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हर्ड इम्यूनिटी । herd immunity क्या है ? । क्या कोरोनावायरस से बचाव का सही तरीका यही है

हर्ड इम्यूनिटी herd immunity :: क्या कोरोनावायरस से बचाव का सही तरीका यही है ? Herd immunity kya hoti hai

हर्ड इम्यूनिटी
 हर्ड इम्यूनिटी


भारत समेत पूरी दुनिया कोरोनावायरस से पीड़ित हैं,दिन प्रतिदिन कोविड़ 19 बीमारी से निपटने के लिए नयी नयी औषधियों का अविष्कार करने का प्रयास किया जा रहा है वहीं अनेक विशेषज्ञों ने हर्ड इम्यूनिटी द्वारा भी कोरोनावायरस से निपटने की सलाह दी है। आईये जानतें हैं हर्ड इम्यूनिटी क्या होती हैं 

हर्ड इम्यूनिटी क्या है Herd immunity kya hai


हर्ड (Herd) का हिंदी अनुवाद Herd immunity ka hindi anuvad झुंड होता है। इसी हर्ड से हर्ड  का प्रादुर्भाव हुआ है । इसी प्रकार इम्यूनिटी ( IMMUNITY ) का अर्थ शरीर विज्ञान के सन्दर्भ में रोग प्रतिरोधक क्षमता से है । अर्थात हर्ड इम्यूनिटी या झुंड प्रतिरोधक क्षमता चिकित्सा विज्ञान की वह अवधारणा है जिसमें जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा या तो टीकाकरण द्वारा या किसी महामारी द्वारा प्राकृतिक रुप से संक्रमित होकर उस बीमारी के प्रति रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है ‌। 


अलग-अलग बीमारियों के लिए हर्ड इम्यूनिटी का स्तर अलग-अलग होता है जैसे मीजल्स के लिए 90 से 95 प्रतिशत , डेंगू के लिए 50 प्रतिशत और कोविड़ 19 के लिए 60 से 92 प्रतिशत है ।

स्तर से तात्पर्य आबादी के अनुपात से है जिसमें आबादी बीमारी से संक्रमित होकर  उस बीमारी के प्रति इम्यूनिटी प्राप्त करती हैं ।

हर्ड इम्यूनिटी द्वारा बीमारी का फैलाव नियंत्रित और जनसंख्या के बड़े भाग की जान को बचाया जा सकता है ।

हर्ड इम्यूनिटी कैसे प्राप्त होती हैं 


हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने के दो तरीके हैं प्रथम टीकाकरण और दूसरा प्राकृतिक रूप से

टीकाकरण 

बड़ी आबादी का टीकाकरण करके हर्ड इम्यूनिटी को प्राप्त किया जाता है। इस तरह की इम्यूनिटी चेचक, पोलियो,खसरा आदि बीमारियों का टीकाकरण कर प्राप्त की जा चुकी हैं ।

प्राकृतिक रुप से


प्राकृतिक रुप से हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का सीधा सरल तरीका अनलॉक से जुड़ा है अर्थात सम्पूर्ण आबादी को बीमारी से संक्रमित होने दिया जाये जब यह  आबादी संक्रमित होकर ठीक होगी तो  संक्रमण के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होने से संक्रमण की श्रृंखला टूट जायेगी । 

क्या हर्ड इम्यूनिटी द्वारा किसी बीमारी का फैलाव रोका जा सकता है ?


पूरी दुनिया में इस बात को लेकर ज़ोरदार बहस चल रही है कि क्या वास्तव में प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी द्वारा महामारी के प्रसार को रोका जा सकता है ? या महामारी का टीकाकरण ही एकमात्र विकल्प है। प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी के समर्थकों का तर्क है कि यदि मानव जाति को बार बार महामारी की विभीषिका से बचाना है तो प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी ही एकमात्र विकल्प है क्योंकि वायरस जनित बीमारीयां लगातार अपना स्ट्रेन बदलकर टीकाकरण अभियान को फैल करती रहेगी,सार्स,H1N1,इबोला ‌,और अब कोरोनावायरस,एक का टीका बना तो दूसरी वायरस जनित बीमारी अपना स्ट्रेन बदलकर नये रुप में मानवता के समक्ष चुनौती प्रस्तुत कर रही हैं। 

पैदा होने के बाद से ही टीकाकरण चालू होता है और किशोर अवस्था तक मनुष्य कई प्रकार के टीके लगवाता हैं और आजकल तो वयस्क टीकाकरण भी होने लगा है। क्या मनुष्य का शरीर इतने टीकाकरण के दुष्प्रभाव नहीं झेलता है ?

दूसरी ओर टीकाकरण अभियान के समर्थकों का कहना है कि प्राकृतिक तरीके से हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का सीधा सा मतलब है डार्विन के योग्यतम की उत्तरजिवीता सिद्धांत का अनुपालन करना यानि कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता वाले को मरने के लिए छोड़ दिया जाये। क्या 21 सदी के उन्नतशील चिकित्सा वैज्ञानिक समुदाय के लिए यह धारणा उचित है । और क्या यह अवधारणा मनुष्य के जीवन जीने की स्वतंत्रता और उसके मानवाधिकार का अतिक्रमण नहीं है ।

वैसे भी हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने के लिए न्यूनतम 60% आबादी का संक्रमित होना आवश्यक है । लेकिन भारत जैसे देश में जहां 85% महिलाएं और किशोरियां रक्ताल्पता से ग्रसित है, तथा आबादी का बड़ा हिस्सा मधुमेह, ह्रदय रोग, उच्च रक्तचाप जैसी गंभीर बीमारियों से जूझ रहा है। ऐसे में क्या इनकी जान जोखिम में डालकर प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करना उचित होगा ।

अब तक कितनी बीमारियों के प्रति हमनें प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त की है ? और इस दौरान कितना जनविनाश हुआ है ? महामारीयों में जिंदा बचे लोगों के अनुभव सुनें तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। एक बुजुर्ग ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि हैजा महामारी के दौरान 700 की आबादी वाला मेरे पूरे गांव में 200 से ज्यादा मौतें हुई थी । 

दूसरी ओर टीकाकरण समर्थक विचारधारा का मानना है कि अब तक जितनी भी बीमारियों के प्रति हर्ड इम्यूनिटी विकसित हुई हैं वह टीकाकरण अभियानों की वजह से ही हुई हैं,चाहे वह पोलियो हो या चेचक,खसरा हो या काली खांसी।

कोरोनावायरस महामारी के दौरान हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने वाला देश कोंन है ?



कोरोनावायरस महामारी के दौरान चीन, ब्रिटेन आदि देशों ने हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का दावा किया लेकिन बाद में जब हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने के बाद भी कई लोग फिर से संक्रमित हो गये तो इस पर विवाद भी खूब हुआ ।

अभी हाल ही में स्वीडन ने दावा किया कि उसकी राजधानी स्टाकहोम ने हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर ली हैं ।


डॉ.सोम्या स्वामीनाथन हर्ड इम्यूनिटी के बारें में क्या विचार रखती हैं 

डॉ.सोम्या स्वामीनाथन जो कि विश्व स्वास्थ्य संगठन की प्रमुख वैज्ञानिक हैं का मानना है कि दुनिया को कोरोनावायरस महामारी से प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने में बहुत लम्बा वक्त लगेगा क्योंकि अभी पूरी दुनिया में मात्र 5 से 10 प्रतिशत आबादी ही कोरोनावायरस से संक्रमित हुई हैं और जब तक प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी का स्तर प्राप्त होगा तब तक कोरोनावायरस कमज़ोर प्रतिरोधक क्षमता वाले लाखों लोगों को कालकलवित कर चुका होगा । 

डॉ.सोम्या स्वामीनाथन के मुताबिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का सबसे उत्तम तरीका टीकाकरण ही हैं । 

बीटा वायरस 


अनेक विशेषज्ञों का मानना है कि भारत में फैला कोरोनावायरस बीटा किस्म का है जो कि पश्चिमी देशों, अमेरिका, यूरोप आदि में फैले वायरस के मुकाबले कम शक्तिशाली है अतः इस वायरस के विरुद्ध हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करना ज्यादा आसान है।

हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का नया तरीका क्या हो सकता हैं ?


हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का एक नया तरीका भी हो सकता हैं , यदि हम जनसंख्या को विभिन्न आयु वर्गों में बांट दें और उसके बाद अनलॉक की प्रक्रिया शुरू करें तो प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने में बहुत आसानी होगी, उदाहरण के लिए  18 से 35 आयु वर्ग को काम भेजा जाये और संक्रमित होने दिया जाये तो यह वर्ग बहुत जल्दी प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर लेगा । 

35 से ऊपर आयु वर्ग को उसी दशा में काम पर भेजा जाये जब इस वर्ग का सदस्य पूर्णत स्वस्थ हो अस्वस्थ होने पर इस वर्ग के सदस्यों को काम पर नहीं भेजा जाये । इस वर्ग के सदस्यों द्वारा हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर लेने का सीधा अर्थ होगा हर्ड इम्यूनिटी का स्तर प्राप्त हो गया। भारत जैसे देश में जहां 35 वर्ष से कम आयु की 65 प्रतिशत आबादी निवास करती हो यह तकनीक बहुत कारगर साबित हो सकती हैं । और इस तकनीक से अस्पतालों, स्वास्थ्यकर्मी और सरकारों पर कोरोनावायरस से ग्रसित गंभीर मरीजों का दबाव भी कम हो सकता हैं ।

प्रिंसटन यूनिवर्सिटी और सेंटर फॉर डिजीज डायनामिक्स एंड पालिसी के शोधकर्ताओं ने भी भारत में प्राकृतिक हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने की इस तकनीक पर भरोसा जताया है।

क्या चीन के अनुभव से सीखा जा सकता हैं 


करोनावायरस चीन के वुहान शहर से पूरी दुनिया में फैला था, दिसम्बर 2019 से जुलाई 2020 तक यह शहर कोरोनावायरस को बहुत हद तक नियंत्रित कर चुका था। इस नियंत्रण के पिछे मुख्यत: सोशल डिस्टेंसिंग और लाकडाउन का ही हाथ रहा है । 

इसके अलावा मास टेस्टिंग के द्वारा भी समुदाय में वायरस फैलने की गति को पहचान कर उचित स्वास्थगत कदम उठाए जा सकते हैं।

लम्बा लाकडाउन किसी भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए उचित नहीं है लेकिन सोशल डिस्टेंसिंग और मास टेस्टिंग के द्वारा भारत कोरोनावायरस से आसानी से निपट सकता हैं ‌।

क्या भारत वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर सकता हैं ?


Indian counsil of medical research ( ICMR) का कहना है कि भारत में कोरोनावायरस महामारी के फैलने के चार चरण है ।

पहले चरण में विदेश से भारत आए लोगों द्वारा संक्रमण फैलाने वाले लोग सम्मिलित हैं

दूसरे चरण में वे लोग शामिल हैं जिन्हें विदेश से आए लोगों ने संक्रमित किया है और वे अपने समुदाय में संक्रमण फैलाते हैं।


तीसरे चरण में वे लोग सम्मिलित हैं जिनके संक्रमित होने के स्त्रोत का पता नहीं चल पाता है। अर्थात संक्रमण सामुदायिक स्तर तक पहुंच गया है ।

चौथे चरण में संक्रमण समुदाय स्तर आगे निकल कर आबादी के बहुत बड़े वर्ग को संक्रमित कर दें और व्यक्ति में बीमारी से लड़कर प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाए ।

ICMR के अनुसार यही चोथै चरण का संक्रमण स्तर हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने के लिए आदर्श होता है लेकिन बात फिर वही आ जाती हैं की इंसान की जान इतनी सस्ती नहीं है कि कम प्रतिरोधक क्षमता वाले को मरने के लिए छोड़ दिया जाए।


विशेषज्ञ डॉक्टरों का मानना है कि हर्ड इम्यूनिटी herd immunity प्राप्त करने के लिए भारत को युवा आबादी पर फोकस करना चाहिए और सीनियर सेकेंडरी स्कूल ,और कालेज खोल देना चाहिए ताकि युवा आबादी संक्रमित होकर हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त कर सकें ।

लेकिन इस सिद्धांत पर भी प्रश्न खड़े हो रहे हैं अनेक वैज्ञानिक संस्थान कह रहे हैं कि भारत बहुत बड़ी आबादी वाला देश है जहां अब तक 15% आबादी भी संक्रमित नहीं हुई हैं और बड़ी आबादी का संक्रमित होने का मतलब है बड़ा जोखिम जो कि भारत की स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए बहुत ख़तरनाक साबित हो सकता हैं। 
हर्ड इम्यूनिटी का सिद्धांत कम आबादी वाले देशों के लिए उपयुक्त हो सकता हैं लेकिन भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए नहीं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर्ड इम्यूनिटी प्राप्त करने का सीधा सरल रास्ता टीकाकरण अभियान ही हैं । और यह रास्ता कारगर भी है ।

सीरो सर्वे


दिल्ली में 27 जून से 14 जुलाई 2020 के मध्य सीरो सर्वे हुआ जिसके मुताबिक दिल्ली की 23% आबादी यानि 40 लाख लोगों में एंटीबाडी विकसित हो चुकी हैं । 

बड़ी आबादी में एंटीबाडी antibody विकसित होने का मतलब यह माना जाए कि कोरोनावायरस के खिलाफ शरीर में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो चुकी हैं । 

 आंकड़ों के मुताबिक जून 2020 में दिल्ली में 4000 केस रोज आ रहें थे लेकिन जुलाई 2020 तक यह संख्या 2000 प्रतिदिन से भी कम हो गई। 


महामारी विशेषज्ञों का कहना है कि मनुष्य में एंटीबाडी विकसित होने का यह बिल्कुल मतलब नहीं है कि महामारी समाप्त हो गई है क्योंकि कोरोनावायरस अपना रुप लगातार बदलकर उन लोगों को भी दोबारा संक्रमित कर रहा है जो कोरोनावायरस से संक्रमित हो चुके हैं।

कोरोनावायरस के आंकड़ों में कमी आनें का एक महत्वपूर्ण कारण लाकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का कड़ाई से पालन भी है।

कोरोनावायरस नई नस्ल Corona virus new strain :::


भारत में एक ओर कोरोनावायरस फैलनें की रफ्तार धीरें धीरें कम हो रही हैं । वहीं सूदूर यूरोप के देशों जैसें इटली, डेनमार्क ,नीदरलैंड और आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका में कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन Corona virus new strain नें आमजनों के साथ चिकित्सा विशेषज्ञों को गंभीर चिंता में डाल दिया हैं । क्योंकि कोरोनावायरस का यह नया स्ट्रेन corona virus new strain पहले के कोरोनावायरस से 70 प्रतिशत अधिक संक्रामक है । तो आईयें जानतें हैं कोरोनावायरस के स्ट्रेन में बदलाव किस प्रकार का आया हैं ।

कोरोनावायरस का नया स्ट्रेन Corona virus new strain


कोरोनावायरस के नए स्ट्रेन में बदलाव मुख्यत: वासरस के स्पाइक प्रोटीन spike protien से जुड़ा हुआ हैं । स्पाइक प्रोटीन वायरस की बाहरी संरचना होती हैं जो मनुष्य की स्वस्थ्य  कोशिकाओं से चिपककर उन्हें संक्रमित कर देती हैं । 


ब्रिटेन के शोधकर्ताओं नें कोरोनावायरस वायरस के इस नए बदलाव को या म्यूटेशन को N 501 Y नाम दिया हैं । जो ब्रिटेन के 11 सौ लोगो में पाया गया है । 

कोरोनावायरस में बदलाव क्यों हो रहा हैं ?


कोरोनावायरस सार्स कोविड 2 सिंगल आरएनए वायरस हैं ।  इस वायरस में बदलाव तब होता हैं जब वायरस अपनी कापी बनानें में गलती करता हैं । इस वायरस के स्ट्रेन में बदलाव की वजह अन्य वायरस की तरह ही बहुत सामान्य हैं जिसमें वायरस कुछ समय बाद अपना स्वरूप बदलकर सामनें आता हैं ।

क्या इस समस्या के बाद कोरोनावायरस वैक्सीन निष्प्रभावी हो जाएगी ?


जी नहीं, माडर्न,फाइजर,और आक्सफोर्ड यूनिवर्सटी की एस्ट्रोजेनेका वैक्सीन स्पाइक प्रोटीन को Target करते हुए बनी हैं । इन वैक्सीन के लगने के बाद जो एँटीबाडी Antibody बनती हैं वह स्पाइक प्रोटीन को नष्ट कर वायरस को बढ़ने से रोकती हैं । अत: यह कहना की वायरस की संरचना में बदलाव के बाद वैक्सीन निष्प्रभावी हो जाएगी बहुत जल्दबाजी होगी । हाँ,इतना जरूर हैं कि कोरोनावायरस का नया स्ट्रेन पुरानें वायरस के मुकाबले बहुत अधिक संक्रामक है ।


वैज्ञानिकों का मत हैं कि चाहें कोरोनावायरस हो या अन्य वायरस इनमें बदलाव या म्यूटेशन की प्रक्रिया चलती रहेगी हमारा प्रतिरक्षा तंत्र नए वायरस के प्रति सक्रिय होकर वायरस को खत्म कर देगा या फिर वैक्सीन वायरस को फैलने से रोकेगी ।

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