आज हम अस्थमा के आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक इलाज के बारे मे चर्चा करेंगें अस्थमा आधुनिक चिकित्सा जगत के सामने सबसे जटिल व्याधि के रूप मे विधमान हैं आज आधुनिक चिकित्सा पद्ति या एलोपैथी अस्थमा को पू्र्णत: समाप्त करने मे सझम नहीं हैं किन्तु आयुर्वैद और होम्योपैथी हजारों वषों वषों पूर्व से इसको समूल समाप्त करने का विधान करता हैं हमारें रिषि - मुनियों ने पृाचीन गृन्थों मे मे इसे कफजनित बीमारीं के रूप वर्णित किया हैं यदि अस्थमा के आयुर्वेदिक उपचार की बात करें तो
१.श्वास पृणाली में शोथ (inflammation) खत्म करने वाली औषधि दी जाती हैं जिससे रोगी खुलकर श्वास ले सके.
२. बलगम बाहर निकालने वाली औषधि का पृयोग किया जाता हैं .
३.इसके अलावा कुछ विशेष जडीं- बूटियां और आयुर्वैदिक औषधि जैसे चंदृकांत रस श्वास कुठार रस पुर्ननवा को विशेष अनुपात मे मिलाकर रोगी को दिया जाता हैं.
यदि इन औषधियों को लगातार ३-४ महिनों तक पृयोग किया जाता हैं तो अस्थमा का पूर्ण रोकथाम सभंव है.
• शहद और पिप्लली एक एक चम्मच सुबह दोपहर शाम लेनें से अस्थमा में आराम मिलता हैं ।
• तीन चम्मच कटेरी के रस में एक एक चुटकी सौंठ,काली मिर्च और पिप्पली मिलाकर सुबह शाम सेवन करनें से खाँसी के साथ होनें वाले अस्थमा में आराम मिलता हैं ।
• एक चम्मच बहेड़ा का चूर्ण एक चम्मच शहद मिलाकर लेनें से पेट में गैस के साथ होनें वाले अस्थमा में आराम मिलता हैं ।
• अडूसा पत्र, हल्दी,गिलोय और कटेरी का फल इन तीनों को समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनाकर सुबह दोपहर रात में गरम गरम 20 मिलीलीटर पीयें । अस्थमा में बहुत फायदा होगा ।
• अस्थमा के तीव्र दौरे में एक चम्मच लहसुन का रस गर्म पानी के साथ मिलाकर पीनें से अस्थमा के दौरो में राहत मिलती हैं ।
• हल्दी को तवे पर सेंक ले और इसे मुंह में रखकर चूलें इससे अस्थमा के दोरें कम हो जातें हैं ।
• एक चम्मच सैंधा नमक 100 मिलीलीटर सरसों तेल में गर्म कर छाती पर मालिश करें इससे अस्थमा नियत्रिंत होता हैं और श्वास नलिकाओं की सूजन समाप्त होती हैं ।
• अस्थमा के तीव्र दौरो में तीन चार चम्मच यूकेलिप्टस तेल को गर्म पानी में डालकर भाप लें । और इस गर्म पानी से निचोकर एक तौलिया सीने पर रखें,इससे छाती की मांसपेशयों में लचीलापन आकर श्वसन प्रणाली सुचारू बनती हैं ।
अस्थमा होनें पर क्या नहीं करना चाहिए
• अस्थमा रोगी को रोग को बढानें वाली चीजों जैसें दही,केला,आइस्क्रीम, खट्टे पदार्थ आदि के सेवन नहीं करना चाहिए ।
• अस्थमा रोगी को उन चीजों से बचने का प्रयास करना चाहिए जिनसे कि अस्थमा होनें की संभावना होती हैं जैसें धूल,धुँआ,फूलों के परागकण,तीव्र खूशबू,आदि ।
• अधिक प्रदूषण में यदि घर के बाहर निकल रहें हो तो मुंह पर मास्क अनिवार्य रूप से पहनकर निकलें ।
बच्चों में अस्थमा और उसका होम्योपैथिक इलाज
श्वसनिक दमा एक ऐसा रोग है जिसमें एलर्जी अथवा संक्रमण के कारण श्वसनियों अथवा श्वास नलियों में सिकुड़न पैदा होती है जिससे खांसी तथा साँस लेने में कठिनाई होती है।
दमा या अस्थमा दो प्रकार का होता है :
• बहिस्थ (बाह्य) दमा : यह किसी प्रकार के एलर्जन अथवा एलर्जी उत्पन्न करने वाले पदार्थ के सम्पर्क में आने से उत्पन्न होता है।
• अंतःस्थ (आंतरिक ) दमा : यह संक्रमण द्वारा उत्पन्न होता है ।
लगभग 75-80 प्रतिशत दमे से पीड़ित बच्चों में किसी न किसी प्रकार की ऐलर्जी पाई जाती है।
दमा का कारण
1. बाह्य (घर से बाहर) कारण : पेड़ पौधों के परागकणों अथवा कटी हुई घास एवं मिट्टी आदि के संपर्क में आने से ।
भीतरी (घर के अंदर) कारण : पालतू जानवरों के बालों अथवा पंखों, कालीन तथा दरियों में पड़ी धूल के कणों, काकरोच शमन आदि तथा घर के अंदर की धूल, मिट्टी आदि के संपर्क में आने से ।
2. ठंडे मौसम में अधिक शारीरिक क्रियाएं जैसे दौड़ना और खेलकूद आदि से।
3. ऊपरी श्वसन तंत्र के संक्रमण, जैसे -जुकाम अथवा फ्लू इत्यादि ।
4. मानसिक तनाव ।
5. क्षोभक पदार्थ जैसे ठंडी हवा, तेज गंध तथा रसायनिक स्प्रे जैसे- इत्र, पेंट (रंग रोगन) तथा सफाई में प्रयोग होने वाले द्रव्य आदि। चॉक, धूल मिट्टी, मैदान तथा लॉन आदि में छिड़के जाने वाली दवाइयाँ, मौसम में बदलाव, सिगरेट एवं तम्बाकू का धुआँ आदि ।
अस्थमा के लक्षण
• सांस लेने में तकलीफ होना ।
• खांसी ।
• व्हीजिंग सांस लेते समय सीटी जैसी आवाज आना ।
• छाती में दबाव महसूस होना ।
उपरोक्त लक्षण अलग-अलग व्यक्तियों में भिन्न हो सकते हैं अथवा एक ही व्यक्ति में अलग- अलग समय पर विभिन्न रूप से प्रदर्शित हो सकते हैं। किसी व्यक्ति में उपरोक्त सभी लक्षण हो सकते हैं अथवा किसी - किसी में केवल खांसी एवं सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
अस्थमा से बचाव के उपाय
1. प्रकोपक कारणों से बचाव करें।
2. यदि मरीज को निम्नलिखित लक्षण हों, तो उसे तुरंत अस्पताल में भर्ती करने की आवश्यकता पड़ सकती है।
• अनियंत्रित खांसी तथा सांस लेने में तकलीफ होना ।
• छाती में दबाव तथा जकड़न महसूस होना ।
• सांस लेने में ज्यादा कठिनाई ।
होम्योपैथी इस समस्या में किस प्रकार लाभदायक है :
• शरीर की प्रतिरक्षक (प्रतिरोधक) क्षमता को बढ़ाती है।
● औषधियों के कोई दुष्प्रभाव नहीं होते ।
• आगे होने वाले प्रकोप की तीव्रता एवं बारम्बारता को कम करती हैं।
निम्नलिखित होम्योपैथिक औषधियां नवीन उत्पन्न श्वसनिका दमे के प्राथमिक उपचार में प्रयोग की जाती हैं। परन्तु किसी भी होम्योपैथिक औषधि के प्रयोग से पहले किसी योग्य होम्योपैथिक चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।
इपिकाकुन्हा 30
• अचानक घुटन तथा सांस लेने में तकलीफ होना ।
• खांसी के साथ लगातार घुटन का आभास तथा
उल्टी होना ।
छाती में बलगम (कफ) का एहसास होने पर भी खांसी करने पर कफ बाहर न आना ।
• प्यास में कमी के साथ मुँह में अत्यधिक लार बहना ।
आर्सेनिक एल्बम 30
• आधी रात्रि के समय सांस लेने में अधिक कठिनाई होना
घुटन होने के भय से लेटने में परेशानी होना । • बार-बार परन्तु कम मात्रा में पानी पीने की इच्छा होना।
• बेचैनी एवं मृत्यु का भय होना।
नेट्रम सल्फ्यूरिकम 30
आर्द्रता अथवा नमी वाले मौसम में दमे की तकलीफ होना।
• खांसते हुए छाती को पकड़ कर सहारा देने की इच्छा होना ।
• गाढ़ी, लेसदार एवं हरी बलगम ।
नक्स वाहिका 30
• दमे के साथ साथ पाचन में गड़बड़ी ।
सुबह के समय, खाने के बाद अथवा क्रोधित
होने के बाद लक्षणों में वृद्धि
शुष्क मौसम में लक्षणों में वृद्धि । आर्द्रता एवं नमी वाले मौसम में लक्षणों में सुधार होना ।
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