाने गए इस सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी देशों का मत था कि विकास ऐसा होना चाहिए जो पर्यावरण की चिंता करता हों और जो प्रथ्वी के प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करता हों ।

इस प्रथ्वी सम्मेलन में शामिल देशों ने निम्न प्रस्ताव पारित किए

रियो घोषणा पत्र

रियो घोषणा पत्र में सतत विकास से सम्बंधित आधारभूत सिद्धांतों को सम्मिलित किया गया और पर्यावरण विकास से सम्बंधित 27 बिंदुओं का समावेश किया गया ।

एजेंडा 21

रियो सम्मेलन में पारित एजेंडा 21 में इस बात पर बल दिया गया कि विकास को सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टिकोण से किस तरह टिकाऊ बनाया जाये ।

रियो घोषणा पत्र

इस घोषणा पत्र में पर्यावरणीय विकास से संबंधित 27 बिंदुओं को शामिल किया गया ।

ग्लोबल वार्मिंग कान्ट्रेक्ट

यह ग्लोबल वार्मिंग के दुष्परिणामों से बचने के लिए एक सार्वजनिक संधि थी जिसमें विश्व के देशों ने कार्बन डाइ आक्साइड,मिथेन जैसी ग्लोबल वार्मिंग गैसों के उत्सर्जन में कटौती का संकल्प लिया जिससे पर्यावरण संरक्षण किया जा सकें । 

वनों से संबंधित सैद्धांतिक नीति

इस निति के द्धारा यह तय किया गया कि वनों का संरक्षण किया जायेगा और विकास के कारण वनों का विनाश न होनें पाये ।

जोहांसबर्ग प्रस्ताव

दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग शहर में सन् 2002 में सतत विकास पर एक अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया , जिसमें विश्व भर के लगभग 65 हजार राजनेता,पर्यावरण प्रेमी,और सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने भाग लिया। और कुछ निम्न निष्कर्ष निकाले 

1.ऊर्जा की आवश्यकता पूर्ति के लिए Renewable energy जैसे सौर ऊर्जा,पवन ऊर्जा आदि को बढ़ावा देना होगा ।

2.विकास के साथ वातावरण को भी सम्मिलित करते हुए विकास के बारे में सोचना होगा ।

3.जैसै जैसे विश्व के देशों की विकास दर बढ़ रही है प्रदूषण भी बढ़ रहा हैं,इसे रोकना होगा ।

4.विकासात्मक उपायों के बारे में बात करते समय वर्तमान के साथ भावी पीढ़ी की आवश्यकता की भी पूर्ति का ध्यान भी रखना होगा ।

आज की परिस्थिति में सतत विकास की अवधारणा विकसित और विकासशील देशों के बीच आरोप प्रत्यारोप के बीच सीमित हो गई है ,जिस पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है। आज विश्व का प्रत्येक विकसित और विकासशील राष्ट्र सतत विकास से संबंधित कार्ययोजना से दूर होकर काम कर रहा है जिससे न केवल पर्यावरण असंतुलित हो रहा हैं बल्कि दुनियाभर में गरीब और अमीर के बीच की खाई भी बढ़ रही हैं ।

सतत विकास के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए भारत को महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी और सभी देशों को साथ लेकर एक न्यायोचित कार्ययोजना तैयार करनी चाहिए ताकि इस प्रथ्वी को इंसानों, पेड़ पौधों और जीव-जंतुओं के रहने लायक बनाया जा सकें ।


प्रदूषित होती नदिया कहीं सभ्यताओं के अंत का संकेत तो नहीं ?




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से में होनें वाले रक्तस्त्राव को कम करने वाली सर्वमान्य औषधी हैं । इसके ल

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x