क्या हैं जलवायु परिवर्तन ::-
पिछलें तीन चार दशकों से पृथ्वी के वातावरण में मानवीय क्रियाकलापों के कारण कार्बन डाई आँक्साइड़,मिथेन,नाइट्रस आँक्साइड़,क्लोरो फ्लोंरों कार्बन आदि गैसों की वज़ह से पृथ्वी के तापमान में एक से दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हो गई है फलस्वरूप मौसम चक्र में भारी परिवर्तन हुआ हैं और असमय बाढ़,हिमपात,चक्रवात आनें लगे हैं,यह स्थिती जलवायु परिवर्तन से निर्मित हुई हैं.
जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ |
स्वास्थ पर प्रभाव::-
१.ध्रुवों की बर्फ पिघलनें की दर अत्यधिक बढ़ जानें से मिठे पानी के स्त्रोंत सिमटते जा रहें हैं,फलस्वरूप आने वालें दशकों में बढ़ती हुई आबादी को पीनें का पानी उपलब्ध नहीं होगा.एशिया ,अफ्रीका,लेटिन अमेरिकी देशों में तो पानी के लियें युद्ध तक हो सकता हैं.
२. बढ़तें तापमान का असर पेड़ पौधों पर पर भी हो रहा हैं,फलस्वरूप फलदार वृक्ष अपना पेटर्न बदल रहें हैं,भारतीय देशी आम इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं,जो एक साल छोड़कर फल देनें लगा हैं,इसकी वज़ह से कुपोषण बढ़ेगा.
३. फसलों की पैदावार कम होगी क्योंकि दुनिया की महत्वपूर्ण खाद्य फसल चावल और गेंहूँ एक निश्चित तापक्रम पर बढ़ती और पकती हैं,फलस्वरूप भूखमरी फैलेगी.
४.जलवायु परिवर्तन सें रोगों के जीवाणु अपना डी.एन.ए.बदल रहें हैं,जिससे मानव नित नयी-नयी बीमारींयों की चपेट़ में आ रहा हैं.डेँगू, जीका,स्वाईन फ्लू इसका सबसे बड़ा और सटीक उदाहरण हैं.
५. तूफान लगातार और अधिक तीव्रता से आनें लगें हैं फलस्वरूप मानवीय हानि बढ़ रही हैं.
७.विश्व के छोटे द्धीप जलमग्न होनें की कगार पर हैं और वहॉ के निवासी गंभीर संकट में पड़ेगें जिससे निपटना संयुक्त राष्ट्र के लियें भी चुनोतीं होगा.
८.कार्बन मोनो आँक्साइड़ गैस के अधिक उत्सर्जन से साँस और फेफडों से संबधित बीमारीयॉ जैसे अस्थमा का अधिक प्रसार होगा.
बचाव के उपाय::-
यदि हमें हमारी प्रथ्वी को बचाना हैं,तो जलवायु परिवर्तन से निपट़नें के लियें गंभीर प्रयास करनें होगें जिनमें
१.पेंड़ पौधा का अधिकाधिक रोपण.
२. जैविक खेती को बढ़ावा देना होगा.
३. ऐसे उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देना जिनके निर्माण में पर्यावरणीय मानको का प्रयोग किया गया हो और जो पर्यावरण संरक्षण में सहयोग दें जैसें प्लास्टिक की जगह मिट्टी के बर्तनों का उपयोग.
४.वाहनों के प्रयोग में सार्वजनिक परिवहन को वरीयता.
५.ऊर्जा के लियें स्वच्छ प्रोधोगिकी के इस्तेमाल को प्रोत्साहन देना.
उपरोक्त प्रयासों को यदि हम ईमानदारी से करनें लगें तो एक बेहतर समाज और रहनें योग्य पर्यावरण के निर्माण में मदद मिलेंगी.
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