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जय श्री कृष्ण
प्रातः विचार पुष्प
*सर्वार्थसंभवो देहो जनित: पोषितो यत: ।*
*न तयोर्याति निर्वेशं पित्रोर्मत्र्य: शतायुषा ॥*
एक सौ वर्ष की आयु प्रााप्त हुआ मनुष्य देह भी अपने माता पिता के ऋणोंसे मुक्त नही होता ।
जो देह चार पुरूषार्थोंकी प्रााप्ती का प्रामुख साधन है, उसका निर्माण तथा पोषण जीन के कारण हुआ है, उनके ऋण से मुक्त होना असंभव है ।
अर्थात मनुष्य कुछ भी कर ले माता पिता के ऋण से कभी मुक्त नही हो सकता उसका दायित्व है कि वो जिंदगी भर उनकी सेवा में रत रहे।व्यक्ति चार धाम की यात्रा कर ले, कितना भी नाम, धन, कमा ले , कितनी भी प्रतिष्ठा प्राप्त कर ले अगर माता पिता की सेवा का सौभाग्य उसे नही मिलता तो उसका जन्म बेकार है यह समझना चाइए।
आपका दिन शुभ मंगलमय हो।
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जय श्री कृष्ण
प्रातः विचार पुष्प
*सर्वं परवशं दु:खं सर्वम् आत्मवशं सुखम् ।*
*एतद् विद्यात् समासेन लक्षणं सुख-दु:खयो: ॥*
जो चीजें अपने अधिकार में नहीं है वह दु:ख से जुडी है, लेकिन सुखी रहना तो अपने हाथ में है ।
आलसी मनुष्य को ज्ञान कैसे प्राप्त होगा ? यदि ज्ञान नहीं तो धन नही मिलेगा ।
यदि धन नही है तो अपना मित्र कौन बनेगा ? और मित्र नही तो सुख का अनुभव कैसे ।
अर्थात- दुख हमारे अधिकार क्षेत्र में नही है उस पर हमारा कोई बस नही चलता, वो कब किस क्षण कैसे आएगा मालूम नही, कितना आएगा, कब जाएगा मालूम नही, लेकिन हर परिस्थिति में खुश रहना ये हमारे अधिकार क्षेत्र में है।
सुख का अनुभव करने के लिए उसका आनद लेने के लिए सक्रिय बनना पड़ता है, आलसी को सुख का आनंद नही मिल सकता। आलसी मनुष्य को ज्ञान नही मिलता ओर जब ज्ञान नही है तो धन नही मिलता ओर धन नही मिलता तो कोई आपका दोस्त नही बनाता ओर जब आपके कोई मित्र ही नही होंगे तो आपको सुख का अनुभव भी नही हॉगा।
इसलये आलस्य त्यागे, ज्ञान प्राप्त करे और धन कमाए ओर साथ ही साथ उसका सही उपयोग कर जीवन मे सुख शांति का लावे।
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