सिद्धू और कान्हू |
# संथाल विद्रोह 1856-1858
संथाल जनजाति (Santhal Tribe) अत्यंत शांतिपूर्ण रूप से मिदनापुर,हजारीबाग,वीरभूमि क्षेत्रों में निवासरत थी.किंतु सन् 1793 ई.की कार्नवालिस संहिता के द्धारा इन लोगों की जमीन ज़मीदारों एँव साहूकारों के कब्जें में चली गई.जिस पर संथाल जनजाति राजमहल की पहाड़ियों पर बस गई.
अपनी मेहनत के बल पर इन्होंनें यहाँ जँगल साफ कर और पहाड़ काटकर खेती करना शुरू किया ही था कि साहूकारों एँव ज़मीदारों ने यहाँ भी इन्हें पैसा बाँटकर ब्याज वसूलना शुरू कर दिया.
सिद्धू और कान्हू नामक नौजवान संथालों ने जब देखा कि उँची ब्याज दर की वज़ह से संथाल अपनी उपज ,पशु,खेत बेचकर भी साहूकारों और ज़मीदारों का ऋण नहीं लोटा पा रहें हैं,तो उन्होंनें इस अन्याय के विरूद्ध पुलिस और न्यायालय में अपील की परंतु इन्होंनें भी ज़मीदारों एँव साहूकारों का पक्ष लिया.
चारों तरफ से परेशान संथालों ने सिद्धू और कान्हू के नेतृत्व में विद्रोह का रास्ता अपनाया.
इन्होंनें संथालों के साथ मिलकर राजमहल और बीरभूमि के बीच सम्पर्क खत्म कर दिया और संथाल राज्य के लिये अंग्रेज पुलिस अधिकारियों,प्रशासन और रेलवे को निशाना बनाना शुरू कर दिया.
सन् 1856 - 1858 के बीच संथालों के तीव्र विरोध ने अँग्रेजों के दाँत खट्टे कर दिये परंतु शक्तिशाली अंग्रेजी सेना ने इस विद्रोह को दमनात्मक तरीके से दबा दिया.
सिद्धू कान्हू को गिरफ़्तार कर फाँसी दे दी गई .
इस आंदोंलन के परिणामस्वरूप अंग्रेजों को संथाल परगनें को जिला बनाना पड़ा.
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