# भावांतर भुगतान योजना
भावांतर भुगतान योजना कृषि से संबधित योजना हैं,जो म.प्र.शासन द्धारा संचालित हैं.
५#.एक अन्य व्याहवारिक समस्या मंड़ी के माँड़ल रेट़ को लेकर हैं,जिसमें कहा गया हैं,कि किसानों को अंतर की राशि का भुगतान दो मंड़ीयों के माँड़ल रेट़ के आधार पर किया जायेगा परंतु वास्तविकता यह हैं,कि सूचना संचार के इस युग में पूरें प्रदेश के व्यापारी अपनें WhatsApp ग्रुप पर सुबह ही तय कर लेतें हैं कि किसानों को क्या रेट़ देना हैं,फलस्वरूप किसानों को बहुत कम अंतर की राशि मिल पाती हैं.
कही - कही तो यह अंतर 20 से 25 रूपये तक ही हैं.
# उद्देश्य
इस योजना का महत्वपूर्ण उद्देश्य किसानों को उनकी फ़सल का उचित मूल्य दिलाना हैं ताकि किसानों की फसल उत्पादन लागत से कम दामों पर नहीं बिके और इस तरह किसान घाट़े में रहकर आत्महत्या को मज़बुूर ना हो.
# आधार
१#.इस योजना में शामिल फसलों का मूल्य मंड़ी का माँड़ल भाव और निर्धारित दो राज्यों की मंड़ियों के माँड़ल रेट़ के आधार पर तय होता हैं.
२#.यदि फसलों का मूल्य निर्धारित माँडल रेट़ से कम होता हैं,तो अंतर की राशि का भुगतान किसानों को किया जाता हैं.
३#.इस योजना में यह भी प्रावधान जोड़ा गया हैं,कि यदि किसान फ़सल को तुरंत नहीं बेचना चाहे और फसल का भंड़ारण भंडारग्रह में करता हैं,तो चार माह तक भंडारग्रह का किराया सरकार वहन करेगी.
४#.फसल भंडारण की अवधि में यदि किसान को पैसो की आवश्यकता हुई तो भंड़ारित फसल के 25% के बराबर राशि ॠण के रूप में सहकारी संस्था से ले सकता हैं.
५#.इस राशि पर ब्याज की अदायगी सरकार करेगी जबकि जबकि मूल राशि फ़सल बिकनें पर किसान को वापस करनी होगी.
# भावांतर में शामिल फसले
मक्का,मूंगफली,तिल,रामतिल,सोयाबीन,उड़द,अरहर ,मूँग,चना,लहसुन,प्याज और सरसो
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# योजना की समीक्षा
१#.इस योजना का उद्देश्य पवित्र हैं,जबकि क्रियान्वयन ढीला - ढ़ाला और किसानों के लिये हानि वाला हैं जैसें इस योजना में पंजीकरण की अनिवार्यता जो कि सिर्फ कस्बों और बड़े गाँवों के किसानों के लिये संभव हैं,जबकि छोटे गांवों में यह संभव नहीं हैं.
२#.इस योजना में माड़ल रेट़ की गणना अन्य दो राज्यों के संदर्भ में की जाती हैं,जो नितांत अव्यहवारिक हैं,क्योंकि विभिन्न राज्यों में फसल की लागत में दुगने से ज्यादा अंतर हैं,जैसे म.प्र.में प्याज की प्रति एकड़ लागत 75000 हजार बैठती हैं,जबकि महाराष्ट्र में यह प्रति एकड़ 30 से 35 हजार हैं.
३#.फसल बेचनें की अवधि निर्धारित हैं इस अवधि के दोरान मंड़ी व़्यापारी संगठित होकर फसल का दाम गिरा देते हैं फलस्वरूप किसानों को फसल के उचित दाम के लिये भावांतर की राशि के भरोसे रहना पड़ता हैं.
४#.भावांतर भुगतान राशि मिलने की समयावधि किसानों के लिये अनिश्चित हैं यह कई महिनों की प्रक्रिया हैं.
५#.एक अन्य व्याहवारिक समस्या मंड़ी के माँड़ल रेट़ को लेकर हैं,जिसमें कहा गया हैं,कि किसानों को अंतर की राशि का भुगतान दो मंड़ीयों के माँड़ल रेट़ के आधार पर किया जायेगा परंतु वास्तविकता यह हैं,कि सूचना संचार के इस युग में पूरें प्रदेश के व्यापारी अपनें WhatsApp ग्रुप पर सुबह ही तय कर लेतें हैं कि किसानों को क्या रेट़ देना हैं,फलस्वरूप किसानों को बहुत कम अंतर की राशि मिल पाती हैं.
कही - कही तो यह अंतर 20 से 25 रूपये तक ही हैं.
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