पराली जलानें के नुकसान
भारत में कृषि क्षेत्र में प्रयोग की जा रही नित नवीन टेक्नोलॉजी के कारण फसलों की कटाई बहुत आसान हो गई है । किंतु कटाई में प्रयुक्त कम्बाइंड हार्वेस्टर, ट्रेक्टर चलित कटाई यंत्रों से कटाई के दौरान खेत में फसल अवशेष शेष रह जाते हैं जिसे किसान अनुपयोगी मानकर जला देते हैं।
किसानों का इस प्रकार से पराली जलाना न केवल पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है वरन मृदा स्वास्थ, पर्यावरण,और मानव स्वास्थ के लिए बहुत घातक साबित हो रहा हैं। प्रतिवर्ष पंजाब, हरियाणा उत्तर प्रदेश आदि राज्यों के किसान 10 से 15 दिनों में पराली जलाकर पर्यावरण में इतना धुंआ उड़ेल देते हैं कि जितना दिल्ली और मुम्बई के वाहन सालभर में मिलकर भी नहीं उगलते हैं। एक अनुमानित आंकड़े के अनुसार मात्र पंजाब और हरियाणा 80 करोड़ टन पराली जला देते हैं ।
पराली को अन्य किस नाम से जाना जाता है
पराली को हिंदी में नरवाई, मध्यप्रदेश के मालवा और राजस्थान में खांपा के नाम से जाना जाता है।
पराली जलाने से निकलने वाले प्रदूषक तत्व
• कार्बन डाइऑक्साइड --- 1461 किलो
• राख --- 200 किलो
• कार्बन मोनोऑक्साइड--- 60 किलो
• सल्फर डाइऑक्साइड --- 2 किलो
[एक टन यानि 10 क्विंटल पराली जलाने पर]
पराली जलानें से निम्नलिखित प्रतिकूल प्रभाव देखने को मिल रहें हैं।
मृदा स्वास्थ पर पराली जलानें के दुष्प्रभाव
• गेंहू,चावल और अन्य फसलों को काटने के पश्चात इसमें नाइट्रोजन 0.5 प्रतिशत, पोटाश 0.8 प्रतिशत, अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व 0.6 प्रतिशत मौजूद रहते हैं यदि किसान पराली जला देते हैं तो भूमि को इतने पौषक तत्व मिलने से वंचित रह जाते हैं जो आगामी फसल में उपयोग नहीं हो पातें ।
• पराली में आग लगाने से जमीन के अंदर का तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता हैं फलस्वरूप किसान मित्र सूक्ष्म पोषक बेक्टेरिया , केंचुआ आदि जो कि खेत की मिट्टी में मौजूद नमी में ही जिंदा रहते हैं नष्ट हो जाते हैं ।
• पराली जलानें से मिट्टी की संरचना जलकर पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं जिसे फसल लायक सजीव होने में कई साल लग जाते हैं ।
• पराली जलानें से मिट्टी जलकर बहुत कठोर हो जाती हैं जिसे पुनः फसल लायक बनाने में ट्रेक्टर को अधिक ताकत और ऊर्जा की आवश्यकता होती है । भारतीय खेतों में ट्रेक्टरो का बढ़ता हार्सपावर इसका जीता-जागता प्रमाण है । सन् 1990 के दशक में जब पराली जलानें का रिवाज नहीं था भारत में औसत 21 से 35 हार्सपावर के ट्रेक्टर बहुत आसानी से जमीन जोतते थे किन्तु सन् 2021 तक 55 से 60 हार्सपावर के ट्रेक्टर भी जमीन जोतने में कमजोर साबित हो रहें हैं ।
• भूमि कड़क होने से भूमि की जलधारण क्षमता कम हो जाती हैं फलस्वरूप अधिक पानी वाली फसल बहुत कम उपज प्रदान करती हैं । लगातार पराली जलानें से धीरे धीरे मिट्टी की उर्वरता नष्ट हो जाती हैं।
पर्यावरण पर पराली जलानें के दुष्प्रभाव
• पराली जलानें से वातावरण में कार्बन-डाई-ऑक्साइड जैसी ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन बढ़ जाता हैं फलस्वरूप प्रथ्वी का तापमान बढ़ता है।
• ग्रीन हाउस प्रभाव क्या होता है
• पराली जलानें से वातावरण में कार्बन के सूक्ष्म कण और राख फैलती है जो वातावरण को प्रदूषित करती है ।
• पराली जलानें से पराली के साथ खेतों की मेड़ पर मौजूद अन्य पेड़ पौधे भी नष्ट हो जाते हैं । जो बहुमूल्य प्राणवायु आक्सीजन प्रदान करतें हैं ।
• पराली जलानें के बाद इसकी आग अनियंत्रित होकर पास के जंगलों में पंहुच जाती हैं और दावानल का रुप धारण कर लेती हैं । फलस्वरूप पेड़,पशु,पक्षी आदि नष्ट होकर पर्यावरण का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ जाता हैं ।
• पराली जलने से उड़ने वाली राख पेड़ पौधों के पत्तों की नमी से मिलकर पत्तों और तनों पर सीमेंट की भांति जम जाती हैं और पत्तों पर मौजूद रोमछिद्रों को बंद कर देती हैं फलस्वरूप पेड़ पौधे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में भाग नहीं ले पाते हैं और इनकी बढ़ने की दर घट जाती है । अधिक मात्रा में राख जमा होने पर ये नष्ट भी हो जातें हैं ।
• खेत की मिट्टी कठोर होने से ट्रेक्टर को अधिक परिश्रम करना पड़ता है जिससे अधिक ईंधन की खपत होती हैं फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषित होता हैं।
• व्यापक पैमाने पर पराली जलानें से बादलों में मौजूद जलवाष्प सुख जाती हैं जिससे वातावरण में नमी कम हो जाती हैं और वर्षा का पेटर्न बदल जाता हैं ।
मानव स्वास्थ पर पराली जलानें के दुष्प्रभाव
• पराली जलानें से उत्पन्न कार्बन कण सांस के माध्यम से फेफड़ों की म्यूकस मेम्ब्रेन पर जाकर चिपक जातें हैं जिससे म्यूकस मेम्ब्रेन में सूजन आ जाती हैं और व्यक्ति अस्थमा,C.O.P.D.धुल धूंए की एलर्जी से पीड़ित हो जाता हैं ।
प्रतिवर्ष दिल्ली, गुरुग्राम, नोएडा आदि शहरों में लाखों लोग इन बीमारियो से पीड़ित होकर काल के गाल में समा जाते हैं ।
• भारत में जब पराली जलाई जाती हैं उस समय दक्षिण पश्चिम मानसून के लोटने का समय होता है।और वातावरण में नमी मौजूद रहती हैं। वातावरण की नमी के साथ मिलकर राख के कण सांस के माध्यम से आहार नली और पेट में जाकर चिपक जाते हैं फलस्वरूप एसिडिटी,पेट दर्द,अल्सर जैसी समस्या पैदा हो जाती हैं।
• पराली जलानें से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाती हैं और आक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है यह स्थिति मानव जीवन के लिए बहुत ही खतरनाक है।
• पराली जलानें के कारण वातावरण में फैली धुंध से कई लोगों को अवसाद की समस्या भी होती हैं ।
• पराली जलाने से प्राप्त कार्बन मोनोऑक्साइड मानव शरीर में जाकर अंगों से आक्सीजन खींच लेती है फलस्वरूप शरीर में आक्सीजन की कमी होकर चक्कर आना, उल्टी होना,और बेहोशी आना जैसी शारीरिक समस्या हो जाती हैं।
पराली जलानें की बजाय क्या किया जाए
• पराली जलानें की बजाय स्ट्रारीपर से इसका भूसा बनाकर पशुओं का आहार बनाया जा सकता हैं।
• पराली को सडाने वाले जैव रसायन का प्रयोग कर पराली सडाकर खाद बनाई जा सकती हैं।
• रोटावेटर की सहायता से पराली को मिट्टी में दबाया जा सकता हैं जो खाद में परिवर्तित हो जाती हैं जिससे आगामी फसलों के लिए कम उर्वरक की जरूरत पड़ती हैं।
• गहरी जुताई करने से पराली मिट्टी में मिल जाती हैं और मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों को बढ़ाती हैं।
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