सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

मुहँ का कैंसर कारण,लक्षण और बचने के उपाय। oral cancer in hindi

 मुहँ का कैंसर कारण, लक्षण और बचने के उपाय। oral cancer in hindi 


ओरल कैंसर या मुहँ का कैंसर जबड़ें,तालु,जीभ,और गले में होनें वाला कैंसर का एक प्रकार हैं। ओरल कैंसर में इन भागों में गठान या छाला हो जाता हैं । यह छाला या गठान लम्बें समय तक सामान्य उपचार से ठीक नही होता हैं । 


मुंह का कैंसर
मुंह का कैंसर


मुहँ के कैंसर का लक्षण



०१. मुहँ के अन्दर के भागों पर लाल या सफेद धब्बे होना।


०२.आवाज का भारीपन ।


०३. मुहँ पर सूजन लम्बें समय तक रहना ।


०४.खानें पीनें या थूक निगलनें में दर्द होना ।


०५.मुहँ,जीभ,गला,और तालू पर छाला या गठान होना जो लम्बें समय तक ठीक नहीं हो रहा हो ।


०६.मसूड़े या दाँतों में दर्द रहना ।


०७.आवाज में भारीपन या गला बैठना ।


०८.जबडें में दर्द जो कि लम्बे समय से ठीक नही हो रहा हो ।


०९. जीभ से स्वाद का अहसास न होना ।


१०.पायरिया की समस्या ।



मुहँ के कैंसर का कारण



कैंसर चाहे वह शरीर के किसी भी भाग में हो का मुख्य कारण कोशिकाओं का बिना किसी नियत्रंण के लगातार बढ़ना हैं । कोशिकाओं की यह अनियंत्रित वृद्धि  किस कारण से होती हैं इसकी 100 प्रतिशत व्याख्या अब तक नही हो पाई हैं । किंतु मुहँ के कैंसर से ग्रसित लोगों का इतिहास ज्ञात करनें पर पता चलता हैं कि कुछ सामान्य जोखिम कारक हैं जो कैंसर की दर को बढा देतें हैं जैसें 



०१.तम्बाकू का सेवन चाहें वह किसी भी रूप में हो जैसें धूम्रपान,खैनी,नकसर,जर्दा आदि की वजह से मुहँ का कैंसर होनें की संभावना बहुत अधिक बढ़ जाती हैं ।



०२.जो लोग सुपारी खातें हैं वे भी मुहँ के कैंसर के उच्च जोखिम वाले व्यक्तित्व होतें हैं ।



०३.शराब का सेवन करनें से मुहँ का कैंसर होनें की संभावना आठ गुनी तक बढ़ जाती हैं ।



०४.बत्तीसी लगानेें और मुँह द्धारा बत्तीसी को अस्वीकार करनें की दशा में मुँह का कैंसर होनें की संभावना बढ़ जाती हैं ।



०५.माँस विशेषकर रेड़ मीट का अत्यधिक सेवन



०६.दाँतों द्धारा बार बार जीभ के कटनें से मुहँ के कैंसर का जोखिम बढ़ जाता हैं ।


ब्रेस्ट कैंसर कैसे रोकें महिलाएं जरुर जानें



०७.ह्यूमन पेपिलोमा वायरस से संक्रमण होना ।



०८.अत्यधिक एसिडीटी जो कि गले तक फैल जाती हो ।


०९.अत्यधिक बिगड़ी हुई lifestyle जिससे body clock प्रभावित हो रही हो ।



१०. जंक फूड़ का अत्यधिक सेवन।



११.पराबैंगनी किरणों का मुहँ से अत्यधिक सम्पर्क होनें से कैंसर का जोखिम अत्यधिक बढ़ जाता हैं ।



१२.आनुवांशिक कारक मुहँ के कैंसर का जोखिम कई गुना बढ़ा देते हैं । उदाहरण के लिये घर में माता,पिता में से किसी को मुहँ का कैंसर हैं तो पुत्र मुहँ के कैंसर के जोखिम वालें क्षेत्र में हैं ।


१३.खाने में प्रयुक्त होने वाले कुछ खास प्रकार के रंग और खाने को सुरक्षित रखने वाले रंग भी मुंह के कैंसर के लिए उत्तरदायी होते हैं ।



मुहँ के कैंसर होनें के जोखिम को कम करनें के उपाय



०१.जीवनशैली को नियमित रखना चाहियें भोजन,सोना आदि दैनिक कार्यों को नियमित समय पर ही रखना चाहियें ताकि bodyclock का एक निश्चित चक्र बना रहें ।


०२.तम्बाकू,शराब और जंक फूड़ का सेवन नही करें इसके बजाय अंकुरित अनाज ,दूध दही,सलाद,फल और हरी सब्जियों का सेवन करें ।


०३ .नियमित व्यायाम को दिनचर्या का अंग बना लें ।


०४.योग की कुछ विशेष क्रियाएँ मुहँ के कैंसर के जोखिम को कम कर देती हैं इन क्रियाओं को अवश्य करें उदाहरण के लिये कपालभाँति और भ्रामरी बहुत महत्वपूर्ण योगिक क्रिया हैं ।



०५.मुहँ की नियमित जाँच करवाना चाहियें ।


०६.यदि बायोप्सी में कैंसर का पता लगता हैं तो तुरंत चिकित्सा शुरू की जानी चाहियें ।


०७. मुहँ के किसी हिस्सें में कोई गठान या छाला या कोई सूजन हैं जो लम्बें समय से ठीक नही हो रही हैं ,तो तुरंत चिकित्सकीय सलाह लेना चाहियें ।


०८. मुहँ के कैंसर यदि प्रारंभिक अवस्था में उपचार शुरू कर दिया जायें तो बहुत शीघ्रता से ठीक हो जाता हैं और यदि इलाज में देरी कर दी तो कैंसर का इलाज बहुत मुश्किल होता जाता हैं ।


०९ मुहँ का कैंसर न हो इसके लियें भोजन में antioxidant और minarals समावेश होना चाहियें ।


१० हल्दी में पाया जानें वाला तत्व करक्यूमिन कैंसर की कोशिकाओं को बढ़नें से रोक देता हैं अत : हल्दी का नियमित सेवन जरूर करना चाहियें ।


११ मुहँ के कैंसर से बचाव हेतू ऐसे स्थान जहाँ विकिरण उत्सर्जन निर्धारित मानको से अधिक हो ऐसे स्थान को छोंड़ देना चाहियें ।


१२ सेब के छिलके में ट्राइटरपेनाइड नामक तत्व पाया जाता हैं,यह तत्त्व शरीर में मौजूद कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करता हैं ।


१३. इस्राइल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अनुसार ग्रीन टी में मौजूद पालीफेनाल्स नामक एक एंटीऑक्सीडेंट तत्व मुंह में पनप रही कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने से रोकता है। शोधकर्ताओं के अनुसार जो लोग नियमित रूप से एक कप ग्रीन टी पीतें हैं वे लोग मुंह के कैंसर से बचें रह सकते हैं ।


मुहँ में कैंसर फैलनें के चार चरण होतें हैं जिसके द्धारा हम कैंसर फैलनें की स्थिति को समझ सकतें हैं जैसें


१. प्रथम चरण


प्रथम चरण में मुहँ के कैंसर की गठान या ट्यूमर विकसित होना शुरू ही होता हैं । इस अवस्था में यह निकट की ग्रंथियों तक नही पहुँचता हैं । यही वह अवस्था होती हैं जब कैंसर को पहचानकर आसानी से ठीक किया जा सकता हैं ।


२.द्धितीय चरण 

इस चरण में ट्यूमर निकटतम लसिका ग्रंथियों तक तो नही पहुँचता लेकिन ट्यूमर का इलाज  किमोथेरपी ,रेडियोथेरेपी तक चला जाता हैं और यदि उचित चिकित्सकीय परामर्श  मिले और मरीज पूर्ण चिकित्सा कोर्स पूर्ण कर लें तो  मरीज ठीक हो जाता हैं ।


३.तृतीय चरण 



तृतीय चरण का कैंसर निकटतम लसिका ग्रंथियों तक फैलकर उनको प्रभावित करना शुरू कर देता हैं । यह अवस्था मरीज के लिये बहुत कष्टमय और चिकित्सक के लियें बहुत कठिन होती हैं।  


४.चतुर्थ चरण 


इस चरण में कैंसर आसपास के ऊतकों और अँगों तक फैल जाता हैं । और इसका इलाज करना बहुत मुश्किल होता हैं। मरीज वेंटीलेटर के सहारें रहता हैं और खाना पीना पूर्णत: बंद हो जाता हैं ।



• कास्मेटिक सर्जरी के बाद की सावधानी

०दशमूल क्वाथ के फायदे

० आयुर्वेद मतानुसार ज्वर के प्रकार

० सर्दीयों में खानपान

० फंगल इंफेक्शन


ल्यूकोप्लेकिया 

ल्यूकोप्लेकिया मुंह के अंदर या जीभ पर होने वाले सफेद रंग के खुरदरे या दानेदार धब्बे हैं जो लापरवाही होने पर धीरे धीरे कैंसर का रूप ले सकतें हैं।

ल्यूकोप्लेकिया की संभावना उन लोगों में अधिक होती हैं जो

• धूम्रपान करते हैं

• तम्बाकू का सेवन करते हैं

• गुटखा,खैनी या सुपारी खाते हैं

• जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होती हैं

कभी - कभी ल्यूकोप्लेकिया पेट की खराबी, कब्ज या लीवर की खराबी से भी हो सकता हैं।

लेखक :
डाक्टर एन नागर
एमबीबीएस,एमडी

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट...

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri...

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से म...