चौबीस खम्बा माता उज्जैन |
चौबीस खम्बा माता मंदिर chobish khamba Mata mandir
महाकाल की नगरी में ऐसे कई
देवी-देवता हैं जो भांग और मदिरापान करते हैं। महाकाल को प्रतिदिन भांग चढ़ाई जाती है, वहीं कालभैरव दिनभर में कई लीटर शराब पी जाते हैं। इस शहर में एक देवी मंदिर ऐसा भी है, जहां नवरात्रि की महाअष्टमी के दिन माता को स्थानीय प्रशासक अपने हाथों से शराब पिलाते हैं, इसके बाद नगर पूजा के तहत समस्त देवी-देवताओं को यह भोग अर्पण किया जाता है।
चौबीस खंभा मंदिर, जहां विराजमान हैं दो माताएं
नगर का अतिप्राचीन और ऐतिहासिक मंदिर है चौबीस खंभा। यहां महालाया और महामाया दो देवियों की प्रतिमाएं द्वार के दोनों किनारों पर स्थापित हैं। सम्राट विक्रमादित्य भी इन देवियों की आराधना किया करते थे।
चौबीस खंभा देवी
यह उज्जैन Ujjain नगर में प्रवेश करने का प्राचीन द्वार हैं। पहले इसके आसपास परकोटा या नगर दीवाल हुआ करती थी। अब वे सभी लुप्त हो गई हैं, सिर्फ प्रवेश द्वार और उसका मंदिर ही बचा है।
यहां पर दो देवियां विराजमान हैं- एक महामाया और महालाया, इसके अलावा विराजमान हैं बत्तीस पुतलियां। यहां पर रोज एक राजा बनता था और उससे ये प्रश्न पूछती थीं। राजा इतना घबरा जाता था कि डर के मारे मर जाता था।
जब राजा विक्रमादित्य raja vikrmaditya का नंबर आया तो उन्होंने अष्टमी के दिन नगर पूजा चढ़ाई। नगर पूजा में राजा को वरदान मिला था कि बत्तीस पुतली जब तुमसे जवाब मांगेंगी तो तुम उन्हें जवाब दे पाओगे। जब राजा ने सभी पुतलियों को जवाब दे दिया तो पुतलियों ने भी वरदान दिया कि राजा जब भी तू न्याय करेगा तब तेरा न्याय डिगने नहीं दिया जाएगा।
इंद्र के नाती गंधर्व सेन गंधर्वपुरी से आए थे, जो विक्रमादित्य के पिता थे। अवंतिका नगरी के प्राचीन द्वार पर विराजमान हैं दो देवियां जिन्हें नगर की सुरक्षा करने वाली देवियां कहा जाता है। इस प्राचीन मंदिर में सिंहासनारूढ राजा विक्रमादित्य की मूर्ति के अलावा बत्तीस पुतलियों की मूर्तियां भी विराजमान हैं। ये सब परियां हैं जो आकाश-पाताल की खबर लाकर देती हैं।
चौबीस खंबा माता : महाकाल-वन का प्रवेश द्वार
करसहस्र पद विस्तीर्ण महाकाल वनं शुभम।
द्वार माहघर्रत्नार्द्य खचितं सौभ्यदिग्भवम्।।
इस श्लोक से विदित होता है कि एक हजार पैर विस्तार वाला महाकाल-वन है जिसका द्वार बेशकीमती रत्नों से जड़ित रत्नों से जड़ित उत्तर दिशा को है। इसके अनुसार उत्तर दिशा की ओर यही प्रवेश-द्वार है।
इस द्वार के अतिरिक्त 80 वर्ष पूर्व भी दूसरा सरल मार्ग महाकालेश्वर में जाने के लिए नहीं था। पीछे और मार्ग बने हैं। इसमें 24 खंबे लगे हुए हैं इसलिए नाम 24 खंबा कहा जाने लगा है। यह द्वार विशाल है। यहां महामाया और महालया देवी की पूजा होती है और पाड़ों की बलि दी जाती थी। यह प्रथा कब से थी, मालूम नहीं। 150 वर्ष पूर्व एक द्वार इसके आगे था, वहां एक शिला-लेख मिला है, उसमें लिखा है कि 12वीं शताब्दी में अनहिल पट्टन के राजा ने नागर बनियों को व्यापार के लिए उज्जैन लाकर बसाया है। अब यहां बलि प्रथा वर्जित है।
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