वात-पित्त-कफ प्रकृति के लक्षण vat pitt kaf prakriti ke laxan
वात-पित्त-कफ प्रकृति |
आयुर्वेद चिकित्सा त्रिदोष सिद्धांत के आधार पर रोगी का उपचार करती हैं ,इस त्रिदोष सिद्धांत के अनुसार मनुष्य के शरीर में वात पित्त और कफ के असंतुलन की वजह से बीमारियां उत्पन्न होती हैं । आईए जानते हैं वात पित्त और कफ प्रकृति के लक्षण
वात प्रकृति के लक्षण
वातस्तुरूक्षलघुचलबहुशीघ्रशीतपरुषविशदस्तस्यरौक्ष्याद्धातलारूक्षापचिताल्पशरीरा:प्रततरूक्षक्षामभिन्नसक्तजर्जरस्वराजागरुकाश्चभवन्तिलघुत्वाच्चलघुचपलगतिचेष्टाहारविहारा:चलत्वादनवस्थितसन्ध्यक्षिभ्रूहन्वाष्ठजिहाशिर:स्कन्धपाणिपादा:बहुत्वाइहुप्रलापकण्डराशिराप्रताना:शीघ्रत्वाच्छीघ्रसमारम्भक्षोभविकारा:शीघ्रोत्रासरागविरागा:श्रुतग्राहिण:अल्पस्मृतयश्चशैत्याच्छीतासहिष्णव:प्रततशीतकोद्धैपकस्तम्भा:पारूष्यात्परूषकेशष्मश्रुरोमनखदसनवदनपाणिपादाग्डावैशघात्स्फुटिताग्डावयवा:सततसन्धिशब्दगामिनश्चभवन्ति तऍवगुणयोगाद्धातला:परायेणाल्प्पबलाश्चल्पापत्याश्वाल्पसाधनाश्वाधन्याश्चधन्याश्च ।।
श्लोक के अनुसार वात प्रकृति वायु (Air) या आकाश से संबंधित हैं । वायु का स्वभाव हल्का,रूखा,चल,बहुल, शीघ्र,शीत पुरुष और विश्व गुण वाला होता हैं । वात प्रकृति मनुष्य का शरीर वायु के समान ,दुबला पतला और रूखा सा रहता हैं । वात प्रकृति के व्यक्तियों की आवाज़ तेज होती हैं वे जल्दी जल्दी बोलते हैं, और थोड़ी जर्जर होती हैं ।
वात प्रकृति के लोगों में नींद का अभाव होता हैं अर्थात इन्हें नींद कम आती है । वात प्रकृति होने के कारण ये फुर्तीले, वाचाल,और कम भोजन करने वाले होते हैं ।
वात प्रकृति के कारण इनके शरीर के जोड़,हड्डीयां,हाथ पांव सिर ताकतवर नहीं होतें हैं और ये फड़कते अधिक है । इन्हें अवसाद, बातों को भूलना जैसी बीमारी अधिक होती हैं। इनके मन में वैरागपन अधिक आता हैं ।
वात प्रकृति के व्यक्ति में वात के शीत गुण हो तो वे शीघ्रता से ठंड को ग्रहण कर लेते हैं ऐसे व्यक्ति को शरीर में कंपकंपी अधिक होती हैं । यदि वात के कठोर गुण होते हैं तो ऐसे व्यक्ति के बाल,रोम, नाखून, दांत, मुंह,हाथ, पांव कठोर होते हैं ।
वात प्रकृति के व्यक्ति बहुत अच्छे धावक,तैराक,और ऐसे खेलों में निपुण होते हैं जहां ताकत से ज्यादा फुर्ती की ज़रूरत होती हैं ।
पित्त प्रकृति के लक्षण
पित्तमुष्णंतीक्ष्णंद्रवंविस्नमम्लंकटुकश्च।तस्यौष्णायातपित्तलाभवन्तिउष्णासहा:शुष्कसुकुमारावदातगात्रा:प्रभूतपिल्पुव्यहतिलकपिडका:क्षुत्पिपासावन्त:क्षिप्रवलीपलितखालित्यदोषा:।प्रायोमृद्धल्पकपिलश्मश्रुलोमकेशा:तैक्ष्ण्यात्तीक्ष्णपराक्रमा:तीक्ष्णाग्नय:प्रभूताशनपाना:क्लेशसहिष्णवोदन्दशूका:द्रवत्वाच्छिथिलमृदुसन्धिबन्धमांसा:प्रभूतसृष्टस्वेदमूत्रपुरीषाश्चविस्नत्वात।प्रभूतपूतिवक्ष:कक्षस्कन्धास्यशिर:शरीरगन्धा:कटुम्लत्वादल्पशुक्रव्यवायापत्या: ।तयवंणुणयोगात्पित्तलामध्बलामध्यायुषोमध्यज्ञानविज्ञानवित्तोपकरणवन्तश्चभवन्ति।।
आयुर्वेद ग्रंथों में पित्त प्रकृति के व्यक्तियों वर्णन करते हुए कहा गया है कि पित्त प्रकृति का व्यक्ति स्वभाव में गुस्सैल प्रकृति का,तेज और जल्दी ही उत्तेजित होने वाला होता हैं । ऐसे व्यक्तियों को गर्मी सहन नहीं होती हैं ।
रोगों की बात करें तो ऐसे व्यक्तियों को खुजली होना,असमय बाल सफेद होना , गंजापन जैसी समस्या अधिक होती हैं ।
पित्त के अधिक गुण होने से ऐसे व्यक्ति पराक्रमी होते हैं, ये अधिक भोजन और जल ग्रहण करने वाले होते हैं । और अधिक अन्न खाने के बाद शीघ्रता से पचाने वाले होते हैं । इन्हें मल मूत्र और पसीना बहुत अधिक आता हैं ।
पित्त प्रकृति के व्यक्ति बुद्धिमान, एकाग्रता से कार्यों को संपन्न करने वाले और न्यायप्रिय होते हैं । ऐसे व्यक्ति
कफ प्रकृति के लक्षण
श्लेेष्मा्मााहििस्नि्नििग्ध्धश्लक्ष्णमृदुमधुरसारसान्द्रमंदस्तिमितगुरूशीतविज्जलाच्छ:अस्यस्नेहाच्छेष्मला:स्निग्धाग्डा:श्लक्ष्णत्वाच्छक्ष्णाग्डा:मृदुत्वादृष्टिसुखसुकुमारावदातशरीरा:माधुर्य्यात्परभूतशुक्रव्यवायापत्या:सारत्वात सारसंहतस्थिरशशीरासान्द्रत्वादुपचितपरिपूर्णसर्वगात्रा:मन्दत्वान्मन्दचेष्टाहारविहारा:स्तैमित्यादशीघ्रारम्भक्षोभविकारा:गुरूत्वात्साराधिष्ठितगतय:शैत्यादल्पक्षुतृष्णासन्तापस्वेददोषा:विज्जलत्वातसुश्लिष्टसारबन्धसन्धाना:तथाच्छत्वात्प्रसन्नदर्शनाननना:प्रसन्नस्निग्धवर्णस्वरश्चभवन्ति।तयेवंगुणयोगाचष्मलाबलवन्तोवसुमन्तोविधावन्तऒजस्विन:शान्ताआयुष्मन्तश्चभवन्ति
कफ प्रकृति का व्यक्ति शीतल प्रकृति का स्वभाव में शांतचित्त और बलवान होता हैं । कफ प्रकृति के शीतल होने से कफ प्रकृति का व्यक्ति शीत जनित रोगों से आसानी से ग्रस्त हो जाता हैं । ऐसे व्यक्ति तनाव को आसानी से झेल लेते हैं और बहुत अच्छे नेतृत्वकर्ता होते हैं।
कफ प्रकृति के व्यक्तियों की आवाज़ भारी, गंभीर और स्पष्ट होती हैं । कफ प्रकृति के व्यक्ति निशानेबाज, पहलवान, शतरंज तथा ऐसे खेल जिसमें धैर्य और ताकत के संतुलन की जरूरत होती हैं के उत्तम खिलाड़ी होते हैं।
आयुर्वेद चिकित्सा ग्रन्थों में इन्हीं तीनों प्रकृतियों के आधार पर रोगों की परीक्षा कर किसी विशेष प्रकृति के असंतुलन का निर्णय किया जाता हैं । वात पित्त और कफ के असंतुलन या साम्यावस्था का निर्णय नाडी परीक्षा द्वारा किया जाता हैं। कुशल वैध नाड़ी पकड़ कर तुरंत ही निर्णय कर लेते हैं कि रोगी में किस प्रकृति का असंतुलन हैं।
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