मध्यप्रदेश गेंहू उत्पादन में देश का अग्रणी राज्य हैं, यहां की मिट्टी की उत्पादकता देश में सर्वाधिक मानी जाती है, किंतु फिर भी प्रति हेक्टेयर गेंहू उत्पादन के मामले में मध्यप्रदेश पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों से पिछे है। प्रति हेक्टेयर कम गेंहू उत्पादन का मुख्य कारण किसान भाईयों द्वारा क्षेत्रवार और सिंचाई की सुविधा अनुसार अनुशंसित किस्मों का नहीं बोना है। यदि किसान भाई क्षेत्रवार और सिंचाई की सुविधा अनुसार गेंहू की उन्नत किस्मों का चुनाव करें तो प्रति हेक्टेयर अधिक उत्पादन लें सकतें हैं।
आईए जानते हैं मध्यप्रदेश के क्षेत्रानुसार गेंहू की अनुशंसित उन्नत किस्मों के बारे में
मालवा क्षेत्र के लिए गेंहू की उन्नत किस्में
मालवा क्षेत्र में मध्यप्रदेश के रतलाम, मंदसौर, इंदौर, उज्जैन, शाजापुर, राजगढ़, सीहोर,धार,देवास जिले का सम्पूर्ण क्षेत्र जबकि गुना जिले का दक्षिण भाग सम्मिलित हैं।
इन क्षेत्रों में औसत वर्षा 750 मिलीमीटर से 1250 मिलीलीटर तक होती हैं।
यहां के अधिकांश क्षेत्रों में भारी काली मिट्टी पाई जाती है।
मालवा क्षेत्र के लिए गेंहू की उन्नत किस्में निम्न प्रकार है।
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 17
2.जे.डब्ल्यू 3269
3.जे.डब्ल्यू 3288
4.एच.आई.1500
5.एच.आई.1531
6.एच.डी.4672(कठिया )
सिंचित क्षेत्र के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 नवंबर तक बौने वाली किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1201
2.जे.डब्ल्यू 322
3.जे.डब्ल्यू 273
4.एच.आई.1544
5.एच.आई.8498
6.एम.पी.ओ.1215
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1203
2.एम.पी.4010
3.एच.डी.2864
4.एच.आई.1454
निमाड़ अंचल के लिए गेंहू की उन्नत किस्में
निमाड़ अंचल के अन्तर्गत खरगोन, खंडवा,धार,अलीराजपुर, झाबुआ, बड़वानी, जिले सम्मिलित हैं
निमाड़ अंचल में औसतन वर्षा 500 से 1000 मिलीलीटर तक होती है।
यहां की मिट्टी हल्की काली से भूरी होती हैं।
निमाड़ अंचल के लिए गेंहू की उन्नत किस्में निम्न प्रकार है
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 17
2.जे.डब्ल्यू 3269
3.जे.डब्ल्यू 3288
4.एच.आई.1500
5.एच.आई.1531
6.एच.डी.4672 (कठिया)
सिंचित क्षेत्र के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 नवंबर तक बौने वाली किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1201
2.जे.डब्ल्यू 322
3.जे.डब्ल्यू 273
4.एच.आई.1544
5.एच.आई.8498
6.एम.पी.ओ.1215
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1203
2.एम.पी.4010
3.एच.डी.2864
4.एच.आई.1454
बैनगंगा घाटी के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में
बैनगंगा घाटी के बालाघाट और सिवनी जिले के लिए जहां जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है और औसत बारिश 1250 मिलीलीटर तक होती है।
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 3269
2.जे.डब्ल्यू 3211
3.जे.डब्ल्यू 3288
4.एच.आई.1544
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू.1201
2.जे.डब्ल्यू 366
3.एच.आई.1544
4.राज 3067
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1202
2.एच.डी.2932
3.डी.एल.788-2
विन्ध्य पठार के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में
विन्ध्य पठार में मध्यप्रदेश के रायसेन, विदिशा,सागर का सम्पूर्ण जिला और गुना का कुछ भाग सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र की औसत वर्षा 1120 से 1250 मिलीलीटर तक होती है। तथा मिट्टी हल्की काली से भारी काली है।
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 17
2.जे.डब्ल्यू 3173
3.जे.डब्ल्यू 3211
4.जे.डब्ल्यू 3288
5.एच.आई.1531
6.एच.आई.8627
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1142
2.जे.डब्ल्यू 1201
3.एच.आई.1544
4.जी.डब्ल्यू 273 (कठिया)
5.जे.डब्ल्यू 1106
6.एच.आई.8498
7.एम.पी.ओ.1215
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1202
2.जे.डब्ल्यू 1203
3.एम.पी.4010
4.एच.डी.2864
5.डी.एल.788-2
हवेली क्षेत्र के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में
हवेली क्षेत्र में जबलपुर, रीवा और नरसिंहपुर जिले के भू-भाग को कहा जाता है।इस क्षेत्र की औसत वार्षिक वर्षा 1000 से 1375 मिलीलीटर होती हैं। यहां की मिट्टी हल्की युक्त होती हैं।
हवेली क्षेत्र के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में निम्न हैं
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 3020
2.जे.डब्ल्यू 3173
3.जे.डब्ल्यू 3269
4.जे.डब्ल्यू 17
5.एच.आई.1500
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1142
2.जे.डब्ल्यू 1201
3.जे.डब्ल्यू 1106
4.जी.डब्ल्यू 322
5.एच.आई.1544
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू 1202
2.जे.डब्ल्यू 1203
3.एच.डी.2864
4.एच.डी.2932
सतपुड़ा पठार के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में
सतपुड़ा पठार के अन्तर्गत छिंदवाड़ा और बैतूल का क्षेत्र सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में हल्की कंकड़ युक्त मिट्टी पाई जाती है और औसत वार्षिक वर्षा 1000 से 1250 मिलीलीटर तक होती है।
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 17
2.जे.डब्ल्यू 3173
3.जे.डब्ल्यू 3211
4.जे.डब्ल्यू 3288
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.एच.आई.1418
2.जे.डब्ल्यू 1201
3.जे.डब्ल्यू 1215
4.जी.डब्ल्यू 366
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.एच.डी.2864
2.एम.पी.4010
3.जे.डब्ल्यू 1202
4.जे.डब्ल्यू 1203
5.एच.आई 1531
नर्मदा घाटी के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में
नर्मदा घाटी क्षेत्र में जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद,हरदा क्षेत्र आता है जहां भारी काली और जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है। इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा 1000 से 1500 मिलीमीटर होती हैं।
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू 17
2.जे.डब्ल्यू 3288
3.एच.आई.1531
4.जे.डब्ल्यू 3211
5.एच.डी.4672 (कठिया)
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू .1142
2.जी.डब्ल्यू.322
3.जे.डब्ल्यू 1201
4.एच.आई.1544
5.जे.डब्ल्यू 1106
6.एच.आई.8498
7.जे.डब्ल्यू 1215
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू.1202
2.जे.डब्ल्यू.1203
3.एम.पी.4010
4.एच.डी.2932
गिर्द क्षेत्र के लिए अनुशंसित गेंहू की उन्नत किस्में
गिर्द क्षेत्र में ग्वालियर,भिंड, मुरैना और दतिया जिला सम्मिलित हैं जहां जलोढ़ मिट्टी पाई जाती है, यहां की औसत वार्षिक वर्षा 750 मिलीमीटर से 1000 मिलीमीटर तक होती हैं।
गिर्द क्षेत्र के लिए अनुशंसित गेंहू की किस्में निम्न हैं
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू.3288
2.जे.डब्ल्यू.3211
3.जे.डब्ल्यू 17
4.एच.आई.1531
5.जे.डब्ल्यू.3269
6.एच.डी.4672
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.एच.आई.1544
2.जी.डब्ल्यू.273
3.जी.डब्ल्यू.322
4.जे.डब्ल्यू.1201
5.जे.डब्ल्यू 1106
6.जे.डब्ल्यू.1215
7.एच.आई.8498
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.एम.पी.4010
2.जे.डब्ल्यू 1203
3.एच.डी.2932
4.एच.डी.2864
बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए गेंहू की अनुशंसित उन्नत किस्में
बुंदेलखंड क्षेत्र में दतिया, शिवपुरी, गुना का कुछ भाग, टीकमगढ़, छतरपुर, एवं पन्ना का कुछ भाग सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र में वार्षिक औसत वर्षा 1100 मिलीमीटर तक होती है। यह क्षेत्र लाल और काली मिट्टी की अधिकता वाला है।
असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों के लिए गेंहू की उन्नत किस्में (15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक)
1.जे.डब्ल्यू.3288
2.जे.डब्ल्यू.3211
3.जे.डब्ल्यू.17
4.एच.आई.1500
5.एच.आई.1531
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 नवंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में)
1.जे.डब्ल्यू.1201
2.जी.डब्ल्यू.366
3.राज 3067
4.एम.पी.ओ.1215
5.एच.आई.8498
सिंचित भूमि के लिए गेंहू की (15 दिसंबर तक बौने वाली गेंहू की उन्नत किस्में
1.एम.पी.4010
2.एच.डी.2864
बीज की मात्रा
•औसत रुप से 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ।
•असिंचित और अर्धसिंचित क्षेत्रों में कतार से कतार की दूरी 25 सेमी
•सिंचित क्षेत्रों में 23 सेमी
• बीज और उर्वरक एक साथ मिलाकर बीजाई नहीं करें क्योंकि शोध अनुसार उर्वरक और बीज मिलाने से अंकुरण में 32 प्रतिशत की कमी हो जाती हैं।
• बीज कम फर्टिलाइजर ड्रिल का उपयोग बीजाई के लिए करें।
बीजोपचार
बुवाई से पूर्व बीजों को उपचारित करके ही बोए, बीजोपचार के लिए बीटावैक्स या बावस्टिन 3 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचारित करें।
टेबूकोनाजोल 1 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करने पर फफूंद जनित रोग से बचाव होता है।
पी.एस.बी.कल्चर 5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचारित करने पर फास्फोरस की उपलब्धता बढ़ती है।
पोषक तत्वों का प्रयोग
• मिट्टी परीक्षण अवश्य करें।
• परीक्षण के आधार पर नाइट्रोजन, फास्फेट और पोटाश खेतों में डालें
• 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट प्रति तीन फसल के उपरांत प्रयोग करें।
सिंचाई
जहां तक संभव हो सिंचाई के लिए स्प्रिंगकिलर का प्रयोग करें।
उन्नत किस्मों के लिए 3 से 4 सिंचाई पर्याप्त है।
• पहली सिंचाई बुवाई के 40 दिन बाद करें।
• दूसरी सिंचाई 15 दिन के बाद करें।
• तीसरी सिंचाई कल्ले निकलते समय करें।
• चौथी सिंचाई गेंहू दूधिया के दाने दूधिया होने पर करें।
• यदि जमीन पानी कम सोखती हैं या रेतीली भूरी है तो पांचवीं सिंचाई भी कर सकते हैं ।
गेंहू में डालने के लिए अनुशंसित उर्वरक की मात्रा
1.असिंचित भूमि के लिए
यूरिया 40% ,। फास्फोरस 20 %। पोटाश 0 कि.ग्रा.।
2.अर्धसिंचित भूमि के लिए
यूरिया 60%। फास्फोरस 38 % । पोटाश 15 किलो/ हेक्टे.
3.सिंचित भूमि के लिए
यूरिया 120 % । फास्फोरस 60 % । पोटाश 30 किलो/हेक्टे
4.सिंचित 15 दिसंबर तक बुवाई के लिए
यूरिया 80%। फास्फोरस 40%। पोटाश 20 किलो/हेक्टेयर
अधिक गेंहू उत्पादन की नवीनतम तकनीक
1.जीरो टिलेज तकनीक
धान की पछेती फसल की कटाई के उपरांत खेत को गेंहू के लिए जुताई और हकाई का समय नहीं बचता फलस्वरूप गेंहू की बोवनी बहुत लेट हो जाती हैं। और किसान के पास खेत खाली छोड़ने के अलावा और कोई चारा नहीं बचता,ऐसी अवस्था से बचने और किसानों को तंगहाली से बचाने के लिए वैज्ञानिकों ने एक विशेष मशीन का अविष्कार किया है।
इस मशीन के उपयोग से खेत की जुताई और हकाई की आवश्यकता नहीं होती है,धान की कटाई के बाद सीधे इस मशीन द्वारा बीज और खाद के साथ बुवाई की जा सकती हैं।
मशीन द्वारा गेंहू की सीधी बुवाई करने की विधि को जीरो टिलेज कहा जाता है।
इस तकनीक को चिकनी मिट्टी को छोड़कर सभी प्रकार की भूमि में उपयोग किया जा सकता है। जीरो टिलेज मशीन साधारण ड्रिल की तरह है, इसमें टाइन चाकू की तरह है,यह टाइन्स मिट्टी में नारी जैसी आकार की दरार बनाती है, जिससे खाद और बीज उचित मात्रा में गहराई तक पंहुच जाता है।
जीरो टिलेज तकनीक से बुवाई के लाभ
• पछेती फसल की बुवाई समय पर हो जाती हैं जिससे खेत खाली छोड़ने की नोबत नहीं आती हैं और किसान आर्थिक क्षति से बच जाता है।
• ईंधन,ऊर्जा,और समय की बचत हो जाती हैं। एक एकड़ जमीन की जुताई इस मशीन द्वारा एक घंटे में हो जाती हैं।
• समय पर बुवाई होने से उत्पादन आशानुरूप लिया जा सकता है।
• बीज और उर्वरक की संतुलित मात्रा डलने से आर्थिक लाभ मिलता है।
फरो इरीगेशन रेज्ड बेड बुवाई विधि
रेज्ड बेड विधि द्वारा गेंहू को ट्रैक्टर चलित रोजर कम ड्रिल से मेड़ों पर दो या तीन कतारों में बुवाई करते हैं।
रेज्ड बेड विधि के लाभ
• बीज,खाद,और पानी की मात्रा में कमी होती है।
• उच्च गुणवत्ता वाला बीज प्राप्त होता है।
• पौधों का विकास अच्छा होता हैं।
• उत्पादन लागत में कमी होती है।
• बीज गहराई में गिरने से फसल मजबूत होती हैं जिससे तेज हवा आंधी में फसल गिरती नहीं है।
• पानी की बचत होती हैं क्योंकि मेड़ विधि से फसल को पानी कम लगता है।
• कतार से कतार के मध्य पर्याप्त दूरी होने से फसल को हवा और प्रकाश आसानी से मिलता है।
By- healthylifestyehome
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