सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

आत्मविकास के 9 मार्ग (9ways of self Development)

#आत्मविकास के 9 मार्ग

आत्मविकास के 9 मार्ग
आत्मविकास
 प्रथ्वी पर लड़े गये विनाशकारी महायुद्धों जैसें महाभारत का युद्ध, रामायण का राम - रावण युद्ध, प्रथम विश्व युद्ध तथा द्धितीय विश्व युद्ध के  परिणामों की जब चर्चा की जाती हैं,तो एक पक्ष की हार तथा दूसरें पक्ष की जीत से अधिक मानवता के विनाश की चर्चा कभी कभार कर ली जाती हैं.

लेकिन इन युद्धों से पूर्व और पश्चात आत्मा का भी अत्यधिक विनाश हुआ और आज भी हो रहा हैं,जिसकी चर्चा बहुत सीमित रूप से ही हम कर पातें हैं.  इन युद्धों के पूर्व यदि मनुष्य अपना आत्मावलोकन कर लेता तो शायद मानवता इससे कही अधिक उन्नत होती.

आईयें जानतें हैं आत्मवलोकन का मार्ग क्या हैं या आत्मविकास कैसे करें


## 1.सत्य वचन 


दुनिया में सत्य वचनों की बात तो बहुत होती हैं,किंतु सत्य वचन बोलनें वाले मुठ्ठीभर लोग ही होतें हैं.

हितोपदेश में लिखा हैं,कि असत्य वचन वाणी का गंभीर पाप हैं,जिसके बोलनें से आत्मा संताप को प्राप्त होती हैं.


कभी उस परिस्थिती के बारें में विचार करें जब आपनें झूठ बोला था तब आपके मन में कौंन - कौंन से नकारात्मक विचार आये जिनसें आपकी अंतरात्मा को कष्ट हुआ.

और अब उस परिस्थिती के बारें में विचार कीजिये जब आपनें सच बोला था,उसके बाद आपके मन में कौंन से नकारात्मक विचार आयें थे,शायद एक भी नहीं क्योंकि सत्य वचन को बोलनें के बाद याद रखनें की ज़रूरत नहीं रहती जैसाकि असत्य वचन को याद रखनें की होती हैं.

महात्मा गाँधी, अपनें जीवन में मिली अपार सफ़लता का श्रेय सत्य संभाषण को देते थे.महात्मा गांधी का तो यह मानना था कि सत्य बोलकर मनुष्य अपनी आत्मा को संतापों से बचाता हैं.

भगवान महावीर ने मनुष्य की मुक्ति के जो मार्ग बतायें हैं उनमें सत्य बोलना एक महत्वपूर्ण मार्ग हैं,इस मार्ग पर चलें बिना मनुष्य मुक्ति प्राप्त नही कर सकता हैं.


आचार्य चरक रचित चरक संहिता में लिखा  हैं कि

"तघथाशुचिंसत्याभिसन्धंजितात्मानंसंविभागिज्ञानविज्ञानवचनप्रतिवचनशक्तिसम्पन्नंस्मृतिमन्तंकामक्रोधलोभमानसोहेष्र्याहर्षोंपेतंसमंसर्वभूतेषुब्राम्ह्अविघात्"


अर्थात जो मनुष्य सत्य वचन बोलता हैं,काम क्रोध,लोभ से मुक्त हैं,ऐसे मनुष्य को ब्रम्ह मनुष्य कहा गया हैं,जिसकी चिकित्सा करनें को वैध को तत्पर रहना चाहियें,तथा ऐसे मनुष्य पर औषधियों का भी शीघ्रातिशीघ्र प्रभाव पड़ता हैं.

सत्य का एक पक्ष ओर हैं जिसके अनुसार सत्य को प्राप्त करना हैं,तो सच्चाई को स्वीकार करनें का गुण भी मनुष्य में होना आवश्यक हैं. इसके अभाव में मनुष्य सच्चाई को पूर्ण प्राप्त नही कर पायेगा.


ईमानदारी से अपनी कमज़ोरी को स्वीकार कर सुधार करनें का साहस होना सच्चे मनुष्य की निशानी हैं.


## 2.प्रायश्चित 


प्रायश्चित का तात्पर्य हैं अपने द्धारा किये गये गलत कामों का पश्चाताप या इसके बारें में अन्तर्मन से क्षमा मांगना.

स्वामी विवेकानंद का मानना हैं,कि सच्चे मन से किया गया प्रायश्चित आत्मा को अंदर तक शुद्ध करता हैं.

भगवान महावीर प्रायश्चित  को महत्वपूर्ण तपों में से एक मानतें हैं.उन्होनें कहा हैं,कि प्रायश्चित से क्रोध, लोभ,मोह का नाश होता हैं.यदि किसी मनुष्य से कोई गलती हो गई हैं,तो  प्रायश्चित कर स्वंय को हल्का कर लेना चाहियें.

महात्मा गांधी प्रायश्चित के लिये उपवास,दीन दुखीयों की सेवा का संकल्प लेतें थे.गांधी जी का स्पष्ट मानना था कि प्रायश्चित से आत्मा निर्मल और ब्रम्ह स्वरूपमय हो जाती हैं.


===============================================

● यह भी पढ़े 👇👇👇


● आश्रम व्यवस्था के बारें में जानकारी


===============================================


##3.आत्मसंयम 


आत्मसंयम बिना आत्मविकास के बारें में सोचना जल बिन मछली के समान हैं.

स्वामी विवेकानंद आत्मसंयम की प्रतिमूर्ति थे,जिनका जीवन आत्मसंयम से ओतप्रेत था,इसी आत्मसंयम के बल पर वे स्वामी रामकृृष्ण के सबसे योग्य उत्तराधिकारी बनें.

स्वामी जी के आत्मसंयम का परिचय हमें शिकागों धर्म सम्मेलन में दिये भाषण और उसके बाद अमेरिका भ्रमण के कई दृष्टांतों में मिलता हैं.

आत्मसंयम अभ्यास और मन की एकाग्रता द्धारा विकसित होता हैं.

तुलसीदास जी आत्मसंयम के बारें में लिखतें हैं,"संयम:खलु जीवनम्"अर्थात संयम में बंधा व्यक्ति का जीवन सफल हैं.
संयमी व्यक्ति हर परिस्थिती में सम रहता हैं वह कभी आक्रांता नहीं होता हैं.

जिस व्यक्ति में आत्मसंयम की कला का बीजारोपण हो गया उस व्यक्ति की सम्पूर्ण जीवनशैली ही बदल जाती हैं.उसका आचार विचार ,व्यहवार,रहन - सहन सबकुछ उच्चकोटी के आदर्श स्थापित करतें हैं.

## 4.मौंन 

कहतें है शब्द मनुष्य की सबसे बड़ी ताकत है शब्द जबतक आपके पास हैं तब तक उन पर आपका अधिकार हैं,किंतु यही शब्द जिह्वा से आजाद होतें ही आपके अधिकार क्षेत्र से परे हो जातें हैं.कहा भी गया हैं,कि '' बंदूक से निकली गोली और मुँह से निकली बोली कभी वापिस नही आतें"

 शब्द अप्रिय,अहितकर या कटु हो तो सामनें वालें पर तीर बनकर चुभतें हैं.जिसके बाद सामनें वालें से आरोप - प्रत्यारोप का दोर भी चल सकता हैं.यह आरोप - प्रत्यारोप आत्मा को असहनीय कष्ट पँहुचाता हैं.

इसके विपरीत यदि हम मौंन रहें तो न केवल अपनी आत्मा को कष्टों से बचातें हैं बल्कि मौंन के द्धारा आत्मा और मन की अन्तर्तम गहराई में गोते लगानें के योग्य हो जातें हैं.

कहते भी हैं कि किसी के द्धारा कहे गये कटु वचनों का सबसे प्रभावशाली जवाब मौंन ही होता हैं.
भगवान बुद्ध को जब ज्ञान प्राप्त हुआ तो कई दिनों तक उनके पास बोलनें के लिये एक शब्द भी नही था.बाद में उन्होंनें अपनें शिष्यों को उपदेश देतें हुये कहा था कि यदि हम अच्छा बोलनें में असमर्थ हैं तो मौंन ही श्रेयस्कर हैं.

दुनिया की 99.99% आबादी ऐसे लोगों की हैं जिनके पास कहनें को कुछ भी नहीं हैं लेकिन वो कहते जा रहें हैं,जबकि मात्र 0.1% आबादी ऐसी हैं जिनके पास कहनें को बहुत कुछ हैं,लेकिन वह कहतें नही बल्कि  करतें जा रहें हैं.

#5.मीठे वचन

आत्मा को स्वस्थ और प्रसन्न रखनें का एक माध्यम मीठे वचन भी हैं.जो बात आपको पसंद नही हैं वह दूसरो को भी नही बोलना चाहियें.

जब हम दूसरों को कटु वचन बोलतें हैं तो जितना कष्ट सामनें वाले की आत्मा को होता है उतना ही कष्ट बोलनें वाले की आत्मा भी सहती हैं.यह न्यूट़न के गति के 3 रे नियम की तरह हैं अर्थात हर क्रिया के बराबर और उतनी ही मात्रा में विपरीत प्रतिक्रिया होती हैं.

यदि सामनें वाला आपके कटु वचनों का कोई प्रतिउत्तर नही  देता हैं तो भी आपकी आत्मा कष्ट पायेगी और ये कष्ट़ आपकी आत्मा को प्रकृति या ईश्वर द्धारा दिया जायेगा.यह बात  आंइस्टीन के ऊर्जा संरक्षण नियम की तरह शाश्वत सत्य हैं,अर्थात ऊर्जा का कभी क्षय नही होता हैं यह एक माध्यम से दूसरे माध्यम में स्थानांतरित होती रहती हैं.

श्री मद्भागवत पुराण में भी लिखा हैं कि किये गये कर्मों का फल इस जन्म में नही मिला तो अगले जन्म में अवश्य मिलेगा और यह संचयी कर्म कहलाता हैं.

वाणी के बारें में ही कबीरदास कहतें हैं

ऐसी वाणी बोलिये मन का आपा खोय 
आपोको शीतल करें दूजों शीतल होय
अर्थात मनुष्य की वाणी ऐसी होना चाहियें कि वह न केवल दूसरों को शीतल करें बल्कि उस वाणी को बोलनें वाला भी  शीतलता ग्रहण करें.

मीठी वाणी बोलनें वाले व्यक्ति के व्यक्तित्व की चर्चा जब भी कही होती हैं उसके बारें में सकारात्मक बातें ही की जाती हैं.

 ज्योतिष को जाननें वालें भी कहतें हैं कि मीठे वचन बोलनें वालें की ग्रहदशा हमेशा अनूकूल  बनी रहती हैं और कष्ट भी क्षणिक समय तक ही ऐसे लोगों के पास तक रहतें हैं.

मीठे वचनों से संबधित एक कहानी ओर सुनाना चाहता हूँ 

एक बार एक राजा अपनें सेनापति और एक सैनिक के साथ जंगल में शिकार करनें गया काफी देर तक शिकार करनें से राजा बहुत थक गया था.और उसे बहुत प्यास भी लग रही थी.
राजा ने अपनें सेनापति से पानी पिलानें को कहा इस पर सेनापति जंगल में पानी की तलाश करनें गया .

सेनापति को दूर जंगल में एक झोपड़ी दिखाई दी जिसमें एक अँधा और बूढ़ा व्यक्ति निवास करता था.
सेनापति ने झोपड़ी में जाकर उस व्यक्ति से कहा :- ऐ ! अंधे ! थोड़ा पानी लाकर दे.

उस अंधे व्यक्ति ने सेनापति को पानी देनें से इंकार कर दिया और कहा ::- तुझ जैसें व्यक्ति को मैं पानी नहीं दूँगा.

सेनापति वापस राजा के पास वापस आ गया और कहा जंगल में मुझे एक झोपड़ी मिली परंतु उसमें रहनें वाले एक बूढ़े अँधे ने मुझे पानी देनें से इँकार कर दिया.

राजा ने इसपर पानी लानें अपनें सैनिक को पहुँचाया ,सैनिक झोपड़ी के पास जाकर चिल्लाया ! अरे ! ओ अंधे तू पानी देता हैं या तेरी जान लेकर पानी ले जाँऊ.

अँधा भी उसी रफ़्तार की आवाज में झोपड़ी के अँदर से चिल्लाया चाहें जान ले ले,पर पानी नहीं दूँगा.
सैनिक ने सोचा निहत्थे अँधे आदमी पर वार करना उचित नहीं होगा और वह भी बिना पानी के वापस लोट आया.

वापस लोटकर सैनिक ने राजा को सारा किस्सा सुनाया,राजा बिना कुछ बोलें वहाँ से अँधे की झोपड़ी की ओर चला गया.

झोपड़ी के अंदर पहुँचकर राजा ने आवाज लगाई महात्मा : मुझे बहुत तीव्र प्यास  लगी हैं,यदि आप मुझे पानी पीला दोगे तो आपकी बड़ी कृपा होगी.

राजा के वचन सुनकर अँधा बोला : राजन् आपको मैं पानी अवश्य ही पीलाऊँगा.
अँधे के राजन् कहकर पुकारनें पर राजा बहुत आश्चर्य हुआ!!
राजा ने अंधें से पूछा : महात्मा आपनें मुझे राजा कहकर क्यों पुकारा क्या आपको मेरें बारें में पता हैं.
अँधे ने कहा नही राजा मुझे आपके बारें में कुछ पता नहीं था.
राजा ने फिर प्रश्न किया तो फिर आपको कैसें पता चला कि मैं राजा हूँ?
अँधें ने कहा:जिसके बोल इतनें मीठे हो कि आत्मा की गहराई में जाकर आत्मा को प्रसन्न कर दें वह व्यक्ति निश्चित रूप से राजा होनें का अधिकारी होता हैं.

#6.ईमानदारी


ईमानदारी आत्मा को स्वस्थ और प्रसन्न रखनें का सबसे महत्वपूर्ण उपागम हैं. जब हम किसी चीज में बेईमानी करतें हैं तो हमेशा किसी न किसी चीज का डर सा बना रहता हैं यह डर आत्मा को असीम अधिक क्षति पहुँचाता हैं.

आप स्वंय आजमा कर देखिये जब कभी आपने बेईमानी की थी तब आप कितनें समय तक एक अजीब ड़र के साये में रहे थे.वास्तव में इतनें समय तक आपकी आत्मा भी कष्ट में रही थी.

आत्मा जितनें समय कष्ट में रहती हैं उतनें समय तक गुणवत्तापूर्ण जीवन की संभावना क्षीण हो जाती हैं.

#7.आत्मवलोकन 


आत्मावलोकन आत्मा के विकास का सबसे महत्वपूर्ण मार्ग हैं, आत्मवलोकन के बिना आत्मा आत्मविकास संभव नहीं हैं.

आत्मविकास के लिये आत्मवलोकन ध्यान मुद्रा और आत्मा के साथ एकांत में समय बितानें से प्राप्त किया जा सकता हैं.

यदि आप नियमित रूप से एकाग्र होकर ध्यान करें तो एक समय पश्चात मनुष्य उस स्थिति को ग्रहण कर लेता हैं जिसमें आत्मा व्यक्ति के दैनिक क्रियाकलापों को संचालित करती हैं.

आत्मा के इस प्रकार मनुष्य की दैनिक गतिविधियों को संचालित करनें से मनुष्य देवत्व के गुणों से युक्त हो जाता हैं.
गौतम बुद्ध के सिद्धार्ध से बुद्ध बननें यही मार्ग था,वर्धमान के महावीर बनने का यही मार्ग था,नरेन्द्र के विवेकानंद बनने का यही मार्ग था और मोहनदास के महात्मा गांधी बनने का भी यही मार्ग था.

भगवान महावीर ने यह बात ज़ोर देकर कही थी कि "दु:ख तुम्हारें पास हैं तो उपाय भी तुम्हारें पास हैं" तुम इस बात की आशा मत करों की तुम्हारें दु:ख का समाधान महावीर किसी चमत्कारिक शक्ति से कर देगा.महावीर सिर्फ मार्ग दिखा सकता हैं उस पर चलना तुमको ही पड़ेगा.

तुम जब आत्मवलोकन के द्धारा अपनी समस्याओं का समाधान खोजनें की कोशिश करोगें तो पाओगे की समाधान भी तुम्हारें आसपास ही हैं,फिर तुम्हें अपनी समस्या के लिये किसी भविष्यवक्ता के पास चक्कर नही लगाना पड़ेगा.

आजकल का विज्ञान नित प्रतिदिन नये - नये आविष्कार कर रहा हैं,जिनसे जिन्दगी आसान बन रही हैं.किंतु इन आविष्कारों के पश्चात भी हम वैदिक कालीन आयु 100 वर्ष को प्राप्त नही कर पा रहें हैं, क्यों ? क्योंकि हमनें आविष्कारों की नींव आत्मवलोकन को भूला दिया ,जिसके बल पर मनुष्य की कोशिकाओं का स्वास्थ टीका होता हैं.


#8.अहिंसा 


इस दुनिया में यदि हम मनुष्य द्धारा की गई हिंसा का इतिहास देखें तो पता चलेगा कि जितना प्रयत्न हिंसा मनुष्य द्धारा ने अपनें इस नश्वर शरीर की नश्वर इच्छाओं को प्राप्त करनें के लिये किया  हैं उतना ही प्रयत्न अहिंसा द्धारा विकास के लिये भी किया गया हैं परंतु मनुष्य ने अपने लक्ष्यों को प्राप्त करनें के लियें अहिंसा पर हिंसा को अधिक तरजीह दी हैं.फलस्वरूप आत्मविकास का मार्ग हमेशा अवरोधित ही रहा,जबकि आत्मविकास के मार्ग पर अहिंसा के पड़ाव पर विश्राम करके ही आगे बढ़ा जा सकता हैं.

जब आप किसी के विरूद्ध हिंसा करतें हैं,तो यह हिंसा उसके शरीर के साथ ही नहीं बल्कि उसकी आत्मा के साथ भी की जाती हैं.और जब किसी की आत्मा कष्टमय होती हैं तो वह दूसरें की आत्मा को भी कष्टमय बनाती हैं.

भगवान महावीर,महात्मा गाँधी अहिंसा पर इतना अधिक बल देतें थे कि किसी चीज में हिंसा दिखाई देनें पर वे उस चीज से जीवनभर किनारा कर लेते थे.इसका एक उदाहरण महात्मा गांधी का देना चाहूँगा जिन्होंनें चोरी - चोरा आंदोंलन में हिंसा समाहित होनें पर उस आंदोंलन को तुरंत स्थगित कर दिया था.

इस आंदोंलन में हुई हिंसा से महात्मा गाँधी की आत्मा को अत्यधिक कष्ट़ पहुँचा था.

सम्राट़ अशोक द्धारा कलिंग युद्ध में की गई हिंसा और इस युद्ध में हुई व्यापक जनहानि से अशोक की आत्मा इतनें कष्ट को प्राप्त हो गई थी कि कंलिंग के बाद अशोक ने हिंसा को सदा के लिये त्याग दिया और अंहिसा का प्रचार प्रसार करनें में अपनी समस्त ऊर्जा और जीवन का बचा समय ख़पा दिया था.

अंहिसा मनुष्य की आत्मा को संतापों से तो बचाती ही है,बल्कि इसके द्धारा हुआ आत्मविकास मनुष्य की कई पीढ़ीयों का भविष्य सुधार देता हैं.

विकास की एक अनिवार्य शर्त शांति या अहिंसा भी हैं,जापान जो कि द्धितीय विश्व युद्ध के पूर्व एक साम्राज्यवादी राष्ट्र था और अपनी इस साम्राज्यवादीता के लिये हिंसा का सहारा लेकर अनेक राष्ट्रों पर कब्जा कर रहा था किंतु द्धितीय विश्व युद्ध में हार जानें के बाद जापान द्धारा अंहिसा का मार्ग चुना गया उस पर चलकर जापान आज कही अधिक शक्तिशाली और विकसित राष्ट्र बन गया हैं.

##9.आत्मा को प्रिय लगनें वालें काम


प्रथ्वी पर जन्म लेनें वाला प्रत्येक प्राणी अपनी कुछ विशेष योग्यताओं के साथ जन्म लेता हैं और इन्ही विशेष योग्यताओं के साथ काम भी करता हैं.

आपनें स्वंय ने महसूस किया होगा कि आपको कुछ विशेष काम करनें में बड़ा आनंद आता हैं,जबकि वही काम जब दूसरा करता हैं,तो उसे बोझ लगता हैं.

जबकि कुछ काम जो आपको बोझ लगतें हैं दूसरें उसे बड़े आनंद के साथ करतें हैं.

जिन कामों को करनें से आनंद मिलता हैं वास्तव में वह काम हमारी आत्मा को अत्यंत प्रिय लगतें है.

जब व्यक्ति अपनी रूचि के कामों को करता हैं,तो उसकी प्रसिद्धि भी चहुँओर फैलने लग जाती हैं.
स्टीव जाब्स,ध्यानचंद,सचिन तेडुंलकर,लता मंगेशकर,पेले,माइकल फेल्पस,उसेन बोल्ट,अमिताभ बच्चन आदि कुछ ऐसे नाम हैं,जिन्होंने वही पेशा अपनाया जो इनकी आत्मा को प्रिय लगा ,फिर परिणाम आप सब के सामनें हैं,ये लोग अपनें - अपनें पेशों में इतिहास रच चुकें हैं.

ऐसे ही एक क्रिकेटर शेन वार्न हैं,जिन्हें बचपन में समुद्र किनारें बेठकर कलाई से पत्थर घुमाकर फेंकनें में असीम आनंद मिलता था,और ये कई घंटो तक समुद्र में कलाई से घूमाकर पत्थर फेंका करते थे.

इनके इस तरह से कलाई घूमाकर पत्थर फेंकनें की कला को आस्ट्रेलिया के प्रसिद्ध क्रिकेटर ने देखा और क्रिकेट  में कलाई घूमाकर गेंद फेंकने के लिये कहा .

इसके पश्चात की कहानी आप सब जानतें ही हो कि कैसें यह व्यक्ति विश्व क्रिकेट इतिहास का सबसे सफल क्रिकेटर बना.

अमिताभ बच्चन भी उन कालजयी व्यक्तियों में सम्मिलित हैं जिन्होंनें अपनें शौक को अपना पैशा बनाकर इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाया,अमिताभ बच्चन आज 78 वर्ष के हैं परंतु 18 से 19 घंटे काम करतें हैं,इनके साथ काम करनें वाले नवागत अभिनेता इनके  काम देखकर दाँतों तले ऊगंली दबा लेतें हैं.   ःःःःःः

वास्तव में आत्मविकास का यह मार्ग बिना आत्मवलोकन के अधूरा हैं और अधूरा ही रहेगा.

यदि संसार के समस्त मनुष्य आत्मवलोकन के सहारे आत्मा का विकास करें तो गरीबी,साम्प्रदायिकता,भूखमरी,वर्ग संघर्ष,जातिय संघर्ष,युद्ध, आतंकवाद,नक्सलवाद और बेरोजगारी जैसी समस्याओं का अपनें आप समाधान मिल जायेगा.

सप्तचक्रों को कैसें जागृत करें 


 योग विज्ञान  पारंपरिक भारतीय चिकित्सा विज्ञान, आयुर्वेद में औषधीय चिकित्सा के साथ योगिक विधियों का सहारा लेकर व्यक्ति को रोगमुक्त रखा जाता है । योग और आयुर्वेद का मूल उद्देश्य ही यही है कि व्यक्ति बीमार होने पर उपचार करवाने की बजाय इस प्रकार की दिनचर्या रखें कि वह बीमार ही न हो,और इसी उद्देश्य की प्राप्ति हेतू शरीर में स्थित सात मूलाधार चक्र या सप्तचक्र को जागृत कर व्यक्ति बीमारी से मुक्त रह सकता है ।

सप्तचक्र क्या होतें हैं 

योग विज्ञान के अनुसार हमारे शरीर के मस्तिष्क से लेकर मलद्वार तक सात स्थान होतें हैं । जिन्हें मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र,मणिपुर चक्र,अनाहत चक्र,विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र और सहस्रार चक्र कहते हैं। इन स्थानों को योग की विशेष मुद्राओं के द्वारा जागृत करने पर व्यक्ति निरोगी जीवन जी सकता है।
सप्तचक्रों को ऐसे जागृत करें,सातचक्रों को कैसे जाग्रत करें, मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र, आज्ञा चक्र, सहस्रार चक्र


सप्तचक्र सिद्धांत के अनुसार हमारे शरीर में कुल 72 हजार नाड़ियां होती हैं जिनमें से तीन प्रमुख नाड़ियां हैं 

• ईडा़
• पिंगला
• सुषुम्ना

इन नाड़ियों में से ईडा और पिंगला के जागृत होने के बाद सुषुम्ना नाड़ी जागृत हो जाती हैं और इसके बाद शरीर के सप्तचक्र जागृत हो जातें हैं। 

सप्तचक्रों को कैसें जागृत करतें हैं 


1.मूलाधार चक्र


मूलाधार चक्र गुदा के ठीक पिछे रीढ़ की हड्डी के सबसे नीचे स्थित होता है। मूलाधार चक्र के जाग्रत हो जाने पर शरीर के प्रजनन अंग  की कार्यप्रणाली सुचारू होकर इनसे संबंधित रोग नहीं होते हैं।  मूलाधार चक्र शरीर का संतुलन बनाए रखने का काम भी करता है इसके जागृत हो जानें पर शरीर का दांया और बांया भाग मस्तिष्क द्वारा ठीक बारह बजे घड़ी की सुई जिस तरह  एक सीध में होती है उसी प्रकार संतुलित रहता है।

मूलाधार चक्र कैसे जाग्रत करें

जिन योगासनों को करने में शरीर और मन को विशेष मेहनत करनी पड़ती है उनके द्वारा मूलाधार चक्र जाग्रत हो जाता है उदाहरण के लिए योगिक जागिंग,स्वास्तिका आसन, पश्चिमोत्तानासन,भूनम्नासन ।

2.स्वाधिष्ठान चक्र

स्वाधिष्ठान चक्र मूत्राशय के ठीक पिछे वाले रीढ़ की हड्डी पर स्थित होता है। प्रजनन प्रणाली के लिए जरूरी हार्मोन इस चक्र के जाग्रत होने पर स्त्रावित होतें हैं।

स्वाधिष्ठान चक्र कैसे जाग्रत करें

स्वाधिष्ठान चक्र जानुशिरासन, मंडूकासन और कपालभाति द्वारा जागृत होता है।

3.मणिपुर चक्र 


मणिपुर चक्र नाभि के ठीक स्थित होता है। इस चक्र के जाग्रत होने पर पाचन प्रणाली के सारे विकार दूर होते हैं। इस चक्र के जाग्रत होने से शरीर की गर्मी और सर्दी में संतुलन बना रहता है।

मणिपुर चक्र कैसे जाग्रत करें

पवनमुक्तासन, मंडूकासन,एकपादमुक्तासन, भस्त्रिका प्राणायाम और कपालभाति द्वारा मणिपुर चक्र जाग्रत होता है।

4.अनाहत चक्र

अनाहत चक्र रीढ़ की हड्डी में ह्रदय के थोड़ा सा निचें स्थित होता है। अनाहत चक्र के जाग्रत होने पर ह्रदय और फेफड़ों की सफाई और इनकी कार्यकुशलता बढ़ती है।

अनाहत चक्र कैसे जाग्रत करें

उष्ट्रासन, भुजंगासन,अर्धचक्रासन,और भस्त्रिका प्राणायाम द्वारा अनाहत चक्र जाग्रत होता है।

5.विशुद्धि चक्र

विशुद्धि चक्र थाइराइड ग्रंथि के ठीक पिछे स्थित होती है। विशुद्धि चक्र जाग्रत होने पर शरीर की मेटाबॉलिज्म रेट संतुलित रहती है।

विशुद्धि चक्र को कैसे जाग्रत करें

हलासन, सेतुबंधासन,सर्वागांसन,और उच्चाई द्वारा विशुद्धि चक्र जाग्रत करें।

6.आज्ञा चक्र

मानसिक मजबूती और स्थिरता प्रदान करने वाला आज्ञा चक्र दोनों भोंहो के बीचों-बीच स्थित होता है।

आज्ञा चक्र को कैसे जाग्रत करें

सुखासन, मकरासन,शवासन अनुलोम-विलोम द्वारा आज्ञा चक्र को जाग्रत किया जाता है

7.सहस्रार चक्र

सहस्रार चक्र सिर के ऊपर मध्य भाग में स्थित होता है यह चक्र जाग्रत होने पर सभी चक्रों में सामंजस्य स्थापित हो जाता है या कह लें यह चक्र एक राजा की तरह है जो सभी चक्रों को नियंत्रित करता है।

सहस्रार चक्र कैसे जाग्रत करें


मूलाधार चक्र, स्वाधिष्ठान चक्र, मणिपुर चक्र, अनाहत चक्र, विशुद्धि चक्र और आज्ञा चक्र के जाग्रत हो जाने पर सहस्रार चक्र स्वत: ही जाग्रत हो जाता है।


# यम और नियम yam aur niyam

यम और नियम ,आसन,प्राणायाम, मुद्रा और बंध शट क्रिया और ध्यान के सैद्धान्तिक पक्ष, Theoretical aspects of yam niyam aasan pranayama,mudra bndha, and shat kriya in Hindi
 yoga poses


यम और नियम योग की आधारभूत क्रियाएँ हैं जिनके बिना अन्य यौगिक क्रियायें मनचाहा परिणाम नही देगी ।

यम और नियम द्धारा व्यहवार पर स्वनियत्रंण किया जाता हैं जिससे एक स्वस्थ्य दृष्टिकोण विकसित होता हैं ।

यम और नियम द्धारा  सामाजिक और मानसिक दृष्टिकोण के लिये हमारें दिमाग को तैयार किया जाता हैं । 

यम और नियम  क्रमश:  पंच नैतिक और पंच उद्धविकासीय निरीक्षण हैं ।

#आसन Aasan in Hindi


आसन संस्कृत शब्द "असी" से लिया गया हैं । जिसका अर्थ हैं "बैठना"

यौगिक क्रिया में आसन शरीर की एक विशेष अवस्था हैं जो शरीर को संतुलित करनें के लियें किया जाता हैं । आसन द्धारा शरीर की सभी क्रियाएँ लयबद्ध रूप चलती हैं ।

आसन द्धारा शारीरिक और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती हैं ।

#प्राणायाम Pranayama in Hindi


प्राणायाम दो शब्दों से मिलकर बना हैं प्राण + आयाम  

प्राण का मतलब हैं मनुष्य को जीवित रखनें वाली जीवन शक्ति ।

प्राण के बिना मनुष्य निष्प्राय हैं जब तक प्राण रहेगा तब तक शरीर भी रहेगा जहाँ प्राण निकला वहाँ शरीर भी नष्ट़ हो जाता हैं ।

आयाम का मतलब होता हैं विस्तार करना 

इस प्रकार प्राणायाम वह यौगिक क्रिया हैं जो जीवनशक्ति को विस्तारित करती हैं । प्राणायाम के माध्यम से श्वास प्रक्रिया को नियंत्रित कर जीवनशक्ति को विस्तारित किया जाता हैं । 

प्राणायाम करनें से जीवन लम्बा और रोगरहित होता हैं ,मस्तिष्क की सारी प्रक्रियाएँ सुचारू रूप से चलती हैं तथा मस्तिष्क इस प्रकार तैयार होता हैं कि हर परिस्थिति में संतुलन स्थापित कर सकें ।

#मुद्रा और बंध Mudra and bandh in Hindi


मुद्रा और बंध यौगिक क्रियाओं के प्रकार हैं जिसके द्धारा ऐच्छिक और अनेच्छिक मांसपेशियों पर अपनी इच्छानुसार नियंत्रण रखा जाता हैं । मुद्रा और बंध के द्धारा शरीर की ऊर्जा का प्रवाह शरीर के सभी भागों में एकसमान बनाया जाता हैं । 

मुद्रा और बंध यौगिक क्रियाओं से शरीर के आंतरिक अंग मज़बूत बनतें हैं ।

प्राणायाम के दौरान जो मुद्रा प्रयोग की जाती हैं उसे बंध कहतें हैं । बंध के माध्यम से शरीर की ऊर्जा एक भाग से दूसरें भाग तक प्रवाहित की जाती हैं ।

#शट क्रिया 

शट क्रिया या शट कर्म सम्पूर्ण शरीर का शुद्धीकरण करनें वाली  6 क्रियाएँ हैं । इन क्रियाओं में पानी,हवा,रूई की रस्सी,कपडे के माध्यम से शरीर को शुद्ध किया जाता हैं ।

ये शट क्रियायें हैं नेति, धोती,बस्ती,नौली ,त्राटक और कपालभाँति

# नेति 

नेति क्रिया में नासा छिद्रों को पानी के माध्यम से धोया जाता हैं तथा रूई की रस्सी के माध्यम साफ किया जाता हैं ।

#धोती क्रिया 

धोती क्रिया में अमाशय को धोकर साफ किया जाता हैं । 

#बस्ती क्रिया

Colon साफ करनें की क्रिया को बस्ती क्रिया कहा जाता हैं इस विधि में विशेष औषधियों का प्रयोग कर colon को साफ किया जाता हैं ।

#नौली क्रिया


नौली क्रिया पेट की मांसपेशियों को मज़बूत करनें के लियें की जाती हैं ।

#त्राटक 

आँखों को एकबिन्दु पर स्थिर रख शुद्धिकरण किया जाता हैं ।

#कपालभाँति 

कपालभाँति द्धारा फेफड़ों को शुद्ध किया जाता हैं ।

० बरगद पेड़ के फायदे

० तनाव क्या हैं

टिप्पणियाँ

Unknown ने कहा…
बहुत सुन्दर प्रस्तुति दी है आपका आभार

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से में होनें वाले रक्तस्त्राव को कम करने वाली सर्वमान्य औषधी हैं । इसके ल

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x