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Doctor:अच्छे डाक्टर की पहचान कैसे करें

Doctor:अच्छे डाक्टर की पहचान कैसे करें

Author - healthylifestyehome

भारत में डाक्टर  को भगवान का रूप माना जाता है इसका कारण भी यही है कि सदियों से भारत में  वैद्य ने मरीज की भलाई को मुख्य ध्येय समझा जबकि अर्थ उपार्जन को सदैव दूसरे क्रम पर रखा यही कारण है कि भारत में आज भी डाक्टर भगवान का दूसरा रूप है। 

डाक्टर को भगवान का दर्जा दिलवाने में हमारे देश के प्राचीन ऋषि मुनियों और आचार्य चरक, सुश्रुत जैसे  कुछ नामचीन निस्वार्थ सेवा भावी वैद्यौं का योगदान तो है ही स्वतंत्रता के बाद के काल में भी  कुछ मानवता के अग्रदूत चिकित्सकों ने  इस क्रम को आगे बढ़ाया है।
डाक्टर और मरीज के बीच संबंध, अच्छे डाक्टर की पहचान कैसे करें


भारत में चिकित्सक को भगवान का दर्जा मिलने के बाद भी दुनिया के सबसे ज्यादा डाक्टर और मरीजों के बीच विवाद भारत में ही होते हैं। अर्थात भारत डाक्टर और मरीज के बीच संबंधों के दृष्टिकोण से दुनिया के विकसित देशों से कहीं पीछे और यह तथ्य इसलिए पीड़ादायक हैं क्योंकि दुनिया के सबसेे अधिक प्रतिभाशाली डाक्टर भी भारत में ही पैदा होते हैं। 

आईए जानते हैं हमारे प्राचीन ऋषि मुनियों और वैद्यों ने चिकित्सकीय पेशे को लेकर जो मूल्य निर्धारित किया है वह क्या है,एक अच्छे डाक्टर की कार्यप्रणाली कैसी होनी चाहिए

1.अच्छे डाक्टर औषधियों के जानकार होते है 


योगज्ञस्तस्यरुपज्ञस्तासांतत्वविदुच्यते। किंपुनयोर्विजानीयादोषधी:सर्वदाभिषक्।।


वैद्य या डाक्टर औषधियों के संबंध में प्रामाणिक जानकारी होना चाहिए। औषधियों को किन परिस्थितियों में प्रयोग करना चाहिए। इस प्रकार औषधियों को जानने वाला डॉक्टर या वैद्य सर्वदा पूजनीय होता है। 


डाक्टर को नवीन औषधियों के प्रति उत्सुक होना चाहिए । नवीन औषधियों का ज्ञान प्राप्त करने या नवीन टेक्नोलॉजी का ज्ञान अपने से छोटे व्यक्ति से प्राप्त करना पड़े तो इसमें संकोच न करते हुए तुरंत यह ज्ञान रोगी की भलाई के लिए प्राप्त कर लेना चाहिए।

इस संबंध में शास्त्रों में लिखा है

ननामज्ञानमात्रेणरुपज्ञानेनवापुन:।औषधीनांपरांप्राप्तिकश्चिद्धेदितुमहर्ति।।


2. अच्छे डाक्टर का रोगी से व्यहवार कैसा होना चाहिए


प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों में महान वैद्यों के उपदेशों के अनुसार डाक्टर और मरीज के बीच रिश्तें की प्रथम प्राथमिकता अर्थ उपार्जन कदापि नहीं होना चाहिए बल्कि वैद्य के पास आए प्रत्येक रोगी से वैद्य का व्यहवार शरणागत की रक्षा की तरह होना चाहिए। कोई भी स्वस्थ व्यक्ति डाक्टर के पास नही जाना पसंद करेगा सिर्फ रोगी ही डाक्टर के पास अपने उपचार के लिए जाता है।

अतः डाक्टर को रोगी से संयमपूर्वक और प्रेम पूर्वक व्यवहार करना चाहिए। 

रोगी परीक्षा के समय डाक्टर को रोगी की बात ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए और रोगी के प्रश्नों का सही जवाब देना चाहिए।

 रोग चाहे कितना भी असाध्य हो चिकित्सक का यह दायित्व होता है कि वह बीमारी से रोगी का मनोबल न‌ कमजोर होने दें।

कुछ चिकित्सक रोगी से पैसा बनाने के लिए रोगी और उसके परिजन को इतना भयभीत कर देते हैं कि  रोगी अपना सबकुछ देकर डाक्टर से सिर्फ अपना स्वास्थ्य ही मांगता है किंतु जब वह ठीक होने के बाद अन्य चिकित्सक से अपनी बीमारी के संबंध में चर्चा करता हैं और पाता है कि उसकी बीमारी के संबंध में भयभीत होने जैसा कुछ भी नहीं था तो रोगी का विश्वास चिकित्सक से उठ जाता है।

3.अच्छा डाक्टर यानि रोगी के लिए हर समय तत्पर


चिकित्सा व्यवसाय करते समय हमेशा चिकित्सक के पास आधी रात को या छुट्टी के समय भी कुछ बहुत इमरजेंसी केस आ ही जातें हैं। अतः चिकित्सक को बिना किसी झुंझलाहट के ऐसे मरीजों को समय देना चाहिए। ऐसा करते समय चिकित्सक को रोगी की प्रष्ठभूमि अर्थात अमीर गरीब नहीं देखना चाहिए बल्कि उसे एक जरुरतमंद रोगी की तरह ही देखना चाहिए। 


आचार्य सुश्रुत आधी रात को अपने रोगीयों के लिए उपलब्ध रहते थें और उनका मानना था कि ऐसा करके वह कोई उपकार नहीं कर रहे हैं बल्कि समाज के संसाधनों से जो शिक्षा ग्रहण की उसी से उऋण होने का प्रयास कर रहे हैंं।

4.अच्छे डाक्टर को अच्छा गुरु भी होना चाहिए


भारत में विश्वप्रसिद्ध वैद्य धन्वंतरि,चरक, सुश्रुत आदि ने अपना ज्ञान अपने शिष्यों को देने में कभी संकोच नहीं किया उन्होंने अपने ज्ञान को अपने शिष्यों को देने के साथ पुस्तकों के रूप में लिपीबद्ध भी किया ताकि आगामी पीढ़ी इस ज्ञान का लाभ उठा सकें। यही कारण था कि आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति विश्वव्यापी बन सकी ।

हम लोग आज भी ऐसे वैद्यों और साधु संतों और चिकित्सकों को जानतें हैं जो आसाध्य बीमारीयों को जादू की तरह पलभर में ठीक कर देते हैं। किंतु ये लोग अपने ज्ञान को आगामी पीढ़ी को हस्तांतरित करने के बिल्कुल भी पक्ष में नहीं रहते क्योंकि ऐसा करने से उनकी प्रसिद्धि और अर्थोपर्जन कम हो जाएगा यही कारण है कि आयुर्वेद क्षेत्र का बहुत सारा ज्ञान वैद्य या उसके जानकार के मरने के साथ ही समाप्त हो जाता है।


5.अच्छे डाक्टर के लिए रोगी का हित सर्वोपरि होना चाहिए

रोग की चिकित्सा करते समय चिकित्सक को सिर्फ रोगी का हित ही सर्वोपरि रखना चाहिए किन्तु आधुनिक काल में रोगी की बजाय चिकित्सक का हित सर्वोपरि हो गया है। 

भारत में दुनिया की सबसे ज्यादा सिजेरियन डिलेवरी होती हैं और ऐसा इसलिए नही होता कि रोगी चाहता कि उसकी सिजेरियन डिलीवरी हो बल्कि ऐसा इसलिए होता है कि चिकित्सक चाहता है कि रोगी कि सिजेरियन डिलीवरी हो जिससे उसे अधिक पैसा मिलें।

आचार्य चरक लिखते हैं कि ऐसा चिकित्सक जो रोगी का अहित करता हो , आसान विधि से ठीक होने के बावजूद जटिल विधि से रोगोपचार करता है। अधम और महापापी की श्रेणी में आता है ऐसे चिकित्सक से रोगी को समय रहते अपना पीछा छुड़ा लेना चाहिए।

6.अच्छा डाक्टर अपने अधीनस्थों को अपने समान बनाने का यत्न करें

चिकित्सतेत्रय:पादायस्माद्धैघव्यपाश्रया । तस्मात्प्रयत्नमातिष्ठेभ्दिषकस्वगुणसम्पदि।।


अच्छा चिकित्सक वहीं माना जाता है जो अपने अधीनस्थों अर्थात पेरामेडिकल स्टाफ को अपने से भी अच्छा बनाने का प्रयत्न करता है क्योंकि चिकित्सक इन सबमें शीर्ष स्थान रखता है , पेरामेडिकल स्टाफ की कार्यप्रणाली पर ही चिकित्सक का यश और अपयश जुड़ा हुआ रहता है। अतः चिकित्सक को व्यक्तिगत यश की बजाय अपने अधीनस्थों के साथ यश का भागी बनना चाहिए। 


7.अच्छे डाक्टर अपने को श्रेष्ठ बताने के लिए दूसरों की निंदा कभी नहीं करते

आजकल हर सफल और प्रसिद्ध चिकित्सक जो बड़े शहरों में काम करते हैं छोटे शहरों से रेफर हुए मरीजों से उस चिकित्सक की निंदा करने में अपना बड़प्पन और शान समझते हैं। इस प्रकार अपने ही व्यवसाय की निंदा करने वाला चिकित्सक रोगी के सामने अपनी इज्जत तो कम करता हैं बल्कि वह अपने पेशे की भी निंदा करता है। 

इसका मतलब है कि इस पेशे में अकुशल लोग भरे हुए हैं जो रोगी के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। 

वास्तव में कोई भी चिकित्सक अपने पास आए रोगी का सर्वश्रेष्ठ इलाज करने की कोशिश करता हैं अब यह अलग बात है कि वह इसमें कितना सफल होता हैं,इसका यह मतलब कदापि नहीं होता कि चिकित्सक अयोग्य या अकुशल हैं। 

हां यदि किसी वरिष्ठ चिकित्सक को यह लगता है कि किसी चिकित्सक ने रोगी के हित को चोंट पहुंचाई है तो वह इसकी सूचना प्रमाण सहित संबंधित चिकित्सक को दे सकता है ताकि वह अगली बार गलती न करें, लेकिन यदि वह बार बार गलती करता है तो वह इस संबंध में रोगी को सूचित कर सकता है । वरिष्ठ चिकित्सकों के इस प्रकार के व्यहवार से न केवल चिकित्सक पेशे की गरिमा बनी रहेगी बल्कि चिकित्सा शोध को बढ़ावा और एक दूसरे के अनुभव का लाभ भी चिकित्सा समाज को मिलेगा। 

8.अच्छा डाक्टर सदैव अच्छा विधार्थी होता है

चिकित्सा जगत में सदैव नित नई बीमारीयां औषधियों और टेक्नोलॉजी का आगमन होता रहता है। अतः चिकित्सक को हमेशा नवीनता के प्रति उत्साही और ग्रहणशील होना चाहिए। 
यदि चिकित्सक नवीनता के प्रति विमुख रहेगा तो इससे रोगी का अहित होगा ।

 प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों के अनुसार जो वैद्य अपने रोगी के रोग उपचार में अनुभव सिद्ध नवीन औषधियों का प्रयोग नही करता उस वैद्य से औषधियां ग्रहण करना वैसा ही है जैसे पतवार के होते हुए भी हाथों से नाव चलाना।

आधुनिक काल में तो यह बात और भी सटीक बैठती है क्योंकि आज टेक्नोलॉजी, औषधी,और बीमारीयां पूर्व की अपेक्षा तेजी से बदल रही है अतः चिकित्सक चाहे कितना भी व्यस्त और प्रसिद्ध हो उसे प्रतिदिन नवीन शिक्षा ग्रहण करना चाहिए।

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