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अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

COUGH TREATMENT

--> कास या खाँसी एक ऐसी बीमारीं हैं, जो हर एक व्यक्ति चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग महिला हो या पुरूष सभी को प्रभावित करती हैं.खाँसी का प्रभाव व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर भी पड़ता हैं,जिसके कारण वह मेलजोल खत्म सा कर देता हैं,और घर मे ही सीमित हो जाता हैं. कभी-कभी तो खाँसी का दोरा इतना तीव्र रहता है कि पूरें शरीर का जोर लगाना पड़ता हैं.यदि खाँसी लम्बें समय तक बनी रहे तो tuberculosis होनें सम्भावना रहती हैं.या फिर दमा (asthma) भी हो जाता हैं. खाँसी का आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में उपचार करवाते हैं, तो सबसे बड़ी समस्या नींद की रहती हैं, क्योंकि allopathy में खाँसी की दवाईयों में नींद लानें वाले तत्व होते हैं जो मशीन पर काम करनें वालों के लिये दुर्घटना की वज़ह बन सकते हैं ऐसे मे आयुर्वैद चिकित्सा आशा की किरण बन कर उभरी हैं, क्योंकि यह पद्धति इस प्रकार के दुष्प्रभावों से मुक्त हैं.आईयें जानतें हैं क्या हैं उपचार ::- (१). यदि सुखी खाँसी हो और लम्बें इलाज़ के बाद भी ठीक नहीं हो रही हो तो अडूसा, हल्दी, तुलसी धतूरा पत्तियाँ को सम भाग मिलाकर छोटी-छोटी गोलीयाँ बना लें इन गोलीयों को सुबह-श

स्पांडिलाइटिस क्या हैं स्पांडिलाइटिस के कितने प्रकार होतें हैं स्पांडिलाइटिस के लक्षण और आयुर्वेदिक उपचार

स्पाँन्डिलाइटिस क्या हैं::- स्पाँडिलाइटिस रीढ़ की हड्डी से सम्बंधित बीमारीं हैं,जिसमें vertebrae column के जोड़ में सूजन, तनाव, दर्द, होता हैं. कई  केसो में एक से अधिक vertebrae सम्मिलित होते हैं. प्रकार::- १.potts disease SPONDYLITIS ::- यह एक tuberculosis हैं. 2.Ankylosing SPONDYLITIS::-यह auto immune SPONDYLITIS हैं, जो रीढ़ की हड्डी और socroiliac जोंड़ों के बीच होता हैं. इसे  spondylarthritis भी कहतें हैं. एक सँयुक्त प्रकार का भी SPONDYLITIS होता हैं जो जिसमें intervertebra disc के बीच में सूजन आ जाता है. Symptoms::- १.गर्दन के आस पास तेज असहनीय दर्द जो लगातार बढ़ता रहता हैं. २.चक्कर ,आँखों के आगे अँधेरा छाना. ३.उल्टी होना. ४.सूजन का लगातार गर्दन,पीठ,lumber के आसपास बने रहना. उपचार::- आयुर्वैद चिकित्सा पद्धति में इस बीमारीं का वर्णन मुख्यत: वात रोगों के अन्तर्गत आता हैं.और वात व्याधि का पूर्णत:उन्मूलन भी आयुर्वैद चिकित्सा की विशेषता हैं.आईयें जानें उपचार १.सर्वप्रथम पंचकर्म  से शुरूआत करतें हैं ,इसके अन्तर्गत वमन,विरेचन,स

DIABETES (मधुमेह)CAUSE SYMPTOM AND TREATMENT

#1. मधुमेह क्या हैं ::- मधुमेह मधुमेह या Diabetes mellitusआधुनिक विश्व की सबसे बड़ी एँव चुनोतींपूर्ण बीमारीं के रूप में आज हमारें सामनें  व्याप्त हैं.यह बीमारीं विश्व के हर तीसरें व्यक्ति में देखी जा रही हैं और धीरें इसका दायरा बुजुर्गों से युवा लोगो और बच्चों तक फेलता जा रहा हैं. मधुमेह मे रक्त में शर्करा की मात्रा बढ़ जाती हैं,और अग्नाशय से निकलनें वाला इंसुलिन नामक हार्मोंन जो इस शर्करा को नियत्रिंत करता हैं ,निकलना बन्द हो जाता हैं. भारत मधुमेह की वैश्विक राजधानी माना जाता है । आंकड़ों के अनुसार भारत में लगभग सात करोड़ लोग मधुमेह से ग्रसित है और 2030 तक यह आंकड़ा दस करोड़ पंहुचने का अनुमान है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मानना है कि भारत में 20 करोड़ लोग मधुमेह की प्रारंभिक अवस्था में जीवन यापन कर रहें हैं। #2.मधुमेह कितने प्रकार की होती है::- मधुमेह मुख्यत: तीन प्रकार का होता हैं: (१).टाइप १ मधुमेह:-इस प्रकार के मधुमेह में अग्नाशय में इंसुलिन बिल्कुल नहीं बनता ओर बाहरी इंसुलिन की सहायता से रक्त में शर्करा को नियत्रिंत करना पड़ता हैं. (२).टाइप २ मधुमेह:-इस प्रकार के

ASHWAGANDHA । अश्वगंधा के फायदे। indian ginseng

अश्वगंधा अश्वगंधा आयुर्वैद चिकित्सा में सेकड़ों वर्षों से अपना अनुपम स्थान रखता आया हैं,और वर्तमान समय में भी आधुनिक चिकित्सा शास्त्रीयों से लेकर अनुसंधान अघ्येताओं ने इसे महत्वपूर्ण बल्य ( strength) रसायन माना हैं .इसका  बायोलाजिकल नाम    withania somnifera हैं. यह ज़मीन मे कन्द रूप में मिलता हैं.  अश्वगंधा  दंशोमणि वाल्मिक इसके बारे में लिखते हैं-:        गन्धान्ता वाजिनामादिरश्वगन्धा हयाहर्या               वराहकर्णी वरदा बलदाकुष्ठगन्धिनी             अश्वगंधानिलश्लेष्मश्विशोधगयापहा.              बल्या रसायनी तिक्ता कषाग्रोष्णतिशुकला. अर्थात सार रूप में स्वाद में कषाय तिक्त( bitter) यह बल,बुद्धि, बाजीकरण देने वाला,शोथ और कुष्ठ को हरने वाला हैं. अश्वगंधा के फायदे १.मानसिक तनाव होनें पर अश्वगंधा चूर्ण को एक चम्मच सुबह शाम शहद के साथ सेवन करें. २. यदि शारिरीक सम्बंधों में कमी महसूस हो तो गोघ्रत के साथ सेवन करें. ३.गठिया वात में योगराज गुग्गल के साथ सम भाग मिलाकर अदरक रस के साथ सेवन करें. ४.चर्म रोगों में हल्दी के साथ एक-एक चम्मच मि

श्वेत प्रदर का आयुर्वेदिक उपचार

 श्वेत प्रदर क्या है--::          श्वेत प्रदर  का आयुर्वेदिक उपचार जानने से पहले यह जान लेते हैं श्वेत प्रदर क्यया होता हैं। श्वेत प्रदर स्त्रीयों से सम्बंधित रोग हैं,जिसमें योनि मार्ग से तरल सफेद पदार्थ का स्त्राव होता हैं. यह रोग मुख्यत: 18 से 50  वर्ष की स्त्रीयों को होता हैं. श्वेत प्रदर के कारण::- इस रोग के लिये मुख्यत बेक्टेरिया tricamosa उत्तरदायी होता हैं, जो निम्न कारणों से फेलता हैं-:   १. योनि की उचित साफ सफाई का अभाव.   २.माहवारी के दोरान संक्रमित सेनेटरी पेड़ का इस्तेमाल.   ३. संक्रमित व्यक्ति के साथ योन संसर्ग.   ४.बार-बार गर्भपात.  श्वेत प्रदर में क्या  होता हैं::-  १.कमर में लगातार दर्द जिससे देनिक कार्यों मे भी परेशानी होती हैं. २.चिड़चिड़ापन,काम मे अरूचि,सिरदर्द ,चक्कर,उल्टी. ३.पेट पर सूजन, वजन कम होना. ४.योन सम्बंधों में अरूचि. श्वेत प्रदर का आयुर्वेदिक उपचार::- १.पुष्यानुग चूर्ण, सुपारी पाक,अशोक छाल, माजूफल को विशेष अनुपात मे मिलाकर सेवन करवाते हैं २.आवँला चूर्ण शतावर चूर्ण, नागकेशर,दशमूल को फीटकर

एलोवेरा के स्वास्थ्यवर्धक फायदे

एलोवेरा के स्वास्थ्यवर्धक फायदे #1.एलोवेरा  क्या  हैं::-   एलोवेरा का वानस्पतिक नाम aloe barbadensis हैं,विश्व में इस पौधे की पाँच सौ से अधिक प्रजाति पायी जाती हैं.यह पौधा विश्व की सभी जलवायु में अपनें आप को अनूकूलित करनें की विशेषता रखता हैं. अपनें चोड़ें, नुकीलें,सदाबहार गुणों के कारण यह आसानी से पहचाना जा सकता हैं. इस पौधे में निन्यानवें  प्रतिशत जल और एक प्रतिशत गुदा होता हैं.  इसमें विटामिन सी और विटामिन  बी काम्पलेक्स प्रचुरता में विधमान रहता हैं.भारतीय मनीषी पाँच हजार वर्ष पूर्व से इसके उपयोग को लेकर परिचित है. ● यह भी पढ़े 👇👇👇 ● ट्यूबरक्लोसिस ० पंचकर्म क्या हैं ० धनिया के फायदे ० गौमुखासन   #2.वैघकीय उपयोग::-      (A). उदर रोगों में एलोवेरा का उपयोग कैसें करें  १. कब्ज होनें पर इसका ताजा गुदा सेवन करनें से कब्ज में आराम मिलता हैं.  २.अम्लपित्त (acidity) होनें पर आंवला  रस,लोकी रस एँव मिस्री को मिलाकर सेवन करें.  ३. पेट में ulcer हो तो  गुदा आटे मे मिलाकर रोगी को रोटी बनाकर खिलावें. ४.बवासीर में इसका 30 ग्राम गुदा मिश्री के साथ मिलाकर सुबह-शाम

लीवर, पीलिया और आयुर्वेद चिकित्सा द्वारा लीवर का प्रबंधन

लीवर, पीलिया और आयुर्वेद चिकित्सा द्वारा लीवर का प्रबंधन १. लीवर क्या हैं::-        लीवर हमारें शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि है,जिसका मुख्य काम शुद्धीकरण,विटामिन और आयरन का संग्रहण करना हैं.इसके अलावा शरीर मे शक्कर लेवल कम होनें पर संग्रहित शक्कर को शरीर में पहुँचाना, वसा को पचानें के लिये पित्त बनाना भी लीवर का काम हैं.इन्सुलिन  हिमोग्लोबिन व अन्य हार्मोंन को भी लीवर तोड़ता हैं.     २.लीवर से सम्बंधित बीमारींयाँ::-    (अ). हेपेटाइटिस (ब).पीलिया लीवर से सम्बंधित ये दो बीमारींयाँ आम तोर पर हर तीसरे व्यक्ति में अपनें जीवन काल मे आमतौर पर हो ही जाती हैं. ३.लीवर को चुस्त रखनें वाले आहार::-     (अ).हल्दी लीवर का सबसे प्रिय मसाला है जो शुद्धीकरण की प्रक्रिया को तेज करता हैं. (ब).अखरोट में मोजूद ओमेगा - ३ फेटीएसिड़ लीवर की प्राक्रतिक शुद्धिकरण की कार्यप्रणाली को मज़बूत बनाता हैं. (स) .लहसुन मे मोजूद सल्फर,एलिसीन सेलिनियम हानिकारक तत्वों की शुद्धिकरण करनें वाले एन्जाइम बनाते हैं. (द).ओलिव आँइल लीवर को तरल आधार देता हैं, जो विषाणु को सोख लेता हैं. (त).हरी पत्तेदार सब्

आर्गेनिक कीटनाशक बनाने की विधि How to make organic pesticides in Hindi

 कीट़ प्रभावित फसल आज कल सारें विश्व के विकासशील देशों के किसानों की प्रमुख समस्या खेती की बढ़ती लागत हैं.भारत में तो स्थति इतनी भयावह है कि रोज़ सेकड़ों किसान खेती में घाटा होनें पर सीधे  आत्महत्या का रास्ता चुनतें हैं. कई छोटी जोत के किसान तो ऐसे होते है कि  जिनके पास मंहगे खाद - बीज और दवाई का खर्च निकाल देने के बाद जीवन निर्वाह के लिये भी पैसा नहीं बचता ,आईयें  जानतें हैं सस्ते और प्रभावी फसल प्रबंधन के नायाब नुस्खें-:: #१.  आर्गेनिक कीट़नाशक बनानें की विधि --::    (अ). तीन लीट़र छाछ लेकर उसमें नीम तेल आधा लीटर,रतनजोत बीज़ आधा किलो पीस कर,गोमूत्र  तीन लीटर मिला दें ,इस घोल को  मिट्टी के घड़े में भर कर अच्छे से ढक्कन बंद कर ज़मीन से एक फीट़ गहराई में एक माह के लिये रख दें. (ब).एक माह पश्चात इसे निकाल लें #२.फसलों पर छिड़काव की विधि--:: (अ).आधा लीट़र घोल में पुन:सौ मि.ली.गोमूत्र मिलाकर इसे पन्द्रह लीटर जल में मिलाकर इल्ली वाली फसलों पर स्प्रींकिलर पम्प की सहायता से छींटें. (ब).यह प्रक्रिया पन्द्रह - पन्द्रह दिनों के अन्तराल से दो बार दोहरावें. ३.उपरोक्त व

PET CARE AND AYURVEDA

हम मे से कई लोगों को पालतू जानवरों का शोक होता हैं. और ये जानवर हमारें घर का हिस्सा बन जातें हैं, कई लोग इनके बीमार होनें पर परेशान हो जातें हैं.और सीधे वेटनरी अस्पताल दोड़ते हैं, यदि हम इन जानवरों की सही देखभाल करें तो इन्हें लम्बें समय तक स्वस्थ रख सकते हैं. प्राचीन काल में जब कोई पालतू जानवर बीमार हो जाता तो ऐसे ही आयुर्वैदिक उपचार के द्वारा उन्हें शीघ्र स्वस्थ कर लिया जाता था.आईयें जानतें हैं कुछ उपचार-:: १.यदि घरेलू जानवर को जुँए किलनियाँ हो जावें तो नीम पत्तियाँ, एलोवेरा गुदा, निम्बू रस,आवँला, को मिलाकर नहलानें से पहलें पूरे शरीर में लगा दे फिर नहला दे. २.यदि खुजली हो तो गंधक रसायन एक गोली रोज दे. ३.कभी- कभी pet's को सर्दी खाँसी हो जाती हैं ऐसे मे तुलसी, अदरक,लोंग, अडूसा,काली मिर्च,हल्दी, गुड़,को मिलाकर पानी मे उबाल लें इसे ठंडा कर एक कप सुबह शाम पीलावें ऐसा तीन दिनों तक करें हर बार नया काढ़ा बनायें. ४. कभी- कभी घर पर अधिक समय बंद रखनें से pet's के पाँव मुड़ जातें हैं ऐसी अवस्था मे अश्वगंधा चूर्ण और महानारायण तेल का सेवन एक-एक चम्मच सुबह शाम दूध के साथ करवाते रहें.

KIDNEY STONE AND AYURVEDA

 kidney किड़नी किडनी (kidney) या व्रक्क मनुष्य शरीर का महत्वपूर्ण अंग हैं,जिसकी सहायता से मनुष्य का शरीर साफ होता  हैं, इसके अलावा यह एक महत्वपूर्ण कार्य रक्त शोधन का करता हैं. यदि व्रक्क की कार्यप्रणाली प्रभावित होती हैं तो सम्पूर्ण शरीर रोगी हो जाता हैं.कभी-कभी केल्सि़यम की अधिकता की वजह से किड़नी मे पथरी बन जाती हैं,ये पथरी मूत्र मार्ग को अवरूद्ध कर भयकंर पीड़ा उत्पन्न करती हैं.आयुर्वैद इसका प्रभावी उपचार वर्णित करता हैं.आईये जानते है उपचार::-- १. हजरल यहूद भस्म, पाषाण भेद,श्वेत पर्पटी ,गोखरू,वरूण छाल, कंटकारी को मिलाकर गोमूत्र या शहद के साथ सेवन करें. २.त्रिफला चूर्ण को रात को सोते वक्त एक चम्मच लें ३.सो ग्राम गेंहू को आधा लीटर जल मे बारह घंटें तक भीगों दे तत्पश्चात इसे  जल आधा रहने तक उबाले इस जल को शहद के साथ सेवन करें ये क्रिया तीन दिनों तक करें. ४.जल पर्याप्त मात्रा में पीयें. ५.चन्द्र प्रभावटी दो-दो गोली सुबह- शाम सेवन करें. ६. योग नियमित रूप से करें इसके लिये योग गुरू की मदद लें. ७.केल्सियम की अधिकता वाले पदार्थों का सेवन न करें. ८.पत्थरचट्टा के हरें

आयुर्वेदिक दवाएं लेते समय क्या सावधानी रखनी चाहिए

आयुर्वेदिक दवाएं लेते समय क्या सावधानी रखनी चाहिए  आम तोर पर कई लोग आयुर्वेदिक दवाई के सेवन करने से पहले अनेक भ्रम पालकर बेठ जाते हैं कि आयुर्वेदिक दवाईयों मे परहेज ज्यादा रखना पड़ता हैं.और परहेज नहीं करने पर विपरीत परिणाम भोगने पड़ सकते हैं. वास्तव में यह बात सत्य नहीं कही जा सकती हैं क्योंकि मात्र आयुर्वैद ही इस प्रकार का प्रतिबंध नही लगाता बल्कि विश्व की सभी चिकित्सा प्रणाली के अपने-अपने नियम है, जिनकी सहायता से वह रोगो का निदान करती हैं . फिर इस सम्बंध मे मात्र आयुर्वैद को कटघरें मे खड़ा करना उचित प्रतित नहीं होता ,जो पदार्थ दवाईयों के प्रभाव को कम करता है या बीमारीं को बढ़ाता हैं उस पदार्थ को त्याग देना ही मेरे मत मे उचित होना चाहिये.आईयें जानतें है कुछ परहेज :- १. वात रोगो में गैस बनाने वाले पदार्थ जैसे बेसन आलू ,बेंगन इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिये. २. उदर विकार में मिर्च मसालेदार ,गरिष्ठ पदार्थ का परहेज करें. ३.  मनोविकारों उच्च रक्तचाप में काँफी शराब,चाय का परहेज करें. ४.खटाई का सेवन करने से आयुर्वैदिक दवाईयों की कार्यप्रणाली में बदलाव आता हैं ,अत: इनका सेवन न करें.

Hair problem and ayurveda

आज मैं आपका ध्यान एक महत्वपूर्ण समस्या की और आक्रष्ट करना चाहता हूँ, जो कि बालों से सम्बंधित हैं, आजकल यह समस्या हर घर मे आम हो चुकी हैं, चाहे महिला हो पुरूष बालक हो या बालिका हर पाँचवा व्यक्ति बालों से सम्बंधित समस्या से परेशान हैं. और इस कारण अपनें व्यक्तित्व में कमी महसूस करता हैं.आयुर्वैद चिकित्सा पद्धति हजारों वर्षों से प्राणी मात्र के कल्याण के लिये कार्य कर रही हैं ,और व्यक्ति को निरोगी कर रही हैं .इसकी इसी परिणामन्मुखी विशेषता के कारण यह विश्व में सर्वाधिक लोकप्रिय चिकित्सा पद्धति बनी हुई हैं. आईयें जानते हैं बालों से सम्बंधित समस्या का आयुर्वैदिक उपचार १.यदि बालों में रूसी हो गई हो तो नीम,तुलसी, एलोवेरा,निम्बू इन तीनों के रस को मिलाकर नहानें से दो घंटा पहले सिर में लगायें फिर सिर धो लें, ऐसा हफ्तें में तीन दिन करना हैं जब तक रूसी खत्म न हो ये उपाय करतें रहें. २. बाल बेजान ,रूखे हो गये हो तो काली मिट्टी रोज नहाते वक्त बालों में लगायें. ३. बाल झड़ रहें हो तो एलोवेरा और आवँला रस को मिलाकर बालों लगाकर हल्के हाथों से मालिश करें और फिर सिर धो लें.महाभ्रंगराज तेल नहानें

FEVER AND AYURVEDA

 आज हम fever या ज्वर की चर्चा करेंगें .ज्वर पीड़ित व्यक्ति का पूरा शरीर टूटता हैं,साथ ही शरीर का तापमान हमेशा उच्च बना रहता हैं.कभी-कभी तो ज्वर उपचार के बाद भी महिनों तक बना रहता हैं .ऐसी अवस्था में रोगी मानसिक रूप से काफी टूट जाता हैं. और मानसिक रूप से भी अस्वस्थ हो जाता हैं.आयुर्वैद चिकित्सा पद्ति की शरण मे इसी प्रकार के थके हारें रोगी आते हैं, और पूर्णत: स्वस्थ होकर लोटते हैं. आईयें जानतें हैं उपचार-: १.  अगर,हल्दी, देवदारू,वच,नागरमोथा,हरड़,नीम छाल, पुष्करमूल,बेल छाल, चिरायता,कुटकी और कालीमिर्च को मिलाकर दूध के साथ सुबह दोपहर शाम को सेवन करवाने से शर्तिया रूप से ज्वर में लाभ मिलता हैं. २.गिलोय का रस और वत्सनाभ को मिलाकर तीन-तीन चम्मच लें. ३. संजीवनी वटी दो-दो सुबह शाम शहद के साथ लें. ४. पूरे शरीर पर महानारायण तेल की मालिश करें  नोट-: वैघकीय परामर्श आवश्यक हैं.  Svyas845@gmail.com

HEADACHE AND AYURVEDA

 सिरदर्द एक आम समस्या हैं जिसका सामना हर एक व्यक्ति को करना पड़ता हैं.अनेक बार व्यक्ति इस रोग का सामना करता हैं परन्तु अधिकांश व्यक्ति इसे गंभीर रोग नहीं मानतें  दर्द निवारक लेकर फिर भूल जातें हैं कि कभी सिर दर्द हुआ था.फिर अगली बार जब दर्द होता हैं तब फिर दर्द निवारक की शरण में यह क्रम चलता रहता हैं. अब आईयें जानते हैं वास्तविकता सिर दर्द शरीर में होनें वाली कई आन्तरिक बीमारीयों का सूचक हैं इनमे शामिल हैं :- १. कब्ज २.गैस ३.गठिया  ४.उच्च रक्तचाप ५.मानसिक रोग ६. अर्श यदि सिरदर्द को गंभीर मानकर इसका समुचित प्रबंधन कर लिया जावें तो हम उपरोक्त बीमारींयों को आने से रोक सकतें हैं.आईयें जानते हैं उपचार-: १. सिरसूलादि वज्र रस,त्रिफला, शंख वटी,वत्सनाभ ,हल्दी, मिस्री,को मिलाकर शहद के साथ एक चम्मच रोज ले. २.गोघ्रत को दो- दो बूंद नाक में सोते वक्त ड़ाले. ३. बरगद पेड़ का दूध एक बूँद बतासे में मिलाकर हर आठवें दिन सेवन करें. ४.  योगिक क्रियाएँ कपालभाँति, भ्रामरी अनुलोम-विलोम करें.  ५.  जल पर्याप्त मात्रा में पीयें. ६. कम से कम १०१ बार ' ऊँ' का उच्चारण करें.

TRIPHLA CHURNA,TRIBHUVANKIRTI RAS

त्रिफला चूर्ण::- आयुर्वैद चिकित्सा पद्ति में वैसे तो सारी औषधियाँ प्रभावी हैं,परन्तु कुछ औषधियाँ ऐसी हैं,जिन्होनें आयुर्वैद को विश्व के सामनें प्रतिष्ठित किया हैं, त्रिफला भी इन्हीं मे से एक हैं.एक हरड़ ,दो बहेड़ा,और चार आवँला के अनुपात को मिलानें से त्रिफला बनता हैं. यह चूर्ण कफ-पित्त नाशक, कुष्ठ नाशक,कब्ज नाशक हैं.आईयें जानतें हैं इसके उपयोग-:: १.नेत्र रोगों में घी और शहद के साथ सेवन करें. २.खाँसी मे शहद और गाय के घी के साथ. ३. ज्वर होने पर दूध के साथ. ४. Hydrosil या व्रषणशोध में गोमूत्र के साथ. ५. भगन्दर में खदिर छाल के साथ. ६.मिर्गी में शहद के साथ. ७. भोजन में अरूचि हो तो जल के साथ. ८. शरीर पर सूजन हो तो हल्दी और मिस्री के साथ. ९.विषम ज्वर होनें पर गिलोय रस के साथ. त्रिभुवनकिर्ती रस (Tribhuvankirti ras)::::::: घट़क (content) ::: 1.शुद्ध हिंगुल (sudh hingul). 2.शुद्ध वत्सनाभ (sudh vatsnabh). 3.त्रिकटु (Trikatu). 4.शुद्ध टंकण (pure Tankan). 5.पिपली मूल (pippali mul). 6.तुलसी स्वरस (Tulsi swaras). 7.अदरक स्वरस (ginger juice)

WHAT IS AYURVEDA आयुर्वेद क्या हैं

                   .        अयुहिर्ताहितं व्याधेनिर्धानं शमनं तथा                     विघते यत्र विद्धाद्धि:   स: आयुर्वैद उच्चते  अर्थात जिस शास्त्र में आयु के लिये हितकारी और अहितकारी पदार्थों का वर्णन हो और रोगों के निदान और उत्पन्न होनें के कारण का वर्णन हो विद्धान लोग उसे आयुर्वैद कहते हैं.

कब्ज का सबसे उत्तम आयुर्वेदिक इलाज TREATMENT OF CONSTIPATION

कब्ज(Constipation) कब्ज आज के विश्व की सबसे बडी और जटिल समस्या के रूप में उभरा हैं. आज विश्व का हर तीसरा व्यक्ति कब्ज से परेशान हैं. और भोजन करने के बाद रात को पेट साफ रखने वाली औषधि की शरण मे जाता हैं. कब्ज को हम सारी बीमारींयों की जड़ कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी क्योंकि गेस,अपच,श्वास,सिरदर्द,वात व्याधि, सुस्ती,पेटदर्द,एसीडीटी और  हार्ट फेल तक कब्ज की वजह से हो सकता हैं. आधुनिक चिकित्सा पद्ति में कब्ज का कोई स्थाई इलाज नहीं हैं, जब तक उपचार लिया जाता हैं तब तक आराम रहता हैं, उपचार बन्द बीमारीं फिर शुरू, किन्तु आयुर्वैद कब्ज का रामबाण इलाज का दावा करता हैं.आईयें जानते हैं उपचार-: कब्ज का आयुर्वेदिक इलाज १.लघु सूतशेखर रस, श्वेत पर्पटी,प्रवाल पंचामृत रस, त्रिफला,सिनोय,अविपत्तिकर चूर्ण,बिल्व फल चूर्ण को मिलाकर सुबह शाम एक चम्मच गुनगुने जल के साथ सेवन करें . २.सुबह एक चम्मच   त्रिफला चूर्ण को आधे गिलास पानी मे भीगोंकर रख दे रात को सोते समय इस पानी का सेवन करें. ३.योगिक क्रिया कपालभाँति,पवनमुक्तासन नियमित रूप से करतें रहें. ४.पर्याप्त नींद अवश्य ले. ५.आम में पेट सा

AYURVEDA AND SKIN PROBLEMS

किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व को बनाने मे स्वस्थ त्वचा का योगदान किसी से भी छीपा नहीं हैं,प्राचीन काल में अनेक राजा महाराजा त्वचा से सम्बंधित समस्या होनें पर आयुर्वैद के जानकार रिषी मुनियों की शरण में जाया करते थे.और पूर्ण स्वस्थ होकर रिषी मुनियों को प्रचुर मात्रा में धन सम्पदा देकर लोटते थे.कहने का आशय यही हैं कि आयुर्वैद सदियों से लोगों के बीच लोकप्रिय हैं. आईयें आज त्वचा को सुंदर बनानें का आयुर्वैदिक नुस्खा आजमाते है-: १.यदि त्वचा पर मुहाँसे हो गये हो और ठीक नहीं हो रहें हो तो निम्न उपाय आजमाएँ हल्दी, नीम,मुलतानी मिट्टी ,गिलोय रस, दही,अदरक रस, एलोवेरा गुदा,पपीता गुदा मिलाकर पेस्ट बना ले इसे नहाने से पहलें मुँह पर लगायें तत्पश्चात आधे घंटे बाद स्नान करें. २.यदि आपकी त्वचा तेलीय हैं, तो मुलतानी मिट्टी में खीरे का रस एँव गुलाब जल मिलाकर सुखनें तक चेहरे पर लगाकर रखें,फिर धो ले. ३.तेलीय त्वचा वालों को ज्यादा तला हुआ भोजन नहीं करना चाहिये ,भोजन में सलाद अवश्य शामिल करें.पानी खूब पीयें. ४.यदि बार बार फोड़े- फुंसिया होते हो तो गिलोय रस, एलोवेरा रस, एँव आव

TREATMENT OF ANAEMIA

भारत और विश्व के अन्य विकासशील राष्ट्रों की एक महत्वपूर्ण समस्या रक्ताल्पता या (anemia) हैं,जिससे विश्व की दो तिहाई जनसँख्या जूझ रही हैं ,अनेक अनुसंधानों से यह बात साबित हो गई हैं कि महिलायें और बच्चें यदि अपनी पृारंभिक उम्र में रक्ताल्पता से ग्रसित हो जातें हैं, तो उनकी पूरी उम्र बीमारीयों का इलाज करते हुये गुजरती हैं,आयुर्वैद में इस बीमारीं का सुन्दर वर्णन कामला,पांडू के अन्तर्गत हैं. यदि सम्पूर्ण उपचार लिया जाय तो आयुर्वैद चिकित्सा पद्ति रक्ताल्पता का प्रभावी प्रबंधन करती हैं. आईयें जानते हैं उपचार-: ह्रदय की अनियमित धड़कन के बारें में जानें यहाँ १.लोह भस्म, नवायस लोह,शिलाजित, केसर, पुर्ननवा, द्राछा,रक्त चंदन, अश्वगंधा, मुनुक्का,बायबिडंग को  गाय के दूध में मिलाकर खीर की भाँति उबालकर लगातार आठ हफ्तों तक सेवन करें. २.लोहासव,पुर्ननवारिष्ट, अम्रतारिष्ट को दो- दो चम्मच मिलाकर भोजन के बाद सम भाग जल के साथ ले. ३.स्नान के पूर्व पूरे शरीर पर तिल तेल की मालिश करें. ४. योगिक क्रियाएँ कपालभाँति, अनुलोम-विलोम करें. नोट-: वैघकीय परामर्श आवश्यक हैं. ० fitness के लिये सतर

एसिडिटी का आयुर्वेदिक उपचार

एसिडिटी का आयुर्वेदिक उपचार आज हम आयुर्वैद चिकित्सा पद्ति के अन्तर्गत अम्लपित्त या acidity की चर्चा करेंगें ,आयुर्वैद चिकित्सा मे इस बीमारीं का पृभावी उपचार वर्णित हैं. आयुर्वैद का सर्वपृथम उद्देश्य है, कि व्यक्ति सदैंव निरोगी रहता हुआ अपना जीवन यापन करें और यदि बीमार हो भी जायें तो शीघृ स्वस्थ भी हो आयुर्वैद इसी सिध्दांत पर काम करता हैं. वास्तव में acidity अनियमित चटपटा मिर्च - मसालेदार खान- पान के साथ लम्बें समय तक बेठकर काम करते रहनें का परिणाम हैं.लम्बें समय तक इस रोग को अनदेखा करनें से पेट से लगाकर आहारनाल तक छाले होने का खतरा रहता हैं. आईयें जानते हैं उपचार-:: १.सूतशेखर रस मंडूर भस्म ,पृवाल पंचामृत, चितृकादि ,कामदूधा रस को विशेष अनुपात मे मिलाकर सेवन करवाते हैं. २.सिद्धामृत भस्म को आधा चम्मच लेकर उसे शहद मे मिलाकर सुबह शाम भोजन के बाद ले. ३. हिंग्वाष्टक चूर्ण को भोजन करने से पूर्व रोटी के साथ लगाकर दो कोर खावें. ४.  पृतिदिन सुबह शाम कम से कम पाँच कि.मी.धूूमें. ५. हल्का सुपाच्य मिर्च मसाला रहित भोजन करें. ६. पृतिदिन कम से कम बारह से पन्दृह गिलास पानी पीनें की आदत डालें.