सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

गुड़मार के औषधीय गुण, खेती और परिचय। Gymnema sylvestre

गुड़मार। Gymnema sylvestre

गुड़मार का कुल : Asclepiadaceae


गुड़मार का आयुर्वेदिक नाम : मेषश्रृंगी


गुड़मार का संस्कृत नाम : मधुनाशिनी, शार्दूनिका, विषाणी


गुड़मार का हिन्दी नाम : गुड़मार


 गुड़मार का यूनानी नाम : गुड़मार बूटी


गुड़मार का चीनी नाम : Chigeng teng


गुड़मार का अंग्रेजी नाम : Gymnema, Australian cowplant, Periploca of the woods, Miracle plant, Sugar destroyer


गुड़मार का वैज्ञानिक नाम: Gymnema sylvestre 


गुड़मार की रासायनिक संरचना 


गुड़मार की पत्तियों में oleannine तथा dammarene श्रेणी के triterpene saponin पाये जाते हैं। गुड़मार में पाये जाने वाले रासायनिक अवयवों में सर्वाधिक गुणकारी अवयव जिम्नेमिक एसिड (Gymnemic acid) तथा गुड़मारिन (Gudmarin) हैं। 

इनके अतिरिक्ति इसमें विभिन्न प्रकार के gymnemasites, flavones, anthraquinones, hentriacontane, pentatriacontane, a & B- chlorophylls, phytin, resins, a quercetol, lupeol, stigmasterol, choline, betaine, gymnemagenins, B amyron से संबंधित ग्लूकोसाइड्स, टार्टरिक एसिड, फार्मिक एसिड, ब्यूटिरिक एसिड तथा कैल्शियम ऑक्जेलेट की उपस्थिति भी पाई गई है।


गुड़मार के औषधीय गुण


गुड़मार की पत्तियों का आयुर्वेद, यूनानी, सिद्धा, होम्योपैथी तथा अन्य पारम्परिक चिकित्सा पद्धतियों में मधुमेह , मलेरिया, सर्पदंश, खांसी, दमा, नेत्र रोगों, दंतक्षय, रक्ताल्पता, हृदय रोगों, अस्थि सुषिरता (osteoporosis), अपच, पीलिया, अर्श, श्वेतकुष्ठ, मूत्रशर्करा, मियादी बुखार, रोगाणु संक्रमण इत्यादि रोगो के उपचार तथा परिवार नियोजन हेतु उपयोग किया जाता है। मधुमेह की देशी औषधियों के निर्माण में इसका उपयोग व्यापक रूप से किया जाता है।

गुड़मार की पत्तियों में पाया जाने वाला जिम्नेमिक एसिड जीभ की स्वाद कलिकाओं पर शक्कर के प्रापको (Sugar receptors) को अवरोधित कर देता हैं जिसके कारण गुड़मार की पत्तियों को चबाने के पश्चात कुछ समय तक मीठे स्वाद का अनुभव ही नहीं होता है तथा इससे मीठी चीज को खाने की इच्छा समाप्त हो जाती है। यह रक्त शर्करा के स्तर को कम करता है, इंसुलिन निर्माण को बढ़ाता है तथा इसके श्राव को उत्तेजित करता है।

यह आंतों में शर्करा अवशोषण को कम करता है। साथ ही यह रक्त में कोलेस्टेरोल तथा एल.डी.एल. के स्तर को कम करता है जिससे हृदय रोगों का खतरा कम हो जाता है। यह अग्न्याशय (pancreas) में द्वीप कोशिकाओं (islet cells) के पुनरूत्पादन में सहायता करता है। यह यकृत मे वसा के एकत्र होने को रोकता है और शरीर का वजन बढ़ने तथा मोटापे पर नियंत्रण में सहायता करता है। 

टैनिन्स तथा सेपोनिन्स की उपस्थिति सूजन को कम करने में सहायता करती है। यह पाचन तंत्र को उत्तेजित करता है तथा भूख को नियंत्रित करता है। इसमें रेचक तथा वमनकारी गुण भी पाये जाते हैं। इनके अलावा गुड़मार मे विषहारी, मूत्रवर्धक, रोगाणुरोधी, यकृतरक्षक, कैंसररोधी, प्रतिरक्षा तंत्र उत्तेजक, पीड़ा नाशक, ज्वररोधी, कृमिनाशक, स्तम्भक एवं घावों को भरने वाले गुण भी पाये जाते है ।


गुड़मार का पौधा कहां पाया जाता हैं

गुड़मार भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिण पूर्व एशिया, पूर्वी एशिया,अरब प्रायद्वीप अफ्रीका तथा आस्ट्रेलिया के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती हैं।

भारत में यह मध्य भारत तथा प्रायद्वीप भारत के सभी राज्यों में प्राकृतिक वन क्षेत्रों में समीपवर्ती वृक्षों एवं झाड़ियों के तनों के सहारे लिपटी हुई पाई जाती हैं।


गुड़मार पौधा कैसा दिखता हैं 

गुड़मार की पत्तियां, गुड़मार का पौधा,
गुड़मार 


गुडमार एक बहुवर्षीय, बहुशाखित, बड़ी, रोमिल, काष्ठीय लता है। इसकी पत्तियाँ 3-5 से.मी. लम्बी तथा 1-3 से.मी. चौड़ी होती है। पत्तियों का डंठल लगभग 6-13 मि.मी. लम्बा होता है। पत्तियाँ विपरीत क्रम में लगी होती है। पत्तियाँ रोमिल, आधार पर गोलाकार अथवा हृदयाकार होती है तथा किनारे पर नुकीली होती हैं। पुष्पन अक्टूबर से जनवरी तक एवं फलन मार्च से मई के बीच होता है। पुष्प छोटे, पीले, छत्राकार गुच्छों में लगते है। बीज 1.3 से... मी. लम्बे, चपटे, अंडाकार, पीले भूरे रंग के होते है।

गुड़मार के बीज 

गुड़मार के बीज
गुड़मार के बीज 


गुड़मार के बीजों की जीवन क्षमता (viability) कम होती है, अतः इसका प्रवर्धन सामान्यतया 1 वर्ष पुराने पौधे के तने की कटिंग्स, जिसमें 3 से 4 गाँठें (nodes) हों, द्वारा किया जाता है। कटिंग्स का रोपण फरवरी मार्च में करने से अच्छे परिणाम प्राप्त होते हैं। इसकी जड़ों की कटिंग्स को भी प्रवर्धन सामग्री के रूप में उपयोग किया जाता है। जड़ों की कटिंग्स का रोपण जून-जुलाई में करना चाहिए। गुड़मार के पौधे टिश्यू कल्चर से भी तैयार किए जा सकते हैं।

गुड़मार पौधा किस जलवायु और मिट्टी में उगता हैं 


रेतीली-दोमट मिट्टी इसकी खेती के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है परन्तु इसे अन्य प्रकार की मृदाओं, यहाँ तक कि पथरीले क्षेत्रों में भी लगाया जा सकता है। समशीतोष्ण तथा उपोष्ण जलवायु में इसकी खेती की जा सकती है।

नर्सरी तकनीक


नर्सरी में पौधे कटिंग्स अथवा बीज से तैयार किए जा सकते हैं। कटिंग्स से पौधे तैयार करने के लिए स्टायरोफोम ट्रे अथवा पोलीथीन थैली में मिट्टी, रेत तथा गोबर खाद का 1:2:1 अनुपात में मिश्रण भर कर उन्हे तैयार किया जाता है। गोबर खाद के स्थान पर कम्पोस्ट / वर्मी कम्पोस्ट का भी उपयोग किया जा सकता है। फरवरी-मार्च में कटिंग्स को इन ट्रेज अथवा पोलीथीन थैलियों में लगा देते है। कटिंग्स को लगाने के पूर्व IBA के 100 ppm घोल में 6 मिनट तक डुबा कर रखना चाहिए।

रोपण अंतराल एवं पौध सामग्री की आवश्यकता


गुड़मार के रोपण हेतु अनुकूलतम अंतराल 1 मी. X 1.5 मी. पाया गया है। अतः प्रति हेक्टेयर लगभग 66667 पौधे लगेंगे। पौधों की जीवितता 80% मानते हुए प्रति हेक्टेयर कुल लगभग 80,000 पौधो की आवश्यकता होगी।

गुड़मार के पौधे लगाने से पहले खेत की तैयारी 


रोपण के पूर्व खेत की जून माह में गहरी जुताई कर समस्त खरपतवार को निकाल देना चाहिए। जुताई के समय ही खेत में 10 टन प्रति हेक्टेयर गोबर खाद भी मिला देना चाहिए। पौधा रोपण हेतु खेत में 1 मी. X 1.5 मी. अंतराल पर 40 से.मी. X 40 से.मी. X 40 सें. मी. आकार के गड्ढे भी खोदे जा सकते है। गड्ढ़ों में मिट्टी, रेत तथा गोबर खाद का मिश्रण भरा जा सकता है।

गुड़मार के पौधों का रोपण 


कटिंग्स अथवा बीज से तैयार पौधों को, जिनमें जड़ों का विकास हो चुका हो, को मानसून के आगमन के पश्चात जून से अगस्त माह के मध्य खेत में गैंती की सहायता से रोपित किया जा सकता है। 

अन्तर्वर्ती फसलें


गुड़मार एक लता है तथा उसे आरोहण हेतु सहारे की आवश्यकता होती हैं। अतः खेत में एक या दो वर्ष पूर्व किसी वृक्ष प्रजाति जैसे:- आँवला, बेल, खमेर, सहजन इत्यादि का रोपण करने से इन वृक्ष प्रजातियों के पौधों के सहारे गुड़मार की लताओं को आरोहण करने में सुविधा मिलेगी।

रखरखाव


समय-समय पर आवश्यकतानुसार खरपतावर नियंत्रण हेतु खेत में निंदाई-गुड़ाई की जानी चाहिए। प्रमुखतः वर्षा ऋतु के दौरान तथा वर्षा काल की समाप्ति उपरान्त निंदाई करना आवश्यक होता है।

 इसी प्रकार आवश्यकतानुसार शुष्क मौसम में समय-समय पर सिंचाई भी करना चाहिए। प्रति वर्ष प्रति हेक्टेयर 10-12 टन गोबर खाद / कम्पोस्ट / वर्मीकम्पोस्ट तथा 250 कि.ग्रा. NPK उर्वरक भी देना चाहिए।

फसल तैयार होना 


रोपण के एक वर्ष पश्चात पत्तियाँ विदोहन योग्य हो जाती हैं। प्रत्येक 3 माह के अंतराल पर पत्तियों की तुड़ाई की जा सकती है।


पत्तियों की तुड़ाई के पश्चात इन्हें छायादार स्थान पर सुखाना चाहिए। सूखी पत्तियाँ जिनमें आर्द्रता 8% से कम हो, को पॉलीथीन थैलियों में भरकर रखना चाहिए।

गुड़मार की उपज 


प्रति हेक्टेयर प्रति तिमाही लगभग 1250 कि.ग्रा. (शुष्क भार) पत्तियाँ प्राप्त होती है।


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट...

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri...

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से म...