सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

शहद प्रकृति द्धारा मनुष्य को दिया अनुपम अमृत हैं.Honey nature's gift for mankind

शहद के बारें में जानकारी::-

मधुमक्खी का रस
शहद

 शहद प्रकृति द्धारा मनुष्य को दिया अनुपम अमृत हैं.लगभग सभी प्राचीन धर्म ग्रन्थों जैसें rigveda,कुरान,बाइबिल और एंजिल में शहद (honey) का व्यापक और विशद वर्णन मिलता हैं.

शहद मधुमक्खीयों द्धारा फूलों (flower) के रस को छत्तों में एकत्रित करनें से बनता हैं.लगभग आधा कि.ग्रा.शहद तैयार करनें में मधुमक्खीयों को लगभग 37 लाख बार उड़ान भरनी पड़ती हैं.

वनों और फूलों की प्रकृति के आधार शहद की प्रकृति रंग,गंध तथा स्वाद में भिन्नता होती हैं जैसें नीम फूलों के रस की अधिकता होनें पर शहद पतला,गहरे रंग का और स्वाद में कड़वा या कसेलापन लिये होता हैं.

सरसों,गेंदा,गुलाब, सेब के फूलों की अधिकता होनें पर शहद गाढ़ा,स्वाद में मिस्री जैसा और गाय के घी समान पीलापन लियें होता हैं.

शहद के बारें में वर्णन करतें हुयें भारतीय ग्रन्थ शालीग्राम निघण्टु लिखता हैं.

माक्षिक तैलवर्ष स्वादघृत वर्णन्तु पौत्तिकम क्षोद्रं कपिल वर्ष स्वाच्छेत भ्रामर सुच्यते
अर्थात माक्षिक शहद तैलवर्ण का एँव पतला,पैत्तिक शहद घृतवर्ण व गाढ़ा,क्षौद्र शहद काले रंग का और भ्रामर शहद बहुत गाढ़ा,सफेद,स्वाद में मिस्री के समान ,पारदर्शक,और चमकदार होता हैं


कच्चा शहद और पक्का शहद क्या होता हैं


आयुर्वेदाचार्यों के मुताबिक शहद मुख्यत: दो प्रकार का होता हैं,कच्चा शहद और पक्का शहद.कच्चा पतला,खट्टापन लियें और पानी की तरह होता हैं.पक्का शहद गाढ़ा, स्वाद में मीठापन लियें और कालेपन लिये होता हैं.

शुद्ध शहद को कैसे पहचानें :


आजकल शुद्ध शहद के नाम पर गुड़ की चासनी,शक्कर और ग्लूकोज बेचनें वालों की कमी नहीं हैं,ऐसे में शुद्ध शहद की पहचान आवश्यक हैं.

1.पानी से भरें बर्तन में यदि शहद की बूँद टपकायी जावें तो बूँदें ज्यों कि त्यों तली में बैठ जाती हैं,जबकि मिलावटी शहद की बूँदें फैल जाती हैं.

2.शुद्ध शहद तुरन्त आग पकड़ लेता हैं.

3.शुद्ध शहद खानें पर ठंड़क का अहसास होता हैं.

4.शुद्ध शहद और चूना को मिलाकर हाथ पर रगड़ा जावें तो हथेली में असहनीय गरमाहट़ पैदा होती हैं.

5. शुद्ध शहद को कुत्तें कभी नहीं खातें हैं.

6. शहद को आँखों में लगानें पर यदि जलन का अहसास हो तो शहद शुद्ध होता हैं.
 



7.शुद्ध शहद को आँखो में  काजल की भाँँति  लगाया जाये तो थोड़ी  देेर आँख़ों में जलन होती हैं उसके बाद आँँखों मेें ठंड़क पड जाती हैं ।



8.मक्खी या मच्छर शुद्ध शहद में से बाहर निकल जाता हैं जबकि अशुद्ध शहद में फंसकर मर जाता हैं ।






संघट़न :::



Glucose.           fructose.        sucrose

   50%.                    37%.                 2%


Maltose.          Dextrose.         gum

    2%.                     2%.                   2%

   Vax.                             chlorophyll

     2%.                                      2%


इन तत्वों के अलावा शहद में विटामीन A,विटामीन B6 ,विटामिन B12,विटामीन K,आयरन, फास्फोरस,पोटेशियम, आयोडिन,सोड़ियम,गंधक,मैंगनीज तथा विटामिन C पर्याप्त मात्रा में उपस्थित रहतें हैं.

इसके अतिरिक्त शहद एन्टीसेप्टि़क गुणों,जल,एमिनों एसिड़ से भरपूर रहता हैं.


शहद का औषधीय  उपयोग::-



० शहद अत्यधिक कीट़ाणुनाशक प्रकृति का होता हैं इसमें लाखों वर्षों बाद भी कीट़ाणु नहीं पनप सकते इसका प्रमाण मिस्र (Egypt) में पाई गयी ममी mumy हैं,जिसके सिरहानें रखा शहद गुणों की दृष्टिकोण से ज्यों का त्यों मिला हैं.यही कारण हैं कि शहद में पेचिस (dysentery) और  मोतीझरा (typhoid) के जीवाणु एक घंट़े से ज्यादा जीवित नहीं रहते हैं.


० बार- बार बेहोशी होती हों,अत्यधिक थकान होती हो तो सम भाग  शहद गुनगुने पानी के साथ सेवन करना चाहियें.


० तुरन्त ऊर्जा और स्फूर्ति प्राप्त करनें के लिये ठंड़े पानी के साथ 30 ग्राम शहद मिलाकर पीना चाहियें.



० यदि नींद नहीं आनें की समस्या हो तो निम्बू पानी में दस ग्राम शहद मिलाकर सेवन करना चाहियें.



० शरीर पर सूजन (swelling) होनें पर आंवला रस के साथ समभाग में मिलाकर नित्य सुबह शाम 15 ml.  सेवन करें.



संम्भोग क्षमता कम होनें पर 10 ml.शहद बारिश के पानी में मिलाकर सेवन करना चाहियें.अन्य दिनों में जब बरसात का पानी उपलब्ध नहीं हो ठंड़े दूध के साथ सेवन करें.



० शहद आयुर्वैदिक औषधियों की कार्यक्षमता दुगनी कर देता हैं यही कारण हैं,कि इसे मिलाकर औषधि सेवन करवाई जाती हैं.



मोट़ापा कम करनें हेतू शहद 15 ml.और अदरक रस 10 ml. मिलाकर नित्य खाली पेट सेवन करें.



० बच्चों के दाँत निकलतें समय यदि सुहागा और शहद मिलाकर बच्चों के मसूड़ों पर दिन में तीन चार बार मालिश की जावें तो दाँत शीघ्र और दर्दरहित निकलते हैं.


० खेलकूद में नाम की चाह रखनें वाले हर एक खिलाड़ी (sportsman) को रोज़ सुबह दोपहर शाम मिलाकर 40 ml. शहद का सेवन करना चाहियें परन्तु 40 ml. तक धिरें-धिरें कर पहुँचाना चाहियें सर्वप्रथम शुरूआत 10 ml. से करनी चाहियें.


० मासिक धर्म menstrual cycle  अनियमित होनें  पर 10 ml  शहद को गाय या बकरी के दूध में मिलाकर रोज़ रात को सोते समय सेवन करें.


० मासिक धर्म दर्दयुक्त आता हो तो मासिक अानें एक सप्ताह पूर्व 15 ml.शहद और दो-दो रज: प्रवर्तनी वट़ी  के साथ सेवन करें.


० किड़नी (kidney) सम्बंधित बीमारी में गुलर के रस के साथ समभाग शहद मिलाकर सेवन करें.


शहद में विटामिन k  पाया जाता हैं जिससे यह रक्तस्त्राव को रोकता हैं.गर्भवती स्त्रीयाँ यदि शहद का नियमित रूप से सेवन करें तो भ्रूण से होनें वाले आन्तरिक रक्तस्त्राव की सम्भावना समाप्त हो जाती हैं.


० यह टीटनस (Titnus) की संभावना नगण्य कर देता हैं.


० प्रसव पश्चात गुनगुनें जल में दस बूँद मिलाकर प्रसूता को देनें से दूध अच्छा निकलता हैं व गुणवत्तापूर्ण रहता हैं.


संतानोंत्पति बाधित होनें पर आधा लीट़र पानी को 20 ग्राम अश्वगंधा मिलाकर चौथाई रहनें तक उबालें तत्पश्चात ठंड़ा कर 30 ml. शहद मिला लें अब इस मिस्रण को चार चम्मच रोज़ रात को सोतें समय मासिक स्त्राव बंद होनें के एक दिन बाद व शुरू होनें के एक दिन पहलें तक सेवन करें.


० शहद में प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता हैं,जो कि मस्तिष्क की कार्यपृणाली को सुचारू बनाकर पक्षाघात,डिमेंसिया जैसी समस्याओं से बचाता हैं.


० यदि गर्भवती स्त्रीयाँ नियमित रूप से शहद का सेवन करती हैं,तो सन्तान न केवल हष्ट पुष्ट होगी बल्कि गर्भावस्था के दोरान होनें वाली उल्टी भी नही होगी.


० इसमें उपस्थित गंधक और  त्वचा को कोमल,मुलायम और सदा जवान रखता हैं,इसके लियें शहद को मुलतानी मिट्टी, मलाई और दूध के साथ मिलाकर त्वचा पर लगाना चाहियें.


० सोतें समय ठन्डे दूध में मिलाकर इसका सेवन करनें से अनिद्रा [Insomnia]की समस्या ख़त्म हो जाती हैं.


० शहद में उपस्थित कैल्सियम बच्चों और बुजुर्गों के लिये अत्यन्त फायदेमंद रहता हैं,क्योंकि यह आंतों द्धारा तुरन्त अवशोषित हो जाता हैं.


० आदिवासी समाज मोंच आनें,हड्डीयों से संबधित समस्या होनें पर शहद का सेवन व इसकी पट्टी बांधनें को विशेष महत्व देता हैं.


० इसका एन्टीसेप्टिक गुण बिवाईया फटनें,खरोंच आनें पर इसे तुरन्त ठीक कर देता हैं.


० सोतें समय लिंग की मालिश करनें एँव स्त्रीयों को नाभि पर लगानें से कामवासना जागृत होती हैं.


० आँखों में शहद लगानें से आँखों की ज्योति बढ़ती हैं,तथा कभी - भी चश्मा लगानें की नोबत नही आती हैं.


० शहद का सेवन करनें से निमोनिया,टी.बी.तथा फेफडों से संबधित अन्य बीमारींयों में काफी लाभ मिलता हैं.


० शहद भरी बोतल में सूंघने से भी  अस्थमा  की समस्या दूर होती हैं क्योंकि शहद में पाया जाने वाला ईथर और अल्कोहल सांस की नलियों में मौजूद सूजन कम करता हैं ।


० प्राचीनकाल में मिस्र और भारतीय सभ्यताएँ शहद को मेहमानवाज़ी में प्रयुक्त करती थी,इसका scientific कारण भी था,चूँकि प्राचीन समय में यात्रा ज्यादातर पैदल ही तय की जाती थी और यात्री बहुत थक जाते थे .अत: शहद के सेवन से तुरन्त ही स्फूर्ति आ जाती थी क्योंकि शहद आँतों के ऊपरी भाग से अभिशोषित होता हैं,और शोषित होनें के उपरांत मस्तिष्क और माँसपेशियों में चला जाता हैं,जहाँ लाइक्रोजन में परिवर्तित हो जाता हैं,जिससे थकान तुरंत ही दूर होकर मन मस्तिष्क तरोताजा हो जाता हैं.


० सांस की बदबू आने पर दो चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी को गुनगुने पानी मे मिला कर कुल्ले करने से मुंह से बदबू आना बन्द हो जाती हैं ।


० मधुमेह रोगियों को भी शहद बहुत फायदा पहुंचाता हैं । मधुमेह रोगी को 10 ग्राम शहद 10 ग्राम त्रिफला के साथ मिलाकर लेना चाहिए ।


० उच्च रक्तचाप की समस्या होने पर शहद को लहसुन के साथ सेवन करना चाहिए।


० पुराना शहद एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता हैं , इसके नियमित सेवन से कोशिकाओं की उम्र लम्बी होती हैं जो अन्ततः मनुष्य की लम्बी उम्र में सहायक हैं ।


० शहद बालों के लिये भी बहुत फायदेमंद रहता हैं इसके लिये इसे बालों में लगाकर कुछ समय धो लेने से बाल मुलायम और चमकदार बनते हैं ।

० शहद खानें से आँतों की कार्यप्रणाली में सुधार आता हैं ।

० शहद में जिंक पाया जाता हैं जो शरीर में निर्जलीकरण और दस्त को रोकता हैं ।


० शहद में निम्बू रस मिलाकर एक बूंद आँखों में अंजन करने से मोतियाबिंद नहीं होता हैं ।


० पीलिया रोग में शहद पानी में मिलाकर दिन में तीन चार बार पीलायें पीलिया रोग बहुत जल्दी समाप्त हो जाता हैं ।


० शहद में मौजूद पोटेशियम,सोडियम, फास्फोरस टैकीकार्डिया या ह्रदय की अनियमित धडकन को नियमित करता हैं अतः जिन लोगों को टैकीकार्डिया की समस्या हैं उन्हें प्रतिदिन सुबह शाम एक चम्मच शहद का सेवन करना चाहिए।


० शहद में मोजूद कीटाणुनाशक प्रकृति के कारण शहद टाइफाइड़ रोग को बहुत जल्दी समाप्त करता हैं।यदि टाइफाइड़ रोग से पीड़ित व्यक्ति को गुनगुने पानी में चार पाँच चम्मच शहद मिलाकर दिन में चार पांच बार सेवन करावाया जाए तो बहुत जल्दी आराम मिलता हैं ।



० रात को सोते समय यदि बच्चें को एक चम्मच शहद चटाया जाए तो वह रात को बिस्तर गीला नहीं करेगा ।

० शहद में मौजूद फ्लेवेनाइड और एंटीऑक्सीडेंट कैंसर होने की संभावना कम कर देते हैं।

० न्यूजीलैंड में हुए एक रिसर्च के मुताबिक शहद में प्राकृतिक हाइड्रोजन पराक्साइड पाया जाता है जो एंटी बेक्टेरियल,एंटी फंगल गुणों से भरपूर होता है अतः शहद के सेवन से बेक्टेरियल और फंगल रोगों से बचाव होता है।

आयुर्वैद में शहद को योगवाही कहा गया हैं,अर्थात इसका प्रभाव गर्म औषधि के साथ करनें पर गर्म और ठंड़ी के साथ करनें पर ठंड़ा होता हैं.


गर्म पानी नींबू और शहद एक साथ पीना चाहिए या नहीं 




शहद की प्रकृति गर्म होती हैं अतः  पित्त प्रकृति के व्यक्ति यदि गर्म पानी नींबू और शहद एक साथ मिलाकर पीते है तो इससे उन्हें स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां आ सकती हैं इसके विपरित कफ, और वात प्रकृति के व्यक्तियों को यह फायदा पहुंचाता हैं। अतः किसी अच्छे वैद्य से अपनी प्रकृति निर्धारित करवाकर ही गर्म पानी नींबू और शहद का सेवन करना चाहिए।




शहद को चाय काॅफी के साथ मिलाकर भी नहीं पीना चाहियें ऐसा करनें से घबराहट और पेटदर्द की समस्या आ सकती हैं ।


शहद को मांसाहार के साथ भी नहीं मिलाना चाहिए ऐसा करनें से विषाक्त तत्व बनतें हैं जो लिवर,किडनी और आँखों के लिए बहुत नुकसानदायक साबित होतें हैं ।


शहद को मूली के साथ मिलाना भी बहुत घातक होता हैं अत: शहद और मूली का सेवन भी नहीं करें ।

यह भी पढ़ें 👇












टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट...

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri...

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से म...