पार्किंसन रोग क्या है
पार्किंसन रोग तंत्रिका तंत्र का एक तेजी से फैलने वाला विकार है, जो आपकी गतिविधियों को प्रभावित करता है। यह धीरे-धीरे विकसित होता है। यह रोग कभी-कभी केवल एक हाथ में होने वाले कम्पन के साथ शुरू होता है। लेकिन, जब कंपकपी पार्किंसन रोग का सबसे मुख्य संकेत बन जाती है तो यह विकार अकड़न या धीमी गतिविधियों का कारण भी बनता है।
पार्किंसन रोग के शुरुआती चरणों में, आपके चेहरे के हाव भाव कम या खत्म हो सकते हैं या चलते समय आपकी बाजुएं हिलना बंद कर सकती हैं। आपकी आवाज़ धीमी या अस्पष्ट हो सकती है। समय के साथ पार्किंसन बीमारी के बढ़ने के कारण लक्षण गंभीर हो जाते हैं।
🔹 *पार्किंसन रोग के लक्षण
इस रोग के लक्षण और संकेत हर व्यक्ति में भिन्न हो सकते हैं। शुरुआती संकेत कम हो सकते हैं और आसानी से किसी का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित नहीं करते हैं। इसके लक्षण अक्सर आपके शरीर के एक तरफ के हिस्से पर दिखने शुरू होते हैं और स्थिति बहुत खराब हो जाती है।
▪ *कंपन –* कंपकपाना या हिलना आमतौर पर आपके हाथ या उंगलियों से शुरू होता है। इसके कारण आपका अंगूठा और तर्जनी उंगली के एक-दूसरे से रगड़ने शुरू हो सकते हैं, जिसे "पिल-रोलिंग ट्रेमर" (Pill-Rolling Tremor) कहते हैं। पार्किंसन रोग का एक लक्षण है आराम की स्थिति में आपके हाथ में होने वाली कंपकपी है।
▪ *धीमी गतिविधि (ब्रैडीकीनेसिया) –* समय के साथ, यह बीमारी आपके हिलने-डुलने और काम करने की क्षमता को कम कर सकती है, जिसके कारण एक आसान कार्य को करने में भी कठिनाई होती है और समय अधिक लगता है। चलते समय आपकी गति धीमी हो सकती है या खड़े होने में कठिनाई हो सकती है। इसके अलावा आप पैरों को घसीट कर चलने की कोशिश करते हैं, जिससे चलना मुश्किल हो जाता है।
▪ *कठोर मांसपेशियां –* आपके शरीर के किसी भी हिस्से में मांसपेशियों में अकड़न हो सकती है। कठोर मांसपेशियां आपकी गति को सीमित कर सकती हैं और दर्द का कारण बन सकती हैं।
▪ *बिगड़ी हुई मुद्रा और असंतुलन –* पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप आपका शरीर झुक सकता है या असंतुलन की समस्या हो सकती है।
▪ *स्वचालित गतिविधियों की हानि –* पार्किंसन बीमारी में, अचेतन (Unconscious) कार्य करने की क्षमता में कमी आ सकती है, जिनमें पलकें झपकाना, मुस्कुराना या हाथों को हिलाते हुए चलना शामिल हैं। बात करते समय आपके चेहरे पर ज़्यादा समय के लिए हाव भाव नहीं रह सकते।
▪ *आवाज़ में परिवर्तन –* पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप उच्चारण सम्बन्धी समस्याएं हो सकती हैं। आपका स्वर धीमा, तीव्र और अस्पष्ट हो सकता है या आपको बात करने से पहले हिचकिचाहट हो सकती है। सामान्य संक्रमण की तुलना में आपकी आवाज़ और ज़्यादा खराब हो जाती है। स्वर और भाषा के चिकित्सक आपकी उच्चारण समस्याओं का निवारण करने में मदद कर सकते हैं।
▪ *लिखावट में परिवर्तन –* लिखावट छोटी हो सकती है और लिखने में तकलीफ हो सकती है।
दवाएं इनमें से कई लक्षणों को कम कर सकती हैं। अधिक जानकारी के लिए नीचे दिया गया "उपचार" का खंड देखें।
*डॉक्टर को कब दिखाएं
यदि आप पार्किंसन रोग से जुड़ा कोई भी लक्षण देखते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें। अपनी स्थिति का परीक्षण करने और लक्षणों के अन्य कारणों को दूर करने के लिए भी चिकित्सक से परामर्श करें।
🔹 *पार्किंसन रोग के कारण और जोखिम कारक
पार्किंसन रोग में मस्तिष्क में उपस्थित कुछ तंत्रिका कोशिकाएं (न्यूरॉन्स) धीरे-धीरे खराब हो जाती हैं या नष्ट हो जाती हैं। न्यूरॉन्स हमारे मस्तिष्क में डोपामाइन नामक रसायन उत्पन्न करते हैं।
इन न्यूरॉन्स के नष्ट होने के कारण कई लक्षण उत्पन्न होते हैं। डोपामाइन के स्तर में आने वाली कमी असामान्य मस्तिष्क गतिविधि का कारण बनती है, जिसके परिणामस्वरूप पार्किंसंस रोग के संकेत मिलते हैं।
▪ *आपके जीन (Genes) –* शोधकर्ताओं ने विशिष्ट जेनेटिक उत्परिवर्तनों (Genetic Mutations) की पहचान की है, जो पार्किंसन बीमारी का कारण बन सकते हैं। लेकिन, ये पार्किंसन रोग से प्रभावित परिवार के सदस्यों वाले दुर्लभ मामलों के अलावा असामान्य होते हैं।
▪ *पर्यावरण से संबंधित कारण –* कुछ विषाक्त पदार्थों या पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव अंतिम चरण के पार्किंसन रोग के जोखिम को बढ़ा सकता है, लेकिन कुल मिलाकर इनसे पार्किंसंस रोग जोखिम कम ही होता है।
▪ *बढ़ती आयु –* पार्किंसन रोग युवाओं में बहुत ही कम पाया जाता है। यह आमतौर पर जीवन के मध्य या आखिरी पड़ाव में शुरू होता है और उम्र के साथ जोखिम बढ़ता रहता है। यह बीमारी सामान्य तौर पर 60 वर्ष या उससे अधिक आयु वाले लोगों में विकसित होती है।
▪ *आनुवंशिकता –* आपके किसी करीबी रिश्तेदार के पार्किंसन रोग से ग्रसित होने के कारण आपको यह रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। हालांकि, जब तक आपके परिवार में कई सदस्यों को यह बीमारी नहीं होती है, तब तक आपका जोखिम कम है।
▪ *पुरुषों को जोखिम अधिक –* महिलाओं की तुलना में पुरुषों में पार्किंसन रोग विकसित होने की अधिक संभावना है।
▪ *विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आना –* वनस्पतिनाशकों (Herbicides) और कीटनाशकों के निरंतर संपर्क में आने से आपके पार्किंसन रोग से ग्रसित होने का खतरा थोड़ा ज्यादा बढ़ सकता है।
🔹 *पार्किंसन रोग से बचाव
▪चूँकि इस बीमारी का कारण अज्ञात है, इसलिए इसकी रोकथाम के तरीके भी एक रहस्य ही हैं। हालांकि, कुछ शोधों से पता चला है कि कॉफी, चाय और कोका कोला में पायी जाने वाली कैफीन पार्किंसन रोग के विकास के जोखिम को कम कर सकती है। ग्रीन टी भी इसके खतरे को कम करने में सहायक हो सकती है।
▪कुछ शोध से पता चला है कि नियमित एरोबिक व्यायाम इस रोग के जोखिम को कम कर सकते हैं।
👨🏻⚕👨🏻⚕० प्याज के औषधीय उपयोग👨🏻⚕👨🏻⚕
० नीम के औषधीय उपयोग👨🏻⚕
० तुलसी👨🏻⚕👨🏻⚕👨🏻⚕
० पलाश वृक्ष के औषधीय गुण
० कद्दू के औषधीय गुण
पार्किसंस का इलाज और दवाईयों के साइड इफेक्ट
डिस्कायनिशिया
डिस्कायनिशिया तंत्रिका तंत्र से संबंधित एक विकार है जो पार्किसंस बीमारी के इलाज के साइड इफेक्ट के कारण होता हैं। पार्किसंस के इलाज के दौरान डोपामीन पर असर डालने वाली दवाईयों का सेवन जब लम्बें समय तक किया जाता हैं तो डोपामीन का उच्च स्तर बीमारी का जोखिम बढ़ा देता हैं ।
डिस्कायनिशिया के कारण व्यक्ति का सामाजिक और व्यक्तिगत जीवन बहुत प्रभावित होता हैं ।
डिस्कायनिशिया के लक्षण
✓ हाथ,पांव या पूरें शरीर में अचानक झटके लगना जिन पर व्यक्ति का नियंत्रण नहीं होता हैं ।
✓ शरीर हिलना या झूला झूलने जैसा एहसास होना ।
✓ सिर में अचानक झटका लगना।
✓ बीमारी की चरमावस्था में झटके इतने तेजी से आते हैं कि व्यक्ति को संभलने का मौका नहीं मिलता हैं ।
✓ चलते समय शरीर असंतुलित होना ।
डिस्कायनिशिया के कारण
✓ तंत्रिका रोग विशेषज्ञों (न्यूरोलॉजिस्ट) के अनुसार डिस्कायनिशया बहुत संभावित कारण पार्किंसंस के इलाज में ली जाने वाली दवाई है,इस दवाई का लम्बें समय तक इस्तेमाल डोपामिन हार्मोन का स्तर असंतुलित कर देता हैं। डोपामिन का असंतुलित स्तर डिस्केनेशिया के लिए आदर्श स्थिति होती हैं ।
✓ चिंता,तनाव, अवसाद का लम्बें समय तक बनें रहना डिस्कायनेशिया का बहुत ही आम कारण है ।
✓ शराब, तम्बाकू धूम्रपान ,गांजा का नशा डिस्कायनिशिया के लिए आदर्श परिस्थिति पैदा करता हैं ।
डिस्कायनिशिया का प्रबंधन
✓ डिस्कायनिशिया का समुचित प्रबंधन इलाज के साथ संतुलित आहार ,योगिक क्रियाओं और मानसिक क्षमताओं को बढ़ाकर आसानी से किया जा सकता है ।
✓ कपालभाति, प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, सूर्य नमस्कार, भ्रामरी आदि से डिस्कायनिशिया प्रभावित व्यक्ति बहुत शीघ्र सामान्य जीवन जी सकता है ।
✓ शराब, तम्बाकू, धूम्रपान,गांजा आदि जोखिम बढ़ाने वाले पदार्थों का सेवन न करें ।
✓ तनाव,चिंता, घबराहट और डर इन चार चीजों से दूर रहें ।
✓ आध्यात्मिकता इस बीमारी के प्रबंधन में बहुत कारगर मानी जाती हैं, शोधों के अनुसार जो व्यक्ति बहुत आध्यात्मिक किस्म के होते हैं उनको ऐसे लोग जो आध्यात्मिक नहीं होते हैं के मुकाबले होने की संभावना 90 प्रतिशत तक कम होती हैं ।
✓ ओमेगा थ्री फैटी एसिड, अखरोट,बादाम, मशरूम, मक्खन का नियमित सेवन करने से बीमारी होने की संभावना ऐसे लोगों जो इनका सेवन नहीं करतें हैं के मुकाबले 60 प्रतिशत कम होती हैं ।
Deep Brain Stimulation डीप ब्रेन स्टीमुलेशन
डीप ब्रेन स्टीमुलेशन या डीबीए मस्तिष्क की शल्यक्रिया हैं जो विशेष रूप से पार्किसन बीमारी के बढ़ते लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए की जाती हैं।
Deep Brain Stimulation या डीबीए तकनीक तब अपनाई जाती हैं जब रोग पर दवा गोली का असर समाप्त हो जाता हैं।
Deep Brain Stimulation की प्रक्रिया
Deep Brain Stimulation में मस्तिष्क के उन हिस्सों में जो पार्किसन बीमारी के लिए उत्तरदायी होते हैं में इलेक्ट्रोड्स के माध्यम से बिजली का करंट दिया जाता हैं।
जब करंट दिया जाता हैं तो मस्तिष्क के प्रभावित भाग की मांसपेशियों का संचालन ठीक हो जाता हैं और पार्किसन बीमारी के लक्षणों को नियंत्रित करने में मदद मिलती हैं।
डीप ब्रेन स्टीमुलेशन में मस्तिष्क के प्रभावित भाग में छोटे-छोटे तार लगाए जाते हैं इन तारों को छाती में त्वचा के नीचे स्थापित Neuro Stimulator से जोड़ दिया जाता हैं।
Neuro Stimulator से उत्पन्न करंट मस्तिष्क के प्रभावित भाग में जाकर उन्हें सुचारू कार्य संचालन के लिए बाध्य करता हैं।
Deep Brain Stimulation के फायदे
√ उम्रदराज व्यक्ति में यह तकनीक बहुत फायदेमंद होती हैं।
√ रोग की तीव्रता में लाभकारी हैं।
√ दवाएं पूरी तरह काम नहीं करने पर डीप ब्रेन स्टीमुलेशन बहुत कारगर साबित होती हैं।
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