सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन क्या हैं

#1.एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन क्या हैं ?

पोषक तत्व
 एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन

एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन प्रणाली से अभिप्राय यह हैं,कि मृदा उर्वरता को बढ़ानें अथवा बनाए रखनें के लिये पोषक तत्वों के सभी उपलब्ध स्त्रोंतों से मृदा में पोषक तत्वों का इस प्रकार सामंजस्य रखा जाता हैं,जिससे मृदा की भौतिक,रासायनिक और जैविक गुणवत्ता पर हानिकारक प्रभाव डाले बगैर लगातार उच्च आर्थिक उत्पादन लिया जा सकता हैं.
 
विभिन्न कृषि जलवायु वाले क्षेत्रों में किसी भी फसल या फसल प्रणाली से अनूकूलतम उपज और गुणवत्ता तभी हासिल की जा सकती हैं जब समस्त उपलब्ध साधनों से पौध पौषक तत्वों को प्रदान कर उनका वैग्यानिक प्रबंध किया जाए.एकीकृत पौध पोषक तत्व प्रणाली एक परंपरागत पद्धति हैं.

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////

यहाँ भी पढ़े 👇👇👇

प्रधानमन्त्री फसल बीमा योजना

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////

#2.एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन का महत्व ::

अब एकीकृत पौध पोषक तत्व प्रणाली का महत्व इसलिये हैं,कि बढ़ती हुई जनसंख्या की उदरपूर्ति केवल लगातार खाघान्न की बढ़ोतरी से ही संभव हैं.इसलिये प्रति हेक्टेयर उपज में वृद्धि करनी होगी.जिसके लिये प्रति हेक्टेयर अधिक पौषक तत्वों की आवश्यकता हैं.

अब यह बात समझ में आ गई हैं,कि देश में उर्वरक उत्पादन का स्तर पर्याप्त नहीं हैं.जिससे कि वर्तमान में पौधों की कुल पौषक तत्वों की आवश्यकता की पूर्ति हो सकें.

खाद और उर्वरक पर किये गये परीक्षणों से यह बात स्पष्ट हो गई कि केवल रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से किसी भी फसल या फसल प्रणाली से अधिक उपज प्राप्त नहीं की जा सकती हैं.अत: यह निर्विवाद सत्य हो गया हैं,कि कार्बनिक खादों के साथ - साथ रासायनिक खादों से न केवल अधिक उपज ली जा सकती हैं,बल्कि लम्बें समय तक इनके इस्तेमाल से भूमि की उर्वरता स्तर में भी सुधार होता हैं.

सघन खेती में उर्वरक समन्वित पौध पोषण आपूर्ति प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घट़क हैं.भारत ही नहीं वरन सम्पूर्ण विश्व में कृषि उत्पादन में 50% वृद्धि केवल रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से हुई हैं,लेकिन फसलों द्वारा उर्वरकों की उपयोग क्षमता लगभग 50% या इससे भी कम हैं.तथा शेष मात्रा विभिन्न प्रकार की हानि प्रक्रियाओं द्धारा नष्ट हो जाती हैं.

आजकल युरिया,डाई - अमोनियन फाँस्फेट (D.A.P.) और म्यूरेट़ आँफ पोटाश (M.O.P) का प्रचलन अधिक बढ़ गया हैं,जो केवल नाइट्रोजन,फाँस्फोरस और पोटाश के अलावा अन्य पोषक तत्वों को प्रदान नहीं करतें हैं,इनके लगातार प्रयोग से मिट्टी में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आ गई हैं,जबकि जैविक उर्वरकों के प्रयोग से फसलों को सूक्ष्म पोषक तत्व प्राप्त होतें रहतें हैं.

भारत में 47% मृदाओं में जस्ता (zink),11.5% में लोहा (Iron),4.8% में तांबा (copper),तथा 4% मृदाओं में मैंगनीज की कमी हैं.जिसका प्रभाव फसलों की उपज व गुणवत्ता पर पढ़ रहा हैं.

भारतीय मृदाओं में जैविक कार्बन की सर्वत्र कमी हैं,कार्बनिक खाद जैसें गोबर की खाद, हरी खाद, जैव उर्वरक तथा कम्पोस्ट मृदा उर्वरता बनाये रखनें,उत्पादन को स्थिर रखनें एंव पोषक तत्वों का सही परिणाम प्राप्त करनें के लिये आवश्यक हैं.

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////

● यह भी पढ़े👇👇👇

● आम की खेती समस्या और सम्भावनाएँ

जैविक खेती के बारें में जानियें

० गाजर घास का उन्मूलन कैसे करें

० चने की खेती और उपयोग

/////////////////////////////////////////////////////////////////////////



कार्बनिक खादें वर्तमान फसल को तो लाभ पहुँचाती ही हैं साथ ही आगामी फसल को भी अवशोषित प्रभाव द्धारा लाभ पहुँचाती हैं.एक टन सड़ी हुई गोबर खाद से लगभग 12 kg पोषक तत्व (नाइट्रोजन,फास्फोरस, तथा पोटाश) प्राप्त होतें हैं,तथा 3.6 kg उर्वरक तत्वों के बराबर अनाज पैदा करती हैं.

खरीफ की फसलों में गोबर की खाद के प्रयोग से उत्पादकता में बगैर हानि पहुँचायें ,उर्वरक प्रयोग में कटोती की जा सकती हैं.रासायनिक उर्वरकों की मांग को कम करनें के लिये उपलब्ध अवशिष्ट पदार्थों को कार्बनिक स्त्रोंतों के रूप में प्रयुक्त किया जा सकता हैं.

दीर्घकालीन उर्वरक परीक्षण के परिणामों से पता हैं,कि लगातार धान ,गेंहूँ,फसल चक्र अपनानें से मृदा से जैविक कार्बन स्तर में कमी आई हैं.लगातार रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग से मृदा स्वास्थ्य में कमी और फसल उत्पादकता स्थिर या कम हो गई थी.जबकि रासायनिक उर्वरकों के साथ जैविक खाद के प्रयोग के परिणामस्वरूप उत्पादकता में वृद्धि परिलक्षित हुई हैं.
अत: समन्वित पौध पोषण में केवल रासायनिक उर्वरकों के लगातार प्रयोग की अपेक्षा कार्बनिक खादों के साथ रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग बहुत ही लाभकारी हैं.

#3. पौधों के लिये आवश्यक पोषक तत्व और उनकी कमी होनें पर समस्या :::

खेती के लिये उपयोगी पोषक तत्व
 एकीकृत पोषक तत्व प्रबन्धन

#1. Boron (बोरोन) :::


बोरान पौधे की पत्तियाँ के लियें आवश्यक पोषक तत्व हैं,इसकी कमी होनें पर पोधे पत्तियों का रंग काला पढ़ जाता हैं.कलियाँ टूट कर गिर जाती हैं.जिससे पौधे की वृद्धि रूक जाती हैं.

#2. Sulphur (सल्फर) :::


सल्फर की कमी होनें पर पत्तियाँ गहरी हरी होनें के बजाय हल्की हरी होनें लगती हैं.और पत्तियों की शिरायें पीली पढ़ जाती हैं.

#3.Manganese (मेंगनीज) :::


मेंगनीज की कमी से पत्तियाँ पीली पढ़कर ,शिरायें गहरी हरी हो जाती हैं,और पत्तियाँ गिर जाती हैं.

#4.Zinc (जिंक) :::


पत्तियाँ छोटी रह जाती हैं,और उसके सिरें नुकीले हो जातें हैं,

#5.Magnesium (मेग्नेशियम) :::


पत्तियों के किनारें नुकीलें होकर पत्तियाँ झढ़ जाती हैं.


#6.Phosphorus (फास्फोरस) :::


पौधा छोटा रह जाता हैं,पत्तियों के निचें तामिया कलर होकर पत्तियाँ गिर जाती हैं.तना कमज़ोर हो जाता हैं.

#7.Calcium (केल्सियम) :::


कैल्सियम की कमी होनें पर पौधा ऊपरी सिरें से सुखना शुरू करता हैं.और फूल की कलियाँ गिर जाती हैं.

#8.Iron (आयरन) :::


पत्तियों की शिरायें एकदम हरी होकर पत्तियाँ पीली हो जाती हैं,तथा उस पर कोई धब्बा नहीं दिखाई देती .

#9.Copper (कापर):::

गिरी हुई पत्तियाँ और झुकी हुई 

#10.Molybdenum (मालिब्डेनम) :::


पत्तियों पर लाल धब्बे बन जातें हैं.और इनकें निचें से चिपचिपा स्त्राव होता रहता हैं.

#11.Potassium (पोटेशियम) :::

पत्तियाँ सिरों से सुखकर मुड़ जाती हैं,और सिरों पर छोटें - छोंटे धब्बे बन जातें हैं.

#12. Nitrogen (नाइट्रोजन) :::


अत्यधिक पीला रंग होकर पत्तियाँ नुकीली हो जाती हैं.पौधा बोना रह जाता हैं.

#4.एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के उद्देश्य ::


• उर्वरकों की उपयोग क्षमता में वृद्धि करना.

• फसलों की उत्पादकता बढ़ाना.

• मृदा उर्वरता को बढ़ाना और उसे स्थिर रखना.

• पर्यावरण को प्रदूषित होनें से बचाना.

#5.एकीकृत पोषक तत्व प्रबंधन के प्रमुख घट़क :::

• गोबर खाद, कम्पोस्ट खाद,केंचुआ खाद, गोबर गैस की खाद,खली की खाद, तालाब की मिट्टी, मुर्गी की खाद,पशु जनित खाद.

• फसल अवशेष

• जीवाणु उर्वरकों से पोषक तत्व प्रबंधन राइजोबियम,एजेटोबेक्टर एजोस्पाइरीलम,नील हरित शैवाल,एजोला,स्फुरघोलक,सूक्ष्म जीवाणु माइक्रोराइजा

• फसल चक्रों और अन्तर्वरती खेती के द्धारा पोषक तत्व प्रबंधन



टिप्पणियाँ

Payal ने कहा…
Ekikrit poshak tatv prabndhan par bhut hi satik jankari hai
Unknown ने कहा…
Micronutrients fasl mei dalne se sbhi प्रकार के पोषक तत्वों की पूर्ति होती है।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से में होनें वाले रक्तस्त्राव को कम करने वाली सर्वमान्य औषधी हैं । इसके ल

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x