#1.बथुआ [Chenopodium album]
बथुआ रबी के मोसम में फसलों के साथ उगनें वाला अनचाहा पौधा हैं,जो कही भी सहजता से उग सकता हैं।
बथुआ का scientific नाम चिनोपोडियम एलबम chenopodium album हैं.और यह चिनोपोडिएसी परिवार का सदस्य हैं.
भारत के अलग - अलग भागों में इसके अलग - अलग नाम है जैसें गुजरात में चिलनी भाजी,मध्यप्रदेश में चिला,बंगाली में बेटू साग कहतें हैं.
चरक संहिता में इसे वास्तुक नाम से पुकारा गया हैं.और इसके दो प्रकार गौड़वास्तुक और यवशाक बतायें गये हैं
#2.बथुआ की प्रकृति
आयुर्वैदानुसार बथुआ की प्रकृति त्रिदोषनाशक होकर ,वात,पित्त और कफ का संतुलन करता हैं.बथुआ प्रकृति में थोड़ा गर्म होता है।
#3.संघटन
नमी कार्बोहाइड्रेट. प्रोटीन 89.5%. 3%. 3.6%
खनिज पदार्थ. वसा फायबर 2.6%. 0.4%. 0.8%
कैल्शियम. फाँस्फोरस. आयरन
150 mg. 80 mg. 4.2mg
केरोटीन. राइबोफ्लेविन. नायसिन
1740 micro. 0.14 mg. 0.6mg
विटामिन c. ऊर्जा
80 mg. 30 kcal.
[per 100 gm]
[per 100 gm]
#4.औषधि के रूप में बथुआ
आयुर्वेद ग्रंथों में बथुआ के बारें में लिखा हैं कि
भुक्त्वा वास्तुकशाकेन सतकं लवणं पिब |
हरीतकी भुङ्क्ष्व राजन्नश्यन्तु व्याधयश्च ते ॥ ४८ ॥
अर्थात हे राजन् वास्तुक ( वधुभा ) का शाक खाकर सेन्धानमक मिलाकर महा पान करो और हर्रे का चूर्ण भक्षण करो तुम्हारी व्याधियां नष्ट हो जायगी ॥४८॥
# कुपोषण [malnutrition] में बथुआ :::
बथुए में प्रचुरता में आयरन,कैल्सियम,थायमिन,नायसिन और राइबोफ्लेविन पायें जातें हैं.
यदि नियमित रूप से बथुए का किसी भी रूप में सेवन किया जावें तो मातृ - शिशु कुपोषण को समाप्त किया जा सकता हैं,जो आज विकासशील और अल्पविकसित राष्ट्रों की विकट समस्या बनी हुई हैं.
यदि नियमित रूप से बथुए का किसी भी रूप में सेवन किया जावें तो मातृ - शिशु कुपोषण को समाप्त किया जा सकता हैं,जो आज विकासशील और अल्पविकसित राष्ट्रों की विकट समस्या बनी हुई हैं.
# सफेद दाग [Lucoderma] में बथुआ :::
बथुए के पत्तियों में शरीर में मेलोनिन को बढ़ानें वालें तत्व प्रचुरता में पायें जातें हैं,अत: सफेद दाग की समस्या से पीड़ित व्यक्ति को बथुए का रस सफेद दाग पर नियमित रूप से लगाना चाहिये.
इसके अलावा इसकी उबली हुई पत्तियों में हल्दी मेथी बीज और धनिया पावड़र डालकर सेवन करना चाहियें।
इसके अलावा इसकी उबली हुई पत्तियों में हल्दी मेथी बीज और धनिया पावड़र डालकर सेवन करना चाहियें।
# नेत्र रोगों में :::
बथुआ विटामिन ए का अच्छा स्त्रोत माना जाता हैं,इसके सेवन से आँखों की ज्योति बढ़ती हैं.रंतोधी होनें पर इसका सेवन बहुत फायदेमंद माना जाता हैं.
# कब्ज और पेट दर्द में :::
बथुए में पाया जानें वाला फायबर कब्ज को नष्ट कर खुलकर पाखाना लाता हैं.इसके अलावा यदि पेटदर्द की शिकायत हो तो बथुए का रस गर्म कर दो - तीन चम्मच पीलानें से पेटदर्द बंद हो जाता हैं.
बच्चों को पेट में कीड़ों की समस्या हो तो रोज रात को दो से पाँच चम्मच बथुए का रस पीलाना फायदेनंद साबित होता हैं.
एसीडीटी में इसका रस मिस्री मिलाकर सेवन करनें से पेट़ की जलन शांत होती हैं.
बच्चों को पेट में कीड़ों की समस्या हो तो रोज रात को दो से पाँच चम्मच बथुए का रस पीलाना फायदेनंद साबित होता हैं.
एसीडीटी में इसका रस मिस्री मिलाकर सेवन करनें से पेट़ की जलन शांत होती हैं.
# एनिमिया में :::
बथुआ में पाया जानें वाला आयरन खून की कमी को समाप्त करता हैं.इसके लिये बथुए का सेवन सब्जी के रूप में या उबालकर किया जा सकता हैं.
# गठान और फोड़ें फुंसियों पर :::
फोड़ें फुंसियों पर हल्दी के साथ बथुए को बाटकर लगानें से फोड़ें जल्दी सुख जातें हैं.इसके अलावा शरीर पर गांठ हो तो नमक और अदरक के साथ बथुए को गर्म कर गांठ पर रात को बांधनें से गठान गल जाती हैं.
सिर में जुँए होनें पर बथुए को पानी में उबालकर इस उबले हुये पानी से सिर धोयें ,जुँए होनें पर मर जायेगी.
सिर में जुँए होनें पर बथुए को पानी में उबालकर इस उबले हुये पानी से सिर धोयें ,जुँए होनें पर मर जायेगी.
# स्तभंक और वीर्यवर्धक :::
बथुए की सब्जी घी के साथ बनाकर खानें से व्यक्ति की स्तभंन शक्ति और वीर्य की वृद्धि होती हैं.बथुए का रायता बनाकर खानें से वीर्य गाढ़ा होता हैं.
# पीलिया में :::
बथुए के बीजों को पीसकर सुबह - शाम 5 ग्राम के अनुपात में शहद मिलाकर खानें से पीलिया समाप्त हो जाता हैं,तथा लीवर की कार्यपृणाली सुधरती हैं.
# दर्द निवारक के रूप में :::
बथुए को 300 ml पानी में तब तक उबालें जब तक पानी 50 ml न रह जावें तत्पश्चात इस पानी को सूप की भाँति पीनें से सभी प्रकार के दर्द में आराम मिलता हैं.
# बुखार में बथुआ के फायदे
बथुये के 100 ग्राम रस में हल्दी आधी चम्मच और चार पाँच पीसी हुई काली मिर्च मिलाकर पीनें से मलेरिया और संक्रामक बुखार में फायदा होता हैं.और चिकनगुनिया बुखार में होनें वाला जोंड़ों का दर्द नियत्रिंत होता हैं.इसके रस से बुखार की गर्मी भी शांत होती हैं.
#रोग प्रतिरोधक क्षमता में
बथुआ रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ानें में बहुत उपयोगी साबित हुआ हैं.इसके लियें बथुए को सब्जी या उबालकर नियमित सेवन करना चाहियें।
#मूत्र की जलन में
रोज रात को बथुए के रस में नमक,जीरा,और निम्बू का रस मिलाकर पीनें से मूत्र की जलन शांत हो जाती हैं.
# पथरी में :::
किडनी की पथरी को निकालने के लिए बथुआ बहुत उत्तम औषधि हैं । नियमित रूप से बथुए का रस पीनें से किडनी की पथरी निकल जाती हैं और किडनी स्वस्थ रहती हैं ।
# कैंसर में बथुआ के फायदे :::
बथुए में एमिनो एसिड़ Amino acid प्रचुरता से मिलता हैं जो शरीर में नई कोशिका का निर्माण करता हैं और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत कर उन्हें स्वस्थ बनाता हैं ।
# वजन घटाने में :::
बथए को सब्जी के रूप में खानें से मोटापा नहीं होता हैं और वजन बहुत तेजी से घटता हैं । बथुआ खानें से बहुत जल्दी पेट भरनें का आभास हो जाता हैं । जिससे मोटापा कम होता हैं।
# पायरिया में बथुआ के फायदे
बथुआ की कच्ची पत्तियों में पर्याप्त मात्रा में विटामीन सी पाया जाता हैं अत : बथुए की पत्तियों को चबानें से पायरिया की समस्या दूर होती हैं और मुंह से दुर्गंध आनें की समस्या का समाधान होता हैं ।
# लकवा होनें पर बथुआ के फायदे
बथुए के पत्तों का रस गर्म कर तीन चार चम्मच लकवा रोगी को पिलानें से लकवा ठीक होनें की संभावना बढ़ जाती हैं ।
# पाइल्स होनें पर बथुआ के फायदे
बथुए में मोजूद फायबर मल चिकना कर आसानी से शरीर से बाहर करता हैं अत:जिन लोगों को पाइल्स की शिकायत रहती हैं उन्हें बथुए के सेवन से पाइल्स के कारण होनें वाली जलन और दर्द नहीं नहीं होता हैं ।
# माहवारी के समय होने वाले पेटदर्द को कैसे रोकें
बथुआ के दस ग्राम बीजों को एक गिलास पानी में उबाल लें,जब पानी आधा रह जाए तब इसे ठंडा कर दिन में दो बार सुबह शाम के हिसाब से पी लें माहवारी के समय होने वाला पेट दर्द नहीं होगा।
# गर्भाशय की सफाई में सहायक बथुआ
बच्चा पैदा होने के बाद प्रसूताओं का गर्भाशय ठीक तरह से साफ नहीं हो पाता है फलस्वरूप प्रसूता को बुखार और हाथ पांव दर्द बना रहता है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए बथुआ के बीज 10 ग्राम और अजवायन 3 ग्राम मिलाकर आधा लिटर पानी में उबाल लें, आधा रह जाए तब इसे सुबह शाम 5 - 5 मिलीलीटर प्रसूता को दें बहुत आराम मिलेगा।
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