प्रश्न 1.भारत में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की शुरुआत कब हुई थी ?
उत्तर - भारत में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति की शुरुआत का श्रेय एक फ्रांसीसी पर्यटक डॉ.जान मार्टिन हानिगबर्गर को जाता हैं।
डॉ.जान मार्टिन सन् 1810 में भारत घूमने आए तो उन्होंने पंजाब के शासक महाराजा रणजीत सिंह के गले का इलाज होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति से सफलता पूर्वक किया था।
महाराजा रणजीत सिंह डॉ.जान मार्टिन हानिगबर्गर के होम्योपैथिक पद्धति से किए गए इलाज से बहुत प्रभावित हुए थें। उल्लेखनीय है कि डॉ.जान मार्टिन हानिगबर्गर होम्योपैथी के जनक डॉ.सेमुएल हैनीमैन के शिष्य थे ।
सन् 1810 के बाद होम्योपैथी का प्रचार प्रसार जारी रहा और बंगाल में यह चिकित्सा पद्धति से बहुत लोकप्रिय हो गई।
प्रश्न 2.भारतीय होम्योपैथी का पिता Father of Indian homeopathy किसे कहा जाता हैं ?
उत्तर 2. भारतीय होम्योपैथी का पिता Father of Indian homeopathy बाबू राजेंद्र लाल दत्त Babu Rajendra lal Dutta को कहा जाता हैं।
बाबू राजेंद्र लाल दत्त ने भारत में होम्योपैथी के प्रचार-प्रसार में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया इसीलिए उनकों भारतीय होम्योपैथी का पिता कहा जाता हैं।
बाबू राजेंद्र लाल दत्त का जन्म सन् 1818 में और मृत्यु 1889 में हुई थी।
प्रश्न 3.होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति के जनक कौंन थे ?
उत्तर - डाक्टर क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनीमैन Doctor cristian Fredrick को विश्व में होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति का जनक कहा जाता हैं।
डाक्टर क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनीमैन का जन्म 10 अप्रैल 1755 को जर्मनी के एक शहर मीसैन में हुआ था। इसी तारीख को विश्व होम्योपैथी दिवस World homeopathy Day मनाया जाता हैं।
डाक्टर क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनीमैन की मृत्यु 2 जुलाई 1843 को हुई थी।
डाक्टर क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनीमैन ने जर्मनी के लीपजीग विश्वविद्यालय से एलोपैथी में एम.डी.की डिग्री हासिल की थी।
डाक्टर क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनीमैन मार्डन मेडिसिन के रोगी पर पड़ने वाले दुष्प्रभाव से इतने परेशान हो गए थे कि उन्होंने अपनी प्रैक्टिस छोड़ दी और कुछ नवीन करने की दिशा में आगे बढ़ने के लिए अध्ययन करने लगें।
कुछ समय बाद उन्होंने देखा की कुनेन जब स्वस्थ्य व्यक्ति द्वारा ली जाती हैं तो वह मलेरिया के समान लक्षण स्वस्थ व्यक्ति में पैदा कर देती हैं।
इसी खोज के बाद उन्होंने अनेक शोध किए ओर सन् 1796 में एक नई चिकित्सा पद्धति जिसे होम्योपैथी कहा गया को एक संगठित और व्यवस्थित विज्ञान के रूप में दुनिया के सामने प्रस्तुत किया।
प्रश्न 4.क्या होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित होती हैं ?
उत्तर - जी हां, होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति पूर्णतः वैज्ञानिक तथ्यों और सिद्धांतों पर आधारित चिकित्सा पद्धति हैं। इस चिकित्सा पद्धति में समान लक्षणों वाली दवाओं से समान लक्षण वाले रोग का इलाज किया जाता हैं।
डाक्टर क्रिश्चियन फ्रेडरिक हैनीमैन ने होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति को वैज्ञानिक बताते हुए कहा था कि " इस विज्ञान को ख़ारिज करने वाले एक बार इसे आजमाकर देख लें"
प्रश्न 5. होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में किन बीमारियों का अच्छा इलाज किया जाता हैं ?
उत्तर - होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति एक समग्र चिकित्सा पद्धति हैं, जिसमें सभी प्रकार की बीमारियों का इलाज सफलतापूर्वक किया जाता हैं।
किंतु अनुभव के आधार पर यह कहा जा सकता हैं कि होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति जटिल और जीवनशैली संबंधित रोगों में बहुत अच्छा फायदा पहुंचाती हैं।
उदाहरण के लिए एलर्जी, अस्थमा, आर्थराइटिस, मधुमेह, थाइराइड, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग, मोटापा, माइग्रेन,पेट के रोग, जनतंत्र के रोग , प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में, त्वचा संबंधी बीमारी में होम्योपैथी बहुत लाभकारी होती हैं।
उपरोक्त बीमारियों में होम्योपैथी दवा की कुछ ही खुराक बीमारी को जड़ से समाप्त कर देती हैं जो आधुनिक चिकित्सा पद्धति में संभव नहीं हैं।
प्रश्न 6. क्या होम्योपैथिक दवाओं का कोई साइड-इफेक्ट होता हैं ?
उत्तर - होम्योपैथिक दवाएं पूर्णतः सुरक्षित और हानिरहित होती हैं। ये मरीज पर कोई साइड-इफेक्ट नहीं छोड़ती हैं बल्कि बीमारियों के विरुद्ध प्राकृतिक प्रतिरोधक क्षमता विकसित करती हैं जिससे रोग जड़ से समाप्त हो जाता हैं।
जो दवाईयां विषैले तत्वों से निर्मित होती हैं उनकों भी ड्रग डायमेंशन तकनीक द्वारा पूरी तरह हानिरहित किया जाता हैं और उनके रोग समाप्त करने वाले गुणों को बढ़ाया जाता हैं उसके बाद ही मरीज को दिया जाता हैं।
प्रश्न 7.होम्योपैथिक दवाओं के सेवन के दौरान होम्योपैथिक चिकित्सक प्याज, लहसुन,हींग, सौंफ, परफ्यूम आदि तीव्र चीजें उपयोग करने से मना क्यों करते हैं।
उत्तर- होम्योपैथिक दवाएं जीभ पर रखकर ली जाती हैं और जीभ के माध्यम से पूरे शरीर में जाती हैं। जब हम कोई तीव्र पदार्थ इन दवाईयों के साथ उपयोग करेंगे तो इन दवाओं की प्रभावशीलता कम हो जाएगी फलस्वरूप वह कम असरकारक होगी। इसीलिए चिकित्सक होम्योपैथिक दवाओं के साथ तीव्र असर करने वाली चीजों का मना करतें हैं।
प्रश्न 8.नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी कहां हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी कोलकाता में स्थित हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी की स्थापना सन् 1975 में हुई थी।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के अन्तर्गत एक स्वायत्त संस्थान हैं।
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ होम्योपैथी पश्चिम बंगाल सोसायटी अधिनियम 1961 के अन्तर्गत पंजीकृत संस्थान हैं।
प्रश्न 9.केन्द्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद,नई दिल्ली Central homeopathy research council की स्थापना कब हुई थी ?
उत्तर- केन्द्रीय होम्योपैथी अनुसंधान परिषद की स्थापना 30 मार्च 1978 को हुई थी।
यह संस्थान होम्योपैथी दवाओं पर अनुसंधान, क्लिनिकल परीक्षण, नवीन दवाओं की खोज आदि कार्य करता हैं।
प्रश्न 10.होम्योपेथी चिकित्सा पद्धति में दवा के रूप में मीठी गोलियां क्यों दी जाती हैं ?
उत्तर- होम्योपैथी चिकित्सा पद्धति में दवा अल्कोहल में मिलाकर बनाई जाती हैं और अल्कोहल को जब जीभ पर डालतें हैं तो यह कड़वा और जीभ के लिए पर तेज प्रभाव पैदा करता हैं।
अतः रोगी को दवाई का बेहतर स्वाद मिले इसलिए होम्योपैथिक दवाएं शक्कर से बनी गोलीयों में मिलाकर दी जाती हैं। ताकि होम्योपैथी दवा रोगी रुचि से का सकें।
अतः मीठी गोलियां सिर्फ दवा देने का माध्यम भर हैं। हर मीठी गोली में रोगी के रोगानुसार अलग-अलग दवा दी जाती हैं।
प्रश्न 11.क्या होम्योपैथी दवाओं की आदत हो जाती हैं?
उत्तर- जी नहीं, होम्योपैथिक दवाओं की आदत कभी नहीं होती हैं। चूंकि अधिकांश मरीज होम्योपैथी चिकित्सा तब शुरू करते हैं जब अन्य चिकित्सा पद्धति से लम्बे समय तक ठीक नहीं होते ऐसे में दवा लम्बे समय तक चलानी पड़ती हैं और व्यक्ति के बायोलॉजिकल क्लाक के हिसाब से उसे दवा छूट जाने पर दवा लेने की याद आती हैं।
किंतु यह समस्या लम्बे समय तक नहीं होती हैं कुछ दिनों के बाद यह समस्या समाप्त हो जाती हैं।
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