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पर्यटन स्थल ग्वालियर और ओरछा [ PARYATAN STHAL GWALIOR AUR ORCHA]

 पर्यटन स्थल ग्वालियर और ओरछा  

पर्यटन स्थल

                  ।।। ग्वालियर ।।।


ग्वालियर मध्यप्रदेश के पूर्वी भाग में स्थित एक एतिहासिक नगर हैं । यहाँ अनेक राजवंशों ने राज किया जिनमे प्रतिहार , कछवाह और तोमर वंश विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन राजवंशो ने राजप्रसाद ,मन्दिर,और स्मारकों को बनाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था । इसके अतिरिक्त अनेक कवियों ,संगीतकारों ,और साधु संतों ने अपने योगदान से इस नगर को अधिकाधिक समृद्धिऔर सम्पनता दी ।

आज यह नगर भारत के प्रमुख शहरों में शुमार किया जाता हैं जीवन की स्पंदन और हलचल से ओतप्रेत यह नगर देशी विदेशी पर्यटकों के लिये सदैव आकर्षण का केन्द्र रहा हैं ।



●ग्वालियर का इतिहास :::


आठवी शताब्दी में सूरज सेन नामक राजा यहाँ राज करता था । वह एक बार वह भयंकर बीमारी से ग्रस्त हो गया अनेक वैधों से इलाज करवाने के बाद भी जब वह निरोग नही हुआ तो वह ग्वालिपा नामक एक साधु की शरण में गया यह साधु एकांतवास में जीवन व्यतीत करता था । साधु की कृपा से सूरज सेन निरोग हो गया कृतज्ञता स्वरूप सूरज सेन ने इस नगर का नामकरण उन्ही के नाम पर कर दिया ।


ग्वालियर के दर्शनीय स्थल :::


1.ग्वालियर का किला 

किला
 ग्वालियर का किला

ग्वालियर का किला पूरे शहर की अपेक्षा ऊँचे स्थान पर हैं  जहाँ से समूचा शहर बहुत ही खूबसूरत दिखाई देता हैं । इस किले का निर्माण राजा सूरज सेन ने सन 525 में कराया था । यह किला बलुए की चट्टानों को काटकर बनाया हैं । इस किले में चट्टानों को काटकर तराशी गयी जैन तीर्थकरों की मुर्तिया लगी हैं । किले की बाहय प्राचीर कारीगरी का सर्वोत्कृष्ट नमूना हैं । इस प्राचीर की लम्बाई 2 मिल और ऊँचाई 35 फीट तक हैं । 

 ग्वालियर के किले में राजा मानसिंह तोमर द्वारा सन 1486 से 1516 के मध्य निर्मित हाथी की एक विशाल प्रतिमा स्थापित हैं ।

प्राचीन काल में यह भारत का सबसे अभेद्य दुर्ग था इसी कारण ग्वालियर के किले को " जिब्राल्टर ऑफ़ इंडिया " कहा जाता हैं । बाबर ग्वालियर के किले क़ो "दुर्गों का मोती " कहता था ।



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2.गूजरी महल :::

महल
 गूजरी महल

गूजरी महल ग्वालियर के किले में स्थित हैं । इस महल का निर्माण राजा मानसिंह तोमर ने 15 शताब्दी में अपनी गुर्जर रानी मृगनयनी के सम्मान में कराया था । इस महल का बाहरी रूप आज भी जस का तस हैं ।जबकि भीतरी भाग में प्राचीन पुरातात्विक संग्राहल संचालित किया जा रहा हैं जिसमे प्रथम सदी तक की प्राचीन दुर्लभ वस्तुओं का संग्रह हैं ।  इसमें विशेष दर्शनीय ग्यारसपुर की शालाब्न्जिका की मूर्ति हैं  ।  पाषण प्रतिमा होते हुए भी इसमें मोनालिसा की पेंटिंग के समान मनमोहक मुस्कान बिखरी हुई हैं । 

इसके अतिरिक्त यहाँ नटराज प्रतिमा ,वामनावतार प्रतिमा भी रखी गई हैं ।

3.मानमंदिर महल :::

ग्वालियर
 मान मन्दिर

मानमंदिर महल का निर्माण सन 1486 से 1517 के बीच राजा मानसिंह तोमर ने कराया था । इस महल की सुंदर नक्काशी और जालीदार खिडकिया मानमंदिर को अलग ही शोभा प्रदान करते हैं । इस महल के विशाल कक्ष किसी समय संगीत प्रेमी राजा मानसिंह तोमर की संगीत महफ़िलो से सजा करते थे । इन कक्षों में बैठकर रानिया भी संगीत आचार्यों से संगीत बीकी बारिकियों को सीखा करती थी ।

निचे वृत्ताकार काल कोठरियों में मुगलों के जमाने में राजकेदी रहा करते थे  ओरंगजेब ने अपने भाई मुराद को यही केद कर फाँसी पर चढ़ाया था । इसी के निकट ज़ोहर सरोवर हैं जहाँ राजपूत रानियाँ युद्ध में मारे गये पतियों के साथ ज़ोहर कर लेती थी ताकि उनका सतीत्व अक्षुण्य रहे । यहाँ राजपूत रानियाँ सामूहिक ज़ोहर कर लेती थी ।

यहाँ शाम होते ही लाइट एंड साउंड की रंगारंग प्रस्तुति होती हैं जो देखने वालों को मन्त्र मुग्ध कर देती हैं और आँखों के सामने ग्वालियर का गोरवमयी अतीत पुन:जीवित हो जाता हैं ।




4.सूरज कुंड :::


यह कुंड 425 ईसा पूर्व का हैं  । इस कुंड के आसपास ही 15 वी शताब्दी में दुर्ग का निर्माण हुआ था किसी समय यह कुंड बहुत विशाल रहा होगा । यही वह कुंड हैं जहाँ संत ग्वालिपा की कृपा से सूरज सेन या सूरजपाल रोगमुक्त हुए थे ।


5.तेली का मंदिर :::
ग्वालियर
तेली का मन्दिर


 दक्षिण भारतीय शैली का यह मन्दिर भगवान विष्णु को समर्पित हैं । इसका निर्माण राष्ट्रकूट शासकों ने कराया था ।100 फीट ऊँचा यह मंदिर विभिन्न स्थापत्य कला का बेजोड़ मिश्रण हैं । इसकी छत विशिष्ठ द्रविड़ शैली में निर्मित हैं वहीं शृंगारिक अलंकरण उत्तर भारतीय आर्य शैली का हैं । 


6.सास बहु का मंदिर :::
ग्वालियर किला
 सास बहू का मन्दिर


इस मंदिर का निर्माण 11 वी शताब्दी में महिपाल द्वारा कराया गया  था । यह मंदिर ग्वालियर किले के अंदर पूर्वी भाग की ओर स्थित हैं । यह मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित हैं । इस मंदिर के अंदर और बाहर की नक्काशी बहुत उत्तम कोटि की हैं । मंदिर के अंदर चोकोर आकार निर्मित हैं जिसके तीन ओर मंडप तथा एक ओर गर्भगृह स्थित हैं । गर्भगृह खाली हैं ।



7.जयविलास महल :::

ज्योतिरादित्य सिंधिया
 जय विलास महल

जयविलास महल सिंधिया राजवंश का निवास स्थान हैं । इस महल की शान- ओ- शौकत और वैभव देखते ही बनता हैं । इस महल के कुछ हिस्से को संग्रहालय में बदल दिया गया हैं ,यहाँ सिंधिया राजवंश से जुडी वस्तुएँँ रखी हुई हैं ।

जयविलास महल का स्थापत्य इतालवी शैली का हैं ,जिसमे टस्कन ओर कोरनीथियन वास्तुशैली का मेल हुआ हैं । इसके दरबार कक्ष में दो केन्द्रीय विशाल फानूस लटके हुए हैं ,जिनका वजन कई हजार क्विंटल हैं इन फानूसो को लटकाने से पहले दस हाथियों को इसकी  छत पर चढ़ाकर छत की  मजबूती का परीक्षण कराया गया था ।

इस महल की छत पर सुनहरी कड़ाई की गई हैं जबकी जमीन पर फारस की सुंदर कालीन बिछी हुई हैं । यहाँ के कलात्मक पर्दे फ्रांस और इटली का भव्य फर्नीचर इस महल के कक्षों के एश्वर्य को स्वंय बंया करते हैं ।

इस महल का एक विशेष आकर्षण चाँदी की रेलगाड़ी हैं जिसमे काँच के नक्काशीदार कक्ष हैं यह रेलगाड़ी  डाइनिंग टेबल के चारों और घुमकर यहाँ आने वाले अतिथियों को भोजन सामग्री परोसकर उनका सत्कार किया करती थी ।


यही पर काँच से निर्मित इटली का भव्य पालना हैं जिसमे बैठकर कृष्ण भगवान प्रत्येक जन्माष्टमी को झुला झूलते थे ।

इन सब के अतिरिक्त जयविलास महल में सिंधिया परिवार की अनेक व्यक्तिगत स्मृतियाँ रखी हुई हैं । सिंधिया संग्रहालय वास्तव में राजसी वैभव और गरिमा से ओतप्रोत तत्कालीन भारत की ऐश्वर्यवान संस्कृति और जीवनशैली की अनूठी तस्वीर प्रस्तुत करता हैं ।



8.तानसेन की समाधि :::


तानसेन उर्फ़ रामतनु पांडे अकबर के दरबार के नवरत्नों में थे । इस महान संगीतज्ञ को ग्वालियर में दफनाया गया था । उनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये यहाँ उनकी समाधि पर एक स्मारक बनाया गया हैं । यह स्मारक मुगलकालीन वास्तुकला और शिल्प का उत्कर्ष्ठ नमूना हैं ।

तानसेन की स्मृति को चिरस्थायी बनाने और उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करने हेतू मध्यप्रदेश के संस्कृति विभाग द्वारा यहाँ "अखिल भारतीय तानसेन संगीत समारोह " का आयोजन किया जाता हैं । जहाँ संगीतज्ञो द्वारा अपनी संगीत प्रतिभा का परिचय कराया जाता हैं । इस समारोह में लाखों संगीत प्रेमी तानसेन की समाधि पर माथा टेकने आते हैं ।




9.मोहम्मद गौस का मकबरा :::

ग्वालियर
 मोहम्मद गोस का मकबरा

मोहम्मद गोस सूफ़ी फ़कीर और तानसेन के गूरू थे ।इनका मकबरा  तानसेन की समाधि के पास ही हैं । यह एक अफगानी थे ।
यह मकबरा मुगल वास्तुकला और शिल्प का बेजोड़ नमूना हैं । बलुए पत्थर से निर्मित इस मकबरे की जालियों पर नक्काशीदार शिल्प कला हैं जो सेकड़ो सालों के बाद भी वेसी ही हैं । तानसेन की समाधि देखने वाला प्रत्येक व्यक्ति मोहम्मद गोस का मकबरा देखना नही भूलता ।


10.सूर्य मन्दिर ::


सूर्य मन्दिर नवनिर्मित रचना हैं किन्तु इस मन्दिर की ख्याति बहुत दूर दूर तक फेली हुई हैं । यह उड़ीसा के कोणार्क सूर्य मन्दिर की प्रतिकृति कर बनाया  गया हैं । जहाँ पुरातन गरिमा का एहसास होता हैं ।


11.नगर पालिका संग्रहालय ::


इस संग्रहालय में पुरातन वस्तुओं का अनुपम संग्रह हैं । इसमें रखी गयी वस्तुओं कों देखे बिना ग्वालियर की यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी ।


12.कला वीथिका :::


कला वीथिका देखना भी एक अभूतपूर्व अनुभव हैं । यहाँ सुंदर कलात्मक वस्तुओं का अद्भुत संग्रह हैं । इन वस्तुओ में ग्वालियर के साथ मध्यप्रदेश की शिल्प कला के दर्शन होते हैं ।


13. रानी लक्ष्मीबाई स्मारक :::
ग्वालियर
 रानी लक्ष्मीबाई स्मारक


रानी लक्ष्मीबाई भारतीय स्वतंत्रा समर की वीरांगना थी इनकी स्मृति को चिरस्थायी बनाने के लिये यहाँ स्मारक का निर्माण कराया गया हैं ।

इसी प्रकार का एक स्मारक वीर सेनानी तात्या टोपे का ग्वालियर में स्थापित हैं जहाँ  हर भारतीय माथा टेकने अवश्य जाता हैं ।


ग्वालियर कैसे पहुँचे :::




वायुयान सेवा  ✈



ग्वालियर देश के कुछ प्रमुख शहरों से निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों की वायुयान सेवाओं से जुड़ा हैं । और इनकी सेवाओं का उपयोग कर ग्वालियर आसानी से पहुँचा जा सकता हैं ।



रेल सेवा 🚆


ग्वालियर मध्य रेलवे के दिल्ली - मुंबई और दिल्ली - चेन्नई खंड पर पड़ता हैं । ग्वालियर देश के चारों कोनों से सुगमता पूर्वक पहुँचा जा सकता हैं । 


सड़क मार्ग 🚌


ग्वालियर राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 3 पर पड़ता हैं  जो आगरा को मुंबई से जोड़ता हैं । यह राजमार्ग देश के सबसे लम्बे राजमार्ग में से एक हैं । अत: सड़क मार्ग से भी ग्वालियर आसानी से पहुँचा जा सकता हैं ।


खानपान 🍽🥃☕


ग्वालियर में हर तरह का शाकाहारी और मांसाहारी भोजन आसानी और किफायती मूल्य के साथ उपलब्ध हैं । यहाँ दिसम्बर जनवरी में ग्वालियर मेला लगता हैं । इस मेले में दूर दूर प्रान्तों और विदेशी व्यंजनों के स्टाल लगते हैं । इन व्यंजनों का स्वाद लेने हेतू भारत और विदेशों से लोग आते हैं ।




तापमान 🏖


यहाँ सर्दियों में तापमान 6 से 7 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच और गर्मियों में 35 से 40 डिग्री सेंटीग्रेड के बीच रहता हैं । यहाँ घुमने का सबसे उत्तम समय जून से मार्च के बीच हैं ।



होटले 🏣


ग्वालियर में हर आय वर्ग के लिये उत्तम श्रेणी की होटल उपलब्ध हैं । जिनमे सरकारी और प्राइवेट क्षेत्र की होटले सम्मिलित हैं ।



                                        ।।। ओरछा ।।।




ओरछा  की स्थापना 16 वी शताब्दी में बुन्देल वंश के राजा रूद्रप्रताप ने की थी । बेतवा नदी के किनारे बसा यह नगर अपने महलों मन्दिरों और गोरवगाथा के लिये पुरे विश्व प्रसिद्ध हैं । ओरछा का सौन्दर्य पत्थरों से इस तरह
मुखरित हैं जैसे समय की शिला पर युगों - युगों के लिये एक समृद्ध विरासत के रुप में अंकित हो गया हो । इसके महलों के घनीभूत सौंदर्य को देखकर ऐसा लगता हैं मानों समय यहाँ विश्राम कर रहा हों । वर्तमान में ओरछा मध्यप्रदेश के टीकमगढ जिले में आता हैं ।

ओरछा को बुन्देलखण्ड की अयोध्या भी कहा जाता हैं और यहां के राजा भगवान राम हैं। इसके संबंध में जनश्रृति हैं कि एक बार ओरछा की महारानी कुंवर गणेश और महाराजा मधुकर शाह के बीच इस बात को लेकर विवाद हो गया था कि किसकी ईश्वर भक्ति श्रेष्ठ हैं चूंकि मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और महारानी गणेश राम भक्त थी अतः मधुकर शाह ने कुंवर गणेश को भगवान राम को अयोध्या से ओरछा लाने की चुनौती दी,इस पर कुंवर गणेश अयोध्या चली गई और वहां सरयू नदी के तट पर लगातार इक्कीस दिनों तक भगवान राम को अपने साथ ओरछा ले जाने हेतू तपस्या की । किन्तु इक्कीस दिनों की तपस्या के बाद भी जब भगवान राम प्रकट नहीं हुए तो रानी गणेश ने सरयू नदी के कूदकर जान देने की कोशिश की इस पर भगवान राम कुंवर गणेश की गोद में बाल रूप में प्रकट हुए और उन्होंने तीन शर्तों के साथ अयोध्या से ओरछा जानें की बात रखी। 

पहली ओरछा चलूंगा तो ओरछा का राजा मैं ही रहूंगा ।

दूसरी यह कि मैं केवल पुष्य नक्षत्र में यात्रा करूंगा।

तीसरी यह कि मुझे जहां बैठा दोगे वहां से नहीं उठूंगा और वही रहूंगा ।

यह घटना सन् 1630 की हैं, जब भगवान राम रानी गणेश के साथ अयोध्या से ओरछा आ रहे थे इस बीच राजा‌ने उनका भव्य मंदिर बनाना शुरू कर दिया किन्तु भगवान राम के ओरछा आने तक मंदिर पूरा नहीं बन सका था।


इस पर रानी ने भगवान राम को रसोईघर में बैठा दिया इसके बाद से ही भगवान राम राजा के रुप में यहीं विराजमान हो गये ।


तब से भगवान राम राजा राम के रूप में ओरछा में विराजमान हैं और रानी गणेश यहां की कौशल्या की उपमा दी गई।




                                          ।।। दर्शनीय स्थल ।।।




1.जहाँगीर  महल :::

ओरछा
जहाँगीर महल 

इस महल का निर्माण 17 वी शताब्दी में महाराजा जूदेव सिंह ने मुगल शासक जहाँगीर की ओरछा यात्रा की स्मृति स्वरूप कराया था । इस महल का स्थापत्य और जालियों में की गई नक्काशी असाधारण प्रकार की हैं ।इस महल के शीर्ष भाग में बनाई गयी छतरिया महल को वैभवशाली रूप प्रदान करती हैं ।

यहाँ से ओरछा के मन्दिरों का मनोहारी स्वरूप दिखाई देता हैं ।


2.राजा महल :::


इस महल का निर्माण राजा जूदेव सिंह के पूर्ववर्ती राजा मधुकर शाह ने कराया था। इस महल का भीतरी भाग सुंदर भित्ति चित्रों से भरा पड़ा हैं जो सदिया गुजर जाने के बाद भी जस की तस हैं । इन भित्ति चित्रों कों आध्यात्मिक विषयों में गुथकर दीवारों पर इस तरह उभारा गया हैं जिससे की देखने वाला मार्मिकता से भर उठता हैं ।

यहाँ की सुंदर छतरिया पर्यटकों को अपनी सादगी और सुन्दरता से पर्यटकों के दिल में अमिट छाप छोडती हैं ।


3.राय प्रवीण महल :::


राय प्रवीण महल ईंटो से बनी दो मंजिला इमारत हैं । इस महल में सुंदर बगीचा,अष्टकोणीय पुष्पकुँज और जलप्रदाय प्रणाली संरचना दर्शनीय हैं ।

राय प्रवीण महल राजा इन्द्रमणी और कवियत्री संगीतज्ञ राय प्रवीण की प्रणयगाथा का जीवंत उदाहरण हैं । राय प्रवीण की विद्वता पर राजा अकबर मोहित हो गया था और उसे दिल्ली आने का आदेश दे दिया किन्तु इन्द्रमणी के प्रति राय प्रवीण की आशक्ति ने अकबर को विवश कर दिया फलस्वरूप अकबर ने राय प्रवीण को पुन: ओरछा भेज दिया ।


4. राम राजा मन्दिर 🚩🚩🚩

ओरछा
राम राजा मन्दिर

यह एक महल था जिसे बाद में मन्दिर में बदल दिया गया इस महल के मन्दिर में रूपांतरित होंने के पीछे एक जनश्रुति यह भी  प्रचलित हैं कि राजा मधुकर शाह को स्वप्न में राम के दर्शन हुए और स्वप्न में ही उन्होंने राजा मधुकर शाह को निर्देश दिये की अयोध्या से मेरी मूर्ति लाकर यहाँ मेरा मन्दिर बनाया जाय ।

स्वप्न के मुताबिक राजा अयोध्या से मूर्ति लाये और प्राण प्रतिष्ठा से पूर्व मूर्ति को महल के एक स्थान में रखवा दिया गया जब प्राण प्रतिष्ठा के लिये मूर्ति को हटाया जाने लगा तो मूर्ति लाख कोशिशों के बाद भी नही उठ पाई ,तभी राजा को स्वप्न वाला निर्देश याद आया उसे कहा गया था की वह जिस जगह रखे जायेंगे उस स्थान से नही हटेंगे फलस्वरूप मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा इसी जगह की गई । और महल को मन्दिर का रुप दे दिया गया ।

राम की पूजा यहाँ राजा मानकर की जाती हैं ।

यह मन्दिर अपने गगनचुम्बी शिखर और वास्तुकला के लिये जाना जाता हैं । इसके शिखर दूर दूर से दिखाई देते हैं  ,और दूर से देखने पर बड़े मनोहारी प्रतीत होते हैं ।



5.चतुर्भुज मन्दिर 🚩🚩🚩

ओरछा
चतुर्भुज मन्दिर

यह मन्दिर अयोध्या से लाई गई राजा राम की मूर्ति स्थापना के लिये बनाया गया था किन्तु राम यहाँ विराजित नहीं हुए ।

यह मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना हैं मन्दिर तक पहुँचने हेतू सीढ़ियों का सहारा लेना पड़ता हैं । इस मन्दिर की दीवारों पर बनाये गये धार्मिक अलंकरण बहुत आकर्षक हैं । 


6.लक्ष्मी नारायण मन्दिर 🚩🚩🚩 

ओरछा
 लक्ष्मी नारायण मन्दिर

लक्ष्मी नारायण मन्दिर राजा राम मन्दिर के पास ही स्थित हैं ।
इस मन्दिर की वास्तुकला मन्दिर और दुर्ग शैली का अद्भुत समन्वयन हैं । मन्दिर की आन्तरिक दीवारों पर सुंदर भित्ति चित्र उकेरे गये हैं।  इन भित्ति चित्रों में सर्व धर्म समभाव को प्रदर्शित किया गया हैं ।

सदियाँँ गुजर जाने के बाद भी भी इस मन्दिर के भित्ति चित्र वैसे ही हैं जैसे सदियों पूर्व थे ।



7.फूलबाग :::



 फूलबाग बुन्देला राजाओं का ग्रीष्मकालीन शाही विश्रामगृह था । फूलबाग बुंदेला राजाओं के सोंदर्यबोध को प्रकट करने वाला बहुत सुंदर बगीचा हैं जिसके बीचों बीच फव्वारों की लम्बी कतार हैं । इस बाग में एक आठ खम्बों पर टिका भूमिगत महल हैं जिसमे छत से पानी की फुव्वारे आती हैं । 

यह महल तात्कालीन राजाओं की ऐश्वर्यशाली गाथा का परिचायक हैं ।



8.हरदौल महल  :::


यह महल बुन्देलखण्ड के जन जन के पूजनीय हरदौल को समर्पित हैं । हरदौल वीर सिंह देव जूदेव के छोटे पुत्र थे जिन्होंने अपने बड़े भाई द्वारा भाभी के प्रति गलत आरोप लगाने की वजह से प्राण त्याग कर अपनी पवित्रता का परिचय दिया ।

 जिस प्रकार राजस्थान और मालवा में पीर रामदेव को पूजा जाता हैं वैसे ही बुन्देलखण्ड का ऐसा कोई गाँव नही हैं जहाँ हरदौल के ओटले न बने हो । इन ओटलो पर  मनोती मांगी जाती हैं ।



9.सुन्दर महल :::


यह महल जुझारसिंह के पुत्र धजुर्बान समर्पित हैं । यह महल मुसलमानों की आस्था का केंद्र हैं क्योंकि धजुर्बान ने दिल्ली में एक मुस्लिम महिला से विवाह कर इस्लाम धर्म अपना लिया था। 

इस महल की स्थिति इतनी अच्छी नही हैं और यह खंडहर में बदलता जा रहा हैं ।


10.छतरियाँ ☂☂☂


ओरछा में राज करने वाले अनेक राजाओं का अंतिम संस्कार बेतवा नदी के किनारे किया गया और उनकी स्मृति में यहाँ छतरियों का निर्माण कराया गया था। इस तरह यहाँ कुल 14 छतरियाँ निर्मित की गयी हैं । इन छतरियों पर बैठकर बेतवा का कलकल सुनना और यहाँ के राजप्रसादों को देखना बहुत ही अविस्मरणीय पर्यटक अनुभव प्रदान करता हैं ।



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11.शहीद स्मारक :::


स्वतन्त्रता आन्दोलन के वीर चन्द्रशेखर आजाद सन 1926 से 1927 तक ओरछा में भेष बदलकर रहे थे । उन्होंने गुप्त रूप  से यहाँ से आजादी की लड़ाई का संचालन किया था ।

उनकी स्मृति में मध्यप्रदेश सरकार ने यहाँ स्मारक का निर्माण कराया हैं जिसमें शहीद चन्द्रशेखर आजाद की प्रतिमा स्थापित की गई हैं । 

इस स्मारक पर पहुँचकर आजादी के इस वीर को नमन करना हर भारतीय को देशप्रेम की भावना से ओत प्रोत कर देता हैं ।

इन स्मारकों के अतिरिक्त यहाँ सिद्धबाबा का स्थान,जुगलकिशोर मन्दिर,जानकी मन्दिर और ओह्रेद्वार का हनुमान मन्दिर महत्वपूर्ण दर्शनीय स्थल हैं ।



12.बेतवा नदी :::


यहाँ बहने वाली बेतवा नदी मध्यप्रदेश की महत्वपूर्ण नदी हैं । इस नदी में पर्यटकों की सुविधा हेतू बोट सुविधा साहसिक बोट राफ्टिंग उपलब्ध कराई गई हैं । यहाँ आने वाला पर्यटक बोट में बैठकर ओरछा के महलों और नदी के जलीय जन्तुओं को देखना नहीं भूलता हैं ।


ओरछा कैसे पहुँचे :::



वायुयान सेवा ✈✈✈


ओरछा वायुयान सेवा से नहीं जुड़ा हैं । यहाँ से निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर हैं जो यहाँ से 117 किमी हैं । इसके अलावा 170 किमी की दूरी पर खजुराहों हैं । यह दोनों स्थान देश के प्रमुख शहरों से नियमित वायुयान सेवा के माध्यम से जुड़े हैं ।

ग्वालियर और खजुराहों से बस या टैक्सी लेकर ओरछा आसानी से पहुँचा जा सकता हैं ।



रेल सेवा 🚉🚉🚉


ओरछा से 160 किमी दूर स्थित झाँसी रेलवे स्टेशन देश के प्रमुख शहरों से जुड़ा हैं । यहाँ देश के सभी कोनों से पहुँचा जा सकता हैं । 

झाँसी से नियमित बस सेवा ओरछा के लिये उपलब्ध हैं ।




सड़क मार्ग 🚌🚌🚌



ओरछा खजुराहों - झाँसी मार्ग पर पड़ता हैं । झाँसी खजुराहों और झाँसी ओरछा के बीच नियमित बस सेवा और टैक्सी सेवा उपलब्ध हैं ,जिनकी सहायता से आसानी से ओरछा पहुँचा जा सकता हैं ।



होटल 🏣🏣🏣


ओरछा में सरकारी और निजी क्षेत्र की होटले और कॉटेज उपलब्ध हैं । जहाँ गुणवत्तापूर्ण सुविधा उपलब्ध हैं  ।




खानपान 🥄☕🍽🥃


ओरछा में शाकाहारी और मांसाहारी भोजन उपलब्ध हैं । स्थानीय स्तर की छोटी दुकानों में बुन्देलखंडी व्यंजनों का आनन्द लिया जा सकता हैं ।



मौसम :::



ओरछा का तापमान गर्मियों में 48 डिग्री सेंटीग्रेड  तक पहुँच जाता हैं । तथा ठंड में यहाँ का तापमान 6 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता हैं ।

यहाँ घूमने का सबसे उपयुक्त समय जुलाई से मार्च के बीच हैं ।



० चौबीस खम्बा माता मंदिर उज्जैन




युनेस्को विश्व विरासत स्थल


युनेस्को [United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization ] ने ग्वालियर और ओरछा को अपने एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम Urban landscape City program के तहत World heritage City में शामिल किया हैं ।


इस कार्यक्रम के अन्तर्गत यूनेस्को और मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग इन स्थलों पर मौजूद प्राकृतिक और ऐतिहासक स्थलों का संरक्षण और विकास उत्कृष्ठ मानव मूल्यों के अनुसार करेगा ।








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  जीवनसाथी के साथ नंगा सोना चाहिए या नही nange sone ke fayde इंटरनेट पर जानी मानी विदेशी health website जीवन-साथी के साथ नंगा सोने के फायदे बता रही है लेकिन क्या भारतीय मौसम और आयुर्वेद मतानुसार मनुष्य की प्रकृति के हिसाब से जीवनसाथी के साथ नंगा सोना फायदा पहुंचाता है आइए जानें विस्तार से 1.सेक्स करने के बाद नंगा सोने से नींद अच्छी आती हैं यह बात सही है कि सेक्सुअल इंटरकोर्स के बाद जब हम पार्टनर के साथ नंगा सोते हैं तो हमारा रक्तचाप कम हो जाता हैं,ह्रदय की धड़कन थोड़ी सी थीमी हो जाती हैं और शरीर का तापमान कम हो जाता है जिससे बहुत जल्दी नींद आ जाती है।  भारतीय मौसम और व्यक्ति की प्रकृति के दृष्टिकोण से देखें तो ठंड और बसंत में यदि कफ प्रकृति का व्यक्ति अपने पार्टनर के साथ नंगा होकर सोएगा तो उसे सोने के दो तीन घंटे बाद ठंड लग सकती हैं ।  शरीर का तापमान कम होने से हाथ पांव में दर्द और सर्दी खांसी और बुखार आ सकता हैं । अतः कफ प्रकृति के व्यक्ति को सेक्सुअल इंटरकोर्स के एक से दो घंटे बाद तक ही नंगा सोना चाहिए। वात प्रकृति के व्यक्ति को गर्मी और बसंत में पार्टनर के साथ नंगा होकर सोने में कोई