तेल के फायदे
प्राचीन चिकित्सा पद्धति में तेल के माध्यम से व्यक्ति को निरोग रखा जाता था । ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण तेलों का वर्णन चरक संहिता में किया गया हैं आईये जानतें हैं इन तेलों के फायदे के बारें में , तेल के फायदे जानकर आप भी आश्चर्यचकित रह जायेंगे ।
तिल के तेल के फायदे :::
कषायानुरसंस्वादुसूक्ष्ममुष्णंव्यवायिच। पित्तलंबद्धविण्मूत्रंन चश्लेष्माभिवर्द्धनम् ।।वातन्घेषूत्तमंबल्यंत्वच्यंमेधाग्निवर्धनम् तैलसं। तैलंसंयोगसंस्कारात्सर्वरोगापहंमतम्।।
अर्थात तिल का तेल स्वाद में कषाय ,स्वादिष्ट और हल्का होता हैं । तिल के तेल के अणु बहुत सूक्ष्म होतें हैं जिससे यह शरीर के जिस अंग पर लगता हैं उस अँग के अंदर तक पहुँचकर फायदा पहुँचाता हैं ।
तिल के तेल के फायदे |
तिल का तेल गर्म प्रकृति का होता हैं इसके सेवन से पित्तवर्धन होता हैं । और भूख खुलकर लगती हैं ।
तिल का तेल मल और मूत्र को रोकता हैं अर्थात इसके सेवन से मूत्राशय और मल संस्थान मज़बूत बनते हैं ।
कफ प्रकृति के लोग तिल का तेल सेवन करते हैं तो उन्हें सर्दी खाँसी आदि की समस्या नही होगी ।
तिल का तेल वात रोगों गठिया,जोड़ो का दर्द आदि को प्रभावी रूप से शमन करता हैं ।
तिल का तेल सेवन करनें से बल,बुद्धि और शरीर का तेज बढ़ता हैं । यह बुढ़ापा रोकता हैं ।
तिल का तेल जिस बीमारी की औषधीयों से संतृप्त होता हैं उस बीमारी को नष्ट़ कर देता हैं ।
तिल के तेल को लिंग पर लगाकर मालिश करनें से लिंग से सम्बधिंत समस्त प्रकार की कमज़ोरी दूर होती हैं ।
ऐरण्ड़ तेल ::
ऐरण्ड़तैलंमधुरंगुरूशलेषमाभिवर्धनम् ।वातासृग्गुल्मह्रदरोगजीर्णज्वरहरंपरम् ।।
ऐरण्ड़ का तेल प्रकृति में भारी ,मधुर और कफ को बढ़ाता हैं ।
ऐरण्ड़ का तेल सेवन करनें से वातकारक बीमारीयाँ जैसें पेट में गैस,गठिया संधिवात आदि शांत होता हैं ।
ऐरण्ड़ तेल की मालिश या इसका निश्चित अनुपान में सेवन पुरानें बुखार को नष्ट़ कर देता हैं ।
औषधीयों से सिद्ध ऐरण्ड़ तेल ह्रदयरोग ,शरीर की गाँठे तथा रक्तविकार की उत्तम औषधी माना गया हैं ।
सरसो का तेल ::
कटूष्णंसार्षपंतैलंरक्तपित्तप्रदूषणम् ।कफशुक्रानिलहरंकण्डूकोठविनाशनम् ।।
सरसो का तेल स्वाद में तीखा कटू और प्रकृति में गर्म होता हैं । इसके सेवन से कफ रोग समाप्त हो जातें हैं ।
त्वचा रोगों जैसें कुष्ठ खुजली में यह आरामदायक होता हैं ।
वायुविकारों को यह तेल तेजी से समाप्त करता हैं ।
चिरोंजी का तेल ::
पियालतैलंमधुरंगुरूशलेषमाभिवर्धनम् । हितमिच्छन्तिनातयौष्ण्यातसंयोगेवातपित्तयो : ।।
चिरोंजी के तेल को पियाल का तेल भी कहतें हैं ,यह तेल ऐरण्ड़ तेल के समान मीठा और भारी होता हैं ।
चिरोंजी का तेल कफ की वृद्धि करनें वाला होता हैं । यह तेल न तो ज्यादा गर्म होता है और ना ही ज्यादा ठंडा होता हैं इसके इसी गुण के कारण यह औषधीयों के साथ मिलकर वात और पित्त को नष्ट़ कर देता हैं ।
अलसी का तेल ::
आतस्यमधुराम्लनतुविपाकेकटुकंतथा । उषणवीर्य्यहितंवातरक्तपित्तप्रकोपनम् ।।
अलसी का तेल मीठा ,अम्लीय और कड़वा होता हैं । यह प्रकृति में गर्म और रक्तपित्त रोगों को बढ़ानें वाला और वातरोगों को नष्ट़ कर देता हैं ।
कुसुम का तेल ::
कुसुम्भतैलमुष्णश्चविपाकेकटुकंगुरू ।विदाहिचविशेषेणसर्वरोगप्रकोपनम्।।
कुसुम का तेल गर्म प्रकृति का कटु ,और भारी होता हैं । यह सर्वरोगों को नष्ट़ कर देता हैं ।
उपरोक्त तेल अपने गुणों और प्रकृति के कारण आयुर्वेद चिकित्सा में बहुत लोकप्रिय हैं ।
तेल की मालिश करनें से ही इसके अधिक गुण प्राप्त होतें हैं । परंतु आजकल तेलों का सेवन करनें की प्रवृत्ति ही भारतवर्ष में प्रचलित हैं यही कारण हैं कि उच्च रक्तचाप ,ह्रदयरोग ,मधुमेह और अल्प जीवन प्रत्याशा हमारे देश की राष्ट्रीय समस्या बन गई हैं ।
प्रकृति अनुसार तैल की मालिश करनें से व्यक्ति बलशाली , निरोगी,बहुत श्रम करने के बाद भी न थकनेवाला और दीर्घायु प्राप्त करनें वाला होता हैं।
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