RUMETOID ARTHRITIS,
गठिया या Rumetoid arthritis शरीर के जोंड़ों से संबधित व्याधि हैं, यह एक प्रकार की auto immune बीमारी हैं,जिसमें शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र अपने ही शरीर की कोशिकाओं (Tissue) को शरीर का शत्रु मान उनसे लड़ता हैं,फलस्वरूप जोंड़ों में तीव्र दर्द,सूजन प्रभावित अंगों का टेढ़ा मेढ़ा और चलने फिरनें में परेशानी से लेकर बुखार तक हो जाता हैं.यदि हम इसे दूसरी विकलांगता कहे तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.
प्रकार (Type) :::
चिकित्सा जगत ने गठिया से सम्बंधित बीमारी को इनके प्रभावित करने वाले अंगों के आधार पर अनेक भागों में वर्गीकृत किया हैं,जैसे
० रूमेटाइड़ अर्थराइटिस (Rumetoid arthritis)
० जिवेनाइल अर्थराइटिस ( juvenile arthritis)
० systematic Lupe's erithometosis.
० sironegetive SPONDYLOARTHOPETHIS.
० osteoarthritis.
० gout.
० scleroderma.
० osteoporosis.
० polymyosytis.
० Dermetomysytis.
कारण :::
गठिया या Rumetoid arthritis ka satik karan का सटीक कारण अब तक पता नहीं चल सका हैं,किन्तु मरीज का विश्लेषण करें तो अनेक कारणों का पता आसानी से लगाया जा सकता हैं,जैसे
० आनुवांशिक रूप से बीमारी का स्थानांतरण.
० अनियमित जीवनशैली.
० शराब.
० धूम्रपान.
० लगातार ठंड़े या बासी भोजन का सेवन.
० व्यायाम का अभाव.
उपचार :::
आयुर्वैद चिकित्सा इस रोग में सर्वाधिक प्रभावशाली साबित होती हैं,यदि सही तरीके से और समय पर चिकित्सा शुरू कर दी जावें तो रोगी रोगमुक्त जीवन जी सकता हैं.
० पंचकर्म चिकित्सा विशेषकर अभ्यंग,स्वेदन, और बस्ति के द्धारा रोग को जड़ से ठीक किया जा सकता हैं.
० महावात विध्वंसन रस,वगजाकुंश रस को त्रिफला चूर्ण के साथ विशेष अनुपात में मिलाकर सेवन करवाते हैं.
० महायोगराज गुग्गल तथा दशमूल क्वाथ को प्रतिदिन रोग की तीव्रतानुसार सेवन करवाते हैं.
० योगिक क्रियाएँ जैसे सूर्य नमस्कार,कपालभाँति, अनुलोम - विलोम तथा योगिक जागिंग विशेष फायदा पहुँचाती हैं.
० हल्दी को गर्म जल या दूध के साथ मिलाकर सेवन करना चाहियें क्योंकि इसमें उपस्थित एँटी आक्सीडेन्ट (antioxidant) तत्व जोड़ो की सूजन को कम करतें हैं.
० लहसुन में उपस्थित एल्कलाइड़ इस बीमारी से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत कर बीमारी समाप्त कर देता हैं.इसके लिये लहसुन की चार पाँच कलियों को आग पर भून ले और सेवन करें.
० एलोवेरा (Alovera) तथा शहद (honey) का सेवन करनें से जोंड़ों की जकड़न दूर होती हैं.
० महानारायण तेल को दूध या गर्म जल के साथ सेवन करें या इसमें आँवला चट़नी बनाकर सेवन करें
० महाविषगर्भ तेल,महामाष तेल की मालिश करनी चाहियें.
० ओमेगा 3 फेटीएसिड़ (omega 3 fatty acid) , और प्रोटीन युक्त आहार जैसे अखरोट़,बादाम,अंजीर,काजू आदि का सेवन करें या इनकें सप्लीमेंट लें.
० जीवनशैली संतुलित रखना चाहियें अर्थात भोजन से लेकर समस्त दैनिक कार्यों का समय निश्चित रखें.
० भोजन में संतुलित आहार होना चाहियें इसका विशेष ध्यान रखें.अर्थात हरे पत्तेदार सब्जी,सलाद को भोजन में विशेष महत्व दें.
० अधिक फैट वाली वस्तुओं का खानपान में सीमित प्रयोग करें।
० तैराकी इस रोग में विशेष फायदा पंहुचाती है, नियमित रूप से तैराकी करने से बीमारी नियंत्रित रहती हैं और जिन्हें बीमारी नहीं है उनका बचाव होता हैं । जिन लोगों को तैराकी नहीं आती वे साइकिल चला सकते हैं ।
० विटामिन डी हड्डीयों का स्वास्थ उत्तम रखने वाला विटामिन है जो सूर्य प्रकाश से मिलता हैं अतः प्रतिदिन सुबह की धूप जरुर सेंकें।
० मधुमेह और उच्च रक्तचाप से संबंधित समस्या हैं तो इन्हें नियंत्रित रखें ।
० शराब, तम्बाकू, धूम्रपान से दूर रहें ।
यदि समुचित तरीके से इन विधियों को अपनाया जावें तो व्यक्ति सम्पूर्ण, संतुलित और रोगमुक्त जीवन आसानी से जी सकता हैं.
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