।।। मांडव ।।।
मध्यप्रदेश भारत का ह्रदय प्रदेश हैं, जहां अनेक विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक, धार्मिक, और प्राकृतिक स्थल मौजूद हैं, इन स्थानों पर देश विदेश के लाखों पर्यटक प्रतिवर्ष आते हैं।
ऐसा ही एक पर्यटन स्थल मांडू या मांडव हैं जो ऐतिहासिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक विशेषताओं को अपने में समेटे हुए हैं।
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।।। मांडव कहाँ स्थित हैं ।।।
मांडव या मांडू भारत के मध्यप्रदेश राज्य के पश्चिमी भाग में स्थित धार जिले में हैं। धार से मांडव की दूरी 36 किमी हैं।
जबकि इंदौर से मांडव की दूरी 100 किमी हैं।
विंध्याचल पर्वतमालाओं पर लगभग दो हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित यह स्थल लगभग 72 वर्ग किलोमीटर में फैला हैं।
।।। इतिहास ।।।
मांडव की स्थापना का श्रेय परमार राजवँश को जाता हैं। परमार कालीन राजाओं ने इस स्थान को अपने " शाही निवास " के रूप में प्रयोग किया।
बाद के अनेक राजवंशो ने इस पर कब्जा कर लिया और अपने निवास स्थान के रूप में उपयोग किया।
।।। मांडू के दर्शनीय स्थल ।।।
।।। कांकड़ा खोह ।।।
मांडू में प्रवेश करते ही यह खाई पर्यटकों का बरबस ही ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लेती हैं। इस खायी के मुहाने पर प्राकृतिक झरना हैं ,इस झरने से गिरता जल पर्यटकों के सामने अद्भुत दृश्य उपस्थित करता हैं।
बरसात के समय जब छोटी छोटी बदलिया इस खोह के ऊपर से गुजरती हैं तो ऐसा लगता हैं सफेद चादर आसमान में उड़ रही हैं।
यह खोह अनेक जीव जंतुओं और प्राकृतिक वनस्पतियों का आश्रय स्थल हैं।
।।। 12 दरवाजे ।।।
मांडू के आसपास सुरक्षा प्रदान करने के दृष्टिकोण से यहां के राजाओं ने 12 दरवाजों का निर्माण कराया था।ये दरवाजे निर्माण कला का उत्कृष्ट उदाहरण हैं । जिनमें प्रमुख दरवाजे हैं ,दिल्ली दरवाजा, आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा, गाड़ी दरवाजा ,तारापुर दरवाजा, जँहागीर दरवाजा आदि।
इन दरवाजों को देखने पर उस काल की उच्चस्तरीय सुरक्षा का अहसास होता हैं। हालांकि इनमें से कुछ दरवाजे अवशेष बन चुके हैं।
मांडू की प्रसिद्ध इमारतें
।।। जहाज महल ।।
इस महल का निर्माण सन 1469 ईस्वी से 1500 ईस्वी के मध्य गयासुद्दीन ख़िलजी ने कराया था।
दो तालाबों के बीच स्थित होने के कारण यह महल पानी मे लंगर डाले जहाज के समान दिखाई देता हैं । इसी कारण इसे जहाज महल कहा जाता हैं । इस महल की वस्तुकला बेजोड़ कारीगरी का नमूना हैं। इस महल के सामने खड़े होकर सेल्फी लेने का अपना ही मजा है।
बहुत कम लोगों को पता है कि अभिनेता दिलीप कुमार और वहीदा रहमान अभिनित फिल्म "दिल दिया दर्द लिया" की अधिकांश शूटिंग जहाज महल में पूरी हुई थी। इस फिल्म से ही दिलीप कुमार एक स्थापित अभिनेता के तौर पर बालीवुड में पहचाने गए थे।
।।। रूपमती महल ।।।
रूपमती महल 365 मीटर ऊँची चट्टान पर स्थित हैं, यह महल अपनी बेजोड़ निर्माण कला के कारण जितना प्रसिद्ध हैं उससे कहीं अधिक इस महल के साथ रानी रूपमती ओर बाजबहादुर की प्रणय गाथा प्रचलित हैं।
बाजबहादुर शेरशाह सूरी के सूबेदार शुजात खान का बेटा था।शेरशाह सूरी ने सन 1542 ईस्वी में मांडू पर कब्जा कर लिया ओर शुजात खान को यहाँ का सूबेदार नियुक्त कर दिया, शुजात खान की मृत्यु के बाद बायजीद उर्फ बाजबहादुर ने स्वंय को मांडू का स्वतंत्र शासक घोषित कर लिया।
एक बार बाजबहादुर शिकार के सिलसिले में बाहर गया हुआ था जहाँ उसकी नज़र रूपमती पर पड़ी, रूपमती के असीम सौन्दर्य और संगीत निपुणता पर बाजबहादुर मोहित हो गया।बाद में बाजबहादुर ने रूपमती से विवाह कर लिया।
कहते हैं कि हिंदू रानी रूपमती की माता नर्मदा में असीम श्रद्धा थी ओर रूपमती महल पर चढ़कर यहाँ से कई किलोमीटर दूर स्थित नर्मदा के दर्शन उपरांत अन्न ग्रहण करती थी।
इस महल के ऊपरी भाग से नर्मदा नदी चांदी के पतले तार के समान दिखाई देती हैं। पर्यटक आज भी इस महल पर चढ़कर नर्मदा को देखने की कोशिश करना नहीं भूलते हैं।
इस महल की छत से विंध्याचल पर्वत मालाओं का मंत्र मुग्ध कर देने वाला दृश्य दिखाई देता हैं।
महल के अंदर दरवाजों, खिडकियों की विशालता ओर नक्कासी को देखकर इस महल की समृद्धता का अहसास होता हैं, जो काल के थपेड़ों में विस्मृत हो गई हैं।
यहां के विशाल कमरे एक अजीब खामोशी की ओर इशारा करते प्रतीत हो रहे हैं मानो कह रहे हो कभी हमारी भी समृद्ध राते ओर दिन हुआ करती थीं।
।।। हिंडोला महल ।।।
हिंडोला महल का निर्माण गयासुद्दीन ख़िलजी ने ईस्वी सन 1469 से ईस्वी सन 1500 के आसपास कराया था।
यह महल अफगानी वास्तुकला का बेजोड़ नमूना हैं,इस महल की भीतरी दीवार भीतर की की ओर झुकी हुई हैं जिस कारण यह दूर से झूले जैसा दिखाई देता हैं। चूंकि मालवा में झूले को हिंडोला कहा जाता हैं इसी कारण इसे हिंडोला महल कहा जाता हैं।
इस महल का उपयोग महत्वपूर्ण व्यक्तियों के सभा स्थल के रूप में किया जाता था । जिसे ''दीवाने - ए - खास "कहा जाता था।
इस महल में लगे खूबसूरत स्तम्भ इस स्तम्भ की भव्यता का अहसास कराते हैं।
।।। जामी मस्जिद ।।।
यह इमारत सीरिया में बनी मस्जिद की तरह हैं ।इसके निर्माण काल को लेकर इतिहासकारो में एकराय नहीं हैं।कोई इसे परमार कालीन बताता है तो कोई सल्तनत कालीन।
इस इमारत को आम जनता की समस्या सुनने के लिये प्रयुक्त किया जाता था । इसमें बैठने के कई चबूतरे बने हैं जिस पर राजा और उनके सिपहसालार बैठते थे।
यह इमारत अपनी भव्यता ओर उत्कृष्ट शिल्प के कारण पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं। इसका भव्य प्रवेश द्वार और आँगन देशी विदेशी पर्यटक के लिये किसी कौतूहल से कम नहीं हैं।
।।। नीलकण्ठ महादेव ।।।
यह इमारत एक स्मारक थीं, जिसे मुगल काल में अकबर के सिपहसालार शहाबुद्दीन खां ने बनाया था। सन 1585 में अकबर ने अपनी हिंदू रानी जोधाबाई के लिये " शिवलिंग " की स्थापना कराई थी । बाद में जब ओरंगजेब हिन्दू मन्दिरों को नष्ट कर रहा था तब इस शिवलिंग को पत्थरो से हिंदू राजाओं ने ढकवा दिया था।
सन 1724 के आसपास मराठा शासक पेशवा बाजीराव प्रथम ने इस पर ढंकी शिला को हटाकर शिवलिंग की पुनः पूजा प्रारम्भ करवायी तब से यहां निरन्तर पूजा हो रही हैं।
सावन महिने में जब शिवभक्त कावड़िये इस शिवलिंग पर दूर दूर से जल चढ़ाने आते हैं तो बहुत ही आध्यात्मिक दृश्य यहां उपस्थित होता हैं।
यहां स्थित शिवलिंग मन्दिर के मुख्य द्वार से 2 से 3 फिट नीचे हैं । श्रद्धालुओं को शिवलिंग के दर्शन हेतु सीढ़ी के सहारे नीचे उतरना पड़ता हैं।
।।। होशंगशाह का मक़बरा ।।।
गोरी वंश के शासक होशंगशाह ने मांडू पर चौदहवीं शताब्दी में शासन किया था। उसने अपने जीवित रहते ही अपने नाम से इस मकबरे का निर्माण करा दिया था।ताकि उसकी मौत के बाद भी दुनिया उसे याद करती रहे।
यह मक़बरा संगमरमर से बना है ,शाहजहां ने इसी मकबरे से प्रेरित होकर अपने वास्तुविद अब्दुल हमीरी को मांडू भेजा और इसके जैसा मकबरा आगरा में बनाने की इच्छा जताई।
अब्दुल हमीरी ने इस मकबरे से प्रेरित होकर आगरा में ताजमहल का निर्माण किया था। ताजमहल इस मकबरे की नकल कर बनाया गया है बस दोनों में अंतर इतना ही हैं कि इस मकबरे के चारों ओर गुम्बद हैं जबकि ताजमहल के चारों ओर मीनारे हैं।
यदि आपने ताज महल देखा है ओर इस इमारत को नही देखा तो निश्चित रूप में आपका ताजमहल देखना अधूरा माना जायेगा।
इस मकबरे में संगमरमर से निर्मित विभिन्न संरचना कला पारखियों की नज़र में बहुत ही अद्भुत ओर अविस्मरणीय हैं।
।।। चतुर्भुज श्री राम मंदिर ।।।
मांडू में स्थित चतुर्बुज श्री राम मंदिर में स्थापित श्री राम की प्रतिमा 10 वी शताब्दी की हैं।
इस प्रतिमा की स्थापना रघुनाथ दास महाराज ने की थी जो कि पुणे ( महाराष्ट्र ) निवासी थे।
इस जगह प्रतिमा जमीन के नीचे होने की बात उन्हें सपने में पता चली थी जो बाद में उन्होंने खुदाई करवाकर स्थापित करवाई।
यह मंदिर भी दर्शनीय स्थल के रूप में अपनी पहचान बना चुका हैं।
।।। रूपायन कलादीर्घा ।।।
मांडू आये ओर यहाँ तशरीफ़ नही लाये तो फिर आपका मांडू घूमना अधूरा हैं। रूपायन कला दीर्घा देश विदेश के पर्यटकों के बीच बहुत लोकप्रिय हैं।
कला दीर्घा में धार की प्रसिद्ध " बाघ प्रिंट " से निर्मित वस्तुओं की बिक्री स्थानीय कलाकारों द्वारा की जाती हैं।
ये कलाकार वस्तु बेचने के साथ उसके सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारी भी पर्यटकों को देते हैं जैसे
''बाघ प्रिंट कैसे की जातीं हैं, इसमे रंगों का चयन किस आधार पर होता हैं, आपके द्वारा ली गयी बाघ प्रिंट से निर्मित वस्तु किस कलाकार द्वारा निर्मित हैं आदि ''
यदि आपने बहुत सारा सामान खरीद लिया हैं और आपके बैग या गाड़ी में जगह नहीं हैं, तो भी चिन्ता की कोई बात नहीं है, आप जी भर के सामान खरीदे आप का सामान दुकानदार कुरियर से आपके घर पहुंचा देगा।
इन पर्यटक स्थलों के अतिरिक्त मांडू में चम्पा बावड़ी, अशर्फी महल,रेखा कुंड ,दाई निवास जैसी कई ऐतिहासिक इमारते हैं।
आप मांडू घूमने गए हैं तो इसके आसपास स्थित स्थानों को भी अपनी लिस्ट में जोड़ ले जैसे ओंकारेश्वर, महेश्वर, पातालपानी,इंदिरा सागर बांध, चोरल बांध आदि । ये सभी स्थान मांडू से 200 किमी के घेरे में स्थित हैं।
मांडू में ही सन् 1446 में मालवा सल्तनत के शासक महमूद खिलजी देश के पहले मानसिक चिकित्सालय की स्थापना की गई थी जिसमें प्रसिद्ध यूनानी चिकित्सक मौलाना - लाह - हकीम नियुक्त थे ।
इन सबके अलावा इस पार्क में पार्क में दस हज़ार साल पुराने मगरमच्छ,शार्क मछली के जीवाश्म मिलने की जानकारी भी प्रदान की गई है ।
।।। म्यूजियम ।।।
मांडू में खुदाई से मिली अनेक मूर्तियों ओर वस्तुओं का संग्रह इस स्थल पर हैं ।इसे देखना मांडू की गौरवशाली पृष्ठभूमि से से परिचित होंने के समान हैं।
इन पर्यटक स्थलों के अतिरिक्त मांडू में चम्पा बावड़ी, अशर्फी महल,रेखा कुंड ,दाई निवास जैसी कई ऐतिहासिक इमारते हैं।
आप मांडू घूमने गए हैं तो इसके आसपास स्थित स्थानों को भी अपनी लिस्ट में जोड़ ले जैसे ओंकारेश्वर, महेश्वर, पातालपानी,इंदिरा सागर बांध, चोरल बांध आदि । ये सभी स्थान मांडू से 200 किमी के घेरे में स्थित हैं।
मांडू में ही सन् 1446 में मालवा सल्तनत के शासक महमूद खिलजी देश के पहले मानसिक चिकित्सालय की स्थापना की गई थी जिसमें प्रसिद्ध यूनानी चिकित्सक मौलाना - लाह - हकीम नियुक्त थे ।
।। मांडू जीवाश्म पार्क ।।
बहुत कम लोग जानते हैं कि मांडू जुरासिक युगीन डायनासोरों का बहुत बड़ा आवास स्थल था । लगभग साढ़े छः हजार साल पूर्व के डायनासोर के अंडे और जीवाश्म जो खुदाई में मांडू से मिले हैं वो यही बताते हैं कि मांडू डायनासोर के लिए अनूकूल स्थल था ।
इसी बात की जानकारी लोगों को प्रदान करने के लिए मांडू में जीवाश्म पार्क की स्थापना की गई है । यहां आकर पर्यटक डायनासोर के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं ।
इन सबके अलावा इस पार्क में पार्क में दस हज़ार साल पुराने मगरमच्छ,शार्क मछली के जीवाश्म मिलने की जानकारी भी प्रदान की गई है ।
खुरासानी इमली
मांडू में आपको जगह जगह खुरासानी इमली के पेड़ दिख जाएंगे पुरातत्वशास्त्रीयों के अनुसार 15वीं शताब्दी में अफ्रीका के देशी पेड़ खुरासानी इमली को महमूद खिलजी के शासनकाल के दौरान अरब के व्यापारियों द्वारा मांडू लाया गया था तब मांडू अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अपने चरम पर था और मध्य- एशियाई देशों के साथ इसके घनिष्ठ व्यापारिक संबंध थे। स्पाइस रूट के व्यापारियों का एक समूह 15वीं शताब्दी में खुरासानी क्षेत्र से मांडू आया था। यह खुरासान प्रारंभिक मध्य एशिया का ऐतिहासिक क्षेत्र था पूरे साम्राज्य में इनका रोपण किया गया था, लेकिन यह मांडू और आसपास के क्षेत्र में ही पनपे। तब से यह माहू की अमूल्य धरोहर हैं।
।।। मांडू कब घूमने जाएं ।।।
मांडव प्रकृति का सुकुमार क्षेत्र हैं जहाँ बारह महीने देशी विदेशी पर्यटकों की आवाजाही बनी रहती हैं,परन्तु बरसात ओर जाड़े के दिनों में यह प्रदेश पर्यटकों की आवाजाही से भरा रहता हैं।
इस दौरान यहाँ कई प्रकार के विविधतापूर्ण आयोजन होते रहते हैं।
सर्दी के दिनों में अलाउद्दीन खान संगीत अकादमी यहां " मांडू उत्सव '' नामक कार्यक्रम का आयोजन करती हैं जिसमें गायन,नृत्य, नाटक जैसे आयोजन होते हैं जिसमें भारत की विविध सांस्कृतिक छटा के दर्शन होते हैं।
इसके अलावा इस दौरान पैराग्लाइडिंग, फ़ोटो प्रतियोगिता,योग,मांडू हेरिटेज वाक,साइकलिंग,हार्स राइडिंग ,फिशिंग,आदि साहसिक खेल कूद जैसे आयोजन होते हैं।
मध्यप्रदेश पर्यटन निगम और मध्यप्रदेश शासन पर्यटकों को बेहतर अनुभव देने के लिये लगातार प्रयासरत हैं ।
इस दौरान यहाँ कई प्रकार के विविधतापूर्ण आयोजन होते रहते हैं।
सर्दी के दिनों में अलाउद्दीन खान संगीत अकादमी यहां " मांडू उत्सव '' नामक कार्यक्रम का आयोजन करती हैं जिसमें गायन,नृत्य, नाटक जैसे आयोजन होते हैं जिसमें भारत की विविध सांस्कृतिक छटा के दर्शन होते हैं।
इसके अलावा इस दौरान पैराग्लाइडिंग, फ़ोटो प्रतियोगिता,योग,मांडू हेरिटेज वाक,साइकलिंग,हार्स राइडिंग ,फिशिंग,आदि साहसिक खेल कूद जैसे आयोजन होते हैं।
मध्यप्रदेश पर्यटन निगम और मध्यप्रदेश शासन पर्यटकों को बेहतर अनुभव देने के लिये लगातार प्रयासरत हैं ।
।।। मांडू में कहाँ रुके ।।।
मांडव में मध्यप्रदेश पर्यटन निगम द्वारा संचालित होटलों के अलावा निजी क्षेत्रों की कई होटलें पर्यटकों को कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता की सेवाएं उपलब्ध कराती हैं।अतः इन होटलों में ठहरकर आप अपने पर्यटक अनुभव को चार चाँद लगा सकते हैं।
।।। मांडू का खान पान ।।।
मांडू में हर प्रकार का शाकाहारी मांसाहारी खान पान प्रचलित हैं।किन्तु एक विशेष भोजन जो देश विदेश के पर्यटकों के बीच लोकप्रिय हैं वह हैं "'' पानिया '''' पानिया मक्का के आटे से बनाया जाता हैं।
मक्का के आटे को गोल रूप देकर पलाश के पत्तों पर लपेटा जाता हैं और अंगारो पर सेंका जाता हैं। जिसे तुवर, उड़द, मूंग आदि को मिलाकर बनायी दाल के साथ खाया जाता हैं।
सड़क किनारे स्थित किसी ढ़ाबे पर बैठकर पानिया खाने का जो मजा है वो शब्दों में बांधना सम्भव नहीं हैं।
।।। मांडू का निकटतम रेलवे स्टेशन ।।।
मांडू का निकटतम रेलवे स्टेशन इंदौर और रतलाम हैं ।
इंदौर रेलवे स्टेशन मांडू से 100 किमी हैं जबकि रतलाम रेलवे स्टेशन की दूरी 124 किमी हैं।इन दोनों स्टेशनों पर भारत के किसी भी जगह से आसानी से पहुंचा जा सकता हैं।
।।। मांडू का निकटतम हवाई अड्डा ।।।
मांडू का निकटतम हवाई अड्डा इंदौर हैं जो यहाँ से 100 किमी की दूरी पर हैं ।यहाँ देश के प्रमुख हवाई अड्डों से प्रमुख विमान सेवा कम्पनियों की सीधी विमान सेवा उपलब्ध हैं ।
इसके अलावा इंदौर के कई टूर ऑपरेटर भी कम कीमत पर मांडू के लिये बेहतरीन टूर वयस्था करते हैं।
तो दोस्तों आप परिवार समेत कब जा रहे हो मांडू बताइयेगा जरूर ।
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