सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

Tips for 100 years life: 100 साल जीना हैं तो ये 10 उपाय अपनायें

Tips for 100 years life


वैदिक कालीन भारतीय जीवन व्यवस्था में मनुष्य का जीवन 100 वर्ष निर्धारित था।  100 वर्षों के जीवन को  चार भागों में विभाजित किया गया था,ये चार भाग थे ,ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास । इन चारों आश्रमों को क्रमशः 25 - 25 वर्षो में विभाजित किया गया था । 


मनुष्य इन आश्रमों के मध्य जीवन जीता था और अंत मे मोक्ष को प्राप्त करता था।


किन्तु आधुनिक युग की बात करें तो क्या हम 100 साल का जीवन जी पाते हैं ?


कुछ कुछ बिरले लोग ही होते है जो 100 वर्ष की उम्र जीते है। भारत में तो सेवानिवृति के बाद के जीवन को लोग बोनस लाइफ कहने लगे हैं।



अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस जैसे विकसित देशो में भी नागरिकों का औसत जीवन 75 साल के लगभग हैं।


ऐसे में सवाल उठता है कि क्या भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति को अपनाकर उम्र के 100 बसंत पूरे किये जा सकते है ?


जवाब निश्चित रूप में हां हैं, आइये जानते हैं भारतीय जीवन दर्शन और संस्कृति के इन तरीकों के बारे में ---
लम्बी उम्र का राज
 सो साल कैसे जिये



Tips for 100 years life




# 1 . उचित आहार 



महर्षि चरक ने मनुष्य द्वारा ग्रहण किये जाने वाले आहार के बारे में बताया हैं कि 

आहारस्यविधावष्टो विशेषाहेतूसांज्ञकाअः शुभाशुभसमुत्तपतोत्तात्परीक्ष्योपयोजयेत्।।
परिहार्यण्यपथयोनिसदापरिहरनरः भवत्नृणतांप्राप्तअःसाधूनामिहपण्डितः


अर्थात आहार के विषय में मनुष्य को शुभ अशुभ का भलीभांति ध्यान रखते हुए जो त्याग वस्तुयें हैं उनको त्याग देना चाहिए अर्थात जो शरीर के अनुकूल  नहीं हैं, उनका सेवन नहीं करना चाहिए। तथा जो शरीर के हित मे हैं उनका सेवन करना चाहिए।


ऐसा करने वाला मनुष्य सुख को प्राप्त करता हुआ इतना जीवन जीता हैं कि तीनों ऋणों से उऋण हो जाता हैं, अर्थात व्यक्ति इतनी उम्र तक जीता हैं जब तक कि वह अपने सम्पूर्ण पारिवारिक कर्तव्यों से मुक्त न हो जाये।


#2  आहार कैसा होना चाहिए :::


यदि मनुष्य चाहता है कि उसे जीवन शैली से सम्बधित बीमारियाँ ना हो और वह लम्बा जीवन जिये तो उसे भोजन कितना करना चाहिए,भोजन कैसा हो इस विषय पर भी आयुर्वेद के अनुसार आचरण करना चाहिए । इस विषय पर आयुर्वेद ग्रन्थों में लिखा हैं की

त्रिविधँकुक्षौस्थापयेदवकाशाँशमाहारस्याहारमुपमुल्लानः तधैथैकमवकाशांशमूर्तानामाहार विकाराणामेकंद्रवाणामेकंपुनवातपित्तशलेष्माणम्



अर्थात भोजन के तीन भाग होने चाहिए प्रथम भाग ठोस हो जिसमें रोटी, चावल जैसे अन्न सम्मिलित हो ,दूसरा भाग तरल हो जिसमें दाल,सब्जी,सम्मिलित हो । तथा तीसरा भाग रिक्त हो अर्थात पेट खाली होना चाहिए।

• शास्त्रों के अनुसार भोजन करने के नियम विस्तारपूर्वक


यह भोजन इन्द्रियों को सम्पुष्ट करता हैं ।और व्यक्ति गम्भीर बीमारियों से बचकर जीवन के 100 बसंत अवश्य पूरे करता हैं।



विटामिन डी के बारे में जानें


#3 . स्वास्थ्य को सम्पदा मानिये ::


वैदिक कालीन सभ्यता और संस्कृति की बात करे उस काल में व्यक्ति का ध्यान अध्यात्म, संस्कृति, समाज की उन्नति पर अधिक था।यही कारण था।कि व्यक्ति खुशहाल होने के साथ लम्बा और गुणवत्तापूर्ण जीवन जीता था।


किंतु आधुनिक काल में तमाम जरूरी सुविधाएं उन्नत रूप में मौजूद होने के बावजूद,आद्यात्म,सभ्यता, संस्कृति और जीवन दर्शन पतन की और उन्मुख हैं।ये पतन की और उन्मुख होने से व्यक्ति का स्वास्थ्य भी इसी के अनुरूप प्रभावित होकर पतन की और उन्मुख हो गया हैं।


गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य आधुनिक काल में दूर की कौड़ी नजर आने लगा हैं।क्योंकि व्यक्ति भौतिक दुनिया की चकाचौंध में सिर्फ पैसों को ही महत्व प्रदान कर रहा हैं, ये पैसा कैसे कमाया जा रहा इससे कोई मतलब नही रख रहा हैं।और इस चक्कर में उसने अपना स्वास्थ्य ,शान्ति सब कुछ पीछे छोड़ दिया है। फलस्वरूप व्यक्ति अनेक शारीरिक मानसिक परेशानियों से जुझ रहा है।

यदि व्यक्ति चाहता हैं कि वह लम्बा और गुणवत्तापूर्ण जीवन व्यतीत करें तो उसे चाहिए कि वह स्वास्थ्य को भारतीय संस्कृति और जीवन दर्शन के अनुरूप पहली प्राथमिकता प्रदान करें।

# 4.आध्यात्मिक जीवन  ::


वैदिक काल में धर्म का जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था। व्यक्ति उन कामों को कभी नही करता था जो उसके धार्मिक रीति रिवाजों के विरुद्ध होते थे ।जिसकी वजह से सम्पूर्ण समाज माला की तरह एक सूत्र में पिरोया हुआ था।

किन्तु आधुनिक युग में व्यक्ति धर्म, आध्यत्म की शरण में तभी जाता हैं, जबतक वह किसी मुसीबत में न हो।

अनेक शोधों से यह बात प्रमाणित हुई हैं कि जो व्यक्ति धर्म, अध्यात्म में जीवन व्यतीत करता हैं उसकी जीवन प्रत्याशा उन लोगों की अपेक्षा अधिक होती हैं जो नास्तिक होते हैं।

# 5.दूसरों से अपनी तुलना न करें ##


प्रत्येक जीव ईश्वर की अनुपम कृति हैं, जिसे उसने एक विशेष योग्यता के साथ इस पृथ्वी पर भेजा हैं, इस बात को विज्ञान भी मानता हैं।यदि व्यक्ति दूसरों जैसा बनने का अस्वाभाविक प्रयास करेगा तो उसकी DNA संरचना भी अस्वाभाविक रूप में प्रभावित होगी और मनुष्य कई रोगों से ग्रसित हो जाएगा फलस्वरूप लम्बा जीवन जीना कठिन हो जायेगा।

प्रत्येक व्यक्ति को आत्मावलोकन करने पर पता चलेगा की वह किस क्षेत्र में अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकता हैं ,परन्तु दूसरे जैसा बनने की होड़ में मनुष्य ने इस चीज को विस्मृत कर दिया हैं, फलस्वरूप उसने अपने समय और स्वास्थ्य को अपार क्षति पहुंचाई हैं। 

अतः लम्बा जीवन जीने के लिये आवश्यक हैं कि दूसरों से अपनी तुलना बन्द करे।

#6. योग और व्यायाम को जीवन का अनिवार्य अंग बनाये :::



लम्बा और गुणवत्तापूर्ण जीवन जीने के लिये न केवल खान पान पर ध्यान देना चाहिये बल्कि योग और व्यायाम जीवन का अनिवार्य अंग होना चाहिये।

प्रतिदिन नियमित रूप से योग और व्यायाम करने से शरीर में ऑक्सीजन का स्तर बढ़ जाता हैं, जिससे कोशिकायें लम्बे समय तक जिंदा रहती है।

आधुनिक शोधों से पता चलता हैं कि प्रतिदिन योग और व्यायाम करने वाले व्यक्तियों की आयु उन व्यक्तियों से कही अधिक होती हैं जो नियमित योग और व्यायाम नहीं करते हैं।

भारत और अमेरिका में हुए एक शोध के अनुसार यदि मनुष्य रोज 10 किमी रोज पैदल चले तो उसकी जिंदगी में अतिरिक्त15 साल जुड़ जाते हैं।

योग और व्यायाम करने से शरीर लचीला और फुर्तीला बनता हैं जो अंततः लम्बा जीवन जीने में सहायक होता हैं।


#7. स्वास्थ्य की नियमित जांच करवाएं :::


35 साल की उम्र होने के बाद प्रत्येक स्त्री और पुरूष को प्रतिवर्ष अपने शरीर की नियमित जांच करवाना चाहिए।चाहें व्यक्ति बीमार हो या नहीं।
नियमित स्वास्थ्य की जांच होने से व्यक्ति की गम्भीर बीमारियों का समय रहते पता लगाया जा सकता हैं।जिससे उनका समाधान सम्भव हो जाता हैं।

इस विषय में हमारे प्राचीन चिकित्सा ग्रन्थो में लिखा गया हैं कि 



यस्तुप्रागेवरोगेभ्यौरोगेषुतरुणेषुच।भेषजंकुरुतेसम्यकसचिरंसुखमश्नुते।।

जो मनुष्य रोग होने के पश्चात यथाशीघ्र रोग निवारण का उपाय कर लेते हैं।वे शरीर के सुख को सुखपूर्वक भोगते हैं।



एक अन्य ग्रन्थ में इस विषय पर लिखा हैं कि

यथास्वल्पेनयत्नेनच्छिघतेतरूणस्तरू:।सयेवातिप्रवृद्धस्तुनसुच्छेघतमोोोभवेत्।।एवमेवविकारोअपितरूणःसाध्धयतेेेसुखम।विव्रद्धःसाधयतेकर्छादसाध्धयोवापि जायते।।


अर्थात जिस प्रकार छोटे पौधें को उखाड़ना सरल होता हैं ,जबकि विशाल वृक्ष को उखाड़ना अत्यंत कठिन उसी प्रकार नवीन रोग का तुरंत शमन किया जा सकता हैं, जबकि जीर्ण रोग का का शमन अत्यंत कठिन हो जाता हैं।

इस प्रकार रोग का तुरन्त शमन करने वाला व्यक्ति दीर्घ आयु को प्राप्त करता हैं।



#8. जैविक खाद्य पदार्थों का सेवन करें :::

आजकल रासायनिक खादों, कीटनाशको से उत्पादित फल,सब्जियां, और अनाज की वजह से मनुष्य की DNA संरचना परिवर्तित होकर बीमारियों के प्रति अति संवेदनशील हो गई हैं,फलस्वरूप कैंसर जैसी घातक बीमारी बहुत तेजी से मनुष्य की ज़िंदगी लील रही हैं।

इन बीमारियों से बचने का उपाय जैविक खाद्य पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देना हैं।यदि हम जैविक खाद्य पदार्थों के उपयोग को बढ़ावा देते हैं तो न केवल स्वास्थ्य को संरक्षित कर सकते हैं, बल्कि बहुमूल्य पर्यावरण और पारिस्थितिक सन्तुलन को भी बचा सकते हैं

# 9.विनम्रता रखें अहंकार त्यागें :::


अनेक शोधों से यह बात प्रमाणित हुई हैं कि जिन व्यक्तियों ने अपने जीवन में दूसरों के प्रति विनम्रता रखी उसकी पूरी जिंदगी लम्बी और गुणवत्ता वाली रही अर्थात पूरी ज़िंदगी में उसे बहुत मामूली रोगों ने परेशान किया।


जबकि इसके विपरीत जिन लोगों ने अपने सहकर्मियों, दोस्तों, परिवार वालों के साथ मनमुटाव रखा उनकी जिंदगी बहुत सारी बीमारियों के साथ कटी और उनकी उम्र भी इससे प्रभावित हुई।

विनम्र और सबके साथ मिलजुलकर रहने वाले व्यक्ति की उम्र उन व्यक्तियों से 30% तक अधिक होती हैं। 


विनम्र रहने को एक उदाहरण द्वारा समझ सकते हैं ,जब नदी उफान पर आती हैं तो अनेक सीधे और अकड़ू पेड़ नदी के बहाव में बह जाते हैं जबकि नदी के बहाव के साथ झुक जाने वाले अनेक छोटे पेड़ नदी का उफान खत्म होने के बाद भी वहीं खड़े रहते हैं।

इसी प्रकार लोगों से बातचीत में मीठी वाणी का प्रयोग करें ,मीठी वाणी से हम अपने साथ दूसरों की आत्मा को भी प्रशन्न करतें हैं ।

एक जगह तुलसीदास जी लिखतें हैं

तुलसी मीठे वचन ते सुख उपजत चंहु ओर।बसीकरन एक मंत्र है,परिहरू वचन कठोर ।।

अर्थात मीठे वचन से चारों और खुशीयाँ फैलकर हर कोई आपके वश में हो जाता हैं। मीठे वचन दूसरें का वशीकरण करनें का बहुत बड़ा मंत्र हैं ।


#10. जितेन्द्रिय बने :::


जितेन्द्रियंनानुपतिरोगास्तकालयुक्तमदिनसितदैवम्


अर्थात व्यक्ति ने अपनी समस्त इन्द्रियों को अपने ऊपर शासित नहीं होने दिया बल्कि व्यक्ति ने शाशक बन इन पर नियंत्रण रखा तो व्यक्ति रोगों और इच्छाओं से स्वयं बलवान होकर बहुत लम्बा जीवन व्यतीत करता हैं।



#11. जीवन आपका हैं फिर दूसरों को दोष क्यों ?

यह जीवन आपका अपना हैं इसको संवारने और बिगाड़ने की पूरी जिम्मेदारी भी आपकी हैं दोषारोपण सिर्फ आपकी आत्मा को कष्ट पंहुंचाता हैं । 

महात्मा गाँधी दूसरों पर दोषारोपण करने की बजाय अपने शरीर को कष्ट देंना ज्यादा उचित समझते थे ।

शास्त्रों में लिखा हैं ::-


ये त्वेनमनुवर्तन्ते क्लिश्य्मनम् स्वकर्मणा। न तन्निमित : क्लेशॉसौ न ह्स्तिक्रुत्क्रुत्य्ता ।।

अर्थात जो मनुष्य अपने कर्मों से कष्ट भोगते हैं और अपने इन कष्टों के लिये देवताओं को दोष देते हैं ।जबकि वास्तविक रूप से इनकों प्राप्त कष्ट इनके कर्मों के कारण ही  हैं । इस प्रकार के मनुष्य सम्पूर्ण रूप से झूठे हैं ।

एक अन्य स्थान पर बुद्धिमानों के बारे में बात करते हुए शास्त्रों में लिखा हैं की 


आत्मन्नेव मन्यते कर्तारम सुखदुख:यो। त्स्माच्येस्क्र्ण मार्ग प्रतिपघेत नोत्रसेत् ।।

अर्थात बुद्धिमान मनुष्य को अपने आप को ही सुख दुःख का कारण माने और कल्याण करने वाले मार्ग पर चलता रहे । ऐसा करने वाला मनुष्य त्रास को प्राप्त नहीं होता हैं ।


उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी आयु के संदर्भ में लगातार शोध जारी हैं किंतु अभी तक आंशिक सफलता ही प्राप्त हुई हैं यदि हम इन शोधों के साथ भारतीय प्राचीन ग्रंथों से प्राप्त ज्ञान को समाहित कर विचार करें तो उत्तम स्वास्थ्य के साथ लम्बी आयु भी प्राप्त कर सकते हैं।

और यदि हमने ऐसा नही किया तो फिर लम्बी आयु के लिए कोई दूसरा गृह ही खोजना पड़ेगा ।


                    ।। इति शुभम भवतु।।


यह भी पढ़े ▶▶▶

० आयुर्वेदिक ओषधि सूचि




० च्वनप्राश


• हेल्दी लाइफस्टाइल







x

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER

PATANJALI BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER  पतंजलि आयुर्वेद ने high blood pressure की नई गोली BPGRIT निकाली हैं। इसके पहले पतंजलि आयुर्वेद ने उच्च रक्तचाप के लिए Divya Mukta Vati निकाली थी। अब सवाल उठता हैं कि पतंजलि आयुर्वेद को मुक्ता वटी के अलावा बीपी ग्रिट निकालने की क्या आवश्यकता बढ़ी। तो आईए जानतें हैं BPGRIT VS DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER के बारें में कुछ महत्वपूर्ण बातें BPGRIT INGREDIENTS 1.अर्जुन छाल चूर्ण ( Terminalia Arjuna ) 150 मिलीग्राम 2.अनारदाना ( Punica granatum ) 100 मिलीग्राम 3.गोखरु ( Tribulus Terrestris  ) 100 मिलीग्राम 4.लहसुन ( Allium sativam ) 100  मिलीग्राम 5.दालचीनी (Cinnamon zeylanicun) 50 मिलीग्राम 6.शुद्ध  गुग्गुल ( Commiphora mukul )  7.गोंद रेजिन 10 मिलीग्राम 8.बबूल‌ गोंद 8 मिलीग्राम 9.टेल्कम (Hydrated Magnesium silicate) 8 मिलीग्राम 10. Microcrystlline cellulose 16 मिलीग्राम 11. Sodium carboxmethyle cellulose 8 मिलीग्राम DIVYA MUKTA VATI EXTRA POWER INGREDIENTS 1.गजवा  ( Onosma Bracteatum) 2.ब्राम्ही ( Bacopa monnieri) 3.शंखपुष्पी (Convolvulus pl

गेरू के औषधीय प्रयोग

गेरू के औषधीय प्रयोग गेरू के औषधीय प्रयोग   आयुर्वेद चिकित्सा में कुछ औषधीयाँ सामान्य जन के मन में  इतना आश्चर्य पैदा करती हैं कि कई लोग इन्हें तब तक औषधी नही मानतें जब तक की इनके विशिष्ट प्रभाव को महसूस नही कर लें । गेरु भी उसी श्रेणी की   आयुर्वेदिक औषधी   हैं। जो सामान्य मिट्टी   से   कहीं अधिक   इसके   विशिष्ट गुणों के लिए जानी जाती हैं। गेरु लाल रंग की मिट्टी होती हैं। जो सम्पूर्ण भारत में बहुतायत मात्रा में मिलती हैं। इसे गेरु या सेनागेरु कहते हैं। गेरू  आयुर्वेद की विशिष्ट औषधि हैं जिसका प्रयोग रोग निदान में बहुतायत किया जाता हैं । गेरू का संस्कृत नाम  गेरू को संस्कृत में गेरिक ,स्वर्णगेरिक तथा पाषाण गेरिक के नाम से जाना जाता हैं । गेरू का लेटिन नाम  गेरू   silicate of aluminia  के नाम से जानी जाती हैं । गेरू की आयुर्वेद मतानुसार प्रकृति गेरू स्निग्ध ,मधुर कसैला ,और शीतल होता हैं । गेरू के औषधीय प्रयोग 1. आंतरिक रक्तस्त्राव रोकनें में गेरू शरीर के किसी भी हिस्से में होनें वाले रक्तस्त्राव को कम करने वाली सर्वमान्य औषधी हैं । इसके ल

होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर #1 से नम्बर #28 तक Homeopathic bio combination in hindi

  1.बायो काम्बिनेशन नम्बर 1 एनिमिया के लिये होम्योपैथिक बायोकाम्बिनेशन नम्बर 1 का उपयोग रक्ताल्पता या एनिमिया को दूर करनें के लियें किया जाता हैं । रक्ताल्पता या एनिमिया शरीर की एक ऐसी अवस्था हैं जिसमें रक्त में हिमोग्लोबिन की सघनता कम हो जाती हैं । हिमोग्लोबिन की कमी होनें से रक्त में आक्सीजन कम परिवहन हो पाता हैं ।  W.H.O.के अनुसार यदि पुरूष में 13 gm/100 ML ,और स्त्री में 12 gm/100ML से कम हिमोग्लोबिन रक्त में हैं तो इसका मतलब हैं कि व्यक्ति एनिमिक या रक्ताल्पता से ग्रसित हैं । एनिमिया के लक्षण ::: 1.शरीर में थकान 2.काम करतें समय साँस लेनें में परेशानी होना 3.चक्कर  आना  4.सिरदर्द 5. हाथों की हथेली और चेहरा पीला होना 6.ह्रदय की असामान्य धड़कन 7.ankle पर सूजन आना 8. अधिक उम्र के लोगों में ह्रदय शूल होना 9.किसी चोंट या बीमारी के कारण शरीर से अधिक रक्त निकलना बायोकाम्बिनेशन नम्बर  1 के मुख्य घटक ० केल्केरिया फास्फोरिका 3x ० फेंरम फास्फोरिकम 3x ० नेट्रम म्यूरिटिकम 6x