Tips for 100 years life
मनुष्य इन आश्रमों के मध्य जीवन जीता था और अंत मे मोक्ष को प्राप्त करता था।
किन्तु आधुनिक युग की बात करें तो क्या हम 100 साल का जीवन जी पाते हैं ?
कुछ कुछ बिरले लोग ही होते है जो 100 वर्ष की उम्र जीते है। भारत में तो सेवानिवृति के बाद के जीवन को लोग बोनस लाइफ कहने लगे हैं।
अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे विकसित देशो में भी नागरिकों का औसत जीवन 75 साल के लगभग हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति को अपनाकर उम्र के 100 बसंत पूरे किये जा सकते है ?
जवाब निश्चित रूप में हां हैं, आइये जानते हैं भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति के इन तरीकों के बारे में ---
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सो साल कैसे जिये |
Tips for 100 years life
# 1 . उचित आहार
आहारस्यविधावष्टो विशेषाहेतूसांज्ञकाअः शुभाशुभसमुत्तपतोत्तात्परीक्ष्योपयोजयेत्।।
परिहार्यण्यपथयोनिसदापरिहरनरः भवत्नृणतांप्राप्तअःसाधूनामिहपण्डितः
अर्थात आहार के विषय में मनुष्य को शुभ अशुभ का भलीभांति ध्यान रखते हुए जो त्याग वस्तुयें हैं उनको त्याग देना चाहिए अर्थात जो शरीर के अनुकूल नहीं हैं, उनका सेवन नहीं करना चाहिए। तथा जो शरीर के हित मे हैं उनका सेवन करना चाहिए।
ऐसा करने वाला मनुष्य सुख को प्राप्त करता हुआ इतना जीवन जीता हैं कि तीनों ऋणों से उऋण हो जाता हैं, अर्थात व्यक्ति इतनी उम्र तक जीता हैं जब तक कि वह अपने सम्पूर्ण पारिवारिक कर्तव्यों से मुक्त न हो जाये।
#2 आहार कैसा होना चाहिए :::
त्रिविधँकुक्षौस्थापयेदवकाशाँशमाहारस्याहारमुपमुल्लानः तधैथैकमवकाशांशमूर्तानामाहार विकाराणामेकंद्रवाणामेकंपुनवातपित्तशलेष्माणम्
अर्थात भोजन के तीन भाग होने चाहिए प्रथम भाग ठोस हो जिसमें रोटी, चावल जैसे अन्न सम्मिलित हो ,दूसरा भाग तरल हो जिसमें दाल,सब्जी,सम्मिलित हो । तथा तीसरा भाग रिक्त हो अर्थात पेट खाली होना चाहिए।
• शास्त्रों के अनुसार भोजन करने के नियम विस्तारपूर्वक
यह भोजन इन्द्रियों को सम्पुष्ट करता हैं ।और व्यक्ति गम्भीर बीमारियों से बचकर जीवन के 100 बसंत अवश्य पूरे करता हैं।
●विटामिन डी के बारे में जानें
#3 . स्वास्थ्य को सम्पदा मानिये ::
# 4.आध्यात्मिक जीवन ::
# 5.दूसरों से अपनी तुलना न करें ##
अतः लम्बा जीवन जीने के लिये आवश्यक हैं कि दूसरों से अपनी तुलना बन्द करे।
#6. योग और व्यायाम को जीवन का अनिवार्य अंग बनाये :::
प्रतिदिन नियमित रूप से योग और व्यायाम करने से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ जाता हैं, जिससे कोशिकायें लम्बे समय तक जिंदा रहती है।
आधुनिक शोधों से पता चलता हैं कि प्रतिदिन योग और व्यायाम करने वाले व्यक्तियों की आयु उन व्यक्तियों से कही अधिक होती हैं जो नियमित योग और व्यायाम नहीं करते हैं।
भारत और अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार यदि मनुष्य रोज 10 किमी रोज पैदल चले तो उसकी जिंदगी में अतिरिक्त15 साल जुड़ जाते हैं।
योग और व्यायाम करने से शरीर लचीला और फुर्तीला बनता हैं जो अंततः लम्बा जीवन जीने में सहायक होता हैं।
#7. स्वास्थ्य की नियमित जांच करवाएं :::
यस्तुप्रागेवरोगेभ्यौरोगेषुतरुणेषुच।भेषजंकुरुतेसम्यकसचिरंसुखमश्नुते।।
जो मनुष्य रोग होने के पश्चात यथाशीघ्र रोग निवारण का उपाय कर लेते हैं।वे शरीर के सुख को सुखपूर्वक भोगते हैं।
एक अन्य ग्रन्थ में इस विषय पर लिखा हैं कि
यथास्वल्पेनयत्नेनच्छिघतेतरूणस्तरू:।सयेवातिप्रवृद्धस्तुनसुच्छेघतमोोोभवेत्।।एवमेवविकारोअपितरूणःसाध्धयतेेेसुखम।विव्रद्धःसाधयतेकर्छादसाध्धयोवापि जायते।।
अर्थात जिस प्रकार छोटे पौधें को उखाड़ना सरल होता हैं ,जबकि विशाल वृक्ष को उखाड़ना अत्यंत कठिन उसी प्रकार नवीन रोग का तुरंत शमन किया जा सकता हैं, जबकि जीर्ण रोग का का शमन अत्यंत कठिन हो जाता हैं।
इस प्रकार रोग का तुरन्त शमन करने वाला व्यक्ति दीर्घ आयु को प्राप्त करता हैं।
#8. जैविक खाद्य पदार्थों का सेवन करें :::
आजकल रासायनिक खादों, कीटनाशको से उत्पादित फल,सब्जियां, और अनाज की वजह से मनुष्य की DNA संरचना परिवर्तित होकर बीमारियों के प्रति अति संवेदनशील हो गई हैं,फलस्वरूप कैंसर जैसी घातक बीमारी बहुत तेजी से मनुष्य की ज़िंदगी लील रही हैं।
इन बीमारियों से बचने का उपाय जैविक खाद्य पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देना हैं।यदि हम जैविक खाद्य पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देते हैं तो न केवल स्वास्थ्य को संरक्षित कर सकते हैं, बल्कि बहुमूल्य पर्यावरण और पारिस्थितिक सन्तुलन को भी बचा सकते हैं
# 9.विनम्रता रखें अहंकार त्यागें :::
तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चंहु ओर।बसीकरन एक मंत्र है,परिहरू वचन कठोर ।।
अर्थात मीठे वचन से चारों और खुशीयाँ फैलकर हर कोई आपके वश में हो जाता हैं। मीठे वचन दूसरें का वशीकरण करनें का बहुत बड़ा मंत्र हैं ।
#10. जितेन्द्रिय बने :::
जितेन्द्रियंनानुपतिरोगास्तकालयुक्तमदिनसितदैवम्
अर्थात व्यक्ति ने अपनी समस्त इन्द्रियों को अपने ऊपर शासित नहीं होने दिया बल्कि व्यक्ति ने शाशक बन इन पर नियंत्रण रखा तो व्यक्ति रोगों और इच्छाओं से स्वयं बलवान होकर बहुत लम्बा जीवन व्यतीत करता हैं।
#11. जीवन आपका हैं फिर दूसरों को दोष क्यों ?
यह जीवन आपका अपना हैं इसको संवारने और बिगाड़ने की पूरी जिम्मेदारी भी आपकी हैं दोषारोपण सिर्फ आपकी आत्मा को कष्ट पंहुंचाता हैं ।
महात्मा गाँधी दूसरों पर दोषारोपण करने की बजाय अपने शरीर को कष्ट देंना ज्यादा उचित समझते थे ।
शास्त्रों में लिखा हैं ::-
ये त्वेनमनुवर्तन्ते क्लिश्य्मनम् स्वकर्मणा। न तन्निमित : क्लेशॉसौ न ह्स्तिक्रुत्क्रुत्य्ता ।।
अर्थात जो मनुष्य अपने कर्मों से कष्ट भोगते हैं और अपने इन कष्टों के लिये देवताओं को दोष देते हैं ।जबकि वास्तविक रूप से इनकों प्राप्त कष्ट इनके कर्मों के कारण ही हैं । इस प्रकार के मनुष्य सम्पूर्ण रूप से झूठे हैं ।
एक अन्य स्थान पर बुद्धिमानों के बारे में बात करते हुए शास्त्रों में लिखा हैं की
आत्मन्नेव मन्यते कर्तारम सुखदुख:यो। त्स्माच्येस्क्र्ण मार्ग प्रतिपघेत नोत्रसेत् ।।
अर्थात बुद्धिमान मनुष्य को अपने आप को ही सुख दुःख का कारण माने और कल्याण करने वाले मार्ग पर चलता रहे । ऐसा करने वाला मनुष्य त्रास को प्राप्त नहीं होता हैं ।
और यदि हमने ऐसा नही किया तो फिर लम्बी आयु के लिए कोई दूसरा गृह ही खोजना पड़ेगा ।
।। इति शुभम भवतु।।
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