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पेट के छाले या पेप्टिक अल्सर कारण लक्षण और बचाव

1.पेट के छाले

पेट के छाले
पेप्टिक अल्सर
भारतीय खान पान मिर्च मसालों के बिना अधूरा माना जाता हैं ,और मिर्च मसाला खानें के बाद यदि पेट में एसीडीटी की समस्या हो तो हम भारतीय इसे साधारण समस्या के रूप में लेते हैं,किन्तु यदि समस्या बार - बार उत्पन्न हो रही हो तो हमें सचेत हो जाना चाहियें कि कही यह पेप्टिक अल्सर (peptic ulcer) तो नहीं हैं. 


पेप्टिक अल्सर होनें का मुख्य कारण हेलिकोबैक्टर पायलोरी या H.pylori बेक्टेरिया हैं.

यह बेक्टेरिया पेट की सतह पर  चिपककर एसिड़ रोकनें वाली दीवार को संक्रमित कर दीवार को तोड़ देता हैं, फलस्वरूप पेट की अन्दरूनी दीवार पर छाले बन जातें हैं.स्थिति गंभीर होनें पर छोटी आँत में छेद भी हो सकते हैं.

2.पेट में छाले होने के कारण :::



० रोग प्रतिरोधक क्षमता का कमजोर होना.

० पेट के उपचार में प्रयोग होनें वाली दवाईयों से.

० जीवनशैली की अनियमितता से.

० कैंसर की वज़ह से.

० आनुवांशिक कारको की वज़ह से.

० लगातार दर्द निवारक दवाओं के इस्तेमाल से.

० दूषित खाद्य पदार्थों जैसें सिंथेटिक दूध,मक्खी बैठी हुई खाद्य सामग्री इत्यादि से.


3.पेट में छाले होने के लक्षण :::



० पेट के ऊपरी हिस्से मे तीव्र दर्द .

० पेट का फूलना.

० सीने मे तेज जलन.

० खट्टी डकार.

० उल्टी में खून के कतरे आना.

० मल मे खून आना .

4.प्रबंधन :::



पेप्टिक अल्सर या पेट के छाले होनें पर कई बातें महत्वपूर्ण हो जाती हैं,जैसे

० ज्यादा एसिडिक फूड़ का सेवन नहीं करना चाहियें जैसे अचार,मिर्च मसालेदार भोजन आदि.

० शराब और तम्बाकू का सेवन इस बीमारी में जानलेवा साबित हो सकता हैं,अत : इनसे परहेज करें.

० तनाव न लें.

० भोजन निश्चित समय पर और आराम से खूब चबाकर करें.

० भोजन में रेशेदार खाद्य पदार्थों का सेवन करें.

० नियमित पैदल घूमनें को दिनचर्या में शामिल करें.

० प्रतिदिन लगभग 12 - 15 गिलास पानी पीयें.

० खाली पेट नही रहे .

० योगिक क्रियाओं जैसें कपालभाँति नियमित रूप से करें.

० फलों के रस के बजाय साबुत फलों का सेवन करें.

० दही या प्रोबायोटिक दही का सेवन करें.

० आयुर्वैदिक दवाईयाँ जैसें सूतशेखर रस,शंख वटी का सेवन वैघकीय परामर्श से करें.

० बैक्टेरिया को नष्ट करनें वाली औषधियों का चयन चिकित्सतकीय परीक्षणों के बाद करें.



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5.मुलेठी :::

० मुलेठी में ग्लाइकोसाइड़ (Glycocyde) और ट्राइटर्पी नामक तत्व पायें जातें हैं,जो एसीडीटी को समाप्त कर पेट़ की आंतरिक दीवारों की अल्सर से रक्षा करता हैं.अल्सर होनें पर भी इसका प्रयोग बहुत फायदेमंद होता हैं.


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