निर्गुण्डी परिचय ::
निर्गुण्डी का संस्कृत नाम ::
संस्कृत में निर्गुण्डी को नीलपुष्पा, इन्द्राणी नील निर्गुण्डी,शैफाली,सुरसा सुवाध और श्वेत सुरसा के नाम से जाना जाता हैं । आयुर्वेद ग्रंथों में निर्गुण्डी का वर्णन करते हुए लिखा है
निर्गुडति शरीरं रक्षति रोगेट्टया
अर्थात निर्गुण्डी ऐसी निरापद औषधि है जो रोगों से शरीर की रक्षा करती हैं।
हिन्दी नाम ::
इसका हिन्दी नाम "निर्गुण्डी" हैं।
निर्गुण्डी का लेटिन नाम ::
Vitex Negundo (विटेक्स नेगुण्डों )
निर्गुण्डी की पहचान कैसे करें ::
निर्गुण्डी के वृक्ष ८ से लेकर १० फीट तक ऊँचें होते हैं। इसमें से बहुत सी पतली - पतली शाखाएँ निकली हुई होती हैं। ये शाखाएँ फीकी,सफेद और भस्मी रंग की होती हैं। इसके पत्तें जुड़वाँ और तीन से पाँच पत्तों के समूह में लगे रहते हैं। ये पत्तें सिरों की ओर थोड़े - थोडें रोंऐदार होतें हैं।
इसके पौधे में से एक तरह की तीव्र और अरूचिकारक गंध आती हैं।
निर्गुण्डी के फूल एक सीधी रेखा में लगते हैं,इनका रंग नीला सफेद होता हैं।
निर्गुण्डी के फल छोटें - पकने पर काले हो जाते हैं।
निर्गुण्डी की दो जातियाँ होती हैं एक सादे पत्ते वाली और दूसरी कंगूरेदार पत्ते वाली । जिस निर्गुण्डी में नीला फूल आता है उसे नीलपुष्पी और जिस निर्गुण्डी में सफेद फूल आता है उसे सफेद पुष्पी कहते हैं। निरगुण्डी की कंगूरेदार पत्ते वाली जाति अधिक प्रभावकारी और गुणकारी होती हैं। औषधि के रूप में कंगूरेदार निर्गुण्डी के पत्ते अधिक उपयोगी होते हैं ।
निर्गुण्डी की दो जातियाँ होती हैं एक सादे पत्ते वाली और दूसरी कंगूरेदार पत्ते वाली । जिस निर्गुण्डी में नीला फूल आता है उसे नीलपुष्पी और जिस निर्गुण्डी में सफेद फूल आता है उसे सफेद पुष्पी कहते हैं। निरगुण्डी की कंगूरेदार पत्ते वाली जाति अधिक प्रभावकारी और गुणकारी होती हैं। औषधि के रूप में कंगूरेदार निर्गुण्डी के पत्ते अधिक उपयोगी होते हैं ।
निर्गुण्डी के गुण दोष और प्रकृति :::
आयुर्वेद मतानुसार निर्गुण्डी कड़वी,तीखी,कसेली,हल्की ,गर्म, दीपन ,वात नाशक ,वेदनाशामक,कुष्ठघ्न,व्रण शोधक ,व्रण रोपक,शोधघ्न,कफ निस्सारक,ज्वर नाशक,खाँसी को दूर करने वाली,मूत्रल,आर्तव प्रवर्तक,कृमि नाशक,मज्जा तंतुओं को शक्ति देने वाली,बलवर्धक और रसायन हैं।
निर्गुण्डी का सूजन नष्ट करने वाला वेदनानाशक और वातनाशक गुण बहुत प्रभावशाली हैं।
किसी भी प्रकार की सूजन चाहे वह शरीर के बाहर हो या अन्दर इस औषधि के सेवन से समाप्त हो जाती हैं।
निर्गुण्डी का सूजन नष्ट करने वाला वेदनानाशक और वातनाशक गुण बहुत प्रभावशाली हैं।
किसी भी प्रकार की सूजन चाहे वह शरीर के बाहर हो या अन्दर इस औषधि के सेवन से समाप्त हो जाती हैं।
नारू रोग में निर्गुण्ड़ी ::
नारू रोग में निर्गुण्ड़ी के पत्ते का स्वरस पिलानें और घाव पर निर्गुण्ड़ी के पत्ते बाँधकर सिकाई करने से लाभ मिलता हैं।
@ कर्ण रोगों में निर्गुण्डी ::
कान में मवाद पड़ने पर निर्गुण्ड़ी पत्र का स्वरस सिद्ध किये हुये तेल और शहद के साथ मिलाकर कान में ड़ालने से मवाद बनना बंद होकर आराम मिलता हैं।
कान के बहरेपन में निर्गुण्ड़ी के पत्तों का रस कान में डालनें एँव निर्गुण्डी के पत्तों के रस में शिलाजित मिलाकर देनें से कान का बहरापन समाप्त करने में मदद मिलती है।
कान के बहरेपन में निर्गुण्ड़ी के पत्तों का रस कान में डालनें एँव निर्गुण्डी के पत्तों के रस में शिलाजित मिलाकर देनें से कान का बहरापन समाप्त करने में मदद मिलती है।
@ चर्म रोगों में :::
दाद,खाज़,खुजली,कोढ़ आदि में निर्गुण्ड़ी के पत्तों का काढ़ा बनाकर पिलानें से बहुत आराम मिलता हैं ।
@ फेफड़ों की सूजन में :::
फेफड़ों की सूजन में निर्गुण्डी का स्वरस पिलानें एँव इसके पत्तों को सरसों तेल के साथ गर्म कर फेफड़ों पर बांधनें से बहुत आराम मिलता हैं ।
गले में सूजन होनें या गलगंड में इसका काढ़ा छोटी पीपल और चन्दन के साथ मिलाकर पिलाया जाता हैं।
@ ज्वर में :::
मलेरिया,सामान्य ज्वर और सूतिका ज्वर में इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पिलातें हैं । साथ ही इस काढ़े से रोगी को स्नान करातें हैं । इससे बुखार के बाद शरीर से आनें वाली दुर्गंध दूर होती हैं ।
मलेरिया ज्वर में यदि यकृत (Liver) या तिल्ली बढ़ जाता हैं तो निर्गुण्ड़ी के पत्तों का रस निकालकर काली कुटकी और रसौंत के साथ मिलाकर देंनें से अतिशीघ्र आराम मिलता हैं ।
बुखार के समय होनें वाली उल्टी में निर्गुण्ड़ी के फूलों को शहद के साथ मिलाकर देनें उल्टी आना बंद हो जाती हैं ।
गर्भावस्था के बाद होनें वाले सूतिका रोग में निर्गुण्ड़ी क्वाथ देनें से गर्भाशय संकुचित होकर अपनें मूल रूप में आ जाता हैं ।और भीतरी गंदगी साफ़ हो जाती हैं ।
@ रक्त प्रदर में :::
महिलाओं को होनें वाले अत्यधिक रक्तस्राव में निर्गुण्ड़ी की जड़ को मिश्री और अश्वगंधा के साथ मिलाकर सेवन करानें बहुत शीघ्र आराम मिलता हैं ।
@ बिच्छू काटनें का इलाज :::
बिच्छू काटनें पर अत्यधिक दर्द और बदन में ऐंठन होती हैं ऐसी अवस्था में निर्गुण्डी की जड़ को पीसकर प्रभावित जगह पर लेप करनें से बिच्छू का जहर उतरता हैं। लेकिन ध्यान रहे प्रभावित स्थान पर यह लेप हर आधे घंटें में लगाते रहें । और पुरानाा लेप उतार दें ।
बेहोशी का उपचार :::
निर्गुण्डी रस को बेहोश व्यक्ति की नाक में डालनें से बेहोशी समाप्त हो जाती हैं ।
सिरदर्द का इलाज :::
निर्गुण्डी के पत्तों को पीसकर सिर पर लगानें और आधे सिरदर्द में प्रभावित स्थान की तरफ़ के नथूनें में निर्गुण्डी के पत्तों के रस की चार पाँच बूँद डालनें से आराम मिलता हैं ।
निर्गुण्डी के अन्य उपयोग :::
निर्गुण्डी या Indian privete आयुर्वेद की महत्वपूर्ण औषधि हैं जिसके उपयोग का वर्णन आयुर्वेद शास्त्र में हर जगह पर किया गया हैं ।
निर्गुण्डी के सेवन से दस्त आना बंद हो सकते हैं अत : इस बात का ध्यान रखते हुये निर्गुण्डी के साथ त्रिफला ,नागदन्ती लेना चाहिये ।
नार्मल डिलीवरी के लिए घरेलू उपाय
निर्गुण्डी की ताज़ा जड़ प्रसव का दर्द शुरू होने पर गर्भवती स्त्री की कमर में छोटे छोटे टुकड़े कर बांध देने से नार्मल डिलीवरी होनें की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती हैं। और यह घरेलू उपाय सिद्ध अनुभूत और हजारों गर्भवती महिलाओं पर आजमाया हुआ हैं।
सायनस का दर्द
जिन लोगों को सायनस का दर्द बार बार होता हैं उनके लिए निर्गुण्डी बहुत उपयोगी मानी जाती हैं। निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके नाक के आसपास सेंक लगाए ।
जोड़ों के दर्द का इलाज
निर्गुण्डी के पत्तों को गर्म करके जोड़ों के दर्द में बांधने से बहुत आराम मिलता हैं। इसके लिए निर्गुण्डी के दो चार पत्ते लेकर उन्हें सरसों के तेल में भिगोकर तवे में गर्म कर लें और प्रभावित जोड़ों पर बांध लें।
निर्गुण्डी का तेल
निर्गुण्डी का तेल बहुत प्रभावकारी आयुर्वेदिक औषधि है इसका सुगंधित तेल नाक से सूंघने से कोरोना से समाप्त हुआ जीभ का स्वाद,और नाक से सूंघने की क्षमता वापस आ जाती हैं।
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