*शरद पूर्णिमा का महत्व और आयुर्वेद
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है, पंचम बंगाल में इस दिन लक्ष्मी पूजा होती है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था।
*मान्यता है कि चन्द्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होने के कारण इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है जो औषधीय व आरोग्यवर्धक होता है। तभी इस दिन भारत के अधिकांश हिस्सों में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है, जिससे खीर में चन्द्रमा के औषधीय आरोग्यवर्धक गुण चांदनी के माध्यम से प्रवेश कर जाएं। इसे खाकर स्वास्थ्य लाभ मिले।*
आयुर्वेद कहता है कि चन्द्र किरणों से अमृत झरता है, विभिन्न औषधियां चन्द्रमा की रौशनी से ही बल प्राप्त करती हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रौशनी में स्वयं को नहलाएं, चावल की खीर बना के ठण्डी कर लें और उसे इस तरह रखें क़ि चन्द्रमा की रौशनि उस पर पड़े। घर में चांदी या स्टील के बर्तन में ही खीर रखें। स्टील के बर्तन में खीर रखकर उसमे चांदी की चम्मच या चांदी की साफ़ धुली अंगूठी भी डाल कर रख सकते हैं।
जिनके पास छोटा चांदी का बर्तन हो वो उस बर्तन में कच्चा गाय का दूध भरकर उसका अर्घ्य/चढ़ा दें। सौभाग्य की वृद्धि होती है।
हो सके तो मध्य रात्रि 11:30 से 12:30 तक चन्द्रमा को खुली आँखों से देखते हुए चन्द्रमा में अपने ईष्ट आराध्य का ध्यान करें। आपको चश्मा भी लगता हो तो भी खुली आँखों से ही चन्द्रमा देखें और अपने नेत्र की नसों के माध्यम से चन्द्र की रौशनि को आँखों और मष्तिष्क तक पहुंचने दें।
दस माला गायत्री का जप और एक माला चन्द्र गायत्री का मन्त्र चन्द्रमा में अपने ईष्ट आराध्य की कल्पना करते हुए जपें। और चन्द्रमा में ईष्ट आराध्य का ध्यान करते हुए उनके ध्यान में खो जाएँ।
*उदाहरण- हम युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव का ध्यान चन्द्रमा में शरद पूर्णिमा के दिन करते हैं। लगातार चन्द्र को देखते रहते हैं, लगभग 15 से 20 मिनट के अंदर ही गुरुदेव का चेहरा हमारा मष्तिष्क कल्पनाओ के और ध्यान के तीव्र स्पंदन में दिखाने लगता है। चन्द्रमा में ही कल्पना शक्ति और ध्यान की एकाग्रता में ब्लैक एन्ड व्हाईट चांदी सा चमकता हुआ अपने ईष्ट आराध्य के दर्शन किये जा सकते हैं। चन्द्रमा का मन से अभिन्न रिश्ता है। रामचरित मानस में वर्णित है कि श्रीराम जी शरद पूर्णिमा के चाँद में श्री सीता जी को और सीता जी श्रीराम को देखते थे। हमने भी गुरुदेव को देखने की कोशिश की और सफ़लता मिली, जो आपके हृदय में बसा है जिससे आप भावनात्मक रूप से जुड़े हो व मनुष्य हो या देवता हो या सद्गुरु उसकी ब्लैक एंड व्हाइट इमेज चन्द्र में जरूर दिखेगी।*
गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*
चन्द्र गायत्री मन्त्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्*
महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।*
*शरद पूर्णिमा- |
शरद पूर्णिमा, जिसे कोजागरी पूर्णिमा या रास पूर्णिमा भी कहते हैं। हिन्दू पंचांग के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को कहते हैं। ज्योतिष के अनुसार, पूरे साल में केवल इसी दिन चन्द्रमा सोलह कलाओं से परिपूर्ण होता है। हिन्दू धर्म में इस दिन कोजागर व्रत माना गया है, पंचम बंगाल में इस दिन लक्ष्मी पूजा होती है। इसी को कौमुदी व्रत भी कहते हैं। इसी दिन श्रीकृष्ण ने महारास रचाया था।
*मान्यता है कि चन्द्रमा 16 कलाओं से पूर्ण होने के कारण इस रात्रि को चन्द्रमा की किरणों से अमृत झड़ता है जो औषधीय व आरोग्यवर्धक होता है। तभी इस दिन भारत के अधिकांश हिस्सों में खीर बनाकर रात भर चाँदनी में रखने का विधान है, जिससे खीर में चन्द्रमा के औषधीय आरोग्यवर्धक गुण चांदनी के माध्यम से प्रवेश कर जाएं। इसे खाकर स्वास्थ्य लाभ मिले।*
आयुर्वेद कहता है कि चन्द्र किरणों से अमृत झरता है, विभिन्न औषधियां चन्द्रमा की रौशनी से ही बल प्राप्त करती हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रौशनी में स्वयं को नहलाएं, चावल की खीर बना के ठण्डी कर लें और उसे इस तरह रखें क़ि चन्द्रमा की रौशनि उस पर पड़े। घर में चांदी या स्टील के बर्तन में ही खीर रखें। स्टील के बर्तन में खीर रखकर उसमे चांदी की चम्मच या चांदी की साफ़ धुली अंगूठी भी डाल कर रख सकते हैं।
जिनके पास छोटा चांदी का बर्तन हो वो उस बर्तन में कच्चा गाय का दूध भरकर उसका अर्घ्य/चढ़ा दें। सौभाग्य की वृद्धि होती है।
हो सके तो मध्य रात्रि 11:30 से 12:30 तक चन्द्रमा को खुली आँखों से देखते हुए चन्द्रमा में अपने ईष्ट आराध्य का ध्यान करें। आपको चश्मा भी लगता हो तो भी खुली आँखों से ही चन्द्रमा देखें और अपने नेत्र की नसों के माध्यम से चन्द्र की रौशनि को आँखों और मष्तिष्क तक पहुंचने दें।
दस माला गायत्री का जप और एक माला चन्द्र गायत्री का मन्त्र चन्द्रमा में अपने ईष्ट आराध्य की कल्पना करते हुए जपें। और चन्द्रमा में ईष्ट आराध्य का ध्यान करते हुए उनके ध्यान में खो जाएँ।
*उदाहरण- हम युगऋषि परमपूज्य गुरुदेव का ध्यान चन्द्रमा में शरद पूर्णिमा के दिन करते हैं। लगातार चन्द्र को देखते रहते हैं, लगभग 15 से 20 मिनट के अंदर ही गुरुदेव का चेहरा हमारा मष्तिष्क कल्पनाओ के और ध्यान के तीव्र स्पंदन में दिखाने लगता है। चन्द्रमा में ही कल्पना शक्ति और ध्यान की एकाग्रता में ब्लैक एन्ड व्हाईट चांदी सा चमकता हुआ अपने ईष्ट आराध्य के दर्शन किये जा सकते हैं। चन्द्रमा का मन से अभिन्न रिश्ता है। रामचरित मानस में वर्णित है कि श्रीराम जी शरद पूर्णिमा के चाँद में श्री सीता जी को और सीता जी श्रीराम को देखते थे। हमने भी गुरुदेव को देखने की कोशिश की और सफ़लता मिली, जो आपके हृदय में बसा है जिससे आप भावनात्मक रूप से जुड़े हो व मनुष्य हो या देवता हो या सद्गुरु उसकी ब्लैक एंड व्हाइट इमेज चन्द्र में जरूर दिखेगी।*
गायत्री मन्त्र - *ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो योनः प्रचोदयात्*
चन्द्र गायत्री मन्त्र - *ॐ क्षीरपुत्राय विद्महे, अमृततत्वाय धीमहि। तन्नो चन्द्रः प्रचोदयात्*
महामृत्युंजय मन्त्र- *ॐ त्र्यम्बकम् यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम् उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।*
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