सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

जैविक खेती क्या हैं क्या खेती बिना किसानों की आय दोगुनी नही होगी [organic farming]

Satish Vyas - Organic Farming, Organic, What Is Organic Food

# 1.जैविक खेती क्या हैं jevik kheti kya hair:::


जैविक खेती jevik kheti  कृषि  करनें की पद्धति हैं.इस पद्धति में रासायनिक उर्वरकों,कीट़नाशकों के स्थान पर जैविक अवशेषों जैसें गोबर की खाद,केंचुआ खाद,हरी खाद ,फसल अवशेषों से बनी खाद तथा जैविक कीट़नाशकों का उपयोग कर फसल पैदा की जाती हैं.
जैविक खेती jevik kheti भारत की वैदिक कृषि पद्धति हैं,जिसके दम पर भारतीय लोग 100 वर्षों तक जीवित रहतें थें. और उत्पादन भी अधिक होकर स्वास्थ्यप्रद होता था.किन्तु कालांतर में कम मेहनत व अधिक उत्पादन के चक्कर में फँसकर किसान रासायनिक खेती rasaynik kheti की ओर अग्रसर होता गया परिणामस्वरूप ज़मीन बंजर होती गयी,उत्पादन घट़ता गया तथा  स्वास्थ्य और उम्र भी धट़ती गई.
जैविक खेती
 जैविक फसल

स्वास्थ्य और मनुष्य की औसत उम्र कम होनें के मूल कारणों में रासायनिक खेती rasaynik kheti ही हैं,क्योंकि रासायनिक कीट़नाशकों और उर्वरकों के लगातार इस्तेमाल से धरती में मोजूद सूक्ष्म पौषक तत्वों जैसें लोहा,जस्ता,मैगनीज,बोरान,मालीब्डेनम और क्लोरिन मिट्टी से नष्ट हो रहे हैं,और इन नष्ट हुयें सूक्ष्म पौषक तत्वों की मिट्टी में पैदा हुआ अनाज और फल मनुष्य खा रहा हैं.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना यहाँ जानें

यह अनाज और फल  मात्र यूरिया,डी.ए.पी.और वृद्धि कारक रासायनिक दवाईयों के दम पर ही पैदा हो रहे हैं.जिनमें सूक्ष्म पोषक तत्वों का नितांत अभाव होता हैं,जबकि जैविक खाद में  पौषक तत्वों नाइट्रोजन,फाँस्फोरस,पोटेशियम के अतिरिक्त सभी सूक्ष्म पौषक तत्व मोजूद रहते हैं.


रासायनिक उर्वरकों,rasaynik urvrko कीट़नाशकों और वृद्धि नियंत्रकों के फसलों पर अत्यधिक प्रयोग नें मृदा स्वास्थ्य को भी गंभीरतम रूप से प्रभावित करना शुरू कर दिया हैं,जिससे मिट्टी की पारपंरिक संरचना बदलकर चिकनी,कठोर और चिपचिपी हो गई हैं.



इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण पारपंरिक बेलचलित हल के स्थान पर ट्रेक्टरचलित हल का प्रयोग हैं.किसानों पर कियें गये एक सर्वेक्षण यह बात पता चली कि रासायनिक खेती करने वालें जो किसान बैलचलित हल का उपयोग करते थे,वे अब इसके स्थान पर ट्रेक्टरचलित प्लाऊ को महत्व देनें लगें हैं,क्योंकि बैलचलित प्लाऊ से मिट्टी पलट़ना बहुत मुश्किल हो गया हैं,जबकि जैविक खेती करनें वालें किसान अब भी बैलचलित हल से खेत की जुताई कर रहें हैं.

एक अन्य सर्वेक्षण में एक ओर जानकारी मिली कि जिन किसानों को रासायनिक खेती करतें - करतें लम्बा वक्त हो गया हैं और जो लम्बें समय से  खेती में ट्रेक्टर का प्रयोग कर रहें हैं उन्हें अपनें खेतों की जुताई हेतू अधिक हार्स पावर के ट्रेक्टर की आवश्यकता महसूस हो रही हैं क्योंकि पुराना ट्रेक्टर खेतों की जुताई हेतू कम शक्तिशाली साबित हो रहा हैं जबकि इन्ही किसानों का यह कहना हैं कि दस साल पहले तक खेतों की जुताई हेतू यही ट्रेक्टर पर्याप्त था.

विशेषज्ञों के मुताबिक फसल में डालें गये यूरिया का मात्र 30% ही पौधे द्धारा अवशोषित होता हैं,बाकि का 70% यूरिया  मिट्टी में जमा रह जाता हैं,जो बाद में वर्षा द्धारा नदीयों और जलस्त्रोंतों में पहुँचकर मनुष्य और दूसरें जीव जंतुओं के स्वास्थ को गंभीरतम रूप में प्रभावित कर रहा हैं. 

#2. जैविक खेती से होनें वालें लाभ ::


#1. जैविक खेती से मिट्टी की जलधारण क्षमता बढ़ती हैं.फलस्वरूप अधिक जल में पैदा होनें वाली फसल जैसें गन्ना,चावल,केला,प्याज आदि में कम जल की आवश्यकता पड़ती हैं.

#2.मिट्टी की गुणवत्ता सुधरती हैं,जिससे उर्वराशक्ति बढ़ती हैं.

#3.जैविक खेती करनें से किसान की उत्पादन लागत घट़ती हैं,फलस्वरूप किसानों की आय दोगुनी हो जाती हैं.

#4.जैविक खेती से पर्यावरण और जल प्रदूषित नही होता क्योंकि रासायनिक कीट़नाशक वर्षाजल के साथ बहकर जल स्त्रोंतों को दूषित नही करतें.

#5.जैविक खेती से उच्च पौषकता वाली ,हानिरहित फसल प्राप्त होती हैं,जिससे मानव स्वास्थ्य उत्तम होकर गंभीर बीमारीयों जैसें कैंसर,त्वचा रोग आदि की संभावना कम होंती हैं.
#6.भारत अपनें रासायनिक उर्वरकों और पेट्रोलियम उत्पादों की आवश्यकता का तीन तिहाई आयात द्धारा पूरा करता हैं.

 जैविक खेती से विदेशी उर्वरकों जैसें डी.ए.पी.,एन.पी.के.,पर निर्भरता कम होगी , जिससे बहुमूल्य मुद्रा विदेशियों के हाथ जानें से बची रहेगी व राष्ट्र आर्थिक गुलामी के दौर से बाहर निकल जायेगा.इसी प्रकार पेट्रोलियम उत्पादों के खेती में कम प्रयोग से गोवंश का संरक्षण होकर पर्याप्त मात्रा में जैविक खाद की प्राप्ति होगी.

#7.जैविक खेती से प्राप्त फसल की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में बहुत अधिक मांग हैं,यदि जैविक फसल उत्पादों को निर्यात करतें हैं,तो काफी अधिक दाम मिलेंगें जिससे किसानों की आय दुगुनी तिगुनी हो जायेगी.
#8.जैविक खेती से यहाँ वहाँ पड़े रहनें वालें कूड़े करकट़ के ढ़ेरों से मुक्ति मिलकर स्वच्छता आती हैं,क्योंकि इनका समुचित रूप से प्रबंधन कर जैविक खाद बनानें मे उपयोग होता हैं.

#9.जैविक खाद एँव कीट़नाशकों के प्रयोग से मृदा में लाभदायक जीवाणुओं की सक्रियता बढ़ जाती हैं.

#10.रासायनिक कीटनाशकों के फसलों पर छिड़काव से समस्त प्रकार के कीटनाशक समाप्त हो जातें हैं,जबकि वास्तविकता में बेहतर फसल उत्पादन के लियें तितली,भँवरों और अन्य कीटों द्धारा फसल का परागण आवश्यक होता हैं.

जैविक कीटनाशकों के प्रयोग से फसल के हानिकारक कीट  नियत्रिंत होतें हैं समाप्त नही, फसल के यह हानिकारक कीट पा्रकृतिक संतुलन के लिये बहुत आवश्यक होतें हैं. ़

# 3.जैविक खेती के लिये उपयोगी खाद :::


# कम्पोस्ट या घूरें की खाद :::


घर के कूड़ा करकट़,सब्जीयों के अवशेषों, पशुओं के मल मूत्र आदि को एक साल तक गड्डे में डालकर रखा जाता हैं,जिनमें सूक्ष्मजीव विघट़न करते रहतें हैं.और यह खाद भूरभूरी होकर मिट्टी के लिये अत्यंत उपयोगी बन जाती हैं.इस प्रकार की खाद मिट्टी के सभी आवश्यक तत्वों की पूर्ति करती हैं. यदि एक एकड़ में दस ट़न गौबर की खाद का बुरकाव प्रत्येक वर्ष किया जावें तो किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता नही पड़ती हैं.

# हरी खाद :::


भूमि में मूंग,उड़द,लोबिया,सनई जैसी फसलें उगाकर उसे मिट्टी में दबाकर सड़नें हेतू छोड़ दिया जाता हैं. ऐसी खाद मृदा के लिये आवश्यक तत्वों से समृद्ध होती हैं,और पौधा इसे तीव्र अवशोषित करता हैं.यह खाद  सस्ती और कम मेहनत में तैयार हो जाती हैं.

# वर्मी कम्पोस्ट (केंचुआ खाद) :::


 घर से निकले हुये सब्जी फल के छिलकों,चाय पत्ती तथा अवशिष्टों को केंचुए खाकर पुन: मल के माध्यम से बाहर निकालतें हैं.यह ह्यूमस कहलाता हैं.जो पौषक तत्वों के अलावा विटामिनों और वृद्धि हार्मोनों से समृद्ध होता हैं.वर्मी कम्पोस्ट में गोबर खाद की तुलना में नाइट्रोजन 3 गुना,फाँस्फोरस 1.5 गुना तथा पोटाश 2 गुना होता हैं.यह खाद मिट्टी की वायु संचार क्षमता में तीव्र सुधार लाती हैं.साथ ही इसमें विट़ामीन और वृद्धि हार्मोंन होनें से पौधे की रोग प्रतिरोधकता बढ़ती हैं.




टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से में होनें वाले रक्तस्त्राव को कम करने वाली सर्वमान्य औषधी हैं । इसके ल

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x