ब्लैक फंगस [Black fungus] बीमारी क्या होती है
ब्लैक फंगस बीमारी एक फफूंदजनित संक्रमण है जिसे म्यूकरमाइकोसिस या जाइगोमाइकोसिस के नाम से जाना जाता है। ब्लैक फंगस आमतौर पर बहुत कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्तियों को प्रभावित करता है। ब्लैक फंगस आंख,नाक,और मस्तिष्क को अधिक प्रभावित करता है। मानव में होने वाला फंगल इंफेक्शन "राइजोपस ऐरिजुस" नामक म्यूकोरेसी परिवार के फंगस से फैलता है।
कुछ अन्य प्रकार के फंगस भी है जैसे कनिंगमेला,बर्थोलेटिया,एपोफाइसोमाइसिस एलिगेंस,एबिसिडिया स्पेशीज,सकसेनिया स्पेशीज,राइजोम्यूकार प्यूसीलस,एंटोमोपेथोरा स्पेशीज,कंडिय़बोलस स्पेशीज,बेसिडियोबोलस जो कि फंगल इंफेक्शन के लिए जिम्मेदार होते है।
ब्लैक फंगस के लक्षण
ब्लैक फंगस होने पर कुछ आम प्रकार के लक्षण उभरते हैं जैसे
नाक,आंख और मस्तिष्क में संक्रमण होने पर
• नाक से काला तरल पदार्थ निकलता है
• नाक के अन्दर और आंखों में काली पपड़ी जमना
• आंखों का लाल होना,पानी आना और सूजन आना
• नाक बंद होना
• नाक के आसपास साइनस में सूजन और दर्द
फेफड़ों में ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर लक्षण
• फेफड़ों में दर्द
• खांसी
• बुखार
• श्वास चलना
पेट में ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर लक्षण
• पेटदर्द होना
• उल्टी के साथ खून आना
त्वचा में ब्लैक फंगस का संक्रमण होने पर लक्षण
• फोड़े होने के कुछ समय बाद फोड़ा काला हो जाता है और इसका आकार बढ़ने लगता है।
इसके अतिरिक्त ब्लैक फंगस होने पर चक्कर आना, कमजोरी महसूस होना जैसे लक्षण प्रकट हो सकते है।
ब्लैक फंगस रोग होने के कारण
ब्लैक फंगस के spore मिट्टी, सड़ी हुई लकड़ी, पत्तों ,बडे़ हुए फल सब्जी आदि में मौजूद रहते है और यदि बेहद कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाला व्यक्ति इनके सम्पर्क में आ जाता हैं तो वह संक्रमित हो जाता हैं उदाहरण के लिए एड्स संक्रमित व्यक्ति, अनियंत्रित मधुमेह वाला व्यक्ति, अस्थमा या टीबी का मरीज,अंगप्रत्यारोपण आपरेशन के बाद इससे उबर रहा व्यक्ति ,लम्बे समय तक ICU में रहा व्यक्ति
ब्लैक फंगस कभी भी व्यक्ति से व्यक्ति के संपर्क में आने से नहीं फैलता है।
आजकल कोविड 19 से संक्रमित होने के बाद ठीक हो रहें व्यक्ति ब्लैक फंगस के सबसे आम शिकार बन रहें हैं चूंकि कोविड़ 19 में प्रयोग किए जा रहे स्टेराइड व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता को दबा देते हैं अतः ब्लैक फंगस बहुत तेजी से फेफड़ों,आंख,नाक में पहुंचकर फैल जाता है और जानलेवा बन जाता है।
भारत में कुछ विशेषज्ञों ने पुराने अध्यनों के आधार पर ब्लैक फंगस होने के कुछ अन्य संभावित कारणों का पता लगाया है जिसके अनुसार ब्लैक फंगस उन लोगों को अधिक प्रभावित करता है जिन्होंने इम्यूनिटी बढ़ाने के लिए जिंक सप्लीमेंट और आयरन सप्लीमेंट का अधिक इस्तेमाल करते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक ब्लैक फंगस को पनपने के लिए जिंक और आयरन सप्लीमेंट एक आदर्श वातावरण प्रदान करता है ।
ब्लैक फंगस से बचाव कैसे करें
ब्लैक फंगस बहुत आम बीमारी नहीं है बल्कि यह बहुत कमजोर प्रतिरोधक क्षमता वाले व्यक्तियों को ही प्रभावित करती हैं अतः ऐसा बिल्कुल भी नही है कि यह बीमारी उन सभी व्यक्तियों को हो सकती है जो कोविड 19 से ठीक होकर बाहर निकलें हैं ।
ब्लैक फंगस को शुरुआती स्तर पर पहचानना बहुत आवश्यक है, नहीं तो यह बाद में जानलेवा साबित हो सकती हैं इस बीमारी की शुरूआती स्तर पर पहचान नही होने का सबसे बड़ा कारण व्यक्ति को होने वाली अन्य बीमारी भी है चूंकि व्यक्ति अन्य बीमारी जैसे कोविड 19 से जूझ रहा होता हैं और उसी दौरान ब्लैक फंगस के कोविड समान लक्षण उभरते हैं जिसे पोस्ट कोविड सिंड्रोम मानकर इलाज किया जाता है कुछ दिन के बाद जब लक्षण गंभीर हो जातें हैं तो जांच शुरू होती हैं तब तक बहुत देर हो चुकी होती हैं।
अतः ऐसे व्यक्ति गंभीर बीमारी से उबर रहे हो, जिन्होंने हाल ही में स्टेराइड की अधिक मात्रा ली हो लक्षणों को शुरुआती स्तर पर ही पहचान कर उपचार शुरू करें।
ब्लैक फंगस से बचाव हेतू सुबह शाम नीम,से मंजन करें,फिटकरी,नमक या हल्दी को गर्म पानी में डालकर गरारे करें।
नाक में नारियल तेल या अणु तेल की दो बूंद डालें।
• नीम के औषधीय उपयोग
आज मानव जाति के सामने सबसे बड़ी चुनौती नित नई बीमारियों से पार पाने की बन गई है लेकिन सवाल भी बहुत अधिक खड़े
हो रहे हैं क्या वायरस,बेक्टेरिया, फफूंद अभी नये नये इस प्रथ्वी पर आये हैं, नहीं ना ,अरे ये तो तब से मानव के साथ है जब से मानव का प्रथ्वी पर अस्तित्व है और तब तक मानव के साथ प्रथ्वी पर रहेंगे जब तक कि मानव का अस्तित्व प्रथ्वी पर है इनमें से कुछ मनुष्य के लिए लाभकारी रहें हैं तो कुछ हानिकारक,अब ये मनुष्य को तय करना है कि वह हानिकारक वायरस,बेक्टेरिया और फफूंद से किस प्रकार निपटना चाहता है। यदि हम वायरस बेक्टेरिया और फफूंद द्वारा मनुष्य को संक्रमित करने के बाद इसका उपचार करने की विधि से निपटेंगे तो हो सकता है कुछ जीवन हमें कुर्बान करना पडे़ और हो सकता है इस विधि में संपूर्ण मानवजाति को खतरा पैदा हो जाए।
दूसरी विधि है मनुष्य की रोग-प्रतिरोधक क्षमता को इतना उन्नत रखा जाये जैसा कि प्राचीन आयुर्वेद ग्रंथों में वर्णित है और हमारे पूर्वजों ने भी इसका समर्थन करते हुए कहा है कि प्रथ्वी पर मानवजाति को लम्बे समय तक जिंदा रहना है तो सूक्ष्मजीवों के बीच रहकर "योग्यत्तम की उत्तरजीविता"वाला सिद्धांत अपनाना होगा। जिसमें हार हमेशा हानिकारक वायरस, बेक्टेरिया और फफूंद की ही हो ।
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